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शीतला सातम 2025 कब है?

2025 में शीतला सातम व्रत कब रखा जाएगा? जानिए इस व्रत की तिथि, पूजा विधि और माता शीतला की कृपा पाने के लिए क्या करना चाहिए।

शीतला सातम के बारे में

शीतला सातम एक पारंपरिक त्योहार है जो विशेष रूप से गुजरात में मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है और ठंडा भोजन खाया जाता है। इसे रोगों से बचाव और परिवार की सुख-शांति के लिए मनाया जाता है।

शीतला सातम 2025

हिंदू धर्म में पूजा और व्रत-पालन को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। मगर इनमें से कुछ व्रत ऐसे हैं, जिन्हें विशेष रूप से लोक-कल्याणकारी माना जाता है। आज हम आपके लिए ऐसे ही एक व्रत की जानकारी लेकर आए हैं, जिसका नाम है शीतला सातम का व्रत। इसे शीतला सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत, साल में दो बार रखने की मान्यता है।

शीतला सप्तमी या शीतला सातम के व्रत का उल्लेख, स्कन्द पुराण में मिलता है। इस व्रत का पालन, एक बार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को किया जाता है और दूसरी बार इसका पालन, श्रावण या भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है। इन दोनों ही तिथियों पर, माता शीतला की विधिवत पूजा और सप्तमी व्रत के पालन का विशेष महत्व है।

कब है शीतला सातम?

  • शीतला सातम शुक्रवार, अगस्त 15, 2025 को
  • शीतला सातम पूजा मुहूर्त - 05:31 ए एम से 06:33 पी एम
  • अवधि - 13 घण्टे 02 मिनट्स
  • रांधण छठ बृहस्पतिवार, अगस्त 14, 2025 को
  • सप्तमी तिथि प्रारम्भ - अगस्त 15, 2025 को 02:07 ए एम बजे
  • सप्तमी तिथि समाप्त - अगस्त 15, 2025 को 11:49 पी एम बजे

शीतला सातम 2025 के शुभ मुहूर्त

मुहूर्त 

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:04 ए एम से 04:48 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:26 ए एम से 05:31 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

11:36 ए एम से 12:28 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:12 पी एम से 03:05 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

06:33 पी एम से 06:55 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

06:33 पी एम से 07:39 पी एम तक

अमृत काल

01:36 ए एम, अगस्त 16 से 03:06 ए एम, अगस्त 16 तक

निशिता मुहूर्त

11:40 पी एम से 12:24 ए एम, अगस्त 16 तक

विशेष योग

सर्वार्थ सिद्धि योग

05:31 ए एम से 07:36 ए एम तक

रवि योग

05:31 ए एम से 07:36 ए एम तक

शीतला सातम क्या है?

शीतला सातम एक पारंपरिक व्रत और पूजन पर्व है, जो मुख्य रूप से देवी शीतला को समर्पित होता है। यह पर्व विशेष रूप से गुजरात में मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भी इसकी मान्यता है। ‘शीतला’ का अर्थ होता है – शीतलता या ठंडक प्रदान करने वाली, और माना जाता है कि मां शीतला चेचक (चिकेन पॉक्स) जैसी बीमारियों से रक्षा करती हैं। इस पर्व पर लोग मां शीतला की पूजा कर, उनसे रोग-मुक्ति, मानसिक शांति और शारीरिक ठंडक का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

क्यों मनाते हैं शीतला सातम?

शीतला सातम का पर्व मां शीतला की कृपा पाने के लिए मनाया जाता है। लोक मान्यता है कि मां शीतला का स्वभाव अत्यंत शांत और सौम्य है। उनकी उपासना करने से शरीर को ठंडक मिलती है और व्यक्ति त्वचा संबंधी रोगों विशेषकर ‘छोटी माता’ यानी चिकन पॉक्स से सुरक्षित रहता है। यह पर्व विशेष रूप से बच्चों की आरोग्यता और उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है। लोग इस दिन देवी की पूजा कर उनसे अपने परिवार को रोगों से बचाने की प्रार्थना करते हैं।

शीतला सातम का महत्व क्या है?

