परशुराम अवतार

परशुराम अवतार

जानें क्यों नही की जाती इनकी पूजा


भगवान परशुराम को भगवान विष्णु जी के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर परशुराम जी का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस पावन दिन को अक्षय तृतीया भी कहते हैं। त्रेतायुग में अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण परशुराम जी की शक्ति भी अक्षय थी। कहते हैं इस दिन किया गया दान पुण्य कभी क्षय नहीं होता। यही नहीं, भगवान परशुराम जी की गिनती महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि मार्कंडेय सहित उन 8 अमर लोगों में होती है जिन्हें कालांतर तक अमर माना जाता है।

भगवान विष्णु ने परशुराम अवतार क्यों लिया था? (Why did Lord Vishnu take Parshuram avatar?)

रामायण, महाभारत, भागवत पुराण, कल्कि पुराण सहित कई ग्रंथों में भगवान परशुराम अवतार की कथा का वर्णन किया गया है। भगवान विष्णु के 10 अवतारों में छठा अवतार कहे जाने वाले भगवान परशुराम को विष्णु जी का आवेशावतार भी कहा जाता है। परशुराम जी को भगवान विष्णु व शिव का संयुक्त अवतार माना जाता है, क्योंकि शिव जी से उन्होंने संहार लिया तो विष्णु जी से उन्होंने पालक के गुण प्राप्त किए।

अध्यात्म रामायण में बताया गया है कि राक्षसों ने क्षत्रिय का रूप धारण करके जन्म लिया व पृथ्वी पर अनाचार व अत्याचार करने लगे। यह देख भगवान विष्णु ने परशुराम का अवतार धारण किया और दुष्ट राक्षसों का कई बार नृसंहार किया। भगवान परशुराम ने पृथ्वी को राक्षसों के भार से मुक्त किया।

परशुराम अवतार का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी से पाप का अंत करना है। साथ ही भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि को शिक्षा प्रदान करना है। भगवान परशुराम की भूमिका को देखते हुए उनका जीवनकाल कलियुग के अंत तक निर्धारित माना जाता है।

परशुराम अवतार की कहानी क्या है? (What is the story of Parshuram avatar?)

ब्राह्मण कुल में जन्में भगवान परशुराम के पिता ब्राह्मण जमदग्नि तथा माता क्षत्रिय रेणुका थीं। इसलिए परशुराम जी के अंदर ब्राह्मण व क्षत्रिय दोनों के गुण थे। बचपन में उनका नाम राम रखा गया, लेकिन भगवान शिव से प्राप्त अस्त्र परशु/कुल्हाड़ी के कारण उन्हें परशुराम के नाम से जाना जाने लगा। इनका जन्मस्थान मध्य प्रदेश के इंदौर में जनापाव नामक पहाड़ियां पर माना जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार राजा सहस्त्रर्जुन अपने सैनिकों के साथ ऋषि जमदग्नि के आश्रम में गया। जहां उसका मन ऋषि की गाय कामधेनु पर आ गया और उसे साथ ले जाने का मन बना लिया। जमदग्नि के मना करने पर सहस्त्रर्जुन ने आश्रम तहस नहस कर दिया और गाय साथ लेकर चला गया। भगवान परशुराम को जब इस बात का पता चला तो वह क्रोधित हो उठे। उन्होंने सहस्त्रर्जुन का वध कर दिया व कामधेनु गाय को वापस ले आये। इसके बाद पिता ऋषि जमदग्नि के कहने पर परशुराम जी तीर्थयात्रा पर चले गए।

सहस्त्रर्जुन के पुत्रों ने अपने पिता का बदला लेने के लिए ऋषि जमदग्नि के आश्रम पर हमला बोल दिया व जमदग्नि का वध कर दिया। जब परशुराम तीर्थयात्रा से वापस लौटे तो उन्हें पिता की हत्या की खबर मिली, जिसके बाद उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने महिष्मती नगरी पर आक्रमण कर उसपर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक 21 बार राजा सहस्त्रर्जुन के क्षत्रिय वंश का पृथ्वी से विनाश कर दिया। यही नहीं, क्षत्रियों के रक्त से स्थलत पंचक क्षेत्र के पांच सरोवर भी भर दिए और अपने पिता का श्राद्ध सहस्त्रर्जुन के पुत्रों के रक्त से किया।

