सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह समय पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए की सबसे शुभ माना गया है। शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पितृ लोक से धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष की हर तिथि का अपना विशेष महत्व होता है, जिसमें से चतुर्दशी तिथि एक है। इसे श्राद्ध चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन उन पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं, जिनकी मृत्यु हिंदु पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी तिथि पर हुई हो। पितृ पक्ष का समय पितृ दोष के निवारण के लिए भी शुभ माना जाता है। हिंदु धर्म ग्रंथों के अनुसार 'पितृ दोष' पूर्वजों की अधूरी इच्छाओं और नकारात्मक कर्मों के कारण होता है। इस दोष से पीड़ित जातक के जीवन में आर्थिक परेशानियां, रिश्तों में तनाव एवं विवाद और स्वास्थ्य संबधी समस्याओं का सिलसिला लगा ही रहता है। माना जाता है कि पितृ दोष शांति महापूजा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। यदि इस पूजा के साथ यम दंड पूजा की जाए तो यह अत्यंत फलदायी हो सकती है। माना जाता है कि इन अनुष्ठानों को करने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शास्त्रों के अनुसार, यमुना देवी सूर्य देव की पुत्री और देव यमराज (मृत्यु के देवता) की बहन है। पौराणिक कथानुसार, जब यमुना देवी ने एक नदी के रूप में पृथ्वी पर प्रवाह शुरू किया, तब उनके भाई यमराज को मृत्यु लोक का अधिपति बनाया गया। इस अवसर पर यमुना देवी ने अपने भाई यमराज के साथ भाई दूज का पर्व मनाया। यमराज, अपनी बहन की भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होकर, उनसे वरदान मांगने का आग्रह किया। यमुना देवी की प्रार्थना सुनकर यमराज ने उन्हें वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति यमुना के पवित्र जल में स्नान करेगा या उनके तट पर श्रद्धा और विधिपूर्वक पूजा करेगा, उसे यमलोक का मार्ग नहीं देखना पड़ेगा। क्योंकि यमुना देवी स्वयं मृत्यु के देवता और पितरों के रक्षक यमराज की बहन हैं, इसलिए उनके जल में स्नान करने से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है और व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। इसलिए, पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध चतुर्दशी के शुभ अवसर पर श्री यमुनोत्री धाम में पितृ दोष शांति महापूजा और यम दंड निवारण पूजा आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके अलावा, पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए दान पुण्य करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस समय दान करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है, जिनमें पितृ पक्ष विशेष पंच भोग, दीप दान भी शामिल है। इसलिए इस पूजा के साथ अतिरिक्त विकल्प के रूप में दिए गए जैसे पंच भोग, दीप दान एवं गंगा आरती का चुनाव करना आपके लिए फलदायी हो सकता है। इसलिए इस पूजा में इन विकल्पों को चुनकर अपनी पूजा को और भी अधिक प्रभावशाली बनाएं।