
क्या आप जानते हैं कुंभ संक्रांति 2026 कब है? यहां जानें इसकी तिथि, महत्व, पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त और इस दिन किए जाने वाले धार्मिक कर्मों का महत्व — सब कुछ एक ही जगह!
कुंभ संक्रांति सूर्य के मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करने के अवसर पर आती है। यह खगोलिय और धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखती है। इस दिन स्नान, दान और पवित्र स्थलों की यात्रा करने का विशेष पुण्य माना जाता है। कुंभ संक्रांति से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
कुंभ संक्रांति हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और शुभ पर्व है, जो उस समय मनाया जाता है जब सूर्य देव मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य का यह गोचर न केवल खगोलीय रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत फलदायी माना गया है। इस पावन दिन का संबंध दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक आयोजन कुंभ मेले से भी जुड़ा है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान कर पापों और नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति की कामना करते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा, तर्पण, दान और पवित्र नदी में स्नान करने से जीवन में दीर्घायु, सौभाग्य, सुख-समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है। यह दिन सूर्य देव और उनके पुत्र शनि देव के शुभ मिलन का संकेत भी देता है, जो इस तिथि को और अधिक कल्याणकारी बना देता है। कुंभ संक्रांति का पर्व पूरे देश में उत्साह, आस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ मनाया जाता है।
पंचांग के अनुसार वर्ष 2026 में कुंभ संक्रांति मंगलवार, 20 जनवरी को पड़ेगी। इस शुभ काल में किए गए स्नान, दान और सूर्य देव की उपासना का फल कई गुना बढ़ जाता है।
कुंभ संक्रांति हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ और पवित्र दिन माना गया है, क्योंकि इसी दिन सूर्य देव मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को सभी ग्रहों का पिता और आत्मा का कारक कहा गया है, इसलिए उनकी स्थिति में होने वाला यह परिवर्तन बहुत फलदायी माना जाता है।
इस पावन अवसर पर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान, विशेषकर गंगा स्नान, अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। शास्त्रों के अनुसार संक्रांति के दिन पवित्र नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है और ब्रह्म लोक की प्राप्ति का भी विधान है। देवी-पुराण में उल्लेख है कि इस दिन स्नान न करने वाला व्यक्ति कई जन्मों तक दरिद्रता का सामना करता है।
सूर्य देव को जल चढ़ाकर अर्घ्य देना, आदित्य भगवान की पूजा करना और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना कुंभ संक्रांति का प्रमुख अंग है। माना जाता है कि सूर्य की आराधना करने से आयु बढ़ती है, जीवन के दोष दूर होते हैं और सफलता के मार्ग प्रशस्त होते हैं। सूर्य के इस गोचर से ऋतुओं, जलवायु और प्रकृति में भी सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
कुंभ संक्रांति पर दान-पुण्य का विशेष महत्व है। गरीबों को भोजन, वस्त्र, तिल, गुड़, और धन का दान करने से अनेक जन्मों का पुण्य प्राप्त होता है। भारत के कई पवित्र स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन—में भक्त विशेष रूप से इस दिन स्नान और पूजा के लिए एकत्रित होते हैं, जिससे इसका आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
कटे-फटे कपड़ों का दान न करें- ऐसे वस्त्र दान करने से शनि देव प्रसन्न नहीं होते और नकारात्मक प्रभाव बढ़ सकता है। तेल का दान न करें- इस दिन तेल दान करना अशुभ माना गया है। इससे शनि के कुप्रभाव, करियर और रिश्तों में बाधाएँ आ सकती हैं। लोहे की वस्तुओं का दान करने से बचें- लोहे का दान अशुभ फल देता है। इसके बजाय तांबे या पीतल की वस्तुओं का दान शुभ माना जाता है।
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