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मत्स्य द्वादशी 2025

मत्स्य द्वादशी 2025 की तिथि, कथा, पूजा विधि और महत्व जानें। इस शुभ पर्व पर धर्म-कर्म और पूजन से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करें।

मत्स्य द्वादशी के बारे में

मत्स्य द्वादशी भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार को समर्पित शुभ तिथि है। इस दिन भक्त व्रत, पूजन और जल से जुड़े दान-पुण्य करते हैं। मान्यता है कि मत्स्य अवतार की उपासना से जीवन के संकट दूर होते हैं और मन में शांति तथा सौभाग्य बढ़ता है।

मत्स्य द्वादशी की सम्पूर्ण जानकारी

मत्स्य द्वादशी भगवान विष्णु के प्रथम अवतार मत्स्य अवतार को समर्पित एक अत्यंत पावन तिथि है। यह व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन श्रद्धापूर्वक पूजा करने से घर-परिवार पर आने वाले संकट दूर होते हैं और भक्तों को सुख-समृद्धि एवं संरक्षण प्राप्त होता है।

मत्स्य द्वादशी कब है?

मत्स्य द्वादशी मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष यह 02 दिसंबर 2025, मंगलवार को मनाई जाएगी।

  • मत्स्य द्वादशी 02 दिसंबर 2025, मंगलवार को
  • 3वाँ दिसम्बर को, द्वादशी पारण समय - 06:28 ए एम से 08:36 ए एम
  • पारण के दिन द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगी।
  • द्वादशी तिथि प्रारम्भ - दिसम्बर 01, 2025 को 07:01 पी एम बजे
  • द्वादशी तिथि समाप्त - दिसम्बर 02, 2025 को 03:57 पी एम बजे

इस दिन के अन्य शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:41 ए एम से 05:34 ए एम

प्रातः सन्ध्या

05:07 ए एम से 06:27 ए एम

अभिजित मुहूर्त

11:26 ए एम से 12:09 पी एम

विजय मुहूर्त

01:34 पी एम से 02:17 पी एम

गोधूलि मुहूर्त

05:05 पी एम से 05:32 पी एम

सायाह्न सन्ध्या

05:07 पी एम से 06:28 पी एम

अमृत काल

02:23 पी एम से 03:49 पी एम

निशिता मुहूर्त

11:21 पी एम से 12:14 ए एम, दिसम्बर 03

विशेष योग

सर्वार्थ सिद्धि योग 

06:27 ए एम से 08:51 पी एम

सिद्धि योग  

06:27 ए एम से 08:51 पी एम

रवि योग  

08:51 पी एम से 01:22 ए एम, दिसम्बर 03

क्या है मत्स्य द्वादशी?

मत्स्य द्वादशी भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की स्मृति में मनाई जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर दैत्य हयग्रीव से चारों वेदों को वापस प्राप्त किया था। यह अवतार सृष्टि की रक्षा और ज्ञान संरक्षण का प्रतीक है।

क्यों मनाते हैं मत्स्य द्वादशी?

मत्स्य द्वादशी मनाने का मुख्य उद्देश्य -

  • भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार का स्मरण
  • संसार के कल्याण का संकल्प
  • पापों का नाश
  • परिवार को विपत्तियों से सुरक्षा
  • आरोग्य और ज्ञान की प्राप्ति

माना जाता है कि इस व्रत से जीवन में आ रही रुकावटें दूर होती हैं और मनुष्य को सत्कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।

मत्स्य द्वादशी का महत्व

  • मत्स्य द्वादशी का धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व बेहद गहरा है -
  • यह दिन ज्ञान, धर्म और सृष्टि की रक्षा का प्रतीक है।
  • मत्स्य द्वादशी व्रत करने से घर में शांति, समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है।
  • इस व्रत से कलह, रोग और बाधाओं का नाश होता है।
  • भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • भक्तों को पापनाश और मोक्ष प्राप्ति का फल मिलता है।

मत्स्य द्वादशी पर किसकी पूजा करें?

