पितृ पक्ष में श्राद्ध के दिन
image
downloadDownload
shareShare
ShareWhatsApp

पितृ पक्ष में श्राद्ध के दिन

पितृ पक्ष में श्राद्ध कब और किन दिनों में करना चाहिए? जानें श्राद्ध तिथियां, नियम और महत्व, जिससे पूर्वज तृप्त होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।

पितृ पक्ष में श्राद्ध के दिन के बारे में

पितृ पक्ष में श्राद्ध के दिन हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इस अवधि में पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति और शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। माना जाता है कि इन दिनों में श्रद्धापूर्वक किया गया श्राद्ध पितरों को संतुष्ट करता है और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इस लेख में जानिए पितृ पक्ष में श्राद्ध के दिनों का महत्व, उनसे जुड़ी धार्मिक मान्यताएं और विशेष अनुष्ठान।

पितृ पक्ष: पूर्वजों को याद करने और श्रद्धांजलि देने का पावन काल

पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष और महालय पक्ष के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र अवधि है। यह 16 दिनों की एक वार्षिक अवधि होती है, जो भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलती है। इस दौरान, लोग अपने दिवंगत पूर्वजों और परिवार के सदस्यों को श्रद्धांजलि देने के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं, जिसमें उनका तर्पण भी शामिल होता है।

यह मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से संतुष्ट होते हैं। श्राद्ध का अर्थ है ‘श्रद्धा से दिया गया’, और इसका उद्देश्य पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करना है।

पितृ पक्ष की अवधि और श्राद्ध के दिन

पितृ पक्ष में प्रत्येक तिथि का अपना विशेष महत्व होता है। श्राद्ध कर्म पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसार ही किया जाता है।

  • प्रतिपदा से पूर्णिमा तक (आद्य श्राद्ध): पितृ पक्ष की शुरुआत पूर्णिमा श्राद्ध से होती है। यह उन लोगों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु किसी भी महीने की पूर्णिमा तिथि को हुई हो। प्रतिपदा से लेकर अन्य तिथियों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि के अनुसार किया जाता है।
  • द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी: इन तिथियों पर उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु इन तिथियों पर हुई थी।
  • षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी: इन दिनों भी श्राद्ध कर्म उसी तिथि पर किया जाता है जिस तिथि पर पूर्वज का निधन हुआ हो।
  • दशमी, एकादशी, द्वादशी: इन तिथियों पर भी पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है।
  • त्रयोदशी, चतुर्दशी: इन तिथियों पर भी श्राद्ध कर्म होता है। चतुर्दशी श्राद्ध का विशेष महत्व है, खासकर उन लोगों के लिए जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो।
  • अमावस्या (सर्वपितृ अमावस्या): यह पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। इसे महालय अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो। इस दिन उन सभी लोगों का सामूहिक श्राद्ध किया जाता है, जिनका श्राद्ध किसी कारणवश अन्य तिथियों पर नहीं हो पाया।

विशेष श्राद्ध दिवस और उनका महत्व

पितृ पक्ष में कुछ विशेष श्राद्ध दिवस होते हैं, जिनका अपना अलग महत्व है:

  • महालय अमावस्या – सभी पितरों का सामूहिक श्राद्ध: यह पितृ पक्ष का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन है। इसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है। इसके अलावा, यदि किसी कारणवश किसी पूर्वज का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर नहीं हो पाया हो, तो उनका श्राद्ध भी इस दिन किया जा सकता है। यह दिन सभी पितरों की सामूहिक शांति और मुक्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन पितरों को तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मणों को भोजन कराने से उनकी आत्मा को परम शांति मिलती है।

  • अष्टमी श्राद्ध – मातृ श्राद्ध का महत्व: इस दिन मुख्य रूप से उन माताओं या महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु इस तिथि पर हुई हो। यह महिलाओं के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक विशेष दिन है। यह मातृ शक्ति को समर्पित है।

  • नवमी श्राद्ध – विशेषकर महिलाओं के लिए: यह तिथि भी माताओं, पत्नियों और अन्य महिला पूर्वजों के श्राद्ध के लिए समर्पित है। इसे मातृ नवमी भी कहते हैं। इस दिन परिवार की सभी दिवंगत माताओं और विवाहित महिलाओं का श्राद्ध करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

  • एकादशी श्राद्ध – समय से पहले निधन वालों के लिए: यह तिथि उन लोगों के श्राद्ध के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है जिनका निधन संन्यास के मार्ग पर चलते हुए हुआ हो। यह उन लोगों के लिए भी किया जाता है जिनका श्राद्ध किसी कारणवश पहले नहीं हो पाया हो।

  • चतुर्दशी श्राद्ध – अकाल मृत्यु वाले पितरों के लिए: यह श्राद्ध उन लोगों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु किसी दुर्घटना, महामारी, हिंसा या अन्य किसी अकाल कारण से हुई हो। इस दिन उनका श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को विशेष शांति मिलती है।

किस तिथि पर किसका श्राद्ध किया जाता है?

