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ललिता सप्तमी 2025 कब है?

जानें 2025 की ललिता सप्तमी की तारीख, महत्व, व्रत की कथा और देवी ललिता को प्रसन्न करने की विधि, जिससे मिले जीवन में सुख, सौभाग्य और समृद्धि।

ललिता सप्तमी के बारे में

ललिता सप्तमी एक पवित्र व्रत है, जो आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन देवी ललिता की पूजा कर भक्त सुख, समृद्धि और बाधा-निवारण की कामना करते हैं।

ललिता सप्तमी 2025

धार्मिक मान्यता के अनुसार, संतान प्राप्ति, संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि व अच्छे स्वास्थ्य के लिए संतान सप्तमी का व्रत श्रेष्ठ माना जाता है। संतान सप्तमी व्रत हर साल भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर किया जाता है। ये व्रत स्त्रियां संतान की प्राप्ति, उसकी कुशलता और उन्नति के लिए कामना करती हैं। संतान सप्तमी व्रत को ललिता सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन शिव जी और माता पार्वती की विशेष रूप से पूजा आराधना की जाती है। हिंदू धर्म में कुछ उपवास निराहार रहकर किए जाते हैं, तो कुछ में व्रतधारी फलाहार ले सकते हैं। हर व्रत की तरह 'संतान सप्तमी' व्रत के भी कुछ नियम है

साल 2025 में संतान सप्तमी कब है?

  • संतान सप्तमी 30 अगस्त 2025, शनिवार को मनाई जाएगी।
  • संतान सप्तमी की पूजा दोपहर में करने का विधान है।
  • सप्तमी तिथि 29 अगस्त 2025, शुक्रवार को रात 08 बजकर 21 मिनट पर आरंभ होगी।
  • सप्तमी तिथि का समापन 30 अगस्त 2025, शनिवार को रात 10 बजकर 46 मिनट पर होगा।

ललिता सप्तमी 2025 का शुभ मुहूर्त

मुहूर्त 

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:07 ए एम से 04:53 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:30 ए एम से 05:38 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

11:33 ए एम से 12:24 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:05 पी एम से 02:56 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

06:19 पी एम से 06:42 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

06:19 पी एम से 07:27 पी एम तक

निशिता मुहूर्त

11:36 पी एम से 12:21 ए एम, 31 अगस्त तक

क्या है ललिता सप्तमी?

ललिता सप्तमी, शारदीय नवरात्रि के दौरान शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाने वाला एक पावन पर्व है। इस दिन देवी दुर्गा के सप्तम रूप — मां कालरात्रि की विशेष पूजा होती है, लेकिन इसे मां ललिता के पूजन का भी दिवस माना जाता है। इस दिन को महासप्तमी या कालरात्रि पूजन दिवस भी कहा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार, मां ललिता को त्रिपुरसुंदरी, श्रीविद्या देवी, और शक्तिरूपा के रूप में पूजा जाता है। यह तिथि शक्तिसाधना और तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए विशेष मानी जाती है। कई स्थानों पर इस दिन ललिता सहस्रनाम का पाठ और श्रीचक्र पूजन भी किया जाता है।

क्यों मनाई जाती है ललिता सप्तमी/संतान सप्तमी?

संतान सप्तमी का व्रत यह पूजा विशेषतः भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होती है। संतान सप्तमी व्रत और इस दिन की गई पूजा बहुत ही शीघ्र फल देने वाली मानी जाती है। ये व्रत, स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति की इच्छा से किया जाता है। इसके अलावा, इस व्रत को महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु, अच्छी सेहत और सुख-समृद्धि के लिए भी करती हैं। कई महिलाएं इस व्रत को निराहार रखती हैं, लेकिन यदि संभव न हो, तो फलाहार रहकर भी ये व्रत किया जा सकता है।

संतान सप्तमी व्रत का महत्व क्या है?

'संतान सप्तमी' व्रत 'संतान सुख' पाने के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के महत्व को बताते हुए कहा था, कि जब माता देवकी के पुत्रों को कंस जन्म लेते ही मार देता था, तब लोमश ऋषि ने माता देवकी को संतान सप्तमी व्रत का अनुष्ठान करने के लिए कहा। माता ने लोमश ऋषि के बताए विधान के अनुसार इस व्रत का पालन किया, जिसके प्रभाव से मेरा जन्म हुआ, और माता देवकी को संतानसुख मिला।

ललिता सप्तमी का धार्मिक महत्व

शक्तिसाधना का विशेष दिन – यह दिन देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी की कृपा प्राप्त करने का शुभ अवसर होता है। शक्ति की उपासना के लिए यह दिन तांत्रिक दृष्टि से अत्यंत प्रभावशाली माना गया है।

पापों का नाश – मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत एवं पूजा करने से सभी पापों का क्षय होता है और साधक को आत्मबल की प्राप्ति होती है।

देवी कालरात्रि की कृपा – सप्तमी तिथि पर देवी कालरात्रि का पूजन करने से सभी भूत-प्रेत, नकारात्मक शक्तियों और भय का नाश होता है।

ललिता सहस्रनाम का पाठ – ललिता सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख, ऐश्वर्य और मानसिक शांति आती है।

श्रीचक्र पूजन – इस दिन श्रीचक्र (श्री यंत्र) की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। यह पूजन भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।

ग्रहदोष शांति – विशेष रूप से शुक्र और चंद्र ग्रह से संबंधित दोषों की शांति हेतु भी यह दिन उपयोगी होता है।

ललिता सप्तमी पर किसकी पूजा करें?

