
जानिए इस व्रत की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त, महत्व और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का रहस्य – सब कुछ एक ही जगह!
अपरा एकादशी वह पवित्र तिथि है जब उपवास, दान और भगवान विष्णु की आराधना विशेष फलदायी मानी जाती है। माना जाता है कि इस दिन श्रद्धा से किया गया व्रत पापों के बोझ को हल्का कर जीवन में पुण्य, शांति और सौभाग्य बढ़ाता है। इस लेख में जानिए अपरा एकादशी 2026 में कब है, इसके महत्व और पालन से जुड़े सभी आवश्यक नियम।
अपरा एकादशी, जिसे अचला एकादशी भी कहा जाता है, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में मनाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण वैष्णव एकादशी है। यह व्रत पूरी तरह भगवान विष्णु को समर्पित है और विशेष रूप से उनके वामन स्वरूप की पूजा की जाती है। सनातन धर्म में इस एकादशी को अत्यंत पवित्र और शुभ माना गया है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अपरा एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में किए गए सभी पाप चाहे वे जाने-अनजाने हुए हों नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत मन और आत्मा को शुद्ध करने वाला माना जाता है। महाभारत में भी इस एकादशी का उल्लेख मिलता है, जहाँ स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को इसके महत्व के बारे में बताया था। कहा जाता है कि इसी व्रत के पुण्य प्रभाव से पांडवों को युद्ध में सफलता प्राप्त हुई थी।
अपरा एकादशी हिंदू परंपरा में अत्यंत पुण्यदायिनी तिथि मानी जाती है। मान्यता है कि इस व्रत का पालन पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से करने पर साधक को न केवल धार्मिक फल प्राप्त होते हैं, बल्कि जीवन में आध्यात्मिक उन्नति भी होती है।
पिछले कर्मों से मुक्ति- अपरा एकादशी का व्रत व्यक्ति के पूर्व और वर्तमान जन्मों के पाप कर्मों का क्षय करता है।
आध्यात्मिक बाधाओं का निवारण- इस एकादशी का पालन करने से साधक के आध्यात्मिक मार्ग में आने वाली रुकावटें दूर होती हैं।
धन, संपन्नता और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति- यह व्रत जीवन में संतुलन, विवेक और स्पष्टता को बढ़ावा देता है।
मानसिक और सूक्ष्म नकारात्मक शक्तियों से रक्षा- अपरा एकादशी साधक को मानसिक तनाव, नकारात्मक ऊर्जा तथा अदृश्य बाधाओं से सुरक्षा प्रदान करती है।
मोक्ष और परम कल्याण का मार्ग- इस व्रत को मोक्ष देने वाला माना जाता है। अपरा एकादशी का पालन करने से व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने की ओर आगे बढ़ता है।
अपरा एकादशी का व्रत बुधवार, 13 मई 2026 को रखा जाएगा। यह तिथि धार्मिक रूप से अत्यंत शुभ मानी गई है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ अवसर प्रदान करती है।
एकादशी तिथि का प्रारंभ: 12 मई 2026, दोपहर 02:52 बजे
एकादशी तिथि का समापन: 13 मई 2026, दोपहर 01:29 बजे
पारण (व्रत तोड़ने) का शुभ मुहूर्त: 14 मई 2026, सुबह 05:31 से 08:14 बजे तक
द्वादशी समाप्त होने का समय: 14 मई 2026, सुबह 11:20 बजे
अपरा एकादशी व्रत को सफल और फलदायी बनाने के लिए इसे सही विधि-विधान के साथ करना अत्यंत आवश्यक है।
व्रत से एक दिन पूर्व, अर्थात दशमी तिथि की शाम से तैयारी शुरू करें। इस दिन सात्त्विक भोजन ग्रहण करें और सूर्यास्त के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें।
एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। स्नान आदि दैनिक कार्यों के बाद उगते सूर्य को जल अर्पित करें।
घर के मंदिर में सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें। इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा आरंभ करें।
दक्षिणावर्ती शंख से भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का अभिषेक करें। पीले वस्त्र, पुष्प और हार से उनका श्रृंगार करें। पूजन सामग्री अर्पित करें।
