देवताओं के गुरु और भौतिक सुखों के प्रदाता शुक्र देव की कृपा के लिए करें श्रद्धा से शुक्र देव चालीसा का पाठ। इसके पाठ से शांत होते हैं शुक्र ग्रह के दुष्प्रभाव और जीवन में आता है संतुलन।
शुक्र देव चालीसा एक भक्तिपूर्ण पाठ है, जिसमें शुक्राचार्य जी के गुण, प्रभाव और कृपा का वर्णन किया गया है। यह चालीसा 40 चौपाइयों में रची गई है। इसका पाठ करने से शुक्र ग्रह से जुड़ी समस्याओं में राहत मिलती है और जीवन में प्रेम, सुंदरता, कला, दांपत्य सुख व भौतिक सुविधाओं की वृद्धि होती है।
शुक्र देव चालीसा एक आध्यात्मिक भक्ति गीत है, जिसमें शुक्राचार्य जी के गुण, प्रभाव और आशीर्वाद का वर्णन विस्तार से किया गया है। यह चालीसा कुल 40 चौपाइयों और शुरुआत व अंत में दोहों के साथ रची गई होती है। इसका नियमित रूप से पाठ करने से कुंडली में शुक्र ग्रह के दोष शांत होते हैं और जीवन में प्रेम, सौंदर्य, वैवाहिक सुख, कला और भौतिक समृद्धि बढ़ती है।
शुक्र देव, जो दैत्यों के गुरु माने जाते हैं, जीवन में सुख-सुविधाओं के मुख्य कारक होते हैं। अगर जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत हो, तो व्यक्ति को वैवाहिक सुख, धन, ऐश्वर्य और भौतिक सुख आसानी से मिलते हैं। यह चालीसा एक भक्ति से भरा पाठ है, जिसमें शुक्राचार्य जी के गुण, ताकत और उनके आशीर्वाद का वर्णन किया गया है, यह कुल 40 चौपाइयों में लिखी गई है।
शुक्र ग्रह की कमजोर स्थिति से राहत मिलती है: जब कुंडली में शुक्र अशुभ होता है, तो चालीसा का पाठ तनाव, रिश्तों की उलझन और सुखों की कमी को दूर करने में मदद करता है।
वैवाहिक जीवन में सामंजस्य: यह पाठ पति-पत्नी के रिश्ते को मधुर बनाता है और आपसी समझ को मजबूत करता है।
प्रेम संबंधों में स्थिरता और मिठास: शुक्र प्रेम का प्रतीक है, इसलिए इसका पाठ प्रेमी जोड़ों के रिश्तों को संतुलन और गहराई देता है।
धन और सुख-सुविधाओं में वृद्धि: चालीसा का नियमित पाठ करने से भौतिक समृद्धि, वैभव और ऐश्वर्य बढ़ता है।
कला और रचनात्मक क्षेत्रों में सफलता: संगीत, नृत्य, फैशन, अभिनय जैसे रचनात्मक पेशों में यह चालीसा विशेष फलदायक होती है।
मानसिक शांति और आत्मविश्वास: चालीसा पढ़ने से मन शांत होता है, नकारात्मक सोच कम होती है और आत्मबल बढ़ता है।
॥दोहा॥
श्री गणपति गुरु गउ़रि,
शंकर हनुमत कीन्ह।
बिनवउं शुभ फल देन हरि,
मुद मंगल दीन॥
॥चौपाई॥
जयति जयति शुक्र देव दयाला।
करत सदा जनप्रतिपाला॥
श्वेताम्बर, श्वेत वारन, शोभित।
मुख मंद, चंदन हिय लोभित॥
सुन्दर रत्नजटित आभूषण।
प्रियहिं मधुर, शीतल सुवासण॥
सप्त भुज, सोभा निधि लावण्य।
करत सदा जन, मंगल कान्य॥
मंगलमय, सुख सदा सवारथ।
दीनदयालु, कृपा निधि पारथ॥
शुभ्र स्वच्छ, गंगा जल जैसा।
दर्शन से, हरषाय मनैसा॥
त्रिभुवन, महा मंगल कारी।
दीनन हित, कृपा निधि सारी॥
देव दानव, ऋषि मुनि भक्तन।
कष्ट मिटावन, भंजन जगतन॥
मोहबारी, मनहर हियरा।
सर्व विधि सुख, सौख्य फुलारा॥
करत क्रोध, चपल भुज धारी।
कष्ट निवारण, संत दुखारी॥
शुभ्र वर्ण, तनु मंद सुहाना।
कष्ट मिटावन, हर्षित नाना॥
दुष्ट हरण, सुजनन हितकारी।
सर्व बाधा, निवारण न्यारी॥
सुर पतिहिं, प्रभु कृपा विलासिन।
कष्ट निवारण, शुभ्र सुवासिन॥
वेद पुरान, पठत जन स्वामी।
मनहरण, मोहबारी कामी॥
सप्त भुज, रत्नजटित माला।
कष्ट निवारण, शुभ फलशाला॥
सुख रक्षक, सर्वसुख दाता।
सर्व कामना, फल दाता॥
मानव कृत, पाप हरे प्रभु।
सर्व बाधा, निवारण रघु॥
रोग निवारण, दुख हरणकर।
