2025 में शीतला सातम व्रत कब रखा जाएगा? जानिए इस व्रत की तिथि, पूजा विधि और माता शीतला की कृपा पाने के लिए क्या करना चाहिए।
शीतला सातम एक पारंपरिक त्योहार है जो विशेष रूप से गुजरात में मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है और ठंडा भोजन खाया जाता है। इसे रोगों से बचाव और परिवार की सुख-शांति के लिए मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में पूजा और व्रत-पालन को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। मगर इनमें से कुछ व्रत ऐसे हैं, जिन्हें विशेष रूप से लोक-कल्याणकारी माना जाता है। आज हम आपके लिए ऐसे ही एक व्रत की जानकारी लेकर आए हैं, जिसका नाम है शीतला सातम का व्रत। इसे शीतला सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत, साल में दो बार रखने की मान्यता है।
शीतला सप्तमी या शीतला सातम के व्रत का उल्लेख, स्कन्द पुराण में मिलता है। इस व्रत का पालन, एक बार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को किया जाता है और दूसरी बार इसका पालन, श्रावण या भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है। इन दोनों ही तिथियों पर, माता शीतला की विधिवत पूजा और सप्तमी व्रत के पालन का विशेष महत्व है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:04 ए एम से 04:48 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:26 ए एम से 05:31 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:36 ए एम से 12:28 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:12 पी एम से 03:05 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:33 पी एम से 06:55 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:33 पी एम से 07:39 पी एम तक |
अमृत काल | 01:36 ए एम, अगस्त 16 से 03:06 ए एम, अगस्त 16 तक |
निशिता मुहूर्त | 11:40 पी एम से 12:24 ए एम, अगस्त 16 तक |
सर्वार्थ सिद्धि योग | 05:31 ए एम से 07:36 ए एम तक |
रवि योग | 05:31 ए एम से 07:36 ए एम तक |
शीतला सातम एक पारंपरिक व्रत और पूजन पर्व है, जो मुख्य रूप से देवी शीतला को समर्पित होता है। यह पर्व विशेष रूप से गुजरात में मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भी इसकी मान्यता है। ‘शीतला’ का अर्थ होता है – शीतलता या ठंडक प्रदान करने वाली, और माना जाता है कि मां शीतला चेचक (चिकेन पॉक्स) जैसी बीमारियों से रक्षा करती हैं। इस पर्व पर लोग मां शीतला की पूजा कर, उनसे रोग-मुक्ति, मानसिक शांति और शारीरिक ठंडक का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
शीतला सातम का पर्व मां शीतला की कृपा पाने के लिए मनाया जाता है। लोक मान्यता है कि मां शीतला का स्वभाव अत्यंत शांत और सौम्य है। उनकी उपासना करने से शरीर को ठंडक मिलती है और व्यक्ति त्वचा संबंधी रोगों विशेषकर ‘छोटी माता’ यानी चिकन पॉक्स से सुरक्षित रहता है। यह पर्व विशेष रूप से बच्चों की आरोग्यता और उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है। लोग इस दिन देवी की पूजा कर उनसे अपने परिवार को रोगों से बचाने की प्रार्थना करते हैं।
शीतला सातम केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़ा एक प्रतीकात्मक पर्व भी है। यह पर्व दर्शाता है कि किस तरह पुरानी परंपराओं में भी स्वच्छता, शांत भोजन और शीतलता के महत्व को स्वीकारा गया है। इस दिन बासी भोजन खाने की परंपरा है, जिसे "रांधण छठ" कहते हैं — यानी सप्तमी से एक दिन पहले ही भोजन बना लिया जाता है और पूजा के दिन उसे ही ग्रहण किया जाता है। माना जाता है कि चूल्हा जलाना या गर्म भोजन तैयार करना मां शीतला को पसंद नहीं है।
