
जानिए इस व्रत की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त, महत्व और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का रहस्य – सब कुछ एक ही जगह!
इस व्रत में भक्त पूरे दिन बिना जल के उपवास रखते हैं। मान्यता है कि इस एक ही व्रत के पालन से पूरे वर्ष की सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है और जीवन में पापों का क्षय, सौभाग्य की वृद्धि और भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है। इस लेख में जानिए निर्जला एकादशी 2026 में कब है, इसके महत्व और पालन से जुड़े सभी आवश्यक नियम।
निर्जला एकादशी वर्ष की सभी 24 एकादशियों में सबसे अधिक पुण्यप्रद मानी जाती है। ‘निर्जला’ का अर्थ है बिना जल के, इसलिए इस व्रत में साधक एकादशी सूर्योदय से द्वादशी सूर्योदय तक अन्न और जल दोनों का त्याग करते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति पूरे साल की सभी एकादशियों का व्रत नहीं कर पाता, वह केवल निर्जला एकादशी का उपवास करके सभी 24 एकादशियों का फल प्राप्त कर सकता है।
इस व्रत का संबंध महाभारत काल से है। कथा के अनुसार वेदव्यास जी ने पांडवों को सभी एकादशी व्रत करने को कहा, लेकिन भीमसेन अपनी अधिक भूख-प्यास के कारण व्रत पालन नहीं कर पाते थे। तब उन्होंने ऐसा व्रत बताने का अनुरोध किया जिसे वर्ष में केवल एक बार रखना पड़े। वेदव्यास जी ने उन्हें निर्जला एकादशी व्रत रखने की सलाह दी, जिसे भीम ने अत्यंत कठिनता से पूरा किया। तभी से यह व्रत भीमसेनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है।
सनातन धर्म में यह व्रत सबसे कठिन और अत्यधिक फलदायी माना जाता है। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है और मान्यता है कि यह व्यक्ति को मोक्षदायी पुण्य प्रदान करता है।
निर्जला एकादशी का महत्व स्वयं भगवान वेदव्यास ने बताया है। यह व्रत मुख्य रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है, जो इस दिन व्रती को असीम सुख और मोक्ष प्रदान करते हैं।
इस दिन व्रत के साथ भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने और दान-पुण्य करने का विशेष विधान है।
निर्जला एकादशी ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष निर्जला एकादशी जून 25, बृहस्पतिवार, 2026 को मनाई जाएगी।
ध्यान दें: पारण हमेशा द्वादशी तिथि के भीतर ही करना चाहिए। हरि वासर (एकादशी का अंतिम चरण) में या द्वादशी समाप्त होने पर व्रत खोलना वर्जित माना जाता है।
आइए जानते है शुभ मुहूर्त
निर्जला एकादशी का व्रत अत्यंत पवित्रता और नियमों के साथ किया जाता है।
नियम: दशमी तिथि की संध्या से ही व्रत के नियमों का पालन शुरू कर देना चाहिए। सात्विक भोजन ग्रहण करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
संकल्प: एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सबसे पहले हाथ में जल लेकर निर्जला व्रत का विधिवत संकल्प लें। संकल्प में भगवान विष्णु से प्रार्थना करें कि वे आपके व्रत को निर्विघ्न संपन्न कराएँ।
विष्णु पूजा: भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम या उनकी प्रतिमा की पूजा करें। उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल, अक्षत, चंदन, धूप-दीप और नैवेद्य (फलाहार) अर्पित करें। तुलसी दल चढ़ाना अनिवार्य माना जाता है।
मंत्र जाप और कथा: ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय‘ मंत्र का जाप करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। निर्जला एकादशी की व्रत कथा का पाठ या श्रवण करें।
रात्रि जागरण: संभव हो तो रात में जागरण कर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का भजन-कीर्तन करें।
पारण: अगले दिन (द्वादशी) सूर्योदय के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएँ या दान दें। इसके बाद शुभ मुहूर्त में स्वयं जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
उपाय
जल का दान: चूँकि इस दिन जल का त्याग किया जाता है, इसलिए जल का दान करना महापुण्य माना जाता है। गर्मी के मौसम को देखते हुए राहगीरों या प्यासे लोगों को जल पिलाना, या जल से भरे घड़े का दान करना बहुत शुभ होता है।
वस्त्र और भोजन दान: गरीब और जरूरतमंद लोगों को पीले वस्त्र, अन्न, फल और जूते-चप्पल का दान करना चाहिए।
तुलसी की पूजा: संध्याकाल में तुलसी के पौधे के सामने घी का दीपक जलाकर ‘तुलसी चालीसा’ का पाठ करें।
गाय की सेवा: गाय को हरा चारा खिलाना या उसकी सेवा करना शुभ माना जाता है।
लाभ
निर्जला एकादशी का व्रत करने से साधक को साल भर की सभी एकादशियों के समान फल प्राप्त होता है।
यह व्रत पापों का नाश करने वाला और मोक्ष का द्वार खोलने वाला माना जाता है।
मान्यता है कि इस कठोर उपवास से भक्तों को दीर्घायु, स्वास्थ्य, समृद्धि और मानसिक शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
क्या करें
क्या न करें
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