सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह समय पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए किए जाने वाले सभी अनुष्ठानों के लिए सबसे शुभ माना गया है। पितृ पक्ष के दौरान पड़ने वाली हर तिथि का अपना अलग विशेष महत्व है, जिसमें से एक है अमावस्या तिथि। इसे सर्वपितृ अमावस्या या महालया अमावस्या भी कहते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पड़ने वाली यह अंतिम तिथि सबसे शुभ मानी जाती है। इस तिथि पर उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जा सकता है जिनकी मृत्यु तिथि आपको ज्ञात नहीं हो, या पितृ पक्ष के दौरान भूलवश आप जिन पूर्वजों का श्राद्ध न कर पाए हों। कहा जाता है कि महालया अमावस्या तिथि पर सभी पूर्वज अपने घर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, यदि पितरों का ठीक प्रकार से श्राद्ध न किया जाए तो उनके वंशजों को पितृ दोष का सामना करना पड़ सकता है। पितृदोष के कारण जीवन में आर्थिक हानि, पारिवारिक क्लेश और स्वास्थ्य से संबधी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। माना जाता है कि पितृ पक्ष की अंतिम तिथि महालया अमावस्या पर पितृ दोष शांति महापूजा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और पारिवारिक क्लेश भी समाप्त हो जाता है।
हिंदु धर्म में भगवान शिव की पूजा को सभी दोषों से मुक्ति का मार्ग माना गया है। यही कारण है कि रावण को हराने के बाद भगवान राम ने भी रामेश्वरम में भगवान शिव की पूजा की थी। आध्यात्मकि दृष्टि से रामेश्वरम मंदिर का विशेष महत्व है, क्योंकि यहां भगवान शिव को रामनाथस्वामी लिंगम के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर भगवान शिव के बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, मंदिर में 22 पवित्र जल तीर्थ हैं, जहाँ भक्त स्नान कर अपने पापों की क्षमा माँगते हैं। कहा जाता है कि रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद, भगवान राम और देवी सीता ने यहाँ रेत से शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की विशेष पूजा की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव और देवी पार्वती ने उन्हें आशीर्वाद दिया, जिससे उन्हें सभी पापों से मुक्ति मिली। इसी कारणवश रामेश्वरम मंदिर को पितृ दोष शांति पूजा के लिए सबसे पवित्र स्थान माना जात है। मान्यता है कि यहां पितृ दोष शांति पूजा एवं तिल तर्पण करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। इसलिए पितृ दोष की अंतिम और सबसे शुभ तिथि महालया अमावस्या पर रामेश्वरम मंदिर में पितृ दोष शांति पूजा एवं तिल तर्पण का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष पूजा में भाग लें और पूर्वजों की आत्मा की शांति और पारिवारिक क्लेश से मुक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके अलावा, पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए दान पुण्य करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस समय दान करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है, जिनमें पितृ पक्ष विशेष पंच भोग, दीप दान भी शामिल है। इसलिए इस पूजा के साथ अतिरिक्त विकल्प के रूप में दिए गए जैसे पंच भोग, दीप दान एवं गंगा आरती का चुनाव करना आपके लिए फलदायी हो सकता है। इसलिए इस पूजा में इन विकल्पों को चुनकर अपनी पूजा को और भी अधिक प्रभावशाली बनाएं।