वरलक्ष्मी व्रत माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ पर्व है। जानिए 2025 में यह व्रत कब रखा जाएगा, कैसे करें पूजा, क्या है व्रत की कथा और इसका आध्यात्मिक लाभ।
वरलक्ष्मी व्रत एक शुभ हिन्दू पर्व है, जो सौभाग्य, समृद्धि और पति की दीर्घायु के लिए महिलाएं करती हैं। यह व्रत शुक्रवार को वरलक्ष्मी देवी की पूजा के साथ रखा जाता है, विशेषकर दक्षिण भारत में प्रमुखता से मनाया जाता है।
भक्तों नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है।
हर साल श्रावण मास के अंतिम शुक्रवार को मां वरलक्ष्मी का व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि ये व्रत जातक को सौभाग्य व समृद्धि प्रदान करता है। वरलक्ष्मी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन से दरिद्रता समाप्त हो जाती है, और उसकी आने वाली कई पीढ़ियां भी सुखमय जीवन बिताती हैं।
वरलक्ष्मी व्रतम् शुक्रवार, 08 अगस्त, 2025 को है
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:21 ए एम से 05:04 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:43 ए एम से 05:46 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 12:00 पी एम से 12:53 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:40 पी एम से 03:33 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 07:07 पी एम से 07:28 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 07:07 पी एम से 08:11 पी एम तक |
अमृत काल | 07:57 ए एम से 09:35 ए एम तक |
निशिता मुहूर्त | 12:05 ए एम, अगस्त 09 से 12:48 ए एम, अगस्त 09 तक |
मुहूर्त | समय |
रवि योग | 05:46 ए एम से 02:28 पी एम तक |
सर्वार्थ सिद्धि योग | 02:28 पी एम से 05:47 ए एम, अगस्त 09 तक |
भक्तों! हमारे शास्त्रों में मां वरलक्ष्मी के रूप की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि मां वरलक्ष्मी निर्मल जल की तरह दूधिया रंग वाली हैं, और सोलह शृंगार व आभूषणों से सुसज्जित हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार जो जातक श्रद्धा पूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें माता लक्ष्मी के आठों स्वरूप, यानि अष्टलक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी को धन, समृद्धि, प्रेम और सौंदर्य की देवी माना गया है। इन्हीं का एक मंगलकारी रूप हैं माता वरलक्ष्मी, जिनकी पूजा विशेष रूप से श्रावण मास के शुक्रवार को की जाती है। यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने परिवार की खुशहाली, पति की दीर्घायु, संतान की भलाई और घर में सुख-समृद्धि हेतु श्रद्धापूर्वक रखा जाता है।
वरलक्ष्मी शब्द दो भागों से बना है—‘वर’ यानी वरदान और ‘लक्ष्मी’ यानी धन और ऐश्वर्य की देवी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, वरलक्ष्मी माता का प्राकट्य क्षीर सागर से हुआ था। वे सोलह श्रृंगार से सजी होती हैं और अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देने वाली देवी मानी जाती हैं। इसलिए यह व्रत रखने से घर में शुभता, उन्नति और सुख-शांति का वास होता है।
लक्ष्मी या महालक्ष्मी माता को हम धन, प्रेम और सौंदर्य की देवी के रूप में जानते हैं। आज हम भी महालक्ष्मी के इसी कल्याणकारी अवतार 'माता वरलक्ष्मी' के महत्व के बारे में जानेंगे, जो अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने के साथ-साथ, उनके कष्टों का निवारण भी करती हैं।
देवी लक्ष्मी समृद्धि, धन, भाग्य, प्रकाश, ज्ञान, उदारता, साहस और उर्वरता की अधिष्ठात्री देवी हैं। विशेष रूप से विवाहित महिलाएं, देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह व्रत करती हैं। वर लक्ष्मी का व्रत रखकर महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए, देवी से प्रार्थना करती हैं और संतान प्राप्ति के लिए भी उनका आशीर्वाद मांगती हैं।