इस दिन मुख्य रूप से पूजा की जाती है:

  • भगवान विष्णु
  • मत्स्य अवतार स्वरूप श्रीहरि
  • साथ ही तुलसी, शंख और पीले पुष्प का विशेष महत्व होता है।

मत्स्य द्वादशी पर आसानी से करें पूजा

  • इस दिन प्रातः काल उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत हो जाएं।
  • इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें और घर के मंदिर को भी स्वच्छ कर लें।
  • अब मंदिर में गंगाजल का छिड़काव करें और दीप प्रज्वलित करें।
  • इसके पश्चात् भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को चंदन से तिलक करें, साथ ही मंदिर में स्थापित सभी अन्य देवी-देवताओं को हल्दी-कुमकुम या चंदन से तिलक करें।
  • अब भगवान विष्णु को अक्षत अर्पित करें।
  • अक्षत के बाद पीले पुष्प, पुष्प माला, भोग, पंचामृत, तुलसीदल, दक्षिणा आदि भगवान विष्णु को अर्पित करें।
  • आप विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी कर सकते हैं।
  • अब धूप, दीप दिखाते हुए भगवान विष्णु की आरती करें।
  • अंत में पूजा में हुई किसी गलती के लिए भगवान से क्षमायाचना करें और फिर प्रसाद वितरित करें।
  • अगर आप व्रत का पालन कर रहे हैं तो पूजा के बाद फलाहार ग्रहण करें।

मत्स्य द्वादशी के धार्मिक उपाय

  • भगवान विष्णु को पीले पुष्प अर्पित करें - सौभाग्य बढ़ता है।
  • तुलसी पर दीपक जलाने से घर में बरकत बढ़ती है।
  • गरीबों को भोजन कराना शुभ माना जाता है।
  • जल में तिल प्रवाहित करने से पितृदोष शांत होता है।
  • गाय को हरा चारा खिलाने से शुभ परिणाम मिलते हैं।

मत्स्य द्वादशी पूजा के लाभ

  • पापों का नाश
  • बाधाओं और कष्टों से मुक्ति
  • संतान सुख और परिवार की उन्नति
  • आर्थिक स्थिति में सुधार
  • घर में शांति और स्वास्थ्य
  • ईश्वर कृपा और आध्यात्मिक उन्नति

मत्स्य द्वादशी के दिन क्या करना चाहिए?

  • प्रातः जल्दी उठकर स्नान करना
  • विष्णु भगवान की विधि-विधान से पूजा
  • व्रत और सत्संग करना
  • दान-पुण्य, विशेषकर अनाज व वस्त्र दान
  • तुलसी पूजा और दीपदान
  • सत्य, सदाचार और संयम का पालन

मत्स्य द्वादशी के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

  • बिना स्नान किए पूजा न करें
  • अन्न ग्रहण करने से बचें (यदि व्रत है)
  • क्रोध, विवाद और नकारात्मक कार्यों से दूरी रखें
  • किसी भी प्रकार का हिंसक कार्य व मांसाहार वर्जित है
  • घर में झूठ, छल-कपट और अपशब्दों का प्रयोग न करें

मत्स्य द्वादशी का महत्व और लाभ

यह दिन इस बात का प्रतीक है कि जब भी धरती पर पापों का बोझ बढ़ेगा, भगवान विष्णु समस्त मानव जाति का कल्याण करेंगे। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं, जिससे कि भगवान विष्णु अपनी कृपादृष्टि उनपर बनाएं रखें। इस दिन उपवास और पूजा-अर्चना से व्यक्ति को सुख-समृद्धि एवं पुण्य की प्राप्ति होती है।

मत्स्य द्वादशी की कथा

एक समय की बात है, सतयुग में द्रविड़ देश नामक एक राज्य हुआ करता था जहाँ राजा सत्यव्रत राज करते थे। वे बहुत ही धार्मिक और उदार थे। एक बार वे हमेशा की तरह कृतमाला नदी में स्नान कर रहे थे। स्नान करने के लिए जब उन्होंने अंजलि में जल लिया तो देखा कि उनके हाथ में लिए जल में एक छोटी सी मछली तैर रही है। उन्होंने उस मछली को पुन: नदी में छोड़ दिया।

