
2025 में दुर्गा विसर्जन की तिथि, समय, शुभ मुहूर्त और नियम जानें
जब भी मां दुर्गा का चेहरा हम सभी के बीच आता है, तो मन में एक अद्भुत श्रद्धा का अहसास होता है, क्योंकि मां दुर्गा का चेहरा इतना आकर्षक है, जिसे देखने भर से हमारे सारे दुख छुमंतर हो जाते हैं। मां दुर्गा का चेहरा जितना मनमोहक है, उतना ही उनका दिल अपार करुणा और शक्ति से भरा हुआ भी है। मां दुर्गा हिन्दू धर्म की सबसे महत्वपूर्ण देवी हैं जिनकी पूजा करने की विधी से लेकर, उनका विसर्जन करने तक हर चीज का खास ध्यान रखना होता है। तो चलिए इस आर्टिकल में हम जानेंगे मां दुर्गा के विसर्जन की सही विधी के बारे में।
हिन्दू धर्म के धार्मिक अनुष्ठानों को सफल बनाने के लिए नवरात्रि में दुर्गा विसर्जन दशमी तिथि को करना चाहिए। दशमी तिथि को ही विजयादशमी/दशहरा का पर्व मनाया जाता है। दशहरा के दिन ही दुर्गा पूजा के नौ दिनों की प्रक्रिया का अंत होता है। इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। इसलिए इस दिन मां दुर्गा का विसर्जन करना शुभ माना जाता है।
दुर्गा विसर्जन की प्रक्रिया दशहरा के दिन होती है और इस दिन लोग दुर्गा माता की मूर्तियों को समुद्र, नदी या अन्य जलतट पर ले जाते हैं और उन्हें वहां विसर्जित करते हैं। 02 अक्टूबर 2025, दिन बृहस्पतिवार को दुर्गा विसर्जन किया जाएगा।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:14 ए एम से 05:02 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:38 ए एम से 05:50 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | 11:23 ए एम से 12:11 पी एम |
विजय मुहूर्त | 01:46 पी एम से 02:33 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 05:44 पी एम से 06:08 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 05:44 पी एम से 06:56 पी एम |
अमृत काल | 11:01 पी एम से 12:38 ए एम, अक्टूबर 03 |
निशिता मुहूर्त | 11:23 पी एम से 12:11 ए एम, अक्टूबर 03 |
दुर्गा विसर्जन नवरात्रि उत्सव का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। नवरात्रि के नौ दिनों तक भक्तजन माँ दुर्गा और उनके नौ रूपों की विधिवत पूजा करते हैं। इन दिनों घर-घर में घटस्थापना, अखंड ज्योति, दुर्गा सप्तशती पाठ और भक्ति-कीर्तन के माध्यम से माँ को आमंत्रित किया जाता है। जब नवरात्रि का समापन होता है, उस समय दशमी तिथि पर देवी की प्रतिमा का जल में विसर्जन किया जाता है। इस प्रक्रिया को ही दुर्गा विसर्जन कहा जाता है। इसका अर्थ है – देवी का अपने धाम को लौट जाना और भक्तों द्वारा उन्हें ससम्मान विदाई देना। विसर्जन केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि एक भावनात्मक अनुभव है जो भक्त और देवी के बीच आत्मिक संबंध को और गहरा करता है।
दुर्गा विसर्जन करने का प्रमुख कारण यह है कि नवरात्रि के दौरान देवी अस्थायी रूप से अपने भक्तों के घर और पंडालों में प्रतिष्ठित होती हैं। पूजा-अर्चना, भोग और अनुष्ठानों के बाद दशमी के दिन देवी को सम्मानपूर्वक विदा किया जाता है। यह मान्यता है कि विसर्जन करते समय भक्त देवी से अगले वर्ष पुनः आगमन का वचन लेते हैं। साथ ही, यह प्रक्रिया हमें जीवन के सत्य की ओर भी संकेत करती है कि हर आरंभ का एक अंत होता है और हर अंत एक नए आरंभ का द्वार खोलता है। जल में विसर्जन यह भी दर्शाता है कि सृष्टि की हर वस्तु पंचतत्व में विलीन होकर पुनः उसी में लौट जाती है। इस कारण दुर्गा विसर्जन का धार्मिक और दार्शनिक दोनों ही दृष्टियों से गहरा महत्व है।
दुर्गा विसर्जन का महत्व केवल देवी की विदाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी है। शास्त्रों के अनुसार, दशमी तिथि को माँ दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध कर धर्म की स्थापना की थी। इसीलिए इस दिन को विजयादशमी भी कहा जाता है। विसर्जन हमें यह संदेश देता है कि अहंकार, क्रोध, लोभ जैसी नकारात्मक शक्तियों को त्यागकर हमें धर्म, सत्य और सद्गुणों को अपनाना चाहिए। इसके अलावा, विसर्जन का सामाजिक महत्व भी है। यह सामूहिक उत्सव लोगों को एकजुट करता है और भक्ति, भाईचारे और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। माना जाता है कि श्रद्धा और विधि-विधान से किए गए दुर्गा विसर्जन से घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है और देवी का आशीर्वाद सदैव बना रहता है।
