
त्रिपुर भैरवी जयंती 2025: जानें पूजा विधि, कथा और इस शुभ दिन का महत्व। क्या है आपकी साधना का अगला कदम? जानें यहाँ
त्रिपुर भैरवी जयंती देवी त्रिपुर भैरवी के पूजन का पावन अवसर है। इस दिन श्रद्धालु माँ की पूजा-अर्चना कर उनके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। विशेष रूप से महिलाओं द्वारा माँ के लिए दीपक, लाल वस्त्र और प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। यह दिन आध्यात्मिक शक्ति और मानसिक शांति का प्रतीक माना जाता है।
यह मन्त्र माता पार्वती के दिव्य स्वरूप त्रिपुर भैरवी को समर्पित है। हर वर्ष मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को माता त्रिपुर भैरवी के अवतरण दिवस के रूप में त्रिपुर भैरवी जयंती मनाई जाती है।
इस वर्ष पंचांग के अनुसार यह 04 दिसंबर 2025, बृहस्पतिवार को मनाई जाएगी
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:42 ए एम से 05:35 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 05:09 ए एम से 06:29 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | 11:27 ए एम से 12:09 पी एम |
विजय मुहूर्त | 01:35 पी एम से 02:17 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 05:05 पी एम से 05:32 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 05:08 पी एम से 06:28 पी एम |
अमृत काल | 12:48 पी एम से 02:12 पी एम |
निशिता मुहूर्त | 11:22 पी एम से 12:15 ए एम, दिसम्बर 05 |
त्रिपुर भैरवी जयंती उस पावन दिवस का उत्सव है, जब देवी त्रिपुर भैरवी का अवतरण हुआ था। दस महाविद्याओं में सम्मिलित भगवती त्रिपुर भैरवी को ब्रह्मांड में स्थित तीनों लोकों की अधिष्ठात्री के रूप में पूजित किया जाता है। वे शक्ति का रौद्र रूप, समय का प्रचंड स्वरूप तथा साधक को बंधनों से मुक्त करने वाली देवी के रूप में मानी जाती हैं।
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती के अनेक अवतार और रूप-विग्रह हैं। हमारे पुराणों में माता भगवती से जन्मी दस महाविद्यायों का भी वर्णन मिलता है। इन महाविद्यायों में से एक हैं त्रिपुर भैरवी !
माता त्रिपुरभैरवी का सम्बन्ध भगवान शिव के रौद्र रूप-विग्रह काल भैरव से है। माँ भैरवी को विध्वंस का साक्षात् स्वरूप माना जाता है। त्रिपुर भैरवी को उनके भक्तों द्वारा भव-बन्ध-मोचन की देवी और बंदी-छोड़ माता कहकर पुकारा जाता है। जिसका अर्थ है कि माता का यह स्वरूप मनुष्य को सभी प्रकार के भय और बंधनों से मुक्ति दिलाता है। इसलिए माता के परम साधक त्रिपुर भैरवी जयंती के दिन विशेष रूप से माता की उपासना करते हैं।
इनके अवतरण से जुड़ी एक पौराणिक कथा है - कि, एक बार माँ कालिका के मन में यह इच्छा जागृत हुई कि वे अपना गौरवर्ण पुनः धारण करें। लेकिन यह इतना सरल नहीं था, इसलिए अपनी इस इच्छा पूर्ति के लिए माता कुछ समय के लिए अंतर्ध्यान हो गईं। थोड़े समय बाद जब भगवान शिव ने माता को अपने साथ नहीं पाया तो वे उन्हें ढूंढने लगे। तब उनके समक्ष नारद ऋषि प्रकट हुए। नारद मुनि को समक्ष जगत का समाचार मालूम होता था, इसलिए भगवान शिव ने उनसे माता पार्वती जो उस समय कालिका रूप में थी, के बारे में पूछा।
नारद ऋषि ने शिव जी को बताया कि माता के सुमेरु पर्वत के उत्तर दिशा में होने की संभावना प्रबल है। यह सुनकर शिवजी ने नारद जी को सुमेरु पर्वत पर विराजित माता के पास उनसे विवाह करने के प्रस्ताव के साथ भेजा।
जब नारद ऋषि माता कालिका के पास पहुंचें, तब वहां माता षोडशी (त्रिपुर सुंदरी) स्वरूप में उपस्थित थीं। महर्षि नारद जी ने उस देवी से शिवजी के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव सुनकर देवी अत्यंत क्रुद्ध हो गई और क्रोधवश उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट हुआ। और इस प्रकार देवी आदिशक्ति के षोडशी अवतार से छाया-विग्रह “भैरवी (त्रिपुर भैरवी)” का प्राकट्य हुआ।
इसी भैरवी अवतार ने काल भैरव से विवाह किया। त्रिपुर सुंदरी माता ने ही चण्ड-मुण्ड नामक असुरों का संहार किया था।
देवी त्रिपुर भैरवी के दो स्वरूप है। एक स्वरूप में देवी भैरवी माता कालिका के समान रौद्र अवतार में हैं। उनकी चार भुजाएँ और तीन नेत्र हैं। चार में से तीन भुजाओं में तलवार, त्रिशूल और दैत्य का कटा हुआ सिर हैं और उनकी चौथी भुजा अभय मुद्रा में है, जिससे वे भक्तों से भय से मुक्त होने का आशीर्वाद दे रहीं हैं।
दूसरे स्वरूप में देवी भैरवी माता पार्वती के समान हैं। इस स्वरूप में दस हजार उदयमान सूर्यों के तेज से चमकती देवी भैरवी की चार भुजाएँ हैं। जिनमें से दो भुजाओं में पुस्तक और माला हैं। शेष दो भुजाएं अभय और वरद मुद्रा में हैं। इस स्वरूप में माता कमल के फूल पर विराजमान हैं।
त्रिपुर भैरवी जयंती पर की जाने वाली आसान पूजा:
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