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निर्जला एकादशी 2025

निर्जला एकादशी 2025 पर करें व्रत और उपासना, पाएं पापों से मुक्ति और विष्णु जी का आशीर्वाद। जानें तिथि, व्रत विधि, महत्व और पूजा का सही तरीका।

निर्जला एकादशी के बारे में

निर्जला एकादशी हिंदू धर्म की सबसे कठिन एकादशी मानी जाती है, जिसमें जल तक का सेवन वर्जित होता है। यह व्रत पापों के नाश और मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसका धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है।

निर्जला एकादशी 2025

वर्ष भर में आने वाली चौबीस एकादशी तिथियों में निर्जला एकादशी को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से साल भर में आने वाली सभी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त हो जाता है।

कब रखना है निर्जला एकादशी व्रत?

  • निर्जला एकादशी व्रत - 06 जून 2025, शुक्रवार (ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी)
  • एकादशी तिथि प्रारम्भ -06 जून 2025, शुक्रवार को 02:15 AM पर
  • एकादशी तिथि समापन 07 जून 2025, शनिवार को 04:47 AM पर
  • 7वाँ जून को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 01:39 पी एम से 04:26 पी एम
  • पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय - 11:25 ए एम

वैष्णव निर्जला एकादशी

  • वैष्णव निर्जला एकादशी शनिवार, जून 7, 2025 को
  • 8वाँ जून को, वैष्णव एकादशी के लिए पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 05:19 ए एम से 07:17 ए एम
  • पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - 07:17 ए एम
  • एकादशी तिथि प्रारम्भ - जून 06, 2025 को 02:15 ए एम बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त - जून 07, 2025 को 04:47 ए एम बजे

निर्जला एकादशी के अन्य शुभ मुहूर्त

मुहूर्तसमय
ब्रह्म मुहूर्त 03:58 ए एम से 04:39 ए एम
प्रातः सन्ध्या 04:19 ए एम से 05:19 ए एम
अभिजित मुहूर्त 11:48 ए एम से 12:44 पी एम
विजय मुहूर्त 02:35 पी एम से 03:30 पी एम
गोधूलि मुहूर्त 07:11 पी एम से 07:31 पी एम
सायाह्न सन्ध्या 07:12 पी एम से 08:13 पी एम
अमृत काल 02:26 ए एम, जून 07 से 04:14 ए एम, जून 07
निशिता मुहूर्त 11:55 पी एम से 12:36 ए एम, जून 07
रवि योग  05:19 ए एम से 06:34 ए एम

निर्जला एकादशी क्या है? जानें महत्व

भक्तों नमस्कार! श्री मंदिर पर आपका स्वागत है।

हर वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। ऐसी मान्यता कि इस दिन निर्जल रहकर व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है, और मृत्यु के पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति होती है। तो चलिए जानते हैं कि निर्जला एकादशी क्या है, ये क्यों मनाई जाती है, और इसका महत्व क्या है-

निर्जला एकादशी क्या है?

हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता है। जातक इस व्रत की शुरुआत एकादशी के सूर्योदय से निर्जल रहने के साथ करते हैं, और इसका समापन द्वादशी तिथि पर सूर्योदय के बाद किया जाता है। ये व्रत बिना पानी पिये किया जाता है, इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं।

जातक इस व्रत को भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए करते हैं। इस व्रत से जुड़ी कथा के अनुसार द्वापर में भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था, इसी कारण इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

निर्जला एकादशी व्रत का महत्व क्या है?

