ब्रह्मचारिणी चालीसा
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ब्रह्मचारिणी चालीसा

तप की प्रतीक और दिव्य तेज से युक्त मां ब्रह्मचारिणी की स्तुति करें श्रद्धा से ब्रह्मचारिणी चालीसा द्वारा। इसके पाठ से बढ़ता है आत्मविश्वास, धैर्य और साधना में सफलता।

ब्रह्मचारिणी चालीसा के बारे में

ब्रह्मचारिणी चालीसा देवी दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। इसके पाठ से तप, संयम और आत्मबल की प्राप्ति होती है। नवरात्रि में इसका पाठ विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। इस लेख में जानिए ब्रह्मचारिणी चालीसा का महत्व, पाठ विधि और इसके पाठ से मिलने वाले लाभ।

ब्रह्मचारिणी चालीसा क्या है?

देवी ब्रह्मचारिणी, नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप के रूप में पूजनीय हैं, और उनकी आराधना नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। 'ब्रह्मचारिणी' का अर्थ है। वह देवी जो तप, संयम और साधना का पालन करती हैं। यह स्वरूप मां पार्वती का है, जिन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। देवी ब्रह्मचारिणी चालीसा उनके इसी तपस्विनी स्वरूप, आत्मसंयम, ज्ञान और दिव्यता की स्तुति करती है। इसका नियमित पाठ न केवल मानसिक अशांति और भ्रम को दूर करता है, बल्कि जीवन में धैर्य, आत्मनियंत्रण और आध्यात्मिक बल भी प्रदान करता है। उनकी कृपा से भक्त को साहस और आत्मबल मिलता है, जिससे वह जीवन की मुश्किलों का सामना शांत मन और भरोसे के साथ कर सकता है। इसी कारण, देवी ब्रह्मचारिणी चालीसा का पाठ आंतरिक शक्ति, मानसिक स्थिरता और स्पष्ट सोच पाने का एक बहुत प्रभावशाली तरीका माना जाता है।

ब्रह्मचारिणी चालीसा का पाठ क्यों करें?

देवी ब्रह्मचारिणी तप, संयम, त्याग और भक्ति की प्रतीक हैं। उनका स्मरण मन को शांति, जीवन को दिशा और कठिन परिस्थितियों में साहस देता है। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा से साधक को धैर्य, आत्मसंयम और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है। जीवन में जब कठिन समय आता है, तब उनका स्मरण व्यक्ति को साहस और आत्मविश्वास से भर देता है। ब्रह्मचारिणी चालीसा का नियमित पाठ मन में छिपे भय, भ्रम और तनाव को दूर करता है, और जीवन को शांति तथा संतुलन की ओर ले जाता है।

