ऋचि कृत पितृ स्तोत्रम्
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ऋचि कृत पितृ स्तोत्रम्

क्या आप जानते हैं ऋचि कृत पितृ स्तोत्र का पाठ क्यों विशेष माना जाता है? श्राद्ध पक्ष में इसका पाठ करने से पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

रूचि कृत पितृ स्तोत्र के बारे में

ऋषि कृत पितृ स्तोत्र एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसका पाठ पितरों की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इसे पढ़ने से पितृ दोष का निवारण होता है और जीवन में सुख-समृद्धि के मार्ग खुलते हैं। इस लेख में जानिए ऋषि कृत पितृ स्तोत्र का महत्व, इसके पाठ से मिलने वाले लाभ और इससे जुड़ी खास बातें।

रूचि कृत पितृ स्तोत्र क्या है?

हमारे जीवन में पितरों का स्थान अत्यंत पवित्र और आदरणीय है। शास्त्रों में यह माना गया है कि यदि हम पितरों को प्रसन्न करते हैं, तो हमारे जीवन में समृद्धि, सुख और संतान सुख सदैव बना रहता है। इसी कारण पितरों की आराधना श्राद्ध पक्ष और अन्य पावन अवसरों पर विशेष रूप से की जाती है। पौराणिक ग्रंथों में वर्णित ‘रूचि कृत पितृ स्तोत्र’ एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसे महामुनि ऋषि ने रचा था। इसमें पितरों की महिमा का वर्णन है और उन्हें प्रसन्न करने का दिव्य उपाय बताया गया है। इस स्तोत्र का पाठ करने से न केवल पितरों की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि जीवन के सभी दुख, बाधाएँ और अभाव दूर होता है और जातक के जीवन में सुख-शांति और ऐश्वर्य का वास होता है।

रूचि कृत पितृ स्तोत्र

अर्चितनाममूर्त्तानां पितृणां दीप्ततेजसां |

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम(तेजसां)||

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा |

सप्तर्षीणां तथान्येषां ताँ नमस्यामि कामदान ||

मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा |

ताँ नमस्याम्यहं सर्वान पितृनप्सूदधावपि ||

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा |

द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः ||

देवर्षीणां जनितॄंश्च सर्वलोकनमस्कृतान |

अक्षय्यस्य सदा द्दातृन नमस्येहं कृताञ्जलिः ||

प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरुणाय च |

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः ||

नमोगणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु |

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुसे ||

सोमाधारान पितृगणान योगमूर्त्तिधरांस्तथा |

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जागतामहम ||

अग्निरूपांस्तथैवान्यान नमस्यामि पितॄनहम |

अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः ||

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः |

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरुपिणः ||

तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः |

नमो नमो नमस्ते में प्रसीदन्तु स्वधाभुजः ||

रूचि कृत पितृ स्तोत्र का अर्थ

ऋषि ने इस स्तोत्र में पितरों की दिव्य महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि –

जो पितर अमूर्त स्वरूप में भी सबके द्वारा पूजित और अत्यंत तेजस्वी हैं, जो दिव्य दृष्टि से युक्त ध्यानस्थ रहते हैं, उन्हें मैं सदा प्रणाम करता हूँ। जो इन्द्र, दक्ष, मरीचि और सप्तऋषियों सहित अन्य देवताओं के भी नायक हैं और कामना पूर्ण करने वाले हैं, उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ।

मनु, मुनि, सूर्य और चंद्रमा तक जिनके अधीन हैं, वे पितर समुद्र और नदियों में भी विद्यमान हैं – उन्हें मैं नमन करता हूँ। ग्रह-नक्षत्र, वायु, अग्नि, आकाश, आकाशगंगा और पृथ्वी के जो स्वामी हैं, उन पितरों को मैं कृतज्ञ भाव से प्रणाम करता हूँ।

जो देवर्षियों के जन्मदाता हैं, लोक-लोकांतर में पूजित हैं और अक्षय फल प्रदान करते हैं, उन पितरों को मैं नमन करता हूँ। प्रजापति कश्यप, सोम, वरुण और योगेश्वर रूप में स्थित पितरों को भी प्रणाम करता हूँ। सात लोकों में स्थित सात पितृगणों सहित स्वयंभू ब्रह्मा को मैं श्रद्धा से प्रणाम करता हूँ।