परशुराम जी का क्रोध देख महर्षि चीक प्रकट हुए और उन्होंने परशुराम जी को ऐसा घोर कृत्य करने से रोका। जिसके बाद परशुराम जी ने अश्वमेघ महायज्ञ किया और सप्तद्वीप युक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी। साथ ही देवराज इंद्र के समक्ष अपने शस्त्र त्याग दिए और सागर द्वारा उच्छिष्ट भूभाग महेन्द्र पर्वत पर आश्रम बनाकर रहने लगे।

परशुराम और राम की कहानी (Story of Parshuram and Ram)

भगवान विष्णु ने अयोध्या में अपना सातवें अवतार श्रीराम के रूप में जन्म लिया था। प्रभु श्रीराम एक बार अपने गुरु विश्वामित्र के साथ माता सीता के स्वयंवर में गए, जहां उन्होंने शिव धनुष तोड़ दिया। धनुष के टूटने की गर्जना तीनों लोकों में फैल गई। महेंद्रगिरी पर्वत पर तपस्या कर रहे भगवान परशुराम को जब धनुष टूटने की जानकारी हुई तो वह श्रीराम का पराक्रम देखने अयोध्या पहुंचे। जहां उन्होंने श्रीराम जी की परीक्षा लेने के लिए उन्हें क्षत्रियसंहारक दिव्य धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए कहा। प्रत्यंचा चढ़ा लेने के बाद उन्होंने धनुष पर एक दिव्य बाण चढ़ाकर दिखाने के लिए कहा।
श्रीराम जी ने बाण चढ़ाकर परशुराम जी के तेज पर छोड़ दिया। बाण परशुराम जी के तेज को छीनकर पुनः श्रीराम के पास लौट आया।

प्रभु श्री राम ने परशुराम जी को दिव्य दृष्टि दी, जिससे उन्होंने श्रीराम के यथार्थ स्वरूप के दर्शन किये। इस घटना के बाद परशुराम जी करीब एक वर्ष तक लज्जित, तेजहीन व अभिमानशून्य होकर तपस्या करते रहे। जिसके बाद पितरों से प्रेरणा पाकर उन्होंने वधूसर नाम की नदी के तीर्थ पर स्नान करके अपना तेज़ पुनः प्राप्त किया।

परशुराम जी की पूजा क्यों नहीं की जाती है ? (Why is Parshuram ji not worshipped?)

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान परशुराम को राम जामदग्नाय, राम भार्गव व वीरराम भी कहा जाता है। कहते हैं कि भगवान परशुराम अभी भी पृथ्वी पर मौजूद हैं, इसलिए भगवान राम व श्रीकृष्ण के विपरीत भगवान परशुराम की पूजा नहीं की जाती है। हालांकि, दक्षिण भारत में उडुपी के पास पजका के पवित्र स्थान पर एक बहुत बड़ा मंदिर है जो भगवान परशुराम को समर्पित है।

परशुराम जी की मृत्यु कैसे हुई? (How did Parshuram ji died?)

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम का कर्तव्य अभी पूर्ण नहीं हुआ है। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, जबकि इस कल्प में भगवान विष्णु को कुल 10 अवतार लेने हैं। भगवान परशुराम का कर्तव्य सिर्फ अपने समय काल तक का ही नहीं था, बल्कि उनकी भूमिका भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि भगवान को शिक्षा देने व अस्त्र-शस्त्र चलाने की विद्या देने की होगी। भगवान कल्कि को संपूर्ण ज्ञान देने के बाद भगवान परशुराम का कर्तव्य पूरा माना जाएगा। जिसके बाद वे मृत्यु लोक को छोड़कर श्रीहरि में समा जाएंगे।

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