दुर्गा विसर्जन केवल एक पारंपरिक क्रिया नहीं बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। विसर्जन से पहले शास्त्रों में वर्णित कुछ विशेष क्रियाएं की जाती हैं:
सिंदूर खेला : विशेषकर बंगाल और पूर्वी भारत में, महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर माँ दुर्गा को विदाई देती हैं। यह परंपरा सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
अंतिम आरती और पुष्पांजलि : विसर्जन से पहले भक्तजन सामूहिक रूप से देवी की आरती करते हैं और फूल अर्पित करते हैं। यह माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर होता है।
जल यात्रा : प्रतिमा को डोलियों या रथ पर रखकर ढोल-नगाड़ों और भक्ति गीतों के साथ विसर्जन स्थल तक ले जाया जाता है।
पंचतत्व में विलय : प्रतिमा का जल में विसर्जन इस विश्वास का प्रतीक है कि देवी पंचतत्व में विलीन होकर पुनः सृष्टि का हिस्सा बनती हैं।
दुर्गा विसर्जन के समय मंत्रोच्चारण का विशेष महत्व माना जाता है। जब भक्त माँ दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति का जल में विसर्जन करते हैं, तो वे देवी से पुनः आगमन की प्रार्थना करते हैं। यह मंत्र विशेष रूप से विसर्जन के अवसर पर बोला जाता है:
“नमस्तेऽस्तु महादेवि महा मायि सुरेश्वरि। ख्यातं यत् त्वं प्रसन्ना च प्रसन्नं सर्वतो भव॥”
विसर्जन करते समय इस मंत्र का जाप करना भी शुभ माना जाता है:
"गच्च गच्च परं स्थाना, स्वस्थानं गच्च देवि च। पुनरागमनायाथ सर्वमंगलमस्तु ते॥"
इससे भक्त देवी से प्रार्थना करते हैं कि वे अगले वर्ष फिर से पधारें और सब पर कृपा बनाए रखें।
इन धार्मिक अनुष्ठानों से भक्तजन न केवल माँ दुर्गा की विदाई करते हैं बल्कि उनके आशीर्वाद से जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का स्वागत भी करते हैं।
हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। इस दौरान माता रानी को पूरे विधि विधान के साथ लकड़ी या फिर चांदी की चौकी पर विराजित किया जाता है। नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा को चौकी पर कलश और अखंड ज्योति के साथ स्थापित करना शुभ होता है। यदि आप ने भी घर में माता रानी की चौकी को स्थापित किया है, तो यह जान लें की आखिर किस दिन चौकी का हटाना है।
श्रद्धा और भक्ति से करें विदाई – माँ दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन करते समय भक्तों को पूरे मन, श्रद्धा और आदर से विदाई देनी चाहिए। सही मुहूर्त का पालन करें – पंचांग और शास्त्रों में बताए गए शुभ मुहूर्त में ही दुर्गा विसर्जन करना शुभ माना जाता है। मंत्रोच्चारण और आरती करें – विसर्जन से पहले दुर्गा मंत्र और आरती का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे वातावरण पवित्र होता है और माँ की कृपा प्राप्त होती है। पर्यावरण का ध्यान रखें – मूर्तियों का विसर्जन स्वच्छ जल में करें और कोशिश करें कि यह प्रक्रिया पर्यावरण को हानि न पहुँचाए। माँ के पुनः आगमन का संकल्प लें – विसर्जन के समय "पुनरागमनाय च" मंत्र बोलकर माँ दुर्गा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वे अगले वर्ष पुनः पधारें। शुभ वस्त्र और साफ-सफाई का ध्यान रखें – विसर्जन में शामिल होने वाले भक्तों को स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए और पूरे स्थान की पवित्रता बनाए रखनी चाहिए।
पितरों की विदाई के साथ ही आदिशक्ति नवदुर्गा अपनी शक्तियों के रूप में पृथ्वी पर अवतरित होती है। कलश स्थापना के साथ ही नवदुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि के आखिरी दिन कलश का विसर्जन किया जाता है। ऐसे में भक्तों को यह भी जानना जरूरी हैं, कि नौ दिन समाप्त होने के बाद कलश का कैसे करें विसर्जन।
कलश की करें पूजा :-
मंत्रों का करें उच्चारण :-
घर में छिड़कें जल :-
इस बात का राखें ध्यान :-
सिक्का तिजोरी में रखें :-
अब करें कलश विसर्जन :-
उम्मीद करते हैं, अब आप भी विधि विधान के साथ कलश का विसर्जन करेंगे। ऐसी ही ओर धार्मिक जानकारियों के लिए श्री मंदिर के साथ जुड़े रहें।
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