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पापमोचिनी एकादशी 2025

पापमोचिनी एकादशी पर व्रत रखें और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करें। जानें व्रत कथा, पूजा विधि और इसके विशेष लाभ।

पापमोचिनी एकादशी के बारे में

पापमोचिनी एकादशी हिन्दू धर्म में मनाई जाने वाली एक विशेष और पावन एकादशी है। यह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में आती है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पापमोचिनी एकादशी कब है?

नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। हिंदू पंचांग के अनुसार,चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत इस वर्ष 25 मार्च 2025, शनिवार को है। इस दिन सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। विधि विधान से पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से जन्म जन्मांतर के पापकर्मों से मुक्ति मिलती है, और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

चलिए जानते हैं कि साल 2025 में पापमोचिनी एकादशी व्रत कब किया जाएगा?

  • ये व्रत 25 मार्च 2025, मंगलवार को चैत्र कृष्ण एकादशी तिथि पर किया जाएगा।
  • एकादशी तिथि का प्रारम्भ 25 मार्च 2025, मंगलवार को प्रातः 05 बजकर 05 मिनट पर होगा।
  • एकादशी तिथि का समापन 26 मार्च 2025, बुधवार को प्रातः 03 बजकर 45 मिनट पर होगा।
  • पारण समय 26 मार्च, गुरुवार को दोपहर 01 बजकर 17 मिनट से 03 बजकर 45 मिनट तक रहेगा

पापमोचिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:23 ए एम से 05:10 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:46 ए एम से 05:57 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

11:40 ए एम से 12:28 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:06 पी एम से 02:55 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

06:10 पी एम से 06:34 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

06:11 पी एम से 07:22 पी एम तक

अमृत काल

05:41 पी एम से 07:15 पी एम तक

निशिता मुहूर्त

11:40 पी एम से 12:27 ए एम, मार्च 26 तक

विशेष योग

द्विपुष्कर योग

03:49 ए एम, मार्च 26 से 05:56 ए एम, मार्च 26 तक

क्या है पापमोचिनी एकादशी? क्या है महत्व

नमस्कार, श्री मंदिर आपका स्वागत है। हिन्दू शास्त्रों में एकादशी तिथि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है। ये तिथि जगतपालक श्री हरि को समर्पित होती है। प्रत्येक एकादशी तिथियों में चैत्र मास की कृष्ण एकादशी श्रेष्ठ मानी गई है, ये तिथि पापमोचिनी एकादशी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन जातक श्री विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप की आराधना करते हैं।

चलिए जानते हैं,

  • क्या है पापमोचिनी एकादशी?
  • पापमोचिनी एकादशी का महत्व

क्या है पापमोचिनी एकादशी?

पापमोचनी एकादशी वर्ष भर में आने वाली 24 एकादशियों में से अंतिम एकादशी है। यह तिथि होलिका दहन एवं चैत्र नवरात्रि के बीच आती है। पापमोचिनी शब्द का अर्थ है पाप का मोचन करने वाली। इस प्रकार पापमोचिनी एकादशी सपूर्ण पापकर्मो को नष्ट करने वाली मानी गई है।

ऐसी मान्यता है कि ये व्रत करने एवं विधि विधान से भगवान विष्णु की आराधना करने से अत्यंत पापी मनुष्य के भी बुरे कर्मों का प्रभाव समाप्त हो जाता है, समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पापमोचिनी एकादशी का महत्व

पापमोचिनी एकादशी जन्म जन्मांतर के पाप कर्मों के प्रभाव को नष्ट करने के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। इससे जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार इसी एकादशी व्रत के महापुण्य से अप्सरा मंजुघोषा को ऋषि मेधावी के श्राप मुक्ति प्राप्त हुई थी।

इसके अतिरिक्त शास्त्रों में भी इस एकादशी व्रत की महिमा वर्णित है जिसके अनुसार इस व्रत का पालन करने से समस्त पाप कर्मों का नाश हो जाता है, एवं मनुष्य मनोवांछित फल प्राप्त करता है।