निर्जला एकादशी सभी एकादशी तिथियों में श्रेष्ठ मानी गई है, इसलिए इस व्रत का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस तिथि पर व्रत रखने से वर्ष भर में आने वाली सभी एकादशियों का फल मिलता है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के समय में पांडु के पुत्र भीमसेन ने महर्षि वेद व्यास से पूछा- हे महर्षि! ‘मेरे कुटुंब के सभी सदस्य एकादशी का व्रत करते हैं। मैं भी इस व्रत का पालन करना चाहता हूं, किंतु मुझसे भूख सहन नहीं होती, कृपया मुझे कोई उपाय सुझाए’।

इस पर महर्षि वेद व्यास ने कहा ‘हे भीम! तुम्हें ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए, इस व्रत में अन्न और जल का त्याग करना होता है। और इस एक व्रत को करने से ही तुम्हें वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होगा और सभी पापों से मुक्ति मिलेगी। इस प्रकार भीम ने इस व्रत का पालन कर सभी पापों से मुक्ति पाई।

भक्तों, ये थी निर्जला एकादशी के महत्व से जुड़ी जानकारी। हमारी कामना है कि भगवान विष्णु की कृपा आप पर सदैव बनी रहे। निर्जला एकादशी से जुड़ी कथा भी श्री मंदिर पर उपलब्ध है, इस दिन का संपूर्ण फल पाने लिए आप उसका श्रवण अवश्य करें। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व भारत के महान विभूतियों से जुड़ी जानकारियां पाते रहने के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।

एकादशी की पूजा सामग्री

सनातन व्रतों में एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन संपूर्ण विधि और उचित सामग्री के साथ पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है। एकादशी पर की जाने वाली पूजा की सामग्री कुछ इस प्रकार है -

  • चौकी
  • पीला वस्त्र
  • गंगाजल
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा
  • गणेश जी की प्रतिमा
  • अक्षत
  • जल का पात्र
  • पुष्प
  • माला
  • मौली या कलावा
  • जनेऊ
  • धूप
  • दीप
  • हल्दी
  • कुमकुम
  • चन्दन
  • अगरबत्ती
  • तुलसीदल
  • पञ्चामृत का सामान (दूध, घी, दही, शहद और मिश्री)
  • मिष्ठान्न
  • ऋतुफल
  • घर में बनाया गया नैवेद्य

नोट - गणेश जी की प्रतिमा के स्थान पर आप एक सुपारी पर मौली लपेटकर इसे गणेशजी के रूप में पूजा में विराजित कर सकते हैं।

इस सामग्री के द्वारा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है

निर्जला एकादशी की पूजा विधि

हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस लेख में आप एकादशी की पूजा की तैयारी एवं विधि जानेंगे।

पूजा की तैयारी

  • एकादशी के दिन व्रत करने वाले जातक दशमी तिथि की शाम में व्रत और पूजन का संकल्प लें।
  • दशमी में रात्रि के भोजन के बाद से कुछ भी अन्न या एकादशी व्रत में निषेध चीजों का सेवन न करें।
  • एकादशी के दिन प्रातःकाल उठें, और किसी पेड़ की टहनी से दातुन करें।
  • इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें। स्नान करते समय पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
  • स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। स्वयं को चन्दन का तिलक करें।
  • अब भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य दें और नमस्कार करते हुए, आपके व्रत और पूजा को सफल बनाने की प्रार्थना करें।
  • अब पूजा करने के लिए सभी सामग्री इकट्ठा करें और पूजा शुरू करें।

एकादशी की पूजा विधि

  • सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करके इस स्थान पर एक चौकी स्थापित करें, और इसे गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें।
  • इसके बाद चौकी पर एक पीला वस्त्र बिछाएं। इस चौकी के दायीं ओर एक दीप प्रज्वलित करें।

(सबसे पहले दीप प्रज्वलित इसीलिए किया जाता है, ताकि अग्निदेव आपकी पूजा के साक्षी बनें)