नदी में जाते ही वह मछली राजा से उसके प्राणों की रक्षा करने की प्रार्थना करने लगी। वह कहने लगी कि, “नदी के बड़े जीव छोटे जीवों को खा जाते हैं। वे मुझे भी मारकर खा जाएंगे! कृपया मेरे प्राणों की रक्षा करें।”

यह सुनकर राजा आश्चर्यचकित तो हुए, किन्तु उन्होंने मछली की रक्षा करने के लिए उसे अपने कमंडल में डाला और अपने साथ ले गए।

लेकिन एक ही रात्रि में उस मछली का शरीर इतना बढ़ गया कि उसके लिए कमंडल छोटा पड़ने लगा। तब राजा ने मछली को कमंडल से निकालकर मटके में डाल दिया, लेकिन वह मटका भी मछली के लिए छोटा पड़ने लगा।

तब राजा ने मछली को सरोवर में छोड़ दिया और निश्चिंत हो गए कि सरोवर में वह सुविधापूर्ण रहेगी, लेकिन एक ही रात्रि में वह मछली फिर इतनी बड़ी हो गई कि वह सरोवर भी उसके लिए छोटा पड़ने लगा। यह देखकर राजा को यह भान हो गया कि यह कोई साधारण मछली नहीं है।

फिर राजा ने उस मछली के समक्ष हाथ जोड़े और कहा कि, “मैं जान गया हूं कि निश्चय ही आप कोई साधारण मत्स्य नहीं हैं। आप कोई देवीय शक्ति हैं और यदि यह बात सत्य है, तो कृपा करके बताइए कि आपने मत्स्य का रूप क्यों धारण किया है?”

तब राजर्षि सत्यव्रत के समक्ष भगवान विष्णु प्रकट हुए और उनसे कहा कि, “हे राजन! हयग्रीव नामक एक दैत्य ने ब्रह्मा जी से चारों वेदों को चुरा लिया है, जिससे जगत में चारों ओर अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैला हुआ है। सृष्टि प्रलय की ओर बढ़ रही है। और इसकी रक्षा करने के लिए और हयग्रीव को मारने के लिए ही मैंने मत्स्य का रूप धारण किया है।”

फिर श्री हरि ने राजा को सचेत करते हुए कहा कि, “आज से सातवें दिन, भयानक जल प्रलय होगा और यह समस्त सृष्टि समुद्र में डूब जाएगी। ऐसा होने से पहले आप एक ऐसी नौका बनवाएं, जिसमें सब प्रकार के औषधि, बीज और सप्तर्षियों को लेकर आप उस नौका पर सवार हो सकें। प्रचंड आंधी के कारण जब वह नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य रूप में अवतरित होकर आप सभी की रक्षा करूंगा।”

राजा सत्यव्रत ने भगवान विष्णु के कहे अनुसार बिल्कुल वैसा ही किया। जब प्रलय आया तो भगवान मत्स्य ने उस नौका को बचाने हेतु उसे हिमालय की चोटी से बांध दिया। आज उसी चोटी को 'नौकाबंध' के नाम से जाना जाता है।

प्रलय का प्रकोप शांत होने पर भगवान श्री हरि ने दैत्य हयग्रीव का वध करके उससे चारों वेदों को पुनः प्राप्त किया और उन्हें ब्रह्माजी को सौंप दिया। इस प्रकार राजा सत्यव्रत को भी वेदों का ज्ञान प्राप्त हुआ। आगे चलकर राजा सत्यव्रत ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण होकर वैवस्वत मनु कहलाए। कहा जाता है कि मनु के वंशज ही आगे चलकर मनुष्य कहलाए।

इस कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने जिस दिन मत्स्य अवतार लेकर हयग्रीव दैत्य का वध किया था, उस दिन को मत्स्य द्वादशी के रूप में मनाया जाता है।

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Published by Sri Mandir·November 26, 2025

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