
जानिए इस व्रत की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त, महत्व और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का रहस्य – सब कुछ एक ही जगह!
पापमोचनी एकादशी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली ऐसी पावन तिथि है जिसे सभी पापों का नाश करने वाली एकादशी माना गया है। यह एकादशी आध्यात्मिक उन्नति, मन की शुद्धि और धर्म के प्रति समर्पण का उत्तम अवसर प्रदान करती है। अन्य सभी एकादशियों की तरह यह तिथि भी अत्यंत शुभ, कल्याणकारी और लाभदायी मानी जाती है। तो आइए जानें इस एकादशी के बारे में और अधिक जानकारी।
पापमोचनी एकादशी का अर्थ है पापों को नष्ट करने वाली एकादशी। यह पवित्र तिथि चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आती है और हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की आराधना, व्रत और श्रद्धापूर्वक पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में संचित पाप समाप्त होने लगते हैं और मन तथा आत्मा शुद्ध होते हैं।
पापमोचनी एकादशी के दिन साधकों को अपने व्यवहार और वाणी पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस दिन किसी से झूठ, कटु वचन या बुरा बोलना अशुभ माना जाता है। क्योंकि इससे व्रत का फल कम हो जाता है। भक्तों का विश्वास है कि इस एकादशी का व्रत न केवल पिछले पापों को मिटाता है, बल्कि भविष्य में होने वाले पापों से भी रक्षा करता है।
पापमोचनी एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और कल्याणकारी तिथि मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी का महात्म्य सुनने या पढ़ने मात्र से मनुष्य अपने जीवन के अनेक प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है। यह तिथि मन और आत्मा की शुद्धि का अद्भुत माध्यम मानी गई है, जो साधक के जीवन में सुख, शांति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। होलिका दहन और चैत्र नवरात्रि के बीच आने वाली यह एकादशी संवत वर्ष की अंतिम एकादशी होती है और युगादी पर्व से पहले पड़ती है। इसलिए इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
उत्तर भारतीय पूर्णिमान्त पंचांग के अनुसार यह चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में तथा दक्षिण भारतीय अमान्त पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है, किंतु दोनों ही प्रणालियों में इसका व्रत एक ही दिन रखा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर की दृष्टि से यह तिथि प्रायः मार्च या अप्रैल के महीने में आती है। कई बार एकादशी दो दिनों तक पड़ती है। ऐसे में गृहस्थों के लिए पहले दिन व्रत करना श्रेष्ठ माना गया है, जबकि सन्यासियों, विधवाओं तथा मोक्ष की इच्छा रखने वाले श्रद्धालुओं को दूसरे दिन व्रत करना चाहिए। कहा जाता है कि जो भक्त भगवान विष्णु के अनन्य प्रेम और कृपा के इच्छुक होते हैं, उन्हें दोनों दिन व्रत रखने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इसी गहन आस्था और लाभकारी परिणामों के कारण पापमोचनी एकादशी का धार्मिक महत्व अत्यंत उच्च माना गया है।
पापमोचनी एकादशी वर्ष 2026 में रविवार, 15 मार्च को मनाई जाएगी। यह पवित्र तिथि भक्तों के लिए विशेष पुण्य प्रदान करने वाली मानी जाती है। व्रत रखने वाले साधकों के लिए पारण का समय अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस वर्ष पारण 16 मार्च को रखा जाएगा। उस दिन व्रत खोलने का शुभ समय सुबह 06:30 बजे से 08:54 बजे तक है।
द्वादशी तिथि, जिसमें पारण किया जाता है।
16 मार्च को सुबह 09:40 बजे समाप्त होगी, अतः यही समय सीमा पारण के लिए उचित मानी गई है। पापमोचनी एकादशी की शुरुआत 14 मार्च 2026 को सुबह 08:10 बजे से होगी और इसका समापन 15 मार्च 2026 को सुबह 09:16 बजे पर होगा।
इन शुभ समयों का पालन करके किया गया व्रत भक्तों को अधिक फल देता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
प्रातः स्नान और शुद्धता: पापमोचनी एकादशी के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठना शुभ माना जाता है। स्नान करके शरीर को शुद्ध करें और स्वच्छ, हल्के व पीले रंग के वस्त्र धारण करें। मन में भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें कि आज का दिन सदाचार, उपवास और भक्ति को समर्पित होगा।
