इस दिन भगवान स्कंद की पूजा से मिलती है सुख, समृद्धि और संकटों से मुक्ति।
स्कंद षष्ठी के दिन मां पार्वती और शिव जी के पुत्र कार्तिकेय जी की आराधना की जाती है। कुमार कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है, इसलिए इसे स्कंद षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि परिवार में सुख-शांति और संतान प्राप्ति के लिए स्कंद षष्ठी का व्रत विशेष फलदायक होता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:10 ए एम से 04:53 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:31 ए एम से 05:36 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:48 ए एम से 12:41 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:27 पी एम से 03:20 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:51 पी एम से 07:13 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:52 पी एम से 07:57 पी एम तक |
अमृत काल | 01:04 पी एम से 05:35 ए एम, (03 मई) तक |
निशिता मुहूर्त | 11:52 पी एम से 12:35 ए एम, (03 मई) तक |
रवि योग | 01:04 पी एम से 05:35 ए एम, (03 मई) तक |
इस व्रत को दक्षिण भारत में प्रमुख त्यौहारों में से एक माना जाता है। यहां भगवान कार्तिकेय को कुमार, मुरुगन, सुब्रह्मण्यम जैसे कई नामों से जाना जाता है। उत्तर भारत में कार्तिकेय को गणेश का बड़ा भाई माना जाता है लेकिन दक्षिण भारत में कार्तिकेय गणेश जी के छोटे भाई माने जाते हैं। इसलिए हर महीने की षष्ठी को स्कंद षष्ठी मनाई जाती है। षष्ठी तिथि कार्तिकेय जी की तिथि होने के कारण इसे कौमारिकी भी कहा जाता है।
आपको बात दें कि स्कंद षष्ठी के दिन दिन मां पार्वती और शिव के पुत्र कार्तिकेय की आराधना की जाती है। कुमार कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है। इसलिए इसे स्कंद षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि परिवार में सुख-शांति और संतान प्राप्ति के लिए स्कंद षष्ठी का व्रत बेहद खास महत्व रखता है।
इस व्रत को दक्षिण भारत में प्रमुख त्यौहारों में से एक माना जाता है। यहां पर भगवान कार्तिकेय को कुमार, मुरुगन, सुब्रह्मण्यम जैसे कई नामों से जाना जाता है। उत्तर भारत में कार्तिकेय को गणेश का बड़ा भाई माना जाता है लेकिन दक्षिण भारत में कार्तिकेय गणेश जी के छोटे भाई माने जाते हैं। इसलिए हर महीने की षष्ठी को स्कंद षष्ठी मनाई जाती है। षष्ठी तिथि कार्तिकेय जी की होने के कारण इसे कौमारिकी भी कहा जाता है।
माना जाता है कि, इस दिन संसार में हो रहे कुकर्मों को समाप्त करने के लिए कार्तिकेय का जन्म हुआ था। बताया जाता है कि स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को आंखों की ज्योति प्राप्त हुई थी। इस दिन यह भी बताया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत के मृत शिशु के प्राण लौट आए थे। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इस दिन अगर विधि-विधान से भगवान कार्तिकेय का व्रत रखकर उनकी आराधना की जाए तो व्यक्ति को तमाम प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा संतान को भी उनकी तमाम समस्याओं से छुटकारा मिलता है साथ ही धन-वैभव की भी प्राप्ति होती है।
स्कंद षष्ठी के दिन दान आदि कार्य करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा इस दिन स्कंद देव की स्थापना करके अखंड दीपक जलाना चाहिए। इसके अलावा स्कंद षष्ठी के दिन पूजन में तामसिक भोजन मांस, शराब, प्याज, लहसुन नहीं शामिल करना चाहिए । साथ ही इस दिन व्रत का पालन करने वाले लोग ब्रह्मचर्य का पालन करें । वहीं अगर कोई व्यक्ति व्यावसायिक कष्टों से जूझ रहा है तो उसे इस दिन कुमार कार्तिकेय को दही में सिंदूर मिलाकर अर्पित करें।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, स्कंद षष्ठी का दिन भगवान कार्तिकेय को अधिक प्रिय है, इसलिए इस शुभ दिन पर उनकी आराधना की जाती है। मान्यता है कि स्कंद षष्ठी के दिन विधि विधान से पूजा करने से मनुष्य को ग्रह बाधा से मुक्ति मिलती है साथ ही जीवन की तमाम समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है। इसके अलावा जो लोग भगवान कार्तिकेय का आशीष प्राप्त करने के लिए पूरे समर्पण और आस्था के साथ इस व्रत का पालन करते हैं। उन्हें जीवन में सुख और वैभव की प्राप्ति होती है। ये भी कहा जाता है कि स्कंद षष्ठी के व्रत का पालन करने से पुत्र प्राप्ति की इच्छा भी पूर्ण होती है।
तो ये थी स्कन्द षष्ठी की पूजा विधि से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। ऐसे ही अन्य व्रत त्योहार के विषय में जानने के लिए जुड़े रहें श्री मंदिर के साथ।
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