
क्या आप जानते हैं थाई पूसाम 2026 कब है? यहां जानें इसकी तिथि, पूजा-विधि, भगवान मुरुगन की उपासना का महत्व और इस दिन किए जाने वाले विशेष अनुष्ठान — सब कुछ एक ही जगह!
तमिल कैलेंडर में थाई 10वें महीने को कहा जाता है, जो 15 जनवरी से 12 फरवरी के बीच होता है और इसमें 29 या 30 दिन होते हैं। 'थाई पूसम' दक्षिण भारत का एक प्रमुख पर्व है, जो तमिल मास थाई की ‘पूर्णिमा’ पर ‘पुष्य नक्षत्र’ के संयोग पर मनाया जाता है। अब आप सोचेंगे, कि पूर्णिमा तो हर महीने आती है फिर थाई पूसम इतना महत्वपूर्ण क्यों है? तो आइए इसके बारे में आपको बताते हैं।
वर्ष 2026 में थाई पूसम रविवार, 1 फरवरी 2026 को मनाया जाएगा।
तमिल कैलेंडर के अनुसार, यह दिन थाई माह की पूर्णिमा पर आता है जब पुशम नक्षत्र होता है। यह संयोग भगवान मुरुगन को वेल (दिव्य भाला) प्राप्त होने का स्मरण कराता है। इसी कारण इस दिन को थाई पूसम नाम मिला। “थाई” यानी तमिल महीना और “पूसम” यानी वह शुभ नक्षत्र।
इस दिन विश्वभर में लाखों भक्त विशेष रूप से दक्षिण भारत, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, मॉरिशस और इंडोनेशिया जैसे देशों में थाई पूसम का पर्व बड़े उत्साह और आस्था से मनाते हैं।
थाई पूसम केवल भगवान मुरुगन की पूजा का दिन नहीं, बल्कि आत्मिक परिवर्तन और आध्यात्मिक उत्थान का अवसर है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि जब जीवन में अंधकार छा जाए, तब ईश्वर की शक्ति के प्रति समर्पण और भक्ति ही सबसे बड़ा प्रकाश है।
कहा जाता है कि इस दिन भगवान मुरुगन को उनकी माता पार्वती ने “वेल” (त्रिशूल जैसा भाला) प्रदान किया था, जिससे उन्होंने दुष्ट असुर सूरपद्मन का संहार किया। यह घटना अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है।
थाई पूसम के माध्यम से भक्त यह प्रण लेते हैं कि वे अपने जीवन से नकारात्मकता, क्रोध, अहंकार और कामनाओं को त्यागेंगे। यह पर्व आत्मसंयम, तपस्या, और शुद्धता का संदेश देता है। भक्त अपने शरीर को पीड़ा देकर, उपवास रखकर, और मानसिक व्रत के माध्यम से ईश्वर के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हैं।
थाई पूसम के पीछे एक अत्यंत प्रेरणादायक पौराणिक कथा है जो शिव, पार्वती और उनके पुत्र मुरुगन से जुड़ी है।
बहुत समय पहले असुर सूरपद्मन और उसके भाइयों ने तीनों लोकों पर अत्याचार शुरू कर दिया था। देवता असहाय हो गए और उन्होंने भगवान शिव से सहायता की प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख के तेज से मुरुगन का जन्म किया, जो युद्ध और ज्ञान के देवता माने गए।
जब मुरुगन बड़े हुए, तब माता पार्वती ने उन्हें “वेल” नामक दिव्य भाला प्रदान किया, जो शक्ति, न्याय और धर्म का प्रतीक माना जाता है। इस वेल की शक्ति से मुरुगन ने असुरों का संहार कर देवताओं को पुनः स्वर्ग का राज्य दिलाया। यह घटना थाई माह की पूर्णिमा और पुशम नक्षत्र के दिन घटी थी। तभी से इस दिन को थाई पूसम कहा जाने लगा।
भगवान मुरुगन को दक्षिण भारत में कार्तिकेय, सुब्रह्मण्यम, स्कन्द और वेल मुरुगन के नाम से जाना जाता है। वे शिव-पार्वती के पुत्र और भगवान गणेश के छोटे भाई हैं। मुरुगन ज्ञान, शक्ति, साहस और विवेक के देवता हैं।
थाई पूसम का संबंध उनसे गहराई से जुड़ा है क्योंकि इसी दिन उन्होंने दिव्य वेल प्राप्त की थी। इस दिन भक्त भगवान मुरुगन से अपनी आत्मा को शुद्ध करने और अपने जीवन के अंधकार को दूर करने की प्रार्थना करते हैं। कहा जाता है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और संयम से इस व्रत को करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
थाई पूसम के दिन भक्त कठोर व्रत रखते हैं और पूरे दिन ईश्वर के प्रति समर्पित रहते हैं। इस व्रत का उद्देश्य केवल शारीरिक तपस्या नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म से पवित्रता बनाए रखना है।
ये थी 'थाई पूसम' से जुड़ी विशेष जानकारी। हमारी कामना है कि इस दिन आपके द्वारा किया गया व्रत-अनुष्ठान सफल हो, और भगवान मुरुगन की कृपा आप पर सदा बनी रहे। ऐसे ही व्रत-त्योहारों व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए ‘श्री मंदिर’ पर।
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