पूजा स्थल की तैयारी और प्रतिमा स्थापना: घर के पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को स्वच्छ आसन पर स्थापित करें। आसन के नीचे हल्दी, चावल या पीले कपड़े का प्रयोग करना शुभ माना जाता है। दीपक जलाकर पूजा की शुरुआत करें।
गंगाजल-पंचामृत से अभिषेक: भगवान विष्णु का गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी और शक्कर से बने पंचामृत से अभिषेक करें। अभिषेक के बाद पुनः गंगाजल से स्नान कराएं। यह प्रक्रिया मन और वातावरण दोनों को शुद्ध और पवित्र बनाती है।
तिलक, पुष्प और नैवेद्य अर्पण: भगवान को गोपीचंदन का तिलक लगाएं, पीले या सफेद फूल अर्पित करें और ऋतु फल, पंजीरी तथा पंचामृत का भोग लगाएं। तुलसी पत्र भगवान को बहुत प्रिय हैं, इसलिए भोग में तुलसी अर्पित करना उत्तम होता है।
व्रत कथा और मंत्र जाप: पूजा के बाद पापमोचनी एकादशी की कथा पढ़ें या सुनें। इसके साथ ही "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः", "ॐ विष्णवे नमः" तथा "ॐ नारायणाय नमः" मंत्रों का जाप करें। दिनभर भगवान के नाम का जप और मनन करने से व्रत फल कई गुना बढ़ जाता है।
आरती और क्षमा याचना: पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और अंत में प्रार्थना अवश्य करें। इसके अलावा शाम को पुनः भगवान विष्णु की आरती करें और हल्का भोग लगाएं। अगले दिन द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद ही व्रत का पारण करें। पारण तुलसी पत्र और सात्विक भोजन से करें तथा यथाशक्ति ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन और दान दें।
पापमोचनी एकादशी के उपाय
स्नान के बाद भगवान विष्णु-लक्ष्मी की संयुक्त पूजा करें व तुलसी को दीपक दिखाएं। फल-मिठाई का भोग लगाकर ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं धन-प्राप्ति मंत्र का जाप करें।
तुलसी पर 16 श्रृंगार अर्पित करें और सुहागिन महिलाओं को दान दें। केले के पेड़ की पूजा कर विष्णुजी को केसरयुक्त दूध अर्पित करें।
शाम को तुलसी पर घी का दीपक जलाकर सात परिक्रमा करें और हल्दी-जल अर्पित करें। इससे घर का वातावरण शांत और पवित्र रहता है।
दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर भगवान विष्णु को अर्पित करें। बाद में वह जल प्रसाद रूप में ग्रहण करें।
तुलसी के पास 11, 21 या 51 दीपक जलाकर तुलसी चालीसा का पाठ करें। इससे बाधाएँ दूर होती हैं और कार्यों में सफलता मिलती है।
पापमोचनी एकादशी के लाभ
पापों से मुक्ति: इस व्रत से सभी प्रकार के पाप नष्ट होते हैं और घोर पापों से भी मुक्ति मिलती है।
जीवन में सुख और समृद्धि: भक्त के जीवन में स्थायी शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा आती है।
संकटों का नाश: व्रत रखने से जीवन में आने वाले कष्ट और बाधाएँ दूर होती हैं।
मन की शुद्धि: मन शांत, निर्मल और पवित्र होता है। नकारात्मक व बुरे विचार समाप्त होते हैं।
पुण्य प्राप्ति: इस व्रत का फल वाजपेय और अश्वमेध जैसे महायज्ञों के बराबर माना गया है।
पापमोचनी एकादशी में क्या करें
शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु की पूजा करें और व्रत का संकल्प लेकर पूरे नियम से व्रत निभाएं।
व्रत न रखने पर भी सात्विक भोजन करें और तामसिक भोजन से बचें।
पूरे दिन मंत्र जाप, भजन-कीर्तन और भगवान के नाम का स्मरण करते रहें।
द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद ही पारण करें।
पारण से पहले दान अवश्य करें और जरूरतमंदों की सहायता करें।
पापमोचनी एकादशी में क्या न करें
काले वस्त्र न पहनें। इस दिन पीले या हल्के रंग के कपड़े शुभ माने गए हैं।
चावल का सेवन न करें। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाने से दोष लगता है।
तुलसी पत्तियाँ न तोड़ें। इस दिन तुलसी व्रत रखती हैं। इसलिए उन्हें स्पर्श करना भी वर्जित है।
मास-मदिरा और तामसिक भोजन बिल्कुल न लें। यह व्रत की पवित्रता को भंग करता है।
झगड़ा, क्रोध, चुगली, नकारात्मक सोच और किसी का अपमान न करें। इससे व्रत का फल कम हो जाता है।
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