पापमोचिनी एकादशी की पूजा सामग्री

सनातन व्रतों में एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन संपूर्ण विधि और उचित सामग्री के साथ पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है। एकादशी पर की जाने वाली पूजा की सामग्री कुछ इस प्रकार है -

  • चौकी
  • पीला वस्त्र
  • गंगाजल
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा
  • गणेश जी की प्रतिमा
  • अक्षत
  • जल का पात्र
  • पुष्प
  • माला
  • मौली या कलावा
  • जनेऊ
  • धूप
  • दीप
  • हल्दी
  • कुमकुम
  • चन्दन
  • अगरबत्ती
  • तुलसीदल
  • पञ्चामृत का सामान (दूध, घी, दही, शहद और मिश्री)
  • मिष्ठान्न
  • ऋतुफल
  • घर में बनाया गया नैवेद्य

नोट - गणेश जी की प्रतिमा के स्थान पर आप एक सुपारी पर मौली लपेटकर इसे गणेशजी के रूप में पूजा में विराजित कर सकते हैं।

इस सामग्री के द्वारा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है, जो आपके लिए श्री मंदिर पर उपलब्ध है। आप इसका लाभ अवश्य उठायें।

पापमोचिनी एकादशी की पूजा कैसे करें?

एकादशी पर ऐसे करें भगवान विष्णु की पूजा

हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस लेख में आप एकादशी की पूजा की तैयारी एवं विधि जानेंगे।

पूजा की तैयारी

  • एकादशी के दिन व्रत करने वाले जातक दशमी तिथि की शाम में व्रत और पूजन का संकल्प लें।
  • दशमी में रात्रि के भोजन के बाद से कुछ भी अन्न या एकादशी व्रत में निषेध चीजों का सेवन न करें।
  • एकादशी के दिन प्रातःकाल उठें, और किसी पेड़ की टहनी से दातुन करें।
  • इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें। स्नान करते समय पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
  • स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। स्वयं को चन्दन का तिलक करें।
  • अब भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य दें और नमस्कार करते हुए, आपके व्रत और पूजा को सफल बनाने की प्रार्थना करें।
  • अब पूजा करने के लिए सभी सामग्री इकट्ठा करें और पूजा शुरू करें।

एकादशी की पूजा विधि

  • सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करके इस स्थान पर एक चौकी स्थापित करें, और इसे गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें।
  • इसके बाद चौकी पर एक पीला वस्त्र बिछाएं। इस चौकी के दायीं ओर एक दीप प्रज्वलित करें।

(सबसे पहले दीप प्रज्वलित इसीलिए किया जाता है, ताकि अग्निदेव आपकी पूजा के साक्षी बनें)

  • चौकी के सामने एक साफ आसन बिछाकर बैठ जाएं। जलपात्र से अपने बाएं हाथ से दाएं हाथ में जल लेकर दोनों हाथों को शुद्ध करें। अब स्वयं को तिलक करें।
  • अब चौकी पर अक्षत के कुछ दानें आसन के रूप में डालें और इस पर गणेश जी को विराजित करें।
  • इसके बाद चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें।
  • अब स्नान के रूप में एक जलपात्र से पुष्प की सहायता से जल लेकर भगवान गणेश और विष्णु जी पर छिड़कें।
  • भगवान गणेश को हल्दी-कुमकुम-अक्षत और चन्दन से तिलक करें।
  • इसके बाद वस्त्र के रूप में उन्हें जनेऊ अर्पित करें। इसके बाद पुष्प अर्पित करके गणपति जी को नमस्कार करें।
  • भगवान विष्णु को रोली-चन्दन का तिलक करें। कुमकुम, हल्दी और अक्षत भी चढ़ाएं।
  • अब ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करते हुए श्रीहरि को पुष्प, जनेऊ और माला अर्पित करें।
  • भगवान विष्णु को पंचामृत में तुलसीदल डालकर अर्पित करें। चूँकि भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है इसीलिए भगवान के भोग में तुलसी को अवश्य शामिल करें।

