ब्रह्म सावर्णि मन्वन्तर कब है
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ब्रह्म सावर्णि मन्वन्तर कब है

क्या आप जानते हैं ब्रह्म सावर्णि मन्वन्तर 2026 कब है? यहां जानिए तिथि, महत्व, पूजा-विधि, धार्मिक परंपराएं और मन्वन्तर कालचक्र से जुड़ी संपूर्ण जानकारी एक ही स्थान पर!

ब्रह्म सावर्णि मन्वन्तर के बारे में

हमारा जीवन मन्वादी प्रणाली के अनुसार संचालित होता है। वैदिक ज्योतिष में बताया गया है कि एक कल्प में कुल 14 मन्वंतर होते हैं। कल्प को सृष्टि की आरंभिक समयरेखा माना गया है, जिसकी अवधि लगभग 4.32 अरब सौर वर्षों की होती है। प्रत्येक मन्वंतर से संबंधित एक विशिष्ट तिथि होती है, जिसे मन्वादी तिथि कहा जाता है।

ब्रह्म सावर्णि मन्वादी

प्राचीन वैदिक परंपरा में मन्वादी प्रणाली को समय चक्र का मूल आधार माना गया है। इस व्यवस्था के अनुसार, सृष्टि का संचालन विभिन्न मन्वंतरों के माध्यम से होता है, और एक कल्प को 14 हिस्सों में विभाजित किया गया है। हर मन्वंतर से जुड़ी एक विशिष्ट मन्वादी तिथि होती है, जिसका धार्मिक और ज्योतिषीय दोनों ही दृष्टियों से विशेष महत्व है। किसी भी शुभ अनुष्ठान या श्राद्ध कर्म से पहले इस तिथि का ध्यान रखना अत्यंत शुभ और आवश्यक माना जाता है।

ब्रह्म सावर्णि मन्वादी कब है?

ब्रह्म सवर्णी मन्वादी माघ महीने के शुक्ल पक्ष में होती है। साल 2026 में यह तिथि रविवार के दिन जनवरी 25 को पड़ने वाली है।

ब्रह्म सावर्णि मन्वादी का महत्व

1. सृष्टि के नए चक्र की शुरुआत

ब्रह्म सावर्णि मन्वादी वह काल माना जाता है जब एक मन्वंतर समाप्त होकर नया मन्वंतर प्रारंभ होता है। यह समय सृष्टि में नई ऊर्जा और व्यवस्था के उदय का प्रतीक है। इसे ब्रह्मांड में जीवन के पुनर्संचार और पुनर्संतुलन का आरंभिक बिंदु माना जाता है।

2. धर्म और मर्यादा की पुनर्स्थापना

हर मन्वंतर में एक मनु धर्म की पुनर्स्थापना करते हैं। ब्रह्म सावर्णि मन्वंतर में भी धर्म, सत्य और नीति के मार्ग को पुनः स्थापित करने का उल्लेख मिलता है। इसलिए यह काल धार्मिक जागरण और नैतिक पुनरुत्थान का प्रतीक माना गया है।

3. आत्मिक शुद्धि और साधना का समय

इस तिथि को आध्यात्मिक साधना और आत्मशुद्धि के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। इस दिन जप, ध्यान, दान और पूजा-पाठ करने से मनुष्य के भीतर की नकारात्मकता दूर होती है और आत्मा में शांति व स्थिरता का अनुभव होता है।

4. पितृ कर्म और पुण्य कार्यों के लिए उत्तम काल

ब्रह्म सावर्णि मन्वादी की तिथि श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य जैसे कार्यों के लिए विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन किए गए शुभ कर्मों का फल अनेक गुना बढ़कर प्राप्त होता है और यह पितृ तृप्ति का भी अवसर प्रदान करता है।

5. नई ऊर्जा और सृजन का प्रतीक

यह मन्वंतर नवचेतना, शक्ति और सृजनात्मक ऊर्जा के उदय का समय माना जाता है। यह व्यक्ति को नई दिशा, उमंग और प्रेरणा देता है, जिससे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन संभव होता है।

पूजा विधि और अनुष्ठान

ब्रह्म सावर्णि मन्वादी तिथि को अत्यंत शुभ और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन की पूजा सृष्टि के नए चक्र की शुरुआत और धर्म की पुनर्स्थापना का प्रतीक मानी जाती है।

1. प्रातःकालीन स्नान और संकल्प

  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्वच्छ जल या गंगाजल से स्नान करें।
  • स्नान के बाद साफ और हल्के रंग के वस्त्र पहनें।
  • पूजा स्थल को शुद्ध जल या गौमूत्र से पवित्र करें।
  • दीप प्रज्वलित कर भगवान विष्णु या ब्रह्मा के समक्ष यह संकल्प लें:
  • “मैं आज ब्रह्म सावर्णि मन्वादी के शुभ अवसर पर धर्म, शांति और आत्मशुद्धि की प्राप्ति के लिए यह पूजा करता/करती हूँ।”

2. भगवान विष्णु और ब्रह्मा की आराधना

  • इस दिन भगवान विष्णु और सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा की पूजा करना शुभ माना गया है।
  • पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसीदल अर्पित करें।
  • ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या विष्णु सहस्रनाम का जाप करें।
  • ब्रह्मा जी को सृष्टि की स्थिरता और ज्ञान के प्रतीक रूप में स्मरण करें।

3. मन्वंतर देवताओं का स्मरण

  • ब्रह्म सावर्णि मनु सहित चौदहों मनुओं का ध्यान करें।
  • उनके माध्यम से सृष्टि में संतुलन और धर्म की रक्षा की प्रार्थना करें।
  • यह स्मरण सृष्टि के निरंतर प्रवाह और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।

