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वरलक्ष्मी व्रत 2025

वरलक्ष्मी व्रत माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ पर्व है। जानिए 2025 में यह व्रत कब रखा जाएगा, कैसे करें पूजा, क्या है व्रत की कथा और इसका आध्यात्मिक लाभ।

वरलक्ष्मी व्रत के बारे में

वरलक्ष्मी व्रत एक शुभ हिन्दू पर्व है, जो सौभाग्य, समृद्धि और पति की दीर्घायु के लिए महिलाएं करती हैं। यह व्रत शुक्रवार को वरलक्ष्मी देवी की पूजा के साथ रखा जाता है, विशेषकर दक्षिण भारत में प्रमुखता से मनाया जाता है।

2025 में कब है वरलक्ष्मी व्रत?

भक्तों नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है।

हर साल श्रावण मास के अंतिम शुक्रवार को मां वरलक्ष्मी का व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि ये व्रत जातक को सौभाग्य व समृद्धि प्रदान करता है। वरलक्ष्मी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन से दरिद्रता समाप्त हो जाती है, और उसकी आने वाली कई पीढ़ियां भी सुखमय जीवन बिताती हैं।

वरलक्ष्मी व्रत 2025

वरलक्ष्मी व्रतम् शुक्रवार, 08 अगस्त, 2025 को है

  • सिंह लग्न पूजा मुहूर्त (प्रातः) - 06:29 ए एम से 08:46 ए एम
  • अवधि - 02 घण्टे 17 मिनट्स
  • वृश्चिक लग्न पूजा मुहूर्त (अपराह्न) - 01:22 पी एम से 03:41 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 19 मिनट्स
  • कुम्भ लग्न पूजा मुहूर्त (सन्ध्या) - 07:27 पी एम से 08:54 पी एम
  • अवधि - 01 घण्टा 27 मिनट्स
  • वृषभ लग्न पूजा मुहूर्त (मध्यरात्रि) - 11:55 पी एम से 01:50 ए एम, अगस्त 09
  • अवधि - 01 घण्टा 56 मिनट्स

वरलक्ष्मी व्रत के शुभ मुहूर्त

मुहूर्त 

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:21 ए एम से 05:04 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:43 ए एम से 05:46 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

12:00 पी एम से 12:53 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:40 पी एम से 03:33 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

07:07 पी एम से 07:28 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

07:07 पी एम से 08:11 पी एम तक

अमृत काल

07:57 ए एम से 09:35 ए एम तक

निशिता मुहूर्त

12:05 ए एम, अगस्त 09 से 12:48 ए एम, अगस्त 09 तक

विशेष योग

मुहूर्त 

समय

रवि योग

05:46 ए एम से 02:28 पी एम तक

सर्वार्थ सिद्धि योग

02:28 पी एम से 05:47 ए एम, अगस्त 09 तक

भक्तों! हमारे शास्त्रों में मां वरलक्ष्मी के रूप की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि मां वरलक्ष्मी निर्मल जल की तरह दूधिया रंग वाली हैं, और सोलह शृंगार व आभूषणों से सुसज्जित हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार जो जातक श्रद्धा पूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें माता लक्ष्मी के आठों स्वरूप, यानि अष्टलक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

क्यों मनाते हैं वरलक्ष्मी व्रत?

हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी को धन, समृद्धि, प्रेम और सौंदर्य की देवी माना गया है। इन्हीं का एक मंगलकारी रूप हैं माता वरलक्ष्मी, जिनकी पूजा विशेष रूप से श्रावण मास के शुक्रवार को की जाती है। यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने परिवार की खुशहाली, पति की दीर्घायु, संतान की भलाई और घर में सुख-समृद्धि हेतु श्रद्धापूर्वक रखा जाता है।

वरलक्ष्मी कौन हैं?