(ध्यान दें गणेश जी को तुलसी अर्पित न करें)

  • इसके बाद भोग में मिष्ठान्न और ऋतुफल अर्पित करें।
  • विष्णु सहस्त्रनाम या श्री हरि स्त्रोतम का पाठ करें, इसे आप श्री मंदिर के माध्यम से सुन भी सकते हैं।
  • अंत में भगवान विष्णु की आरती करें। अब सभी लोगों में भगवान को चढ़ाया गया भोग प्रसाद के रूप में वितरित करें।

इस तरह आपकी एकादशी की पूजा संपन्न होगी। इस पूजा को करने से आपको भगवान विष्णु की कृपा निश्चित रूप से प्राप्त होगी।

पापमोचिनी एकादशी व्रत

भक्तों, भगवान विष्णु के एकादशी व्रत की महिमा इतनी दिव्य है, कि इसके प्रभाव से मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का भी विशेष महत्व है। हमारी पौराणिक मान्यताएं भी कहती हैं कि एकादशी व्रत से अद्भुत पुण्यफल प्राप्त होता है।

एकादशी का यह पावन व्रत आपके जीवन को और अधिक सार्थक बनाने में सहयोगी सिद्ध होगा। इसी विश्वास के साथ हम आपके लिए इस व्रत और पूजन से मिलने वाले 5 लाभों की जानकारी लेकर आए हैं। आइये, शुरू करते हैं-

पहला लाभ- कठिन लक्ष्य एवं कार्यों की सिद्धि

ये एकादशी व्रत एवं पूजन आपके सभी शुभ कार्यों एवं लक्ष्य की सिद्धि करेगा। इस व्रत के प्रभाव से आपके जीवन में सकारात्मकता का संचार होगा, जो आपके विचारों के साथ आपके कर्म को भी प्रभावित करेगा।

दूसरा लाभ- आर्थिक प्रगति एवं कर्ज से मुक्ति

इस एकादशी का व्रत और पूजन आर्थिक समृद्धि में भी सहायक है। यह आपके आय के साधन को स्थायी बनाने के साथ उसमें बढ़ोत्तरी देगा। अतः इस दिन विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी का पूजन अवश्य करें।

तीसरा लाभ- मानसिक शांति की प्राप्ति

इस एकादशी पर नारायण की भक्ति करने से आपको मानसिक सुख शांति के साथ ही परिवार में होने वाले वाद-विवादों से भी मुक्ति मिलेगी।

चौथा लाभ- पापकर्मों से मुक्ति

एकादशी तिथि के अधिदेवता भगवान विष्णु हैं। एकादशी पर उनकी पूजा अर्चना करने से आपको भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलेगा तथा उनकी कृपा से भूलवश किये गए पापों से भी मुक्ति मिलेगी।

पांचवा लाभ- मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति

श्री हरि को समर्पित इस तिथि पर व्रत अनुष्ठान करने से आपको मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम में स्थान प्राप्त होगा। इस व्रत का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है, इसीलिए जब आप यह व्रत करेंगे, तो इसके फलस्वरूप आपको आपके कर्मों का पुण्य फल अवश्य प्राप्त होगा, जो आपको मोक्ष की ओर ले जाएगा।

तो यह थे एकादशी के व्रत से होने वाले लाभ, आशा है आपका एकादशी का यह व्रत अवश्य सफल होगा और आपको इस व्रत के सम्पूर्ण फल की प्राप्ति होगी।

पापमोचिनी एकादशी व्रत न करनें वाले कैसे करें विष्णु जी को प्रसन्न

एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित महत्वपूर्ण तिथि है, और इस दिन किये गए व्रत और पूजा से प्रसन्न होकर श्री हरि आपकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। परन्तु कुछ भक्तगण ऐसे भी हैं जो कि व्रत करने में सक्षम नहीं है। इसीलिए आज के हमारे इस विशेष लेख में हम आपको बताने वाले हैं कि एकादशी पर जो भक्तजन व्रत का पालन नहीं कर पा रहे हैं, वे भगवान विष्णु को कैसे प्रसन्न करें -