इस परंपरा के पीछे भाव यह है कि शीतल, हल्का और सादा भोजन रोगों को दूर रखने में सहायक होता है। साथ ही, इस दिन माता को हल्दी, कच्चा दूध, चावल, बासी रोटियां और ठंडा जल अर्पित किया जाता है।
शीतला सातम एक ऐसा पर्व है, जिसमें धार्मिक आस्था के साथ-साथ स्वास्थ्य के प्रति सजगता भी दिखाई देती है। यही कारण है कि यह पर्व आज भी श्रद्धा और परंपरा के साथ मनाया जाता है।
शीतला सातम के दिन माँ शीतला की पूजा की जाती है। देवी शीतला को देवी पार्वती का स्वरूप और प्रकृति की शीतल एवं उपचार करने वाली शक्ति माना जाता है। उनका पूजन विशेष रूप से रोग निवारण, विशेषकर चेचक (चिकन पॉक्स) और अन्य त्वचा रोगों से सुरक्षा के लिए किया जाता है। पूजा के दौरान मां शीतला को ठंडी चीज़ें चढ़ाई जाती हैं, जैसे — बासी भोजन, ठंडा जल, दही-चावल, रोटी और हल्दी। चूल्हा जलाना वर्जित होता है, इसलिए एक दिन पहले ही सारा भोजन तैयार कर लिया जाता है।
शीतला सातम का पर्व मुख्य रूप से गुजरात में बड़े श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भी इसे अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे पोल्ला अमावस्या कहा जाता है और माँ शीतला को वहाँ मोरियाम्मन या देवी पोलरम्मा के रूप में पूजा जाता है। इन सभी क्षेत्रों में शीतला सप्तमी या सातम की पूजा का उद्देश्य एक ही होता है — देवी शीतला की कृपा से रोगों से रक्षा, विशेष रूप से बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करना।
शीतला माता की पूजा में जो चीज़ सबसे अधिक ध्यान देने योग्य है, वह है— पूजा में ठंडे और पहले से बने भोज्य पदार्थों का प्रयोग। इस पर्व की खासियत ही है ठंडक और शांति, इसलिए पूजा सामग्री भी उसी भाव के अनुसार रखी जाती है। नीचे वह सारी सामग्री दी गई है, जो आपको शीतला सातम की पूजा में चाहिए होगी:
शीतला सातम की पूजा एक बहुत ही श्रद्धा और पवित्रता से की जाने वाली प्रक्रिया है। यह दिन विशेष रूप से माँ शीतला को प्रसन्न करने और परिवार को रोगों से सुरक्षा दिलाने के लिए मनाया जाता है। पूजा की विधि इस प्रकार है:
स्नान और संकल्प
स्थान शुद्धि और देवी स्थापना
दीप प्रज्वलन और पूजन प्रारंभ
भोग और आरती
प्रसाद वितरण और भोजन
शास्त्रों में वर्णित है कि माँ शीतला की पूजा करने से चेचक, चिकनपॉक्स और अन्य त्वचा रोगों से रक्षा होती है। माँ को अत्यंत शांत और करुणामयी देवी माना गया है। उनके पूजन से मन को शांति और शरीर को ठंडक का अनुभव होता है।
शीतला सप्तमी या सातम केवल एक व्रत नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, परंपरा और आस्था का एक समृद्ध पर्व है। यह पर्व विशेषकर माताओं द्वारा अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना हेतु किया जाता है
शीतला सातम का व्रत केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और आध्यात्मिक सुरक्षा का एक सुंदर संगम है। इस व्रत को श्रद्धा से करने से मिलने वाले लाभ हैं:
रोगों से रक्षा
शांति और मानसिक संतुलन
घर में सुख-समृद्धि और सौभागय
सद्गुणों की प्राप्ति और संयम का अभ्यास
इस दिन कुछ विशेष नियमों और परंपराओं का पालन करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है:
माँ शीतला को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा और नियमों का पालन सबसे आवश्यक है। यहाँ कुछ प्रमुख उपाय दिए जा रहे हैं:
शीतला सातम केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मिक और सामाजिक संतुलन का दिन है। यह हमें स्वास्थ्य, संयम, शुद्धता और प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने का संदेश देता है। माँ शीतला की पूजा श्रद्धा से करने पर जीवन में स्थिरता, स्वास्थ्य और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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