  • चौकी के सामने एक साफ आसन बिछाकर बैठ जाएं। जलपात्र से अपने बाएं हाथ से दाएं हाथ में जल लेकर दोनों हाथों को शुद्ध करें। अब स्वयं को तिलक करें।
  • अब चौकी पर अक्षत के कुछ दानें आसन के रूप में डालें और इस पर गणेश जी को विराजित करें।
  • इसके बाद चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें।
  • अब स्नान के रूप में एक जलपात्र से पुष्प की सहायता से जल लेकर भगवान गणेश और विष्णु जी पर छिड़कें।
  • भगवान गणेश को हल्दी-कुमकुम-अक्षत और चन्दन से तिलक करें।
  • इसके बाद वस्त्र के रूप में उन्हें जनेऊ अर्पित करें। इसके बाद पुष्प अर्पित करके गणपति जी को नमस्कार करें।
  • भगवान विष्णु को रोली-चन्दन का तिलक करें। कुमकुम, हल्दी और अक्षत भी चढ़ाएं।
  • अब ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करते हुए श्रीहरि को पुष्प, जनेऊ और माला अर्पित करें।
  • भगवान विष्णु को पंचामृत में तुलसीदल डालकर अर्पित करें। चूँकि भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है इसीलिए भगवान के भोग में तुलसी को अवश्य शामिल करें।

(ध्यान दें गणेश जी को तुलसी अर्पित न करें)

  • इसके बाद भोग में मिष्ठान्न और ऋतुफल अर्पित करें।
  • विष्णु सहस्त्रनाम या श्री हरि स्त्रोतम का पाठ करें, इसे आप श्री मंदिर के माध्यम से सुन भी सकते हैं।
  • अंत में भगवान विष्णु की आरती करें। अब सभी लोगों में भगवान को चढ़ाया गया भोग प्रसाद के रूप में वितरित करें।

इस तरह आपकी एकादशी की पूजा संपन्न होगी। इस पूजा को करने से आपको भगवान विष्णु की कृपा निश्चित रूप से प्राप्त होगी। साथ ही यह दिन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए भी विशेष है।

एकादशी व्रत न करनें वाले कैसे करें विष्णु जी को प्रसन्न

एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित महत्वपूर्ण तिथि है, और इस दिन किये गए व्रत और पूजा से प्रसन्न होकर श्री हरि आपकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। परन्तु कुछ भक्तगण ऐसे भी हैं जो कि व्रत करने में सक्षम नहीं है। इसीलिए आज के हमारे इस विशेष लेख में हम आपको बताने वाले हैं कि एकादशी पर जो भक्तजन व्रत का पालन नहीं कर पा रहे हैं, वे भगवान विष्णु को कैसे प्रसन्न करें -

सर्वप्रथम आसान पूजा करें

  • सर्वप्रथम प्रातः जल्दी उठकर नित्यकर्मों से निवृत होकर स्नान करें। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद सूर्यनारायण को शुद्ध जल से अर्घ्य दें और संकल्प लें कि ‘हे प्रभु! मैं इस पावन एकादशी व्रत का पालन करने में सक्षम नहीं हूँ, लेकिन इस शुभ दिन पूर्ण श्रद्धा से आपकी पूजा करने के लिए समर्पित हूँ।
  • इसके बाद अपने घर में देवस्थान पर पूजा की तैयारी शुरू करें।
  • पूजा स्थल और यहां विराजमान सभी देवी देवताओं की प्रतिमा और तस्वीर को साफ करें, और यहां गंगा जल की कुछ बूंदे छिड़के।
  • पूजा स्थल में उपस्थित सभी देवताओं पर गंगा जल छिड़क कर स्नान करवाएं।
  • अब पूजा घर में एक दीप जलाएं।
  • इसके बाद सभी देवी देवताओं को और भगवान विष्णु को हल्दी-कुमकुम चन्दन-अक्षत आदि से तिलक करें।
  • अब पूजा स्थल पर धूप-अगरबत्ती जलाएं और इसके पश्चात् भोग में कुछ तुलसी की पत्तियां रखकर इसे भगवान को अर्पित करें।
  • विष्णु मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का 11 बार या 108 बार जप करें।
  • इसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें। मंत्र और आरती आप श्री मंदिर के माध्यम से भी सुन सकते हैं।
  • अब भगवान विष्णु सहित सभी देवी- देवताओं को प्रणाम करें। और आपकी मनोकामना की पूर्ति की प्रार्थना करते हुए इस पूजा को संपन्न करें।