वरलक्ष्मी शब्द दो भागों से बना है—‘वर’ यानी वरदान और ‘लक्ष्मी’ यानी धन और ऐश्वर्य की देवी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, वरलक्ष्मी माता का प्राकट्य क्षीर सागर से हुआ था। वे सोलह श्रृंगार से सजी होती हैं और अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देने वाली देवी मानी जाती हैं। इसलिए यह व्रत रखने से घर में शुभता, उन्नति और सुख-शांति का वास होता है।

वरलक्ष्मी व्रत का महत्व

लक्ष्मी या महालक्ष्मी माता को हम धन, प्रेम और सौंदर्य की देवी के रूप में जानते हैं। आज हम भी महालक्ष्मी के इसी कल्याणकारी अवतार 'माता वरलक्ष्मी' के महत्व के बारे में जानेंगे, जो अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने के साथ-साथ, उनके कष्टों का निवारण भी करती हैं।

देवी लक्ष्मी समृद्धि, धन, भाग्य, प्रकाश, ज्ञान, उदारता, साहस और उर्वरता की अधिष्ठात्री देवी हैं। विशेष रूप से विवाहित महिलाएं, देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह व्रत करती हैं। वर लक्ष्मी का व्रत रखकर महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए, देवी से प्रार्थना करती हैं और संतान प्राप्ति के लिए भी उनका आशीर्वाद मांगती हैं।

ऐसी मान्यता है, कि देवी लक्ष्मी का वर लक्ष्मी अवतार क्षीर सागर से हुआ है। माता सदैव 16 श्रृंगार करके सजी रहती हैं और उनका यह रूप एवं नाम, भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है। इसलिए उनका नाम वर और लक्ष्मी के मेल से वरलक्ष्मी पड़ा था। ऐसा कहा जाता है, कि इस व्रत को रखने से धन संबंधी सारी दिक्कतें भी दूर हो जाती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।

इस पूजा में विवाहित महिलाएं कठिन उपवास रखती हैं और नियमपूर्वक उनका पालन करती हैं। इसकी पूजा में कलश की पूजा करनें का भी खास महत्व है। हिंदू धर्म में भक्तगण, सबसे पहले भगवान श्री गणेश की पूजा करते हैं। इसके बाद, देवी लक्ष्मी की स्तुति में ‘लक्ष्मी सहस्रनाम’ मंत्र का जाप करते हुए पूजा शुरू करते हैं। अंत में, पूजा के दौरान महिलाओं को अपने हाथों में पीला धागा भी बांधना होता है। फिर मां लक्ष्मी की मूर्ति के पास भगवान गणेश की प्रतिमा रख कर और कलश-अक्षत समेत माता वरलक्ष्मी का स्वागत होता है और पूजन सामग्री की सभी चीजों को उनको अर्पित किया जाता है। आरती से माता को प्रसन्न कर के वरलक्ष्मी व्रत कथा का पाठ किया जाता है और मां को भोग लगाकर प्रसाद का वितरण किया जाता हैं। यह व्रत बहुत ही प्रभावशाली है, इस व्रत को रखने से मान-सम्मान और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती हैं।

हम आशा करते हैं, कि आपको माता वरलक्ष्मी की इस पूजा का महत्व अच्छे से समझ आया होगा। अब बात करते हैं इस व्रत की संपूर्ण व्रत विधि, पूजा विधि, और सामग्री की...

वरलक्ष्मी व्रत की पूजन सामग्री

इस व्रत को विधिपूर्वक संपन्न करने के लिए नीचे दी गई पूजन सामग्री को पहले से एकत्र कर लें:

  • देवी वरलक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र
  • फूलों की माला
  • नारियल
  • कुंदन और श्रृंगार सामग्री
  • छोटी पूजा घंटी
  • दीपक (तेल वाला)
  • अक्षत (साफ चावल)
  • चंदन
  • हल्दी और कुमकुम
  • विभूति (भस्म)
  • शीशा और कंघी
  • मौली (पीला धागा)
  • भोग (फलों और मिठाइयों सहित)
  • आम्रपल्लव (आम के पत्ते)
  • पान के पत्ते
  • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर)
  • दूध, दही, केला
  • धूप, धुनी, कपूर

वरलक्ष्मी व्रत कैसे करें?

