
क्या आप जानते हैं पुत्रदा एकादशी (श्रावण) 2026 कब है? जानिए इस व्रत की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त, महत्व और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का रहस्य – सब कुछ एक ही जगह!
सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान सुख और संतान की लंबी उम्र के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा श्रद्धा और नियमपूर्वक की जाती है। यह व्रत विशेष रूप से उन दंपतियों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है जो संतान की इच्छा रखते हैं। इस व्रत के क्या है अन्य लाभ और क्या है इसकी पूजा विधि इन सभी जानकारी के लिए पढ़ें इस लेख को।
जानकारी के अनुसार, सावन मास देवों के देव महादेव और लक्ष्मीपती भगवान विष्णु की पूजा के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है और इसी मास में आती है पुत्रदा एकादशी। यह एकादशी संतान देने वाली एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। क्योंकि इस दिन विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति के लिए व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और संतान प्राप्ति की इच्छाएं पूरी होती हैं। इस दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत रखने से संतान सुख के साथ-साथ संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति भी होती है।
इसके अलावा पुत्रदा एकादशी का व्रत विशेष रूप से उन दंपतियों के लिए फलदायी माना जाता है, जो संतान प्राप्ति के लिए प्रयासरत हैं। यह व्रत संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य के लिए भी किया जाता है। इस दिन उपवास रखना और भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। सावन माह में किए गए प्रत्येक धार्मिक कार्य का विशेष महत्व होता है और पुत्रदा एकादशी का व्रत उन कार्यों में सर्वोत्तम माना जाता है।
पुत्रदा एकादशी केवल एक आध्यात्मिक व्रत नहीं बल्कि यह पारिवारिक समृद्धि, रिश्तों की मजबूती और जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति का महत्वपूर्ण अवसर भी है। यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति, बच्चों की सफलता और संतान संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए अत्यधिक लाभकारी माना जाता है। विशेष रूप से विवाहित जोड़ों के लिए यह एकादशी बहुत महत्वपूर्ण होती है जो संतान सुख की कामना रखते हैं या किसी कारणवश संतान सुख से वंचित हैं। जानकारी के अनुसार जो भी साधक जो श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को करता है उसके जीवन में समृद्धि और सुख की बहार आती है।
सावन माह में होने वाली इस एकादशी का व्रत सिर्फ संतान के लिए नहीं बल्कि विद्यार्थियों, गृहस्थों और मोक्ष की अभिलाषा रखने वालों के लिए भी अत्यंत कल्याणकारी है। इस दिन किए गए व्रत से जीवन में धैर्य, विश्वास और आस्था का वर्धन होता है जो हमें हर कठिनाई से निपटने की शक्ति प्रदान करता है।
पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि अत्यंत सरल है। तो आइए इस व्रत की पूजा विधि के बारे में जानते हैं।
ब्रह्म मुहूर्त में उठनाः पुत्रदा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में, यानी प्रातःकाल के पहले पहर में उठकर स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद स्वच्छ और शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजा में सम्मिलित होना चाहिए।
घर का शुद्धिकरणः पवित्रता को बनाए रखने के लिए घर के पूजा स्थल को शुद्ध करें। आप गंगाजल का छिड़काव कर सकते हैं।
प्रारंभ में प्रार्थना और संकल्पः व्रत की शुरुआत में भगवान विष्णु के समक्ष संकल्प लें और अपनी इच्छाओं को उनसे प्रकट करें। संकल्प लें कि आप पूरे दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत रखेंगे।
भगवान विष्णु की पूजाः भगवान विष्णु की पूजा के लिए उनकी प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें। भगवान को पीले वस्त्र पहनाएं। साथ ही उन्हें पीले फूल, तुलसीदल, दीपक, धूप और नैवेद्य अर्पित करें।
मंत्र जाप और विष्णु सहस्रनाम का पाठः पूजा के दौरान ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यह मंत्र भगवान विष्णु की उपासना के लिए अत्यंत प्रभावी है। इसके अलावा, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। इससे पूजा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
व्रत का पालनः इस दिन निराहार या फलाहार व्रत रखें। यानि कि आप पूरे दिन भोजन से दूर रहें, लेकिन फल और दूध आदि का सेवन कर सकते हैं।
भजन और जागरणः परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर भजन-कीर्तन करें और पूरे दिन के व्रत का समापन करें। व्रत के नियमों का पालन करते हुए पारण करने से पहले क्षमा याचना जरूर करें और इस दिन का समापन करें।
पौराणिक कथा के अनुसार, माहिष्मती नगरी के एक राजा महीजित को बहुत कोशिशों के बावजूद उन्हें संतान का आशीर्वाद प्राप्त नहीं हो रहा था, जिससे वह बहुत दुःखी और चिंतित थे। अपने संकट के समाधान के लिए राजा ने ऋषि-मुनियों से मार्गदर्शन प्राप्त करने का निश्चय किया। ऋषि-मुनियों से परामर्श लेने पर महर्षि लोमश ने उन्हें श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत करने की सलाह दी।
महर्षि ने बताया कि इस व्रत के माध्यम से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जो संतान सुख और समस्त इच्छाओं की पूर्ति करता है। राजा महीजित ने महर्षि की सलाह मानी और विधिपूर्वक इस व्रत को किया। एकादशी के दिन उन्होंने पूरे दिन उपवास रखा। भगवान विष्णु की पूजा की और श्रद्धा से मंत्रों का जाप किया। इस पवित्र व्रत के प्रभाव से शीघ्र ही राजा को संतान की प्राप्ति हुई।
राजा की संतान प्राप्ति के बाद इस एकादशी का नाम ‘पुत्रदा’ पड़ा, क्योंकि इस दिन व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी का व्रत सभी पापों का नाश करने वाला और इच्छाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है। इसलिए यह एकादशी विशेष रूप से संतान सुख की कामना रखने वाले लोगों के लिए अत्यधिक लाभकारी है।
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें
व्रत के नियमों का पालन करें
विष्णु सहस्रनाम का जाप करें
तुलसी दल और पीले फूल अर्पित करें
भजन और कीर्तन करें
संतान सुख की प्राप्ति
पापों का नाश
समृद्धि और सुख-शांति
पितरों को तृप्ति
मोक्ष की प्राप्ति
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