यदि यह संभव हों तो पास के मंदिर में जरूर जाएं

अगर आप घर पर किसी भी प्रकार से पूजा करने में भी असमर्थ हैं तो आप निकटम विष्णु जी के मंदिर में जाकर भी उनका ध्यान कर सकते हैं। यदि संभव हो पाए तो आप एकादशी पर मंदिर में भोग और दक्षिणा अर्पित करें। इसमें आप श्री मंदिर पर उपलब्ध चढ़ावा सेवा का लाभ भी ले सकते हैं।

एकादशी के दान-पुण्य से मिलेगी श्री हरि की कृपा

इस दिन किसी जरूरतमंद को अपनी क्षमता के अनुसार अन्न दान या वस्त्रदान अवश्य करें। यह दान आप किसी व्यक्ति के साथ ही पशु को भी कर सकते हैं, क्योंकि दीनबंधु दीनानाथ कण कण में विद्यमान हैं। आप गौशाला जाकर गौ माता को भी चारा खिला सकते हैं। इसके अलावा आप अन्य पशुओं को भी खाना खिला सकते हैं। इस प्रकार दान-पुण्य करते हुए हरि नाम के जाप के साथ अपना दिन व्यतीत करें।

श्री मंदिर पर करें पूजा

अगर आप एकादशी पर मंदिर भी नहीं जा पा रहें हैं, दान भी नहीं कर पा रहे हैं तो अपने फोन में ही श्री मंदिर पर भगवान विष्णु का मंदिर स्थापित करके उनका ध्यान कर सकते हैं। साथ ही भगवान जी की आरती, चालीसा, भजन और मंत्र भी आप इस दिन अवश्य सुनें। तो भक्तों इस तरह एकादशी की तिथि व्यतीत करने से आप बिना व्रत किये भी भगवान विष्णु का आशीर्वाद और इस शुभ तिथि का पुण्य फल प्राप्त करेंगे।

एकादशी पर विशेष मंत्र

एकादशी के विशेष मंत्र व आरती

एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष मंत्रों का जाप करने से आपको इस व्रत का सम्पूर्ण फल प्राप्त होगा।

कुछ जातक एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, लेकिन यदि वे भी पूजा के समय भगवान विष्णु का स्मरण करके नीचे दिए गए मंत्रों का जाप करते हैं, तो वो भगवान विष्णु की कृपा का पात्र अवश्य बनेंगे।

इस लेख में हम ये जानेंगे!

  • ॐ नमो एवं इसके लाभ
  • कृष्णाय वासुदेवाय एवं इसके लाभ
  • नारायणाय विद्महे एवं इसके लाभ
  • शान्ताकारं भुजगशयनं एवं इसके लाभ
  • ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय एवं इसके लाभ

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः

मंत्र का लाभ

यह मंत्र सर्वोत्तम विष्णु मंत्र माना जाता है। एकादशी के दिन 108 बार इस मंत्र का जाप करने से भगवान अति प्रसन्न होते हैं, और अपने भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।

प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।

मंत्र का लाभ

जीवन में आंतरिक, पारिवारिक क्लेश दूर हो जाते हैं। मानसिक दुविधाओं से निजात पाने के लिए इस मंत्र का जाप करते हैं।

नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि ।

तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥

मंत्र का लाभ

इस मंत्र के जाप से पारिवारिक कलह दूर होती है, और घर में सुख शांति और समृद्धि आती है।

