कूर्म अवतार

कूर्म अवतार

भगवान श्री विष्णु का कूर्म अवतार


क्या है समुद्र मंथन के पीछे की कहानी ?

पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन को सफलतापूर्वक पूर्ण करने के लिए भगवान श्री विष्णु ने अपना दूसरा अवतार कूर्म रूप में लिया था। कूर्म अवतार को ‘कच्छप’ अवतार भी कहते हैं। कूर्म अवतार में ही भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन में मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला था।

विष्णु पुराण के अनुसार एक बार भगवान शंकर के अंशावतार दुर्वासा ऋषि पृथ्वीतल पर विचर कर रहे थे। घूमते-घूमते उन्होंने एक विद्दाधरी के हाथ में पारिजात पुष्प की एक दिव्य माला देखी। जिसके सुगंध दूर-दूर तक फैल रही थी। उसकी सुगंध से मोहित होकर ऋषि दुर्वासा ने उस सुंदरी से वह माला मांगी। जिसके बाद विद्दाधरनी ने आदरपूर्वक प्रणाम करते हुए वह माला ऋषि दुर्वासा को दे दी। उस माला को ऋषि दुर्वासा अपने मस्तक पर लेकर आगे चलने लगे।

इसी समय उन्होंने ऐरावत पर देवताओं के साथ देवराज इंद्र को आते देखा। उन्हें देखकर ऋषि दुर्वासा ने उस दिव्य माला को अपने सिर से उतार देवरराज इंद्र के ऊपर फेंका। जिसे देवराज इंद्र ने ऐरावत के मस्तक पर डाल दी। ऐरावत ने दिव्य माला को अपने अपने मस्तक से उतारकर भूमि पर फेंक दिया।

इसे देख ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए और इंद्र पर गुस्सा करते हुए कहा, हे देवराज अपने ऐश्वर्य के नशे चूर होकर आपने मेरी दी हुई माला का आदर तक नहीं किया। इसलिए मैं श्राप देता हूं कि तेरा त्रिलोकीका वैभव नष्ट हो जाएगा।

उनके श्राप से सभी देवताओं ने अपनी शक्ति खो दी। श्राप के कारण देवराज इंद्र के प्रिय ऐरावत भी उनसे दूर हो गया। ऋषि दुर्वासा के श्राप से तीनों लोकों को माता लक्ष्मी से वंचित होना पड़ गया, तिन्हो लोकों का वैभव भी लुप्त हो गया। जिसके बाद सभी देवता भगवान ब्रह्मा के पास गए और कुछ उपाय सुझाने को कहा। जिसपर ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं को भगवान विष्णु के पास जाने को कहा।

भगवान ब्रह्मा की सलाह पर सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। जहां भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करने को कहा। भगवान विष्णु ने बताया कि समुद्र मंथन से जो अमृत मिलेगी, उससे देवों की शक्ती वापस आ जाएगी और वे अमर हो जाएंगे।

प्रभु श्री हरि ने विश्व के पुनः निर्माण और माता लक्ष्मी के पुनरुद्धार के लिए समुद्र मंथन का मार्ग सुझाया, लेकिन सभी देवता इसे अकेले कर पाने में समर्थ नहीं थे। जिसके बाद इसके लिए असुरों को भी इस कार्य में सम्मिलित कराने की योजना बनाई गई और प्रभु ने देवराज इंद्र को यह कार्य सौंपा कि वह असुरों के पास जाकर उन्हें अमृत का लोभ दिखाकर इस कार्य के लिए मनाएं। तब देवराज भी इस कार्य में देवताओं की सहायता के लिए तैयार हो गए।

यह पहला ऐसा कार्य था, जिसे देव और दानव साथ में करने वाले थे। इससे पहले, इन दोनों समूहों में सिर्फ घमासान युद्ध ही देखने को मिला था। मगर समुद्र का मंथन इतना सहज नहीं था, इसलिए श्री विष्णु के आज्ञ से मंदराचल पर्वत को समुद्र के बीचों-बीच मथनी बनाकर खड़ा कर दिया। परंतु अब भी समुद्र को मथने के लिए किसी लंबी रस्सी का उपाय नहीं सूझ रहा था, तब प्रभु ने देवाधिदेव महादेव से उनके गले के नाग वासुकि को इस कार्य के लिए देने का आग्रह किया। भगवान शंकरजीने नाग वासुकि को इस काम के लिए सौंप दिया।

अब दोनों समूहों में इस बात को लेकर मतभेद होने लगा कि इस रस्सी रूपी नाग का कौन सा हिस्सा किस समूह के पाले में आएगा। इसे लेकर जब असुरों ने पूछा कि कौन सा हिस्सा मजबूत है, तो उन्होंने मुख के हिस्से को लेने के लिए कहा। इसके बाद प्रभु के कथन अनुसार असुरों ने भी मजबूत हिस्से को ही लेने का निर्णय किया और देवताओं को वासुकि का पिछला हिस्सा मिला।

समुद्र मंथन का कार्य जैसे ही प्रारंभ हुआ तो सभी ने देखा कि मंदराचल पर्वत धीरे-धीरे जल में समाने लगा है क्योंकि उसका भार उठाने के लिए कोई मजबूत वस्तु वहां मौजूद नहीं था। सब सोच में पड़ गए कि अब समुद्र मंथन कैसे पूरा होगा।

तब तारणहार प्रभु ने स्वयं कच्छप का अवतार धारण करते हुए उस मंदार पर्वत को अपनी पीठ पर उठा लिया। कहा जाता है कि प्रभु के इस कूर्म अवतार में उनकी पीठ का हिस्सा एक लाख योजन से भी ज्यादा था। उन्होंने मंदार पर्वत को तब तक उठाए रखा, जब तक समुद्र मंथन पूरा नहीं हुआ।

समुद्र मंथन में सबसे पहले हलाहल निकला था, जिसे महादेव ने पी लिया था, क्योंकि उनके अलावा इस संसार में कोई भी इसको अपने शरीर में धारण करने की क्षमता नहीं रखता था। हलाहल को पीते ही, महाकाल का कंठ नीला पड़ गया और तभी से उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाने लगा। हलाहल के बाद समुद्र में से कल्पवृक्ष, ऐरावत हाथी, कामधेनु गाय, कौस्तुभ मणि जैसे रत्नों सहित तेरह और रत्न और अप्सराएं बाहर आए।

अंत में समुद्र में से माता लक्ष्मी का भी उदय हुआ और उनके आते ही सभी देवताओं की श्री वृद्धि हो गई। तब सभी देवताओं ने नतमस्तक होकर प्रभु के कुर्मावतार को शत-शत नमन करते हुए उनका गुणगान किया और इस प्रकार भगवान श्री विष्णु ने एक बार फिर धरती पर विश्व का निर्माण किया।

श्री मंदिर द्वारा आयोजित आने वाली पूजाएँ

देखें आज का पंचांग

slide
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?

Download Sri Mandir app now !!

Connect to your beloved God, anytime, anywhere!

Play StoreApp Store
srimandir devotees
digital Indiastartup Indiaazadi

© 2024 SriMandir, Inc. All rights reserved.