वामन अवतार

वामन अवतार

जानें क्यों लिया विष्णु जी ने यह अवतार


वामन अवतार की कथा (Vaman Avatar ki katha)

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के पांचवें अवतार हैं वामन देव। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु ने वामन रूप में देवी अदिति के गर्भ से जन्म लिया था। विष्णु जी के ये पहले ऐसे अवतार हैं जोकि मानव रूप में प्रकट हुए। श्री हरि यानी विष्णु जी ने दैत्यों को पराजित करने के लिए एक छोटे बालक रूपी ब्राह्मण का अवतार लिया था। यहां छोटे ब्राह्मण बालक को ही वामन कहा गया है। भगवान के वामन अवतार को दक्षिण भारत में उपेंद्र के नाम से जाना जाता है। इनके पिता प्रजापति कश्यप व माता अदिति थीं।

भगवान ने वामन अवतार क्यों लिया था? (Why did the Lord take the Vamana avatar?)

भागवत पुराण के अनुसार, देवराज इंद्र को स्वर्ग पर दोबारा अधिकार प्रदान कराने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था। विष्णु जी ने ऋषि कश्यप व देव माता अदिति के पुत्र बनकर एक बौने ब्रह्मण के रूप में जन्म लिया। कहा जाता है कि असुरराज बलि ने अपने तपोबल व पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। निराश देवराज इंद्र ने स्वर्ग पर पुनः अधिकार पाने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की। जिसके बाद विष्णु जी ने इंद्र की प्रार्थना स्वीकार करते हुए वामन अवतार में जन्म लिया।

वामन अवतार की कथा (Story of Vaman Avatar)

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जब देवताओं व दैत्यों के बीच युद्ध हुआ तो सभी दैत्य हार गए। इंद्रदेव के प्रहार से दैत्यराज बलि भी घायल हो गया। उस समय दैत्यों के गुरु कहे जाने वाले शुक्राचार्य ने संजीवनी विद्या के बल से बलि व अन्य मृत दैत्यों को जीवित कर दिया। यही नहीं, दैत्यों को और बलशाली बनाने के लिए शुक्राचार्य ने एक विशाल यज्ञ कर अग्निदेव को प्रसन्न किया और वरदान में रथ, बाण व अभेद्य कवच हासिल कर लिया।

बल मिलने के बाद दैत्यों ने अपनी विशाल सेना को युद्ध के मैदान में उतरकर अमरावती पर आक्रमण कर दिया। वहीं, दैत्यों के बढ़ते बल को देख देवराज इंद्र भयभीत हो उठे। वह यह जानते थे कि अगर दैत्यराज बलि 100 यज्ञ कर लेगा तो वह स्वर्ग जीतने में सक्षम हो जाएगा। इंद्र देव भगवान विष्णु की शरण में गए और मदद की गुहार लगाई। विष्णु जी ने इंद्रदेव से कहा कि वह स्वयं वामन रूप में माता अदिति के गर्भ से अवतार लेंगे और सभी समस्याओं का समाधान कर देंगे।

महर्षि कश्यप के कहने पर माता अदिति पुत्र प्राप्ति की कामना करते हुए उपासना करती हैं, जिसके बाद भगवान विष्णु भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन माता के गर्भ से वामन रूपी अवतार में जन्म लेते हैं। भगवान विष्णु अपने इसी अवतार में ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप भी धारण करते हैं। पुत्र प्राप्ति के बाद महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ मिलकर वामन का उपनयन संस्कार करते हैं। उन्हें सभी ऋषियों से कुछ न कुछ भिक्षा भी मिलती है। भिक्षा लेने के बाद वामन बटुक पिता महर्षि कश्यप से आज्ञा लेकर दैत्यराज बलि के पास जाते हैं। जिस समय वामन बलि के पास पहुंचते हैं, उस समय वह नर्मदा नदी के तट पर अपना अंतिम 100वां यज्ञ संपन्न करने जा रहे होते हैं।

वामन अवतार भगवान विष्णु जी बलि के पास जाकर उससे भिक्षा में तीन पग भूमि मांगते हैं। दैत्यों के राजा बलि गुरु शुक्राचार्य के मना करने के बावजूद वामन को 3 पग भूमि दान देने का वचन दे देते हैं। जिसके बाद भगवान के अवतार वामन एक पग में स्वर्ग लोक व दूसरे पग में सम्पूर्ण पृथ्वी नाप लेते हैं। अब उनके पास तीसरा पग रखने के लिए कोई खाली स्थान नहीं बचता। यह देख राजा बलि चिंतित हो उठते हैं और तीसरे पग के लिए अपना सिर आगे कर देते हैं और कहते हैं कि प्रभु आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन बलि के कहे अनुसार उसके सिर पर तीसरा पग रख देते हैं। इसी के साथ दैत्यराज बलि को पाताल लोक में रहने का आदेश देते हैं।

वहीं, बलि की वचनबद्धता देख भगवान विष्णु के अवतार वामन प्रसन्न हो जाते हैं और बलि से उसकी इच्छा पूछते हैं। इसपर बलि भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वरदान मांगते हैं। जिसको स्वीकार करते हुए विष्णु जी पाताल लोक में दैत्यों के राजा बलि का द्वारपाल बनकर हमेशा उसके सामने रहते हैं।

वामन अवतार का महत्व (Importance of Vaman Avatar)

भगवान विष्णु के अवतार वामन देव का जन्म भाद्रपद शुक्ल की द्वादशी तिथि को हुआ था। इसलिए इस तिथि को वामन द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन श्रवण नक्षत्र में की गई पूजा विशेष फलदायी होती है। कहते हैं जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा से वामन देव की पूजा अर्चना करता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन शास्त्रोक्त विधि से वामन देव की पूजा करनी चाहिए। साथ ही वामन देव के अवतरण की कथा व भागवत पुराण का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है।

वामन अवतार की पूजा विधि (Vamana avatar worship method)

  • वामन जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लेें और साफ कपड़ा पहनें।

  • घर में वामन देव की प्रतीमा या फोटो के सामने व्रत का संकल्प लें।

  • वामन देव की षोडोपचार पूजा करें। ध्यान रहे पूजा श्रवण नक्षत्र में ही करें। क्योंकि माना जाता है कि भगवान वामन का जन्म श्रवण नक्षत्र में हुआ था।

  • पूजा पूरी होने के बाद भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। साथ ही वामन देव के जन्म की कथा का भी पाठ करें।

  • पाठ करने के बाद भगवान को फल, फूल, नैवेद्य आदि का भोग लगाएं।

  • शाम में पूजा करने के बाद अन्न ग्रहण करके व्रत खोल सकते हैं।

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