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्

वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

मंत्र का लाभ

इस मंत्र के जाप से मनुष्य निडर होता है।

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वन्तरायेः

अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय्

त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप

श्रीधनवन्तरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः ॥

मंत्र का लाभ

इस मंत्र के जाप से व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।

एकादशी व्रत से मिलने वाले 5 लाभ

भक्तों, भगवान विष्णु के एकादशी व्रत की महिमा इतनी दिव्य है, कि इसके प्रभाव से मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का भी विशेष महत्व है। हमारी पौराणिक मान्यताएं भी कहती हैं कि एकादशी व्रत से अद्भुत पुण्यफल प्राप्त होता है।

एकादशी का यह पावन व्रत आपके जीवन को और अधिक सार्थक बनाने में सहयोगी सिद्ध होगा। इसी विश्वास के साथ हम आपके लिए इस व्रत और पूजन से मिलने वाले 5 लाभों की जानकारी लेकर आए हैं। आइये, शुरू करते हैं-

पहला लाभ- कठिन लक्ष्य एवं कार्यों की सिद्धि

ये एकादशी व्रत एवं पूजन आपके सभी शुभ कार्यों एवं लक्ष्य की सिद्धि करेगा। इस व्रत के प्रभाव से आपके जीवन में सकारात्मकता का संचार होगा, जो आपके विचारों के साथ आपके कर्म को भी प्रभावित करेगा।

दूसरा लाभ- आर्थिक प्रगति एवं कर्ज से मुक्ति

इस एकादशी का व्रत और पूजन आर्थिक समृद्धि में भी सहायक है। यह आपके आय के साधन को स्थायी बनाने के साथ उसमें बढ़ोत्तरी देगा। अतः इस दिन विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी का पूजन अवश्य करें।

तीसरा लाभ- मानसिक शांति की प्राप्ति

इस एकादशी पर नारायण की भक्ति करने से आपको मानसिक सुख शांति के साथ ही परिवार में होने वाले वाद-विवादों से भी मुक्ति मिलेगी।

चौथा लाभ- पापकर्मों से मुक्ति

एकादशी तिथि के अधिदेवता भगवान विष्णु हैं। एकादशी पर उनकी पूजा अर्चना करने से आपको भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलेगा तथा उनकी कृपा से भूलवश किये गए पापों से भी मुक्ति मिलेगी।

पांचवा लाभ- मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति

श्री हरि को समर्पित इस तिथि पर व्रत अनुष्ठान करने से आपको मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम में स्थान प्राप्त होगा। इस व्रत का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है, इसीलिए जब आप यह व्रत करेंगे, तो इसके फलस्वरूप आपको आपके कर्मों का पुण्य फल अवश्य प्राप्त होगा, जो आपको मोक्ष की ओर ले जाएगा।

तो यह थे एकादशी के व्रत से होने वाले लाभ, आशा है आपका एकादशी का यह व्रत अवश्य सफल होगा और आपको इस व्रत के सम्पूर्ण फल की प्राप्ति होगी।

सावधान! एकादशी पर रखें इन 6 बातों का विशेष ध्यान

दोस्तों! हिन्दू धर्म में एक वर्ष में आने वाली लगभग चौबीस एकादशी तिथियां होती हैं। हर एकादशी जितनी पुण्य फलदायक होती है, उतना ही इसे कठिनतम व्रतों में से एक माना जाता है। एकादशी के दिन जाने-अनजाने में की गई भूल-चूक से आपका व्रत और पूजन पूरी तरह से निष्फल हो सकता है, इसलिए हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी सावधानियों के बारे में जो आपको इस विशेष दिन पर बरतनी चाहिए।

प्रातः देर तक न सोएं

एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें, सूर्योदय के काफी समय बाद तक न सोएं। एकादशी के दिन देर तक सोने से आपके घर में दरिद्रता का आगमन हो सकता है। इस दिन देर तक सोने से जो सफलता आप पाना चाहते हैं, उसमें आप पिछड़ सकते हैं। यदि किसी कारण से व्रत नहीं भी रख पा रहे हैं, तो भी जल्दी उठकर दैनिक कार्य शुरू करें।