4. दान, तर्पण और सेवा कार्य

  • इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण और दान करने की परंपरा है।
  • अन्न, वस्त्र, गौ-दान या दक्षिणा दान करना अत्यंत शुभ फलदायी माना गया है।
  • तर्पण के समय यह मंत्र कहा जा सकता है:
  • “ॐ पितृदेवाय नमः, स्वधा।”
  • यह कर्म पितरों की शांति और जीवन में पुण्य वृद्धि का माध्यम बनता है।

5. जप, ध्यान और हवन

  • पूजा के अंत में ध्यान और मंत्र-जप करें। इससे मन की एकाग्रता और शांति बढ़ती है।
  • हवन में घी, तिल और समिधा से आहुति दें और “ॐ स्वाहा” मंत्र का उच्चारण करें।
  • पूजा के उपरांत परिवारजनों को प्रसाद और आशीर्वाद दें।

6. फल और आध्यात्मिक महत्व

  • ब्रह्म सावर्णि मन्वादी पर की गई पूजा से व्यक्ति के विचार, कर्म और आत्मा में पवित्रता आती है। यह दिन धर्मपालन, आत्मिक उत्थान और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। श्रद्धापूर्वक किए गए अनुष्ठान से जीवन में शांति, समृद्धि और पितृ कृपा प्राप्त होती है।

इस दिन क्या करें?

ब्रह्म सावर्णि मन्वादी तिथि को सृष्टि के पुनरारंभ और धर्म की स्थिरता का प्रतीक माना गया है। यह दिन आध्यात्मिक साधना, शुद्ध कर्म और सकारात्मकता के लिए विशेष रूप से शुभ होता है। नीचे बताया गया है कि इस दिन किन कार्यों को करना श्रेष्ठ माना गया है:

1. स्नान और आंतरिक शुद्धि

  • प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्वच्छ जल या गंगाजल से स्नान करें।
  • स्नान के बाद स्वयं को मन, वाणी और कर्म से पवित्र रखने का संकल्प लें।
  • हल्के, साफ और पीले रंग के वस्त्र पहनना मंगलदायी माना जाता है।

2. भगवान विष्णु और ब्रह्मा की आराधना करें

  • घर के मंदिर या पवित्र स्थान पर दीपक जलाकर पूजा आरंभ करें।
  • भगवान विष्णु को तुलसीदल, पुष्प, धूप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या विष्णु सहस्रनाम का जप करें।
  • भगवान ब्रह्मा का ध्यान कर उनसे सृजन शक्ति, ज्ञान और विवेक की प्रार्थना करें।

3. ध्यान, जप और पवित्र ग्रंथों का पाठ

  • पूरे दिन संयम, शांत भाव और श्रद्धा बनाए रखें।
  • भगवद्गीता, विष्णु पुराण या ब्रह्म पुराण के अंशों का पाठ करना शुभ फल देता है।
  • कुछ समय ध्यान और मौन साधना में बिताएँ, जिससे मन और आत्मा स्थिर हों।

4. पितृ तर्पण और दान का महत्व

  • अपने पितरों की स्मृति में जल अर्पित करें और मंत्र बोलें:
  • “ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः।”
  • जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या दक्षिणा दान करें।
  • गौ सेवा, अन्न दान और ब्राह्मणों को भोजन कराना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।

5. शुभ आचरण और संयम रखें

  • इस दिन झूठ, क्रोध, अपशब्द और किसी के प्रति नकारात्मक विचारों से बचें।
  • किसी को दुख या अपमान न पहुँचाएँ।
  • अपने मन, वाणी और कर्म को सकारात्मक दिशा में रखें।

आध्यात्मिक लाभ

1. मन और आत्मा की पवित्रता

इस दिन ध्यान, जप और पूजा से व्यक्ति के भीतर की नकारात्मकता, भय और अशांति दूर होती है। नियमित साधना से मन शुद्ध होकर आत्मा में संतुलन और शांति का अनुभव होता है।

2. भक्ति और ईश्वर से निकटता

भगवान विष्णु और ब्रह्मा की आराधना इस दिन विशेष फल देती है। इससे ईश्वर के प्रति समर्पण, विश्वास और भक्ति की भावना गहरी होती है, जो जीवन में सच्चे मार्गदर्शन का स्रोत बनती है।

3. पापकर्मों का शमन और पुण्य की वृद्धि

ब्रह्म सावर्णि मन्वादी के दिन किए गए जप, दान और तर्पण से नकारात्मक कर्मों का क्षय होता है। इस दिन किया गया हर शुभ कार्य कई गुना फल देता है और आत्मा को शुद्ध करता है।

4. मानसिक दृढ़ता और आत्मबल में वृद्धि

साधना और मौन ध्यान से मन की एकाग्रता बढ़ती है। यह व्यक्ति को आत्मविश्वास, संयम और सहनशीलता प्रदान करता है, जिससे वह जीवन की चुनौतियों का सामना सहजता से कर पाता है।

5. आत्मज्ञान और मोक्ष की दिशा में अग्रसरता

यह तिथि आत्मिक जागृति का समय मानी जाती है। इस दिन की साधना मनुष्य को सांसारिक मोह-माया से मुक्त कर आत्मज्ञान और मोक्ष के मार्ग की ओर ले जाती है।

निष्कर्ष: ब्रह्म सावर्णि मन्वादी का दिन आत्मिक जागरण, भक्ति और आंतरिक दिव्यता को अनुभव करने का एक श्रेष्ठ अवसर प्रदान करता है। यह तिथि व्यक्ति के जीवन में शांति, सकारात्मकता और मोक्ष की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।

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Published by Sri Mandir·December 3, 2025

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