शीतला सातम केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़ा एक प्रतीकात्मक पर्व भी है। यह पर्व दर्शाता है कि किस तरह पुरानी परंपराओं में भी स्वच्छता, शांत भोजन और शीतलता के महत्व को स्वीकारा गया है। इस दिन बासी भोजन खाने की परंपरा है, जिसे "रांधण छठ" कहते हैं — यानी सप्तमी से एक दिन पहले ही भोजन बना लिया जाता है और पूजा के दिन उसे ही ग्रहण किया जाता है। माना जाता है कि चूल्हा जलाना या गर्म भोजन तैयार करना मां शीतला को पसंद नहीं है।

इस परंपरा के पीछे भाव यह है कि शीतल, हल्का और सादा भोजन रोगों को दूर रखने में सहायक होता है। साथ ही, इस दिन माता को हल्दी, कच्चा दूध, चावल, बासी रोटियां और ठंडा जल अर्पित किया जाता है।

शीतला सातम एक ऐसा पर्व है, जिसमें धार्मिक आस्था के साथ-साथ स्वास्थ्य के प्रति सजगता भी दिखाई देती है। यही कारण है कि यह पर्व आज भी श्रद्धा और परंपरा के साथ मनाया जाता है।

शीतला सातम के दिन किसकी पूजा करें?

शीतला सातम के दिन माँ शीतला की पूजा की जाती है। देवी शीतला को देवी पार्वती का स्वरूप और प्रकृति की शीतल एवं उपचार करने वाली शक्ति माना जाता है। उनका पूजन विशेष रूप से रोग निवारण, विशेषकर चेचक (चिकन पॉक्स) और अन्य त्वचा रोगों से सुरक्षा के लिए किया जाता है। पूजा के दौरान मां शीतला को ठंडी चीज़ें चढ़ाई जाती हैं, जैसे — बासी भोजन, ठंडा जल, दही-चावल, रोटी और हल्दी। चूल्हा जलाना वर्जित होता है, इसलिए एक दिन पहले ही सारा भोजन तैयार कर लिया जाता है।

शीतला सातम कहाँ मनाया जाता है?

शीतला सातम का पर्व मुख्य रूप से गुजरात में बड़े श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भी इसे अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे पोल्ला अमावस्या कहा जाता है और माँ शीतला को वहाँ मोरियाम्मन या देवी पोलरम्मा के रूप में पूजा जाता है। इन सभी क्षेत्रों में शीतला सप्तमी या सातम की पूजा का उद्देश्य एक ही होता है — देवी शीतला की कृपा से रोगों से रक्षा, विशेष रूप से बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करना।

शीतला सातम पूजा की सामग्री लिस्ट

शीतला माता की पूजा में जो चीज़ सबसे अधिक ध्यान देने योग्य है, वह है— पूजा में ठंडे और पहले से बने भोज्य पदार्थों का प्रयोग। इस पर्व की खासियत ही है ठंडक और शांति, इसलिए पूजा सामग्री भी उसी भाव के अनुसार रखी जाती है। नीचे वह सारी सामग्री दी गई है, जो आपको शीतला सातम की पूजा में चाहिए होगी:

प्रसाद के लिए थाली में रखें

  • दही
  • रबड़ी
  • बासी चावल
  • मीठा पुआ
  • पकौड़ी
  • नमक पारे
  • शक्कर पारे
  • मठरी
  • बाजरे की रोटी

दूसरी थाली में रखें

  • आटे का दिया
  • रुई की बत्ती
  • शुद्ध देसी घी

अन्य पूजा सामग्रियाँ

  • हल्दी, रोली, चावल (अक्षत)
  • मेंहदी
  • काजल
  • लच्छा (पूजा का पवित्र धागा)
  • नए वस्त्र
  • आम के पत्ते
  • शीतल जल से भरा कलश
  • बड़कुले (पिठ्ठी या आटे से बनी पारंपरिक माला)

शीतला सातम की पूजा कैसे करें?

शीतला सातम की पूजा एक बहुत ही श्रद्धा और पवित्रता से की जाने वाली प्रक्रिया है। यह दिन विशेष रूप से माँ शीतला को प्रसन्न करने और परिवार को रोगों से सुरक्षा दिलाने के लिए मनाया जाता है। पूजा की विधि इस प्रकार है:

स्नान और संकल्प

  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। इस दिन गर्म पानी से न नहाएं। शीतल जल से स्नान करने की परंपरा है। इसके बाद व्रत का संकल्प लें।

स्थान शुद्धि और देवी स्थापना

  • पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करें। मंदिर या घर के पूजा स्थान पर माँ शीतला की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

दीप प्रज्वलन और पूजन प्रारंभ

  • आटे का दीपक जलाएं। फिर रोली, चावल और हल्दी से माँ का पूजन करें। मेंहदी और नए वस्त्र चढ़ाएं, पुष्प अर्पित करें और उन्हें शांत स्वरूपा कहकर शीतल जल अर्पित करें।

