कल्कि जयंती 2025: अधर्म के अंत और धर्म की स्थापना के प्रतीक भगवान कल्कि अवतार की जयंती, जानें पूजन विधि और धार्मिक महत्व।
कल्कि जयंती भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि की जयंती के रूप में मनाई जाती है। यह दिन अधर्म के अंत और धर्म की स्थापना का प्रतीक है। इसे श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके बारे में...
आज हम आपको विस्तार से श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाने वाली कल्कि जयंती के बारे में बताने जा रहे हैं। भगवान विष्णु के कल्कि अवतार को समर्पित इस महत्वपूर्ण जयंती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लेख को अंत तक अवश्य देखें -
“यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्”
यह श्लोक तो आप सभी लोगों ने सुना होगा और इसके अर्थ को भी आप भली भांति जानते होंगे, आज हम जिस जयंती के बारे में बात कर रहे हैं, उसका परिचय हमें इस श्लोक में मिलता है। भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, कि जब-जब धर्म की हानि होती है अधर्म का प्रकोप बढ़ने लगता है तब तब मेरा अवतार इस सृष्टि को पाप मुक्त करने हेतु निश्चित तौर पर होता है। हमारे पुराणों में लिखा गया है कि भगवान विष्णु के 9 अवतार धरती पर अवतरित हो चुके हैं। मान्यताओं के अनुसार, धरती पर पापों का अंत करने के लिए विष्णु जी के दसवें अवतार कल्कि कलयुग में अवतरित होंगे।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कल्कि भगवान विष्णु का पहला ऐसा अवतार हैं, जिनकी जयंती उनके जन्म से पहले मनाई जाती है।
कल्कि जयंती- 30 जुलाई 2025, बुधवार (श्रावण, शुक्ल षष्ठी)
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:59 ए एम से 04:41 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:20 ए एम से 05:24 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | कोई नहीं |
विजय मुहूर्त | 02:18 पी एम से 03:11 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:44 पी एम से 07:06 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:44 पी एम से 07:48 पी एम तक |
अमृत काल | 03:16 पी एम से 05:02 पी एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:43 पी एम से 12:26 ए एम, जुलाई 31 तक |
सर्वार्थ सिद्धि योग | 05:24 ए एम से 09:53 पी एम तक |
सबसे पहले जानते हैं कि पुराणों में किस प्रकार भगवान कल्कि को परिभाषित किया गया है और उनकी विशेषताएं क्या होंगी
ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु के दसवें अवतार धरती पर कलियुग के अंतिम चरण में जन्म लेंगे और कलियुग का अंत करेंगे। वह देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन:स्थापना करके सतयुग को वापस लाएंगे। इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि कल्कि अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा।
कल्कि जयंती भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि की भविष्य में होने वाली आविर्भाव तिथि मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब कलियुग में अधर्म, अन्याय और अराजकता अपनी चरम सीमा पर होगा, तब भगवान विष्णु 'कल्कि' के रूप में प्रकट होंगे। यह दिन शास्त्रों में भगवान के उस अवतार की आराधना के रूप में मनाया जाता है जो अभी हुआ नहीं है, लेकिन भविष्य में निश्चित है।
यह जयंती अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि भक्त भगवान विष्णु की उनके आशीर्वाद के लिए पूजा अर्चना और प्रार्थना करते हैं। साथ ही अपने सभी बुरे कर्मों या पापों के लिए भी ईश्वर से क्षमा मांगते हैं। इसके अतिरिक्त लोग शांतिपूर्ण जीवन की कामना और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस दिन उपवास भी रखते हैं। इसके अलावा विष्णु सहस्रनाम का पाठ और अन्य मंत्रों का 108 बार जाप भी करते हैं। कहा जाता है कि ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है। वहीं इस दिन देवताओं की मूर्तियों को जल के साथ-साथ पंचामृत से भी स्नान कराने का विधान है। कहा जाता है कि कल्कि जयंती के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान दक्षिणा करना बेहद लाभकारी होता है।
"ॐ कल्किने नमः" "ॐ कल्कि अवताराय विद्महे, महा युद्धाय धीमहि, तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्"
कल्कि जयंती एक प्रतीक है - आशा, भविष्य और धर्म की पुनःस्थापना का। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि चाहे युग कोई भी हो, जब अधर्म बढ़ेगा, तो ईश्वर अवतार लेंगे। कल्कि जयंती पर की गई सच्ची श्रद्धा से भगवान विष्णु की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। तो यह थी कल्कि जयंती से संबंधित संपूर्ण जानकारी, आशा करते हैं कि हम सब भगवान विष्णु की कृपा बनी रहे और हम लोग सदैव नैतिकता के मार्ग पर चलते रहें।
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