भगवान को माखन-मिश्री, मिठाई और तुलसी दल का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें।
“ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करते हुए व्रत का संकल्प लें। पूजा के पश्चात प्रसाद का वितरण करें।
पूरे दिन निराहार रहना श्रेष्ठ माना गया है। यदि निराहार रहना संभव न हो, तो फलाहार, दूध या फलों के रस का सेवन कर सकते हैं।
दिन भर भगवान की पूजा, मंत्र-जप और कथा-श्रवण करें। अगले दिन द्वादशी तिथि की सुबह भगवान की पूजा करें। जरूरतमंदों को भोजन कराएं। इसके पश्चात ही स्वयं भोजन करें।
इसी विधि से अपरा एकादशी व्रत करने पर साधक को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और व्रत पूर्ण फल देता है।
अपरा एकादशी के उपाय
भगवान विष्णु की विशेष पूजा करें- अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा पीले पुष्प, तुलसी दल, फल और पंचामृत से करें। विष्णु सहस्रनाम या “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप अत्यंत फलदायी होता है।
तुलसी दल का अर्पण- तुलसी दल भगवान विष्णु को सबसे प्रिय है। इस दिन तुलसी पत्र चढ़ाने से व्रत का शुभ फल कई गुना बढ़ जाता है।
दान-पुण्य करें- जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या धन का दान करें। इससे पापों का क्षय होता है और पुण्य बढ़ता है।
ब्रह्मचर्य और संयम का पालन- इस दिन मन, वाणी और कर्म से पूर्ण संयम रखें। क्रोध, झूठ और नकारात्मक सोच से दूर रहें।
निर्जला या फलाहार व्रत- क्षमता के अनुसार निर्जला व्रत या फलाहार करें। मन में पवित्रता और श्रद्धा बनाए रखें।
भगवान विष्णु के वामन रूप का स्मरण- इस दिन वामन अवतार की कथा सुनना और उसका मनन करना शुभ माना जाता है।
अपरा एकादशी के लाभ
पापों का नाश- मान्यता है कि यह व्रत जाने-अनजाने में किए गए पापों को समाप्त करता है और जीवन को पवित्र बनाता है।
मोक्ष प्राप्ति में सहायक- यह व्रत व्यक्ति को जन्म–मरण के चक्र से मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ाता है। इसे मोक्षदायी व्रत कहा गया है।
आध्यात्मिक बाधाओं से मुक्ति- इस व्रत से साधक के मार्ग में आने वाली मानसिक, ऊर्जात्मक और आध्यात्मिक रुकावटें दूर होती हैं।
आर्थिक और भौतिक समृद्धि- भगवान विष्णु की कृपा से धन, सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। लक्ष्मी कृपा प्राप्त होने की मान्यता भी है।
मन की शांति और सकारात्मक ऊर्जा- मंत्र जाप और पूजा से मन शांत होता है, तनाव कम होता है और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
क्या करें
एकादशी पर मंदिर और पूजा स्थान की सफाई अवश्य करें। स्वच्छता को भगवान विष्णु की पूजा का पहला नियम माना गया है।
दिनभर “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” जैसे मंत्रों का जाप करें। यह मन को शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा देता है।
यदि निराहार रहना संभव न हो, तो फलाहार या हल्का आहार लिया जा सकता है।
क्या न करें
धार्मिक मान्यता के अनुसार, एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है। इससे व्रत का पुण्य कम हो सकता है।
इस दिन शरीर के किसी भी हिस्से के बाल या नाखून काटना अशुभ माना गया है। इससे व्रत की पवित्रता भंग होती है।
दिन में सोना आलस्य का संकेत माना जाता है और इससे व्रत का फल कम हो सकता है। कोशिश करें दिनभर भगवान का स्मरण करते रहें।
यदि बहुत जरूरी न हो तो बाल न धोएं। धोना पड़े तो साबुन और शैम्पू का उपयोग न करें।
इस दिन तेल मालिश या शरीर में तेल लगाने से बचें, क्योंकि इसे व्रत की शुचिता के विपरीत माना गया है।
प्याज, लहसुन, मांस-मदिरा तथा भूमिगत सब्जियाँ जैसे आलू, गाजर आदि का सेवन वर्जित है।
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