ब्रह्म मुहूर्त में उठें – स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल का शुद्धिकरण करें – गंगाजल का छिड़काव करें। व्रत का संकल्प लें – मानसिक रूप से माता वरलक्ष्मी का ध्यान करें और व्रत का नियम लें। निराहार या फलाहार व्रत रखें – दिनभर जल, फल और व्रत अनुकूल पदार्थ लें। पूजा और कथा के बाद व्रत का पारण करें – रात्रि में आरती के बाद प्रसाद ग्रहण करें।

वरलक्ष्मी व्रत की पूजा कैसे करें?

  • पूजा के लिए एक साफ चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
  • उस पर श्री गणेश जी और देवी वरलक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
  • एक कलश स्थापित करें – उस पर चंदन लगाएं, आम्रपल्लव रखें और नारियल को हल्दी-कुमकुम से सजाकर कलश पर रखें।
  • अब माता की प्रतिमा को वस्त्र, आभूषण, फूलों और कुंदन से सजाएं।
  • दीपक जलाकर धूप, अक्षत, फूल, फल, नैवेद्य और पंचामृत से पूजन करें।
  • लक्ष्मी सहस्रनाम या वरलक्ष्मी व्रत कथा का पाठ करें।
  • कलश और देवी को भोग अर्पण करें, फिर आरती करें।
  • पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद का वितरण करें।

विशेष निर्देश

  • पूजा करते समय पीले धागे (मौली) को अपने हाथ में बांधें।
  • इस दिन काले वस्त्र पहनने से बचें और संभव हो तो लाल या पीले वस्त्र धारण करें।
  • यह व्रत श्रद्धा और नियमपूर्वक किया जाए तो इससे धन, सौभाग्य और समस्त परिवार का कल्याण होता है।

वरलक्ष्मी व्रत न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह नारी शक्ति की आस्था, भक्ति और परिवार के प्रति समर्पण का प्रतीक भी है। यदि आप इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करें तो माता लक्ष्मी अवश्य प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को वरदान प्रदान करती हैं।

वरलक्ष्मी व्रत रखने के लाभ

वरलक्ष्मी व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से न केवल देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और शांति भी बनी रहती है। इस व्रत को विशेष रूप से विवाहित महिलाएं करती हैं, लेकिन इसकी कृपा हर किसी को मिल सकती है। आइए जानते हैं, इस व्रत के कुछ विशेष लाभ —

  • धन और समृद्धि की प्राप्ति: देवी लक्ष्मी धन और ऐश्वर्य की देवी हैं। उनका वरलक्ष्मी स्वरूप, विशेष रूप से अपने भक्तों को संपन्नता और स्थिरता प्रदान करता है।
  • घर में सुख-शांति और सौहार्द बना रहता है: यह व्रत करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर का वातावरण शांतिपूर्ण और मंगलमय रहता है।
  • वैवाहिक जीवन में मधुरता: विवाहित स्त्रियाँ यह व्रत पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन के लिए करती हैं। इससे रिश्तों में प्रेम और समझ बढ़ती है।
  • संतान सुख की प्राप्ति: जो दंपत्ति संतान की कामना रखते हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है।
  • कष्टों से मुक्ति और संकटों का निवारण: देवी वरलक्ष्मी अपने भक्तों के समस्त कष्ट हरती हैं और जीवन में आने वाली बाधाओं से रक्षा करती हैं।
  • मान-सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि: इस व्रत को करने से समाज में मान-सम्मान बढ़ता है और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

वरलक्ष्मी व्रत के धार्मिक उपाय

यदि आप देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो वरलक्ष्मी व्रत के दिन ये कुछ उपाय करने से अद्भुत लाभ मिल सकता है:

  • घर की उत्तर दिशा में दीपक जलाएं: उत्तर दिशा को लक्ष्मी जी की दिशा माना जाता है। वहां घी का दीपक जलाकर “ॐ महालक्ष्म्यै नमः” का 108 बार जप करें।
  • कलश में चांदी या तांबे का सिक्का डालें: वरलक्ष्मी पूजन में स्थापित कलश में सिक्का डालने से आर्थिक स्थिरता और चल-अचल धन में वृद्धि होती है।
  • माता को कमल का फूल अर्पित करें: कमल लक्ष्मी जी का प्रिय पुष्प है। इसे अर्पित करने से मां बहुत शीघ्र प्रसन्न होती हैं।
  • पीले वस्त्र पहनकर पूजा करें: पीला रंग समृद्धि और शुभता का प्रतीक है। इस रंग को धारण करने से व्रत का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
  • किसी निर्धन स्त्री को श्रृंगार सामग्री का दान करें: यह एक अत्यंत पुण्यकारी कार्य है। इससे देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • लक्ष्मी सहस्रनाम का पाठ करें: अगर समय न हो तो कम से कम “श्री सूक्त” या “लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र” का पाठ ज़रूर करें।
  • पीले धागे (मौली) में हल्दी लगाकर हाथ में बांधें: यह उपाय देवी के रक्षा कवच के समान कार्य करता है और बुरी शक्तियों से सुरक्षा देता है।

वरलक्ष्मी व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था और समर्पण का ऐसा मार्ग है, जो जीवन के हर क्षेत्र में शुभता और सफलता लाता है। यदि श्रद्धा और विधिपूर्वक यह व्रत किया जाए, तो देवी लक्ष्मी न केवल भौतिक सुख देती हैं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी जीवन को ऊर्जावान बनाती हैं।

वरलक्ष्मी व्रत में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

  • व्रत के एक दिन पहले ही पूजा की तैयारी कर लें – पूजा सामग्री, कलश, वस्त्र आदि।
  • व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
  • घर और पूजा स्थान की सफाई विशेष रूप से करें, स्थान को पवित्र रखें।
  • संकल्प लेते समय मन में कोई नकारात्मक भावना या संशय न रखें।
  • पूजा के दौरान मौन रहें या मंत्रों का उच्चारण करें – व्यर्थ की बातों से बचें।
  • इस दिन मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहना आवश्यक है।

वरलक्ष्मी व्रत में क्या करना चाहिए?

  • पूजा से पूर्व श्री गणेश का पूजन करना न भूलें।
  • वरलक्ष्मी माता की प्रतिमा को साज-श्रृंगार कर सुंदर रूप में स्थापित करें।
  • कलश स्थापना के समय उसमें चावल, सिक्का, सुपारी, आम्रपल्लव, जल आदि अवश्य रखें।
  • पूजा में लक्ष्मी सहस्रनाम, श्री सूक्त, या लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करें।
  • व्रत का पालन निष्ठा और एकाग्रता से करें, दिनभर उपवास रखें (फलाहार या निर्जल)।
  • दिन में पीले वस्त्र पहनें, यह देवी लक्ष्मी को प्रिय माने जाते हैं।
  • पूजा के अंत में कथा सुनना या पढ़ना अनिवार्य होता है।

वरलक्ष्मी व्रत में क्या न करें?

  • पूजा के दिन बाल कटवाना, नाखून काटना या केमिकल वाले प्रसाधनों का प्रयोग वर्जित है।
  • मांसाहार, मद्यपान और लहसुन-प्याज का सेवन पूरी तरह से त्याज्य होता है।
  • पूजा के समय मोबाइल, टीवी या अन्य ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूर रहें।
  • पूजा के मध्य में उठना या बीच में भोजन करना उचित नहीं माना जाता।
  • किसी से कटु वचन न बोलें, झूठ न बोलें और विवादों से बचें।
  • पूजा के बाद बासी भोजन का सेवन न करें और रात्रि में तामसिक भोजन न लें।

वरलक्ष्मी व्रत एक शक्तिशाली और फलदायी व्रत है, जिसे पूरे नियम, श्रद्धा और संयम के साथ किया जाए, तो देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत न केवल सांसारिक सुखों की प्राप्ति कराता है, बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

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Published by Sri Mandir·July 28, 2025

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