तुलसीदास जयंती 2025: रामभक्त कवि गोस्वामी तुलसीदास की जयंती पर जानें उनकी जीवनी, काव्य रचनाएं और योगदान।
तुलसीदास जयंती प्रसिद्ध संत और रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती के रूप में मनाई जाती है। यह हर वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को आती है। इस दिन भक्त तुलसीदास जी की रचनाओं का पाठ करते हैं और भगवान श्रीराम की आराधना करते हैं। तुलसीदास जी ने रामभक्ति को जन-जन तक पहुँचाया और हिंदी साहित्य को अमूल्य योगदान दिया।
तुलसीदास जयंती हिंदी साहित्य के एक महान कवि गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। तुलसीदास जी को हिंदी साहित्य का आधार माना जाता है और उनकी रचनाएं, विशेषकर रामचरितमानस, सदियों से लाखों लोगों को प्रेरित करती रही हैं। आइए जानते हैं, तुलसीदास जयंती कब है, इस दिन का महत्व क्या है और उनके जीवन से जुड़ी मुख्य जानकारी…
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:59 ए एम से 04:42 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:21 ए एम से 05:25 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | 11:38 ए एम से 12:31 पी एम |
विजय मुहूर्त | 02:17 पी एम से 03:11 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 06:44 पी एम से 07:05 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 06:44 पी एम से 07:48 पी एम |
अमृत काल | 05:32 पी एम से 07:20 पी एम |
निशिता मुहूर्त | 11:43 पी एम से 12:26 ए एम, अगस्त 01 |
तुलसीदास जयंती हमें तुलसीदास जी के जीवन और उनकी रचनाओं के बारे में जानने का एक अवसर प्रदान करती है। यह हमें उनके आदर्शों, उनके भक्ति भाव और उनकी भाषा की सरलता से प्रेरित होने का मौका देती है। तुलसीदास जयंती को भारत के कई हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और रामचरितमानस का पाठ किया जाता है।
यह उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है और इसे हिंदी साहित्य का महाकाव्य माना जाता है। इस ग्रंथ में उन्होंने वाल्मीकि रामायण को अवधी भाषा में इतने सरल और मार्मिक ढंग से लिखा है कि यह आम जनता के लिए आसानी से समझ में आ जाता है।
इस ग्रंथ में तुलसीदास जी ने भगवान राम से अपनी विनय की गई है। इसमें उन्होंने अपनी भक्ति भावना को बहुत ही मार्मिक ढंग से व्यक्त किया है।
इसमें तुलसीदास जी ने दोहों के माध्यम से अपने विचारों को व्यक्त किया है। इन दोहों में उन्होंने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला है।
इस ग्रंथ में तुलसीदास जी ने भगवद्गीता के श्लोकों का अवधी भाषा में अनुवाद किया है।
इस ग्रंथ में तुलसीदास जी ने विभिन्न विषयों पर कविताएं लिखी हैं।
इस ग्रंथ में तुलसीदास जी ने श्रीकृष्ण के जीवन और लीलाओं का वर्णन किया है।
यह रामचरितमानस का ही एक संक्षिप्त रूप है।
ये दोनों ग्रंथ देवी पार्वती और माता सीता की स्तुति में लिखे गए हैं।
इस ग्रंथ में तुलसीदास जी ने राम से कुछ प्रश्न पूछे हैं और उनके उत्तर भी दिए हैं।
विद्वानों का मानना है कि तुलसीदास जी का जन्म सोरोन, उत्तर प्रदेश में हुआ था। कहा जा सकता है कि उन्होंने भगवान राम के प्रति गहरा भक्तिभाव रखा था और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से रामकथा को आम जनता तक पहुंचाया।
तुलसीदास जी ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भक्ति आंदोलन को गति दी और हिंदी भाषा को समृद्ध किया। उनकी रचनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी वे सदियों पहले थीं।
गोस्वामी तुलसीदास जी संतकवि, भक्त और अद्भुत रामभक्त थे। इनका जन्म श्रावण मास की शुक्ल सप्तमी को माना गया है, जो कि तुलसीदास जयंती के रूप में मनाई जाती है। तुलसीदास जी का जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के राजापुर (चित्रकूट) में माना जाता है। वे रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका जैसे ग्रंथों के रचयिता थे। तुलसीदास जी ने संस्कृत जैसे कठिन भाषा में रचे गए वेद-पुराणों के सार को अवधी और ब्रज भाषा में जनसामान्य तक पहुँचाया। उन्हें 'अवधीकवि', 'गोष्ठी काव्य सम्राट' और 'रामभक्ति के प्रवर्तक' जैसे उपाधियों से नवाजा गया।
तुलसीदास जयंती के दिन श्रद्धा और भक्ति से भगवान श्रीराम और तुलसीदास जी की पूजा की जाती है। इस दिन मंदिरों में रामचरितमानस का अखंड पाठ, सुंदरकांड का पाठ और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। सुबह स्नान करके तुलसीदास जी की तस्वीर या प्रतिमा को पूजा स्थान पर रखें। उनके सामने दीप जलाएं, फूल, चंदन, धूप, नैवेद्य अर्पित करें। रामचरितमानस का पाठ करें और उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं का स्मरण करें। अगर संभव हो तो किसी पंडित से तुलसीदास जयंती पर विशेष रामचरितमानस कथा या सत्संग का आयोजन भी करें।
तुलसीदास जी का योगदान केवल एक कवि तक सीमित नहीं रहा, उन्होंने हिन्दू धर्म की जड़ों को जन-जन तक पहुँचाया। उनके माध्यम से श्रीराम, श्रीहनुमान, मर्यादा पुरुषोत्तम की भावना को प्रत्येक घर में स्थान मिला। उन्होंने वेदों की मूल भावना को सरल शब्दों में व्यक्त किया और भक्ति आंदोलन को नई दिशा दी।
तुलसीदास जी की वाणी आज भी रामभक्तों की आत्मा को छू जाती है और हिन्दू संस्कृति की नींव को मजबूती प्रदान करती है। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' के साथ।
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