प्रदोष व्रत कथा

प्रदोष व्रत कथा

30 जुलाई, रविवार पढ़ें व्रत कथा और पाएं कष्टों से मुक्ति


स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, पूर्वकाल में विक्रमनगर नामक एक नगरी में एक ब्राह्मण परिवार निवास करता था। उस परिवार के मुखिया की अचानक मत्यु हो गई। ब्राह्मण की मृत्यु के पश्चात् ब्राह्मणी भिक्षा मांगकर अपने परिवार का पालन-पोषण करने लगी।

उसका एक बेटा था, जिसके साथ वह भिक्षा मांगने जाया करती थी और शाम में भिक्षा मांगकर वापिस लौट आती थी।

एक दिन जब वह शाम में भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसकी नज़र,नदी के किनारे एक नवयुवक पर पड़ी। जब वह उसके पास गई तो उसने देखा कि वह बालक घायल अवस्था में दर्द से कराह रहा था।

ब्राह्मणी को यह देखकर बहुत कष्ट हुआ और दया भाव के चलते, वह उस नवयुवक को घर ले आई। उस बालक का नाम धर्मगुप्त था जो कि विदर्भ का राजकुमार था, लेकिन ब्राह्मणी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

अपने बेटे की तरह ब्राह्मणी ने उसका पालन-पोषण किया और एक माँ की तरह पूरे स्नेह के साथ उसका ध्यान रखा। इसी तरह परिवार में तीनों का समय व्यतीत होने लगा। कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ मंदिर गई, वहां उनकी भेंट ऋषि शांडिल्य से हुई।

ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है, वह विदर्भ देश के राजकुमार हैं। उन्होंने आगे धर्मगुप्त के अतीत के बारे में बताते हुए कहा कि, शत्रुओं की सेना ने उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया था और इस युद्ध में उसके पिताजी वीरगति को प्राप्त हो गए थे। उनकी माता जी भी शोक में स्वर्ग लोक सिधार गईं। इसके बाद शत्रु सैनिकों ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर निकाल दिया।

राजकुमार धर्मगुप्त की यह दुखद कहानी सुनकर ब्राह्मणी बहुत उदास हुई। ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी के कष्टों को देखते हुए, उसे प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि की आज्ञा से दोनों बालकों ने भी अपनी मां के साथ शिव जी की आराधना और प्रदोष व्रत करना शुरू कर दिया।

कुछ दिन बाद दोनों बालक वन में घूम रहे थे, तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नज़र आईं। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त की 'अंशुमती' नाम की गंधर्व कन्या से बात होने लगी। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए। कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलने के लिए बुलाया।

दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बता या कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। गंधर्वराज को भगवान शिव ने सपने में दर्शन देकर अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराने की आज्ञा दी। भगवान की आज्ञा मानकर गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से करवा दिया। इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। राजकुमार ने ब्राह्मणी के पुत्र को अपनी सेना का प्रधानमंत्री नियुक्त किया। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने के फलस्वरूप अंततः उन तीनों लोगों के सभी कष्ट दूर हो गए।

श्री मंदिर द्वारा आयोजित आने वाली पूजाएँ

देखें आज का पंचांग

slide
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?

श्री मंदिर एप डाउनलोड करें

slide
श्री मंदिर पसंद आया?
अभी करे डाउनलोड और पाए लाभ अन्य सेवाओं का।

Download Sri Mandir app now !!

Connect to your beloved God, anytime, anywhere!

Play StoreApp Store
srimandir devotees
digital Indiastartup Indiaazadi

© 2023 Firstprinciple Appsforbharat Pvt Ltd.
All rights reserved.