भोग और आरती

  • बासी भोजन से बना प्रसाद—जैसे दही-चावल, रबड़ी, मठरी आदि—माँ को अर्पित करें। फिर दीप दिखाकर आरती करें और शीतला सप्तमी व्रत कथा पढ़ें या श्रवण करें।

प्रसाद वितरण और भोजन

  • पूजन के पश्चात वही बासी भोजन प्रसाद रूप में परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करें। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता, इसलिए एक दिन पूर्व पकाया गया भोजन ही सेवन किया जाता है। इसी परंपरा को 'बासौड़ा' कहा जाता है।

धार्मिक मान्यता और जीवन में महत्व

शास्त्रों में वर्णित है कि माँ शीतला की पूजा करने से चेचक, चिकनपॉक्स और अन्य त्वचा रोगों से रक्षा होती है। माँ को अत्यंत शांत और करुणामयी देवी माना गया है। उनके पूजन से मन को शांति और शरीर को ठंडक का अनुभव होता है।

शीतला सप्तमी या सातम केवल एक व्रत नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, परंपरा और आस्था का एक समृद्ध पर्व है। यह पर्व विशेषकर माताओं द्वारा अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना हेतु किया जाता है

शीतला सातम पूजा के लाभ

शीतला सातम का व्रत केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और आध्यात्मिक सुरक्षा का एक सुंदर संगम है। इस व्रत को श्रद्धा से करने से मिलने वाले लाभ हैं:

रोगों से रक्षा

  • माँ शीतला को चिकनपॉक्स (छोटी माता), चेचक, त्वचा रोग और मौसमी संक्रमणों से रक्षा करने वाली देवी माना गया है। उनकी पूजा करने से परिवार विशेषकर बच्चों को रोगों से सुरक्षा मिलती है।

शांति और मानसिक संतुलन

  • देवी शीतला का स्वरूप शांत और करुणामयी है। उनके पूजन से मन को ठंडक और शांति मिलती है। यह व्रत मानसिक तनाव को भी कम करता है।

घर में सुख-समृद्धि और सौभागय

  • माना जाता है कि माँ शीतला की कृपा से घर में दरिद्रता और दुर्भाग्य दूर होते हैं, और समृद्धि बनी रहती है।

सद्गुणों की प्राप्ति और संयम का अभ्यास

  • बिना आग जलाए बासी भोजन ग्रहण करना संयम और त्याग का प्रतीक है। यह हमें विनम्रता और सादगी से जीना सिखाता है।

शीतला सातम के दिन क्या करना चाहिए

इस दिन कुछ विशेष नियमों और परंपराओं का पालन करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है:

  • सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से स्नान करें।
  • व्रत का संकल्प लें और माँ शीतला का ध्यान करें।
  • पूजा स्थान को गंगाजल या शुद्ध जल से स्वच्छ करें।
  • माँ शीतला की मूर्ति या चित्र को साफ करके उन्हें रोली, चावल, हल्दी, मेंहदी, काजल, पुष्प और वस्त्र अर्पित करें।
  • एक दिन पहले बनाए गए बासी भोजन का भोग लगाएं और वही प्रसाद रूप में ग्रहण करें।
  • व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
  • घर में चूल्हा न जलाएं और पूरी श्रद्धा व शुद्धता से दिन बिताएं।

शीतला माता को प्रसन्न करने के उपाय

माँ शीतला को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा और नियमों का पालन सबसे आवश्यक है। यहाँ कुछ प्रमुख उपाय दिए जा रहे हैं:

  • पूजा में पूरी पवित्रता और ध्यान रखें।
  • माँ को मेंहदी, काजल, वस्त्र और शीतल जल अर्पित करें।
  • भोग में बासी लेकिन सात्त्विक और साफ-सुथरा भोजन ही रखें।
  • व्रत कथा का श्रवण अवश्य करें और यदि संभव हो तो परिवार सहित कथा में भाग लें।
  • मंदिर जाकर माँ के दर्शन करें या घर में ही पूरे विधि-विधान से आराधना करें।
  • गरीबों को बासी भोजन, शीतल जल या वस्त्र का दान करें।
  • मन, वाणी और व्यवहार से भी शुद्धता बनाए रखें — यह व्रत केवल शरीर ही नहीं, मन की भी परीक्षा है।

शीतला सातम केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मिक और सामाजिक संतुलन का दिन है। यह हमें स्वास्थ्य, संयम, शुद्धता और प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने का संदेश देता है। माँ शीतला की पूजा श्रद्धा से करने पर जीवन में स्थिरता, स्वास्थ्य और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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Published by Sri Mandir·August 5, 2025

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