सर्वप्रथम आसान पूजा करें

  • सर्वप्रथम प्रातः जल्दी उठकर नित्यकर्मों से निवृत होकर स्नान करें। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद सूर्यनारायण को शुद्ध जल से अर्घ्य दें और संकल्प लें कि ‘हे प्रभु! मैं इस पावन एकादशी व्रत का पालन करने में सक्षम नहीं हूँ, लेकिन इस शुभ दिन पूर्ण श्रद्धा से आपकी पूजा करने के लिए समर्पित हूँ।
  • इसके बाद अपने घर में देवस्थान पर पूजा की तैयारी शुरू करें।
  • पूजा स्थल और यहां विराजमान सभी देवी देवताओं की प्रतिमा और तस्वीर को साफ करें, और यहां गंगा जल की कुछ बूंदे छिड़के।
  • पूजा स्थल में उपस्थित सभी देवताओं पर गंगा जल छिड़क कर स्नान करवाएं।
  • अब पूजा घर में एक दीप जलाएं।
  • इसके बाद सभी देवी देवताओं को और भगवान विष्णु को हल्दी-कुमकुम चन्दन-अक्षत आदि से तिलक करें।
  • अब पूजा स्थल पर धूप-अगरबत्ती जलाएं और इसके पश्चात् भोग में कुछ तुलसी की पत्तियां रखकर इसे भगवान को अर्पित करें।
  • विष्णु मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का 11 बार या 108 बार जप करें।
  • इसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें। मंत्र और आरती आप श्री मंदिर के माध्यम से भी सुन सकते हैं।
  • अब भगवान विष्णु सहित सभी देवी- देवताओं को प्रणाम करें। और आपकी मनोकामना की पूर्ति की प्रार्थना करते हुए इस पूजा को संपन्न करें।

यदि यह संभव न हों तो पास के मंदिर में जरूर जाएं

अगर आप घर पर किसी भी प्रकार से पूजा करने में भी असमर्थ हैं तो आप निकटम विष्णु जी के मंदिर में जाकर भी उनका ध्यान कर सकते हैं। यदि संभव हो पाए तो आप एकादशी पर मंदिर में भोग और दक्षिणा अर्पित करें।

एकादशी के दान-पुण्य से मिलेगी श्री हरि की कृपा

इस दिन किसी जरूरतमंद को अपनी क्षमता के अनुसार अन्न दान या वस्त्रदान अवश्य करें। यह दान आप किसी व्यक्ति के साथ ही पशु को भी कर सकते हैं, क्योंकि दीनबंधु दीनानाथ कण कण में विद्यमान हैं। आप गौशाला जाकर गौ माता को भी चारा खिला सकते हैं। इसके अलावा आप अन्य पशुओं को भी खाना खिला सकते हैं। इस प्रकार दान-पुण्य करते हुए हरि नाम के जाप के साथ अपना दिन व्यतीत करें।

श्री मंदिर पर करें पूजा

अगर आप एकादशी पर मंदिर भी नहीं जा पा रहें हैं, दान भी नहीं कर पा रहे हैं तो अपने फोन में ही श्री मंदिर पर भगवान विष्णु का मंदिर स्थापित करके उनका ध्यान कर सकते हैं। साथ ही भगवान जी की आरती, चालीसा, भजन और मंत्र भी आप इस दिन अवश्य सुनें।

तो भक्तों इस तरह एकादशी की तिथि व्यतीत करने से आप बिना व्रत किये भी भगवान विष्णु का आशीर्वाद और इस शुभ तिथि का पुण्य फल प्राप्त करेंगे।

