जानिए महाराणा प्रताप जयंती 2025 की तारीख, उनके जीवन की प्रेरणादायक घटनाएं और देश के लिए उनका बलिदान।
महाराणा प्रताप जयंती महान योद्धा और मेवाड़ के शौर्यवान राजा महाराणा प्रताप की जन्मतिथि पर मनाई जाती है। यह दिन उनके साहस, स्वतंत्रता प्रेम और मातृभूमि के लिए बलिदान को स्मरण करने का प्रतीक है।
भारत एक ऐसा देश है जिसका इतिहास अत्यंत स्वर्णिम रहा है। भारत भूमि पर कई ऐसे वीर सपूतों ने जन्म लिया है, जिनकी वीरता के किस्से अनंतकाल तक दोहराए जाते रहेंगे। आज हम एक ऐसे ही एक वीर सपूत महाराणा प्रताप की बात कर रहे हैं, जिन्होंने विश्व स्तर पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।
साल 2025 में महाराणा प्रताप जयन्ती 29 मई, बृहस्पतिवार को मनाई जायेगी
हालांकि तारीख के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था, इसलिए 9 मई को भी उनकी जयंती मनाई जाती है।
महाराणा प्रताप के जन्म को लेकर विद्वानों के अलग अलग मत देखने को मिलते हैं। कुछ इतिहासविद् कहते हैं कि महाराणा प्रताप राजस्थान के कुंभलगढ़ में जन्मे थे क्योंकि उनके पिता उदय सिंह वहीं शासन करते थे। वहीं कुछ विद्वानों के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म पाली में हुआ था क्योंकि उनकी माँ का पीहर पाली में ही था और मान्यता के अनुसार उस समय पहला बच्चा पीहर अर्थात् मायके में होता था। किंतु अधिकतर जानकार कुंभलगढ़ को ही महाराणा प्रताप का जन्म स्थल मानते हैं।
महाराणा प्रताप के पिता का नाम महाराणा उदय सिंह द्वितीय था और उनकी माता रानी जीववंत कंवर थीं। महाराणा प्रताप अपने पच्चीस भाइयों बहनों में से सबसे बड़े थे, इसीलिए उनके पिता के बाद राज्य का कार्यभार उन्हें सौंपा गया था। महाराणा प्रताप 54वें शासक बने। प्रताप अपने वंशजों में महाराणा की उपाधि प्राप्त करने वाले एकमात्र राजा थे।
महाराणा प्रताप ने अपनी बाल्यावस्था का अधिकांश समय भील समुदाय के साथ व्यतीत किया, और उन्हीं के साथ रहकर उन्होनें शस्त्र चलाने व युद्ध करने की कला सीखी थी। ऐसा कहा जाता है कि भील समुदाय में शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण लेने वालों को ‘कीका’ कहा जाता था, इसलिए महाराणा प्रताप जी को भी बचपन में कीका कहकर पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का एक अति प्रिय अश्व था, जिसका नाम चेतक था। चेतक के बारे में कहते हैं कि वह हवा की गति से दौड़ता था।
जब भी महाराणा प्रताप की बात होती है, तो हल्दीघाटी युद्ध का भी ज़िक्र ज़रूर होता है। ये युद्ध सन् 1576 में अकबर और महाराणा प्रताप की सेना के बीच हुआ था। कुछ इतिहासकार बताते हैं कि ये युद्ध महाराणा की सेना के 2000 सैनिक और मुगलों की सेना के 10,000 सैनिकों के बीच लड़ा गया था। वहीं कहीं कहीं ये भी पढ़ने को मिलता है कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना के 10,000 और मुगलों की सेना के एक लाख सैनिक आमने-सामने थे। इन सभी तथ्यों से इस बात का पता चलता है कि मुगलों की सेना संख्या में अधिक थी।
इस भयानक युद्ध में एक ही दिन में कई सैनिक मारे गए थे। कहा जाता है कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप का अश्व चेतक भी वीरगति को प्राप्त हो गया था। संख्या में कम होने पर भी महाराणा की सेना मुगल सेना को धूल चटाने में कामयाब हो रही थी। इस युद्ध के दौरान एक समय ऐसा आया जब महाराणा अत्यंत गंभीर रूप से घायल हो गए थे। किंतु इसके बावजूद भी उन्होंने मुगल सेना के सामने समर्पण करना स्वीकार नहीं किया, और वो वहां से बच निकले। कुछ समय पश्चात् महाराणा ने छापेमार युद्ध नीति का प्रयोग करते हुए अपने क्षेत्र पर फिर से कब्ज़ा कर लिया।
देशभक्ति की भावना:- महाराणा प्रताप अत्यंत स्वाभिमानी प्रवृत्ति के थे, यही कारण था कि अकबर की लाख प्रयासों के बाद भी उन्होंने अकबर से संधि नहीं की और युद्ध के लिए तैयार रहे।
पशु प्रेम:- महाराणा प्रताप को उनका अश्व चेतक अत्यंत प्रिय था। वो उसे अपना मित्र मानते थे।
साहस:- महाराणा प्रताप ने अनेक युद्धों के दौरान अपने अदम्य साहस का परिचय दिया, और हर बार दुश्मनों को मात दी।
तो दोस्तों, ये थी महाराणा प्रताप जयंती से जुड़ी जानकारी। आप भी इस अवसर पर भारत के इस वीर सपूत को याद करें, और गौरवान्वित महसूस करें। ऐसे ही महान व्यक्तित्व, व्रत, त्यौहार आदि से जुड़ी जानकारियां निरंतर पाते रहने के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।
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