ललिता सप्तमी के दिन देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी की विधिवत पूजा की जाती है। देवी ललिता को श्रीविद्या की अधिष्ठात्री देवी और संपूर्ण ब्रह्मांड की जननी माना जाता है। शास्त्रों में इन्हें शक्तिरूपा, महात्रिपुरसुंदरी, और राजराजेश्वरी जैसे नामों से भी जाना गया है। इस दिन देवी कालरात्रि की आराधना भी की जाती है, जो नवदुर्गा के सप्तम स्वरूप हैं।

इस तिथि पर साधक ललिता सहस्रनाम, ललिता त्रिशती या श्रीचक्र पूजन के माध्यम से देवी की आराधना करते हैं।

ललिता सप्तमी पूजा की पूजन सामग्री

  1. लाल वस्त्र व आसन
  2. देवी ललिता की प्रतिमा या चित्र
  3. लाल पुष्प (जैसे गुड़हल, गुलाब)
  4. अक्षत (चावल)
  5. रोली, चंदन, हल्दी, कुमकुम
  6. धूप, दीप, घी
  7. नारियल, फल, मिठाई
  8. पान, सुपारी, लौंग
  9. श्री यंत्र या श्रीचक्र (यदि उपलब्ध हो)
  10. ललिता सहस्रनाम या त्रिशती पाठ की पुस्तक
  11. गंगाजल व शुद्ध जल
  12. पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
  13. श्रृंगार सामग्री (सिंदूर, चूड़ी, बिंदी, इत्र आदि

ललिता सप्तमी की पूजाविधि

संतान सप्तमी के दिन किए जाने वाले अनुष्ठान

  • ये व्रत करने वाली स्त्री को प्रात:काल स्नान और नित्यक्रम क्रियाएं करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
  • इसके बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान विष्णु व शिव जी का सुमिरन करके सप्तमी व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
  • दोपहर को चौक पूरकर चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से फिर से शिव- पार्वती की पूजा करनी चाहिए।
  • सप्तमी तिथि के व्रत में नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी और गुड़ के पुए बनाए जाते है।
  • संतान की रक्षा की कामना करते हुए भगवान भोलेनाथ को कलावा अर्पित किया जाता है, और बाद में इसे स्वयं धारण कर इस व्रत की कथा सुननी चाहिए।
  • इस व्रत में कई जगहों पर संतानों की संख्या के अनुसार सवा तोले के चांदी के कंगन या छल्ले बनवा कर उनकी भी पूजा की जाती है।
  • व्रत धारण करने वाली महिलाओं को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि व्रत को बीच में बंद नहीं करना चाहिए, व्रत का संकल्प लेने के बाद बिना उद्यापन के इसे बंद ना करें।

ललिता सप्तमी पूजा के मंत्र

ध्यान मंत्र:

  • "सिन्दूरारुणविग्रहां त्रिनयनां माणिक्यमौलिस्फुरत् तारानायकशेखरां स्मितमुखीमापीनवक्षोरुहाम्। पाणिभ्यामलिपूर्णरत्नचषकं रक्तोत्पलंचर्दया या स्तेमद्भुतसौन्दर्या त्रिभुवनसौन्दर्यम्॥"

बीज मंत्र (ललिता का बीज मंत्र):

  • “श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः”

यह मंत्र 108 बार जपें।

नमस्कार मंत्र:

  • "त्रिपुरायै नमः, राजराजेश्वर्यै नमः, ललितायै नमः"

सहस्रनाम या त्रिशती स्तोत्र - यदि संभव हो तो इसका पाठ जरूर करें।

ललिता सप्तमी व्रत कैसे करें

ललिता सप्तमी का व्रत देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी को समर्पित होता है। यह व्रत विशेष रूप से आध्यात्मिक उन्नति, सौंदर्य, ऐश्वर्य, और शांति की प्राप्ति के लिए रखा जाता है।

व्रत विधि इस प्रकार है:

  • प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर लें।
  • स्वच्छ लाल या पीले वस्त्र धारण करें।
  • व्रत का संकल्प लें: “मैं आज ललिता सप्तमी व्रत श्रद्धा एवं भक्ति सहित करूंगी/करूंगा।”
  • दिनभर उपवास रखें — यदि संभव हो तो निर्जल, अन्यथा फलाहार करें।
  • व्रत के दौरान जप करें: “श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः” — यह देवी ललिता का बीज मंत्र है।
  • संध्या के समय पूजा कर, आरती करें और प्रसाद वितरण करें।

ललिता सप्तमी पूजा नियम

  • पवित्रता रखें - व्रत के दिन तन, मन और वाणी की पवित्रता अत्यंत आवश्यक है।
  • लाल वस्त्र और लाल पुष्प का प्रयोग करें - यह देवी ललिता की प्रिय वस्तुएं हैं।
  • एकाग्रता से पूजा करें - कोई भी पूजा मन की स्थिरता और श्रद्धा के बिना फलदायी नहीं होती।
  • श्रीचक्र या ललिता सहस्रनाम का पाठ करें
  • पूजा के अंत में महादेवी की आरती करें और प्रसाद ग्रहण करें।
  • स्त्रियों को सौंदर्य सामग्री अर्पित करें - जैसे चूड़ी, सिंदूर, बिंदी आदि, देवी के श्रृंगार में उपयोग के लिए।

ललिता सप्तमी पर क्या करें

  • देवी ललिता की पूजा करें।
  • व्रत रखें और मंत्र जाप करें।
  • ललिता सहस्रनाम या त्रिशती का पाठ करें।
  • कन्याओं को भोजन कराएं और उन्हें वस्त्र या श्रृंगार का दान दें।
  • ज़रूरतमंदों को भोजन व दान करें।
  • माता के चरणों में पुष्प, अक्षत और चंदन अर्पित करें।
  • अपने मन के दोष, दुःख और कष्ट देवी को समर्पित कर उनसे उद्धार की प्रार्थना करें।

ललिता सप्