शास्त्रों की मानें तो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था इसलिए इसे गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, उत्तराखंड के चार धाम में मौजूद गंगोत्री धाम है, जहां देवी गंगा का अवतरण हुआ था। इस क्षेत्र में भगवान श्री रामचन्द्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तप किया था, जिनकी तपस्या से शिवजी प्रसन्न होकर यहां प्रकट हुए एवं उन्होंने मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर उनका वेग शांत किया था। गंगा दशहरा के पावन अवसर पर देवी गंगा को प्रसन्न करने के लिए गंगोत्री धाम में गंगा की पूजा अत्यंत फलदायी सिद्ध होती है। इस दिन मां गंगा की अराधना कर भक्त अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं।
वैसे तो गंगा जी की अराधना विभिन्न तरीके से की जाती है लेकिन गंगा लहरी पाठ, मां गंगा का श्रेष्ठतम काव्य ग्रंथ है। इसीलिए गंगोत्री में हर दिन सांध्यकालीन आरती के बाद गंगा लहरी का पाठ होता है। इस ग्रंथ में मां गंगा की महिमा और विविध गुणों का वर्णन किया गया है। पंडित जगन्नाथ मिश्र द्वारा संस्कृत में रचित गंगा लहरी में 52 श्लोक हैं। वहीं शिव गंगा अभिषेक को लेकर पौराणिक मान्यता है कि गंगाजल से शिव जलाभिषेक करने से कई गुना अधिक पुण्य फल प्राप्त होता है। गंगा दशहरा के पावन पर्व पर श्री मंदिर द्वारा पहली बार शिव गंगा अभिषेक पूजा एवं गंगा लहरी पाठ का भव्य आयोजन किया जा रहा है, जिसमें भाग लेकर आप देवी गंगा के आशीष से अपनी सारी मनोकामनाएं पूरी कर सकते हैं।