चंद्रमा पर आधारित योगमूर्ति धारण करने वाले पितरों को, तथा जगत् के पिता सोम को मैं प्रणाम करता हूँ। अग्निरूप पितरों को भी मैं नमन करता हूँ, क्योंकि यह सारा जगत अग्नि और सोम से व्याप्त है।

सूर्य, चंद्र और अग्नि के रूप में प्रतिष्ठित पितर जगत और ब्रह्म के स्वरूप माने जाते हैं। उन सभी पितरों को बार-बार प्रणाम है। वे स्वधा से पूजित पितर हम पर प्रसन्न हों और अपनी कृपा बनाए रखें।

रूचि कृत पितृ स्तोत्र के लाभ

मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है कि जब महर्षि रूचि ने इस स्तुति का पाठ किया, तो पितर तुरंत उनके समक्ष प्रकट हुए और प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया। उनके आशीर्वाद से ही उन्हें उत्तम पत्नी और दिव्य संतान प्राप्त हुई। यही कारण है कि इस स्तोत्र का पाठ करने वाले जातक को आज भी विशेष कृपा और अद्भुत फल प्राप्त होते हैं।

1. पितरों की प्रसन्नता और आशीर्वाद

जो व्यक्ति पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उस पर पितर प्रसन्न होकर अपने आशीर्वाद की वर्षा करते हैं। उनका आशीर्वाद परिवार में सुख-समृद्धि, धन, ऐश्वर्य और संतानों की प्रगति का कारण बनता है। जिस घर में पितर प्रसन्न रहते हैं, वहाँ सदैव शांति और सौहार्द बना रहता है और जीवन की कठिनाइयाँ स्वतः ही दूर होती जाती हैं।

2. मनोकामना की पूर्ति

पितरों ने स्वयं कहा है कि यह स्तोत्र मनुष्य की इच्छाओं को पूर्ण करता है। चाहे किसी को संतान प्राप्ति की कामना हो, स्वास्थ्य और दीर्घायु चाहिए हो या फिर धन, मान और प्रतिष्ठा की अभिलाषा हो। यह स्तोत्र हर प्रकार से सहायक सिद्ध होता है। इसका नियमित और श्रद्धापूर्ण पाठ करने से साधक की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं

3. श्राद्ध का महत्व बढ़ता है

शास्त्रों में उल्लेख है कि यदि श्राद्ध के समय ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए इस स्तोत्र का पाठ किया जाए, तो पितर स्वयं उस स्थान पर उपस्थित होकर श्राद्ध को स्वीकार करते हैं। इस प्रकार किया गया श्राद्ध अत्यंत सफल माना जाता है और परिवार को पितरों का सीधा आशीर्वाद मिलता है।

4. दीर्घकालीन तृप्ति

इस स्तोत्र का पाठ केवल उस समय के लिए ही नहीं, बल्कि वर्षों तक पितरों को तृप्त रखने वाला है। ऋतु के अनुसार इसका प्रभाव भी अलग-अलग समय तक बना रहता है। यदि इसे हेमंत ऋतु में पढ़ा जाए तो पितर बारह वर्षों तक तृप्त रहते हैं, शिशिर ऋतु में चौबीस वर्षों तक, वसंत और ग्रीष्म ऋतु में सोलह वर्षों तक, शरद ऋतु में पंद्रह वर्षों तक और वर्षा ऋतु में इसका पाठ करने से पितरों को अक्षय तृप्ति प्राप्त होती है।

5. घर में स्थायी सुख-शांति

जिस घर में इस स्तोत्र को लिखा जाता है या फिर श्राद्ध के अवसर पर इसका पाठ किया जाता है, वहाँ पितरों की विशेष कृपा रहती है। उनके आशीर्वाद से घर में स्थायी सुख-शांति, आपसी प्रेम और सौभाग्य का वास होता है। परिवार के सदस्यों में एकता बनी रहती है और घर का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहता है।

6. निरोगी जीवन और संतान-सुख

यह स्तोत्र स्वास्थ्य लाभ और संतान-सुख प्रदान करने वाला भी है। इसका पाठ करने से रोग और शारीरिक कष्ट दूर होते हैं तथा साधक को उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, जिन दंपतियों को संतान की इच्छा हो, उन्हें भी इस स्तोत्र का विशेष लाभ मिलता है। पितरों की कृपा से उन्हें योग्य और संस्कारी संतान प्राप्त होती है, जो आगे चलकर वंश का गौरव बढ़ाती है।

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Published by Sri Mandir·August 27, 2025

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