उपाय : सुबह जल्दी उठें, स्नान करके सूर्यदेव को अर्घ्य दें।

चावल का सेवन न करें

एकादशी के दिन चावल के सेवन को खास रूप से वर्जित माना जाता है। यदि आप पूरे दिन का व्रत छोड़कर एकासना व्रत अर्थात एक समय भोजन करने वाला व्रत कर रहे हैं, तो ध्यान रहें, इसमें चावल या चावल से बनी कोई भी खाद्य वस्तु न हो। कई किंवदंतियां बताती हैं कि एकादशी पर चावल खाने से यह अति फलदायी व्रत निष्फल हो जाता है।

उपाय : दूध, फल, कंद, कुट्टू के आटे से बने खाद्य आप इस दिन खा सकते हैं।

तामसिक भोजन को त्यागें

एकादशी के पूरे दिन आप तामसिक भोजन जैसे कि लहसुन-प्याज आदि से बना मसालेदार खाना, मांस, मदिरा, रात का बचा जूठा भोजन आदि का सेवन न करें। ऐसा करने से आप इस व्रत और आपके द्वारा किये जा रहे पूजन-अनुष्ठान का पूरा लाभ नहीं प्राप्त कर पाएंगे। इस दिन तामसिक भोजन का सेवन आपकी पाचन क्रिया को भी प्रभावित कर सकता है, इसलिए इससे सावधान रहें। साथ ही कोशिश करें कि आपके घर में भी किसी अन्य सदस्य द्वारा मांस-मदिरा का सेवन न किया जाए।

उपाय : बिना लहसुन-प्याज से बना सादा शाकाहारी भोजन ग्रहण करें।

परनिंदा न करें

वैसे तो परनिंदा करना किसी पाप से कम नहीं है, और रोज ही आपको ऐसा करने से बचना चाहिए, लेकिन एकादशी के दिन यह कार्य भूलकर भी न करें। किसी का दिल न दुखाएं और झूठ न बोलें। भगवान विष्णु को दीनबंधु कहा जाता है, और वे हर कण में विद्यमान हैं। इसीलिए इस शुभ दिन पर कम बोलें लेकिन अच्छा ही बोलें।

उपाय : विचारों एवं वाणी पर संयम रखें। साथ ही इस दिन दान करें, यह कर्म आपको सीधे ईश्वर से जोड़ता है।

बाल और नाख़ून न काटें

एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाएं और नाख़ून काटने से भी बचें। यह दोनों ही काम आपके घर में सुख-संपन्नता को बाधित करते हैं, और ऐसा करने से आपके घर में क्लेश हो सकता है। साथ ही आप अपने शरीर की स्वच्छता का ध्यान रखें, स्नान करें लेकिन बाल नहीं धोएं। यदि यह बाल और नाख़ून आपके भोग और भोजन में मिल जाए तो उसे दूषित कर सकते हैं।

उपाय : दशमी या द्वादशी पर पारण के बाद बाल कटवाएं या नाख़ून काटें।

एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य न तोड़ें

एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। इस व्रत के पालन में बहुत सावधानी बरतें। मन में कोई भी व्याभिचार नहीं आने दें। भगवान विष्णु बहुत दयालु हैं, लेकिन आपका यह कृत्य आपको भगवान विष्णु के कोप का भागी बना सकता है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको इस व्रत का सम्पूर्ण लाभ तो मिलेगा ही, साथ ही आपके मन और विचार भी शुद्ध होंगे।

उपाय : इस दिन मंदिर जाएं और जितना संभव हो, प्रभुनाम का स्मरण करें।

तो यह थी वह सावधानियां और उपाय जिनका ध्यान आपको एकादशी पर रखना है, इसके अलावा कोई भूल-चूक हो जाए तो आप श्री हरि से क्षमा अवश्य मांगे।

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Published by Sri Mandir·May 28, 2025

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