सर्व विधि, शुभ फल देनेकर॥
नमन सकल, सुर नर मुनि करते।
व्रत उपासक, दुख हरण करते॥
शरणागत, कृपा निधि सोइ।
जन रक्षक, मोहे दुख होई॥
शुद्ध भाव, से जो नित गावै।
सर्व सुख, परम पद पावै॥
वृन्दावन में, मंदिर निर्मित।
जहां शुद्ध भक्तन, सदा शरणागत॥
संत जनन के, कष्ट मिटावत।
भवबंधन से, सहज छुड़ावत॥
सकल कामना, पूर्ण करावत।
मोहभंग, भवसागर तरावत॥
जयति जयति, कृपानिधान।
शुक्र देव, श्री विश्व विद्धान॥
प्रणवउं, नाथ सकल गुण सागर।
विविध विघ्न हरन, सुखदायक॥
सुर मुनि जनन, अति प्रिय स्वामी।
शुभ्र वर्ण, रूप मनहारी॥
जय जय जय, श्री शुक्र दयाला।
करहुं कृपा, भव बंधन ताला॥
ध्यान धरत, जन होउं सुखारी।
कृपा दृष्टि, शांति हितकारी॥
अधम कायर, सुबुद्धि सुधारो।
मोह निवारण, कष्ट निवारो॥
लक्ष्मीपति, शुभ फल दाता।
संतजनन, दुख भंजन राता॥
जय जय जय, कृपा निधि शुक्र।
करहुं कृपा, हरहुं सब दु:ख॥
प्रणवउं नाथ, सकल गुण सागर।
विविध विघ्न हरन, सुखदायक॥
रूप तेज बल, संपन्न सदा।
शांति दायक, जन सुख दाता॥
त्रिभुवन में, मंगल करतू।
सर्व बाधा, हरता शुकृ॥
मानव कृत, पाप हरे प्रभु।
सर्व बाधा, निवारण रघु॥
रोग निवारण, दुख हरणकर।
सर्व विधि, शुभ फल देनेकर॥
प्रणवउं नाथ, सकल गुण सागर।
विविध विघ्न हरन, सुखदायक॥
ध्यान धरत, जन होउं सुखारी।
कृपा दृष्टि, शांति हितकारी॥
जय जय जय, कृपा निधि शुक्र।
करहुं कृपा, हरहुं सब दु:ख॥
॥दोहा॥
नमो नमो श्री शुक्र सुहावे।
सर्व बाधा, कष्ट मिटावे॥
यह चालीसा, जो नित गावै।
सुख संपत्ति, परम पद पावै॥
|| इति संपूर्णंम् ||
शुभ दिन: शुक्र देव की चालीसा का पाठ करने के लिए शुक्रवार को सबसे शुभ माना जाता है।
शुद्धता और तैयारी: पाठ से पहले अच्छे से स्नान करें और साफ-सुथरे सफेद कपड़े पहनें। शारीरिक और मानसिक पवित्रता जरूरी है।
पूजा में काम आने वाली चीज़ें: पूजा करते समय सफेद फूल, चंदन, दही-चावल, सफेद मिठाई या खुशबूदार इत्र अर्पित करें।
पूजा के लिए स्थान का चयन: किसी शांत और स्वच्छ जगह पर बैठें, और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखें।
ध्यानपूर्वक आरंभ करें: पहले भगवान शिव और शुक्र देव का ध्यान करें, फिर दीपक जलाकर श्रद्धा के साथ चालीसा का पाठ शुरू करें।
बीज मंत्र का उपयोग: पाठ के पहले या बाद में “ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः” मंत्र का जाप करना बहुत शुभ माना जाता है।
श्रद्धा और संयम बनाए रखें: पाठ करते समय नियमितता रखें (हर शुक्रवार करें) और मांस, शराब, प्याज, लहसुन आदि से दूर रहें।
पाठ की अवधि: विशेष लाभ के लिए इस चालीसा का पाठ लगातार 11, 21 या 40 शुक्रवार तक करने की परंपरा है।
चालीसा का पाठ जन्मकुंडली में अशुभ शुक्र की वजह से होने वाले तनाव, रिश्तों की परेशानी और सुखों की कमी को दूर करने में मदद करता है।
यह पाठ पति-पत्नी के बीच आपसी समझ और प्रेम को बढ़ाकर वैवाहिक जीवन को मजबूत बनाता है।
शुक्र प्रेम का प्रतीक है, इसका नियमित पाठ रिश्तों में भावनात्मक जुड़ाव और मिठास लाता है।
शुक्र देव की कृपा से भौतिक समृद्धि, विलासिता और आर्थिक स्थिति में सुधार आता है।
यह पाठ कला, संगीत, फैशन, अभिनय और डिजाइन जैसे रचनात्मक क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को लाभ पहुंचाता है।
चालीसा का पाठ मन को शांत करता है, नकारात्मक ऊर्जा को हटाता है और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
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