सावधान! एकादशी पर रखें इन 6 बातों का विशेष ध्यान

दोस्तों! हिन्दू धर्म में एक वर्ष में आने वाली लगभग चौबीस एकादशी तिथियां होती हैं। हर एकादशी जितनी पुण्य फलदायक होती है, उतना ही इसे कठिनतम व्रतों में से एक माना जाता है। एकादशी के दिन जाने-अनजाने में की गई भूल-चूक से आपका व्रत और पूजन पूरी तरह से निष्फल हो सकता है, इसलिए हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी सावधानियों के बारे में जो आपको इस विशेष दिन पर बरतनी चाहिए।

प्रातः देर तक न सोएं

एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें, सूर्योदय के काफी समय बाद तक न सोएं। एकादशी के दिन देर तक सोने से आपके घर में दरिद्रता का आगमन हो सकता है। इस दिन देर तक सोने से जो सफलता आप पाना चाहते हैं, उसमें आप पिछड़ सकते हैं। यदि किसी कारण से व्रत नहीं भी रख पा रहे हैं, तो भी जल्दी उठकर दैनिक कार्य शुरू करें।

उपाय : सुबह जल्दी उठें, स्नान करके सूर्यदेव को अर्घ्य दें।

चावल का सेवन न करें

एकादशी के दिन चावल के सेवन को खास रूप से वर्जित माना जाता है। यदि आप पूरे दिन का व्रत छोड़कर एकासना व्रत अर्थात एक समय भोजन करने वाला व्रत कर रहे हैं, तो ध्यान रहें, इसमें चावल या चावल से बनी कोई भी खाद्य वस्तु न हो। कई किंवदंतियां बताती हैं कि एकादशी पर चावल खाने से यह अति फलदायी व्रत निष्फल हो जाता है।

उपाय : दूध, फल, कंद, कुट्टू के आटे से बने खाद्य आप इस दिन खा सकते हैं।

तामसिक भोजन को त्यागें

एकादशी के पूरे दिन आप तामसिक भोजन जैसे कि लहसुन-प्याज आदि से बना मसालेदार खाना, मांस, मदिरा, रात का बचा जूठा भोजन आदि का सेवन न करें। ऐसा करने से आप इस व्रत और आपके द्वारा किये जा रहे पूजन-अनुष्ठान का पूरा लाभ नहीं प्राप्त कर पाएंगे। इस दिन तामसिक भोजन का सेवन आपकी पाचन क्रिया को भी प्रभावित कर सकता है, इसलिए इससे सावधान रहें। साथ ही कोशिश करें कि आपके घर में भी किसी अन्य सदस्य द्वारा मांस-मदिरा का सेवन न किया जाए।

उपाय : बिना लहसुन-प्याज से बना सादा शाकाहारी भोजन ग्रहण करें।

परनिंदा न करें

वैसे तो परनिंदा करना किसी पाप से कम नहीं है, और रोज ही आपको ऐसा करने से बचना चाहिए, लेकिन एकादशी के दिन यह कार्य भूलकर भी न करें। किसी का दिल न दुखाएं और झूठ न बोलें। भगवान विष्णु को दीनबंधु कहा जाता है, और वे हर कण में विद्यमान हैं। इसीलिए इस शुभ दिन पर कम बोलें लेकिन अच्छा ही बोलें।

उपाय : विचारों एवं वाणी पर संयम रखें। साथ ही इस दिन दान करें, यह कर्म आपको सीधे ईश्वर से जोड़ता है।

बाल और नाख़ून न काटें

एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाएं और नाख़ून काटने से भी बचें। यह दोनों ही काम आपके घर में सुख-संपन्नता को बाधित करते हैं, और ऐसा करने से आपके घर में क्लेश हो सकता है। साथ ही आप अपने शरीर की स्वच्छता का ध्यान रखें, स्नान करें लेकिन बाल नहीं धोएं। यदि यह बाल और नाख़ून आपके भोग और भोजन में मिल जाए तो उसे दूषित कर सकते हैं।

