संतोषी माता चालीसा
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संतोषी माता चालीसा

संतोषी माता की कृपा से घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली का माहौल बना रहता है।

जानें संतोषी माता चालीसा के बारे में

सनातन धर्म में संतोषी माता को विशेष स्थान प्राप्त हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि संतोषी माता भगवान गणेश जी की पुत्री हैं? धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि कोई भक्त माँ संतोषी के चालीसा का पाठ हर शुक्रवार को करता हैं, तो माता की कृपा से उसे संतोष की प्राप्ति होती है। साथ ही अगर कोई भक्त संतोषी चालीसा का पाठ रोज करता है, तो उसके जीवन में सकारात्मकता आती है और माँ की कृपा से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। तो आइए पढ़ते है संतोषी माता की चालीसा।

संतोषी माता चालीसा का महत्व

संतोषी चालीसा के अमृत का जो भी भक्त प्रतिदिन पान करता है, उसे माँ का आशीष अवश्य मिलता है। कलियुग में माँ शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोवांछित फल देने वाली हैं।

माँ संतोषी चालीसा नित्य गाने से सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं और त्रास नष्ट हो जाते हैं। भगवान श्री गणेश की पुत्री माँ सन्तोषी भय, शोक व दुःख-कष्टों को दूर करने वाली हैं। उनका स्मरण मात्र पुण्य देने वाला और पापों को क्षीण करने वाला है।

संतोषी माता चालीसा दोहा

बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार।

ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार॥

भक्तों को संतोष दे संतोषी तव नाम।

कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम॥

संतोषी माता चालीसा चौपाई

जय सन्तोषी मात अनुपम।

शांति दायिनी रूप मनोरम॥

सुन्दर वरण चतुर्भुज रूप।

वेश मनोहर ललित अनुपा॥

श्वेताम्बर रूप मनहारी।

माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी॥

दिव्य स्वरूपा आयत लोचन।

दर्शन से हो संकटमोचन॥

जय गणेश की सुता भवानी।

रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी॥

अगम अगोचर तुम्हरी माया।

सब पर करो कृपा की छाया॥

नाम अनेक तुम्हारे माता।

अखिल विश्‍व है तुमको ध्याता॥

तुमने रूप अनेकों धारे।

को कहि सके चरित्र तुम्हारे॥

धाम अनेक कहाँ तक कहिये।

सुमिरन तब करके सुख लहिये॥

विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी।

कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी॥

कलकत्ते में तू ही काली।

दुष्ट नाशिनी महाकराली॥

सम्बल पुर बहुचरा कहाती।

भक्तजनों का दुख मिटाती॥

ज्वाला जी में ज्वाला देवी।

पूजत नित्य भक्त जन सेवी॥

नगर बम्बई की महारानी।

महा लक्ष्मी तुम कल्याणी॥

मदुरा में मीनाक्षी तुम हो।

सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो॥

राजनगर में तुम जगदम्बे।

बनी भद्रकाली तुम अम्बे॥

पावागढ़ में दुर्गा माता।

अखिल विश्व तेरा यश गाता॥

काशीपुराधीश्वरी माता।

अन्नपूर्णा नाम सुहाता॥

सर्वानंद करो कल्याणी।

तुम्हीं शारदा अमृतवाणी॥

तुम्हरी महिमा जल में थल में।

दुःख दारिद्र सब मेटो पल में॥

जेते ऋषि और मुनीशा।

नारद देव और देवेशा।

इस जगती के नर और नारी।

ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी॥

जापर कृपा तुम्हारी होती।

वह पाता भक्ति का मोती॥

दुःख दारिद्र संकट मिट जाता।

ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता॥

जो जन तुम्हरी महिमा गावै।

ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै॥

जो मन राखे शुद्ध भावना।

ताकी पूरण करो कामना॥

कुमति निवारि सुमति की दात्री।

जयति जयति माता जगधात्री॥

शुक्रवार का दिवस सुहावन।

जो व्रत करे तुम्हारा पावन॥

गुड़ छोले का भोग लगावै।

कथा तुम्हारी सुने सुनावे॥

विधिवत पूजा करे तुम्हारी।

फिर प्रसाद पावे शुभकारी॥

शक्ति- सामरथ हो जो धनको।

दान- दक्षिणा दे विप्रन को॥

वे जगती के नर औ नारी।

मनवांछित फल पावें भारी॥

जो जन शरण तुम्हारी जावे।

सो निश्‍चय भव से तर जावे॥

तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे।

निश्‍चय मनवांछित वर पावै॥

सधवा पूजा करे तुम्हारी।

अमर सुहागिन हो वह नारी॥

विधवा धर के ध्यान तुम्हारा।

भवसागर से उतरे पारा॥

जयति जयति जय संकट हरणी।

विघ्न विनाशन मंगल करनी॥

हम पर संकट है अति भारी।

वेगि खबर लो मात हमारी॥

संतोषी माता चालीसा दोहा

संतोषी माँ के सदा बंदहूँ पग निश वास।

पूर्ण मनोरथ हो सकल मात हरौ भव त्रास॥

॥ इति श्री संतोषी माता चालीसा ॥

श्री मंदिर साहित्य में पाएं सभी मंगलमय चालीसा का संग्रह।

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Published by Sri Mandir·December 27, 2024

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