श्राद्ध कर्म का सबसे महत्वपूर्ण नियम यह है कि यह पितरों की मृत्यु तिथि के अनुसार ही किया जाता है।

पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध

  • यदि आपके पिता की मृत्यु किसी महीने की पंचमी तिथि को हुई थी, तो उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की पंचमी तिथि को ही किया जाएगा।
  • इसी तरह, माता, दादा, दादी, नाना, नानी, भाई, बहन या किसी भी अन्य पूर्वज का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि के अनुसार किया जाता है।

तिथि न ज्ञात होने पर अमावस्या श्राद्ध

  • यदि किसी कारणवश आपके पूर्वज की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, तो उनका श्राद्ध महालय अमावस्या (सर्वपितृ अमावस्या) को किया जा सकता है। यह दिन उन सभी लोगों के लिए है जिनकी मृत्यु तिथि अज्ञात है।

ब्राह्मण परंपरा और शास्त्रों का उल्लेख

  • श्राद्ध की परंपरा वेदों और धर्म शास्त्रों में वर्णित है। गरुड़ पुराण, धर्म सिंधु और श्राद्धसार जैसे ग्रंथों में श्राद्ध के नियमों, विधियों और महत्व का विस्तार से उल्लेख मिलता है।
  • श्राद्ध कर्म में ब्राह्मणों को भोजन कराना एक महत्वपूर्ण अंग है। यह माना जाता है कि ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितरों को भोजन प्राप्त होता है। ब्राह्मणों को दिया गया दान और सम्मान पितरों को प्रसन्न करता है।
  • शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध कर्म में पितरों को जल (तर्पण), भोजन (पिंडदान) और दान (ब्राह्मणों को भोजन) दिया जाता है। यह कर्म सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने पर विशेष रूप से किया जाता है।

श्राद्ध न करने के परिणाम

धर्म शास्त्रों में श्राद्ध न करने के गंभीर परिणाम बताए गए हैं।

पितृ दोष

यह माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता है, तो उसे पितृ दोष लगता है। पितृ दोष के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे:

  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ: परिवार में अक्सर कोई न कोई बीमार रहता है।
  • धन हानि: आर्थिक स्थिति कमजोर होती है और धन का संचय नहीं हो पाता।
  • संतान सुख में बाधा: संतान प्राप्ति में देरी या संतान से संबंधित परेशानियाँ।
  • पारिवारिक कलह: परिवार के सदस्यों के बीच आपसी मतभेद और तनाव।
  • करियर में रुकावटें: नौकरी या व्यवसाय में लगातार असफलताएँ।

असंतोष

  • शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध न करने से पितरों की आत्माएँ असंतुष्ट और अतृप्त रह जाती हैं, जिससे वे अपने वंशजों को आशीर्वाद नहीं दे पातीं। एक असंतुष्ट आत्मा अपने परिवार को दुःख और कष्ट दे सकती है।

निष्कर्ष

पितृ पक्ष हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और प्रेम व्यक्त करने का एक सुनहरा अवसर है। इस दौरान विधि-विधान से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि उनके आशीर्वाद से वंशजों का जीवन भी सुख-समृद्धि से भर जाता है। यह पर्व हमें अपने परिवार की जड़ों और परंपराओं से जोड़ता है, और यह याद दिलाता है कि हम अपने पूर्वजों के ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकते।

divider
Published by Sri Mandir·August 27, 2025

Did you like this article?

srimandir-logo

श्री मंदिर ने श्रध्दालुओ, पंडितों, और मंदिरों को जोड़कर भारत में धार्मिक सेवाओं को लोगों तक पहुँचाया है। 50 से अधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साझेदारी करके, हम विशेषज्ञ पंडितों द्वारा की गई विशेष पूजा और चढ़ावा सेवाएँ प्रदान करते हैं और पूर्ण की गई पूजा विधि का वीडियो शेयर करते हैं।

हमारा पता

फर्स्टप्रिंसिपल ऐप्सफॉरभारत प्रा. लि. 435, 1st फ्लोर 17वीं क्रॉस, 19वीं मेन रोड, एक्सिस बैंक के ऊपर, सेक्टर 4, एचएसआर लेआउट, बेंगलुरु, कर्नाटका 560102
YoutubeInstagramLinkedinWhatsappTwitterFacebook