उपाय : दशमी या द्वादशी पर पारण के बाद बाल कटवाएं या नाख़ून काटें।

एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य न तोड़ें

एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। इस व्रत के पालन में बहुत सावधानी बरतें। मन में कोई भी व्याभिचार नहीं आने दें। भगवान विष्णु बहुत दयालु हैं, लेकिन आपका यह कृत्य आपको भगवान विष्णु के कोप का भागी बना सकता है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको इस व्रत का सम्पूर्ण लाभ तो मिलेगा ही, साथ ही आपके मन और विचार भी शुद्ध होंगे।

उपाय : इस दिन मंदिर जाएं और जितना संभव हो, प्रभुनाम का स्मरण करें।

तो यह थी वह सावधानियां और उपाय जिनका ध्यान आपको एकादशी पर रखना है, इसके अलावा कोई भूल-चूक हो जाए तो आप श्री हरि से क्षमा अवश्य मांगे।

एकादशी की व्रत कथा

वर्ष भर में आने वाली 24 एकादशी तिथियों में पापमोचिनी एकादशी का विशेष महत्व माना गया है। पापमोचिनी एकादशी पर व्रत की कथा सुनने मात्र से ही जन्म-जन्मांतर के बुरे कर्मों के प्रभाव से मुक्ति मिलती है, जीवन भर सुख समृद्धि बनी रहती है, और मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है।

तो चलिए सुनते हैं पापमोचिनी एकादशी व्रत की यह पावन कथा

धार्मिक मान्यता के अनुसार पुरातन काल में चैत्ररथ नामक एक बहुत सुंदर वन था। इस जंगल में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या करते थे। इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं और देवताओं के साथ विचरण करते थे। मेधावी ऋषि शिव भक्त थे जबकि अप्सराएं कामदेव की अनुचरी थीं। एक समय कामदेव ने मेधावी ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए मंजू घोषा नामक अप्सरा को भेजा। उसने अपने नृत्य, गान और सौंदर्य से मेधावी मुनि का ध्यान भंग कर दिया। वहीं मुनि मेधावी भी मंजूघोषा पर मोहित हो गए। इसके बाद दोनों अनेक वर्षों तक साथ रहकर भोग-विलास में लिप्त रहे।

बहुत समय पश्चात् एक दिन जब मंजूघोषा ने पुनः स्वर्ग जाने के लिए अनुमति मांगी तो मेधावी ऋषि को अपनी भूल और तपस्या भंग होने का आत्मज्ञान हुआ, जिसके बाद क्रोधित होकर उन्होंने मंजूघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दिया। इसके पश्चात् अप्सरा ऋषि के पैरों में गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। मंजूघोषा के अनेकों बार विनती करने पर मेधावी ऋषि ने उसे पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने का उपाय बताया और कहा- इस व्रत को करने से तुम्हारे समस्त पापों का नाश हो जाएगा एवं तुम पुन: अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी।

अप्सरा को मुक्ति का मार्ग बताकर मेधावी ऋषि अपने पिता महर्षि च्यवन के पास पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने पिता से अपनी तपस्या भंग होने का कारण बताया, और ये भी कहा कि उन्होंने क्रोधित होकर उस अप्सरा को श्राप दे दिया। श्राप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा कि- ‘’पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया, ऐसा कर तुमने भी पाप कमाया है, इसलिए तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो।‘’

तब ऋषि मेधावी और मंजूघोषा ने विधि-विधान से पापमोचिनी एकादशी व्रत का पालन किया। जिसके फलस्वरूप उनके सारे पाप कर्म नष्ट हो गए। इसके पश्चात् मेधावी ऋषि पुनः तपस्या के लिए चले गए और मंजूघोषा को पिशाचिनी योनि से मुक्ति मिल गई।

तो यह थी पापमोचिनी एकादशी व्रत की कथा। हम कामना करते हैं कि इस पावन व्रत एवं कथा के प्रभाव से आपके समस्त पापकर्मों का नाश हो, और जीवन में सुख-सौभाग्य बना रहे।

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Published by Sri Mandir·February 24, 2025

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