ऐसी मान्यता है, कि देवी लक्ष्मी का वर लक्ष्मी अवतार क्षीर सागर से हुआ है। माता सदैव 16 श्रृंगार करके सजी रहती हैं और उनका यह रूप एवं नाम, भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है। इसलिए उनका नाम वर और लक्ष्मी के मेल से वरलक्ष्मी पड़ा था। ऐसा कहा जाता है, कि इस व्रत को रखने से धन संबंधी सारी दिक्कतें भी दूर हो जाती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।
इस पूजा में विवाहित महिलाएं कठिन उपवास रखती हैं और नियमपूर्वक उनका पालन करती हैं। इसकी पूजा में कलश की पूजा करनें का भी खास महत्व है। हिंदू धर्म में भक्तगण, सबसे पहले भगवान श्री गणेश की पूजा करते हैं। इसके बाद, देवी लक्ष्मी की स्तुति में ‘लक्ष्मी सहस्रनाम’ मंत्र का जाप करते हुए पूजा शुरू करते हैं। अंत में, पूजा के दौरान महिलाओं को अपने हाथों में पीला धागा भी बांधना होता है। फिर मां लक्ष्मी की मूर्ति के पास भगवान गणेश की प्रतिमा रख कर और कलश-अक्षत समेत माता वरलक्ष्मी का स्वागत होता है और पूजन सामग्री की सभी चीजों को उनको अर्पित किया जाता है। आरती से माता को प्रसन्न कर के वरलक्ष्मी व्रत कथा का पाठ किया जाता है और मां को भोग लगाकर प्रसाद का वितरण किया जाता हैं। यह व्रत बहुत ही प्रभावशाली है, इस व्रत को रखने से मान-सम्मान और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती हैं।
हम आशा करते हैं, कि आपको माता वरलक्ष्मी की इस पूजा का महत्व अच्छे से समझ आया होगा। अब बात करते हैं इस व्रत की संपूर्ण व्रत विधि, पूजा विधि, और सामग्री की...
इस व्रत को विधिपूर्वक संपन्न करने के लिए नीचे दी गई पूजन सामग्री को पहले से एकत्र कर लें:
ब्रह्म मुहूर्त में उठें – स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल का शुद्धिकरण करें – गंगाजल का छिड़काव करें। व्रत का संकल्प लें – मानसिक रूप से माता वरलक्ष्मी का ध्यान करें और व्रत का नियम लें। निराहार या फलाहार व्रत रखें – दिनभर जल, फल और व्रत अनुकूल पदार्थ लें। पूजा और कथा के बाद व्रत का पारण करें – रात्रि में आरती के बाद प्रसाद ग्रहण करें।
वरलक्ष्मी व्रत न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह नारी शक्ति की आस्था, भक्ति और परिवार के प्रति समर्पण का प्रतीक भी है। यदि आप इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करें तो माता लक्ष्मी अवश्य प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को वरदान प्रदान करती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से न केवल देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और शांति भी बनी रहती है। इस व्रत को विशेष रूप से विवाहित महिलाएं करती हैं, लेकिन इसकी कृपा हर किसी को मिल सकती है। आइए जानते हैं, इस व्रत के कुछ विशेष लाभ —
यदि आप देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो वरलक्ष्मी व्रत के दिन ये कुछ उपाय करने से अद्भुत लाभ मिल सकता है:
वरलक्ष्मी व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था और समर्पण का ऐसा मार्ग है, जो जीवन के हर क्षेत्र में शुभता और सफलता लाता है। यदि श्रद्धा और विधिपूर्वक यह व्रत किया जाए, तो देवी लक्ष्मी न केवल भौतिक सुख देती हैं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी जीवन को ऊर्जावान बनाती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत एक शक्तिशाली और फलदायी व्रत है, जिसे पूरे नियम, श्रद्धा और संयम के साथ किया जाए, तो देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत न केवल सांसारिक सुखों की प्राप्ति कराता है, बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
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