ब्रह्मचारिणी चालीसा

दोहा

कोटि कोटि नमन मेरे माता पिता को, जिसने दिया शरीर

बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने, दिया हरि भजन में सीर ॥

चौपाई

जय जय जग मात ब्रह्माणी ।

भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी ॥ १ ॥

वीणा पुस्तक कर में सोहे ।

शारदा सब जग सोहे ॥ २ ॥

हँस वाहिनी जय जग माता ।

भक्त जनन की हो सुख दाता ॥ ३ ॥

ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई ।

मात लोक की करो सहाई ॥ ४ ॥

क्षीर सिन्धु में प्रकटी जब ही ।

देवों ने जय बोली तब ही ॥ ५ ॥

चतुर्दश रतनों में मानी ।

अद॒भुत माया वेद बखानी ॥ ६ ॥

चार वेद षट शास्त्र कि गाथा ।

शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता ॥ ७ ॥

आदि शक्ति अवतार भवानी ।

भक्त जनों की मां कल्याणी ॥ ८ ॥

जब−जब पाप बढे अति भारे ।

माता शस्त्र कर में धारे ॥ ९ ॥

पाप विनाशिनी तू जगदम्बा ।

धर्म हेतु ना करी विलम्बा ॥ १० ॥

नमो नमो ब्रह्मी सुखकारी ।

ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी ॥ ११ ॥

तेरी लीला अजब निराली ।

सहाय करो माँ पल्लू वाली ॥ १२ ॥

दुःख चिन्ता सब बाधा हरणी ।

अमंगल में मंगल करणी ॥ १३ ॥

अन्न पूरणा हो अन्न की दाता ।

सब जग पालन करती माता ॥ १४ ॥

सर्व व्यापिनी असंख्या रूपा ।

तो कृपा से टरता भव कूपा ॥ १५ ॥

चंद्र बिंब आनन सुखकारी ।

अक्ष माल युत हंस सवारी ॥ १६ ॥

पवन पुत्र की करी सहाई ।

लंक जार अनल सित लाई ॥ १७ ॥

कोप किया दश कन्ध पे भारी ।

कुटम्ब संहारा सेना भारी ॥ १८ ॥

तु ही मात विधी हरि हर देवा ।

सुर नर मुनी सब करते सेवा ॥ १९ ॥

देव दानव का हुआ सम्वादा ।

मारे पापी मेटी बाधा ॥ २० ॥

श्री नारायण अंग समाई ।

मोहनी रूप धरा तू माई ॥ २१ ॥

देव दैत्यों की पंक्ती बनाई ।

देवों को मां सुधा पिलाई ॥ २२ ॥

चतुराई कर के महा माई ।

असुरों को तू दिया मिटाई ॥ २३ ॥

नौ खण्ङ मांही नेजा फरके ।

भागे दुष्ट अधम जन डर के ॥ २४ ॥

तेरह सौ पेंसठ की साला ।

आस्विन मास पख उजियाला ॥ २५ ॥

रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला ।

हंस आरूढ कर लेकर भाला ॥ २६ ॥

नगर कोट से किया पयाना ।

पल्लू कोट भया अस्थाना ॥ २७ ॥

चौसठ योगिनी बावन बीरा ।

संग में ले आई रणधीरा ॥ २८ ॥

बैठ भवन में न्याय चुकाणी ।

द्वार पाल सादुल अगवाणी ॥ २९ ॥

सांझ सवेरे बजे नगारा ।

उठता भक्तों का जयकारा ॥ ३० ॥

मढ़ के बीच खड़ी मां ब्रह्माणी ।

सुन्दर छवि होंठो की लाली ॥ ३१ ॥

पास में बैठी मां वीणा वाली ।

उतरी मढ़ बैठी महा काली ॥ ३२ ॥

लाल ध्वजा तेरे मंदिर फरके ।

मन हर्षाता दर्शन करके ॥ ३३ ॥

चैत आसोज में भरता मेला ।

दूर दूर से आते चेला ॥ ३४ ॥

कोई संग में, कोई अकेला ।

जयकारो का देता हेला ॥ ३५ ॥

कंचन कलश शोभा दे भारी ।

दिव्य पताका चमके न्यारी ॥ ३६ ॥

सीस झुका जन श्रद्धा देते ।

आशीष से झोली भर लेते ॥ ३७ ॥

तीन लोकों की करता भरता ।

नाम लिए सब कारज सरता ॥ ३८ ॥

मुझ बालक पे कृपा की ज्यो ।

भुल चूक सब माफी दीज्यो ॥ ३९ ॥

मन्द मति यह दास तुम्हारा ।

दो मां अपनी भक्ती अपारा ॥ ४० ॥

जब लगि जिऊ दया फल पाऊं ।

तुम्हरो जस मैं सदा ही गाऊं ॥ ४१ ॥

दोहा

राग द्वेष में लिप्त मन, मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान ।

भव से पार करो मातेश्वरी, अपना अनुगत जान ॥

पाठ की विधि और नियम

देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। उनका स्वरूप ज्योर्तिमय और तपस्विनी है, और वे मां दुर्गा की दूसरी शक्ति के रूप में पूजी जाती हैं। उन्हें तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा जैसे नामों से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा से सभी कार्यों में सफलता मिलती है, जीवन की रुकावटें दूर होती हैं और साधक को विजय एवं आत्मबल की प्राप्ति होती है। चलिए जानते हैं कि देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा किस विधि से की जाती है, जिससे उनकी कृपा सरलता से प्राप्त हो सके।

  • प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
  • देवी ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • सबसे पहले हाथ में फूल लेकर देवी ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें और अपने मन में पूजा का संकल्प लेकर शुद्ध भाव से पूजा प्रारंभ करें।
  • देवी को पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और शक्कर) से स्नान कराएं। फिर स्वच्छ जल से शुद्ध करें।
  • देवी को अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, तथा सुगंधित और सफेद फूल अर्पित करें। कमल का फूल विशेष रूप से प्रिय माना जाता है, उसे भी चढ़ाएं।
  • इन मंत्रों से देवी की स्तुति करें: - "या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥" ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः, ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः
  • देवी को उनका प्रिय प्रसाद अर्पित करें - विशेष रूप से शक्कर का भोग, जो मां ब्रह्मचारिणी को अत्यंत प्रिय माना जाता है।
  • दीपक और धूप जलाएं, और श्रद्धापूर्वक ब्रह्मचारिणी चालीसा या मंत्र का पाठ करें।
  • देवी को पान और सुपारी भेंट करें। फिर तीन बार अपनी जगह खड़े होकर प्रदक्षिणा करें।
  • पूजा के अंत में देवी से धैर्य, संयम, विजय और रुकावटों से मुक्ति की प्रार्थना करें।

ब्रह्मचारिणी चालीसा के लाभ

ज्योतिष अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह की नियंत्रक मानी जाती हैं। इसलिए जिनकी कुंडली में मंगल दोष हो, उनके लिए ब्रह्मचारिणी चालीसा का नियमित पाठ न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि मंगल दोष निवारण में भी अत्यंत लाभकारी होता है।

  • मंगल ग्रह के दोषों का शमन होता है ।
  • क्रोध, मानसिक अस्थिरता और आंतरिक तनाव में कमी आती है ।
  • कठिन परिस्थितियों से निपटने की आत्मिक शक्ति बढ़ती है ।
  • जीवन में धैर्य, संयम और साहस की भावना मजबूत होती है । व्यक्तित्व में संतुलन और स्थिरता आती है
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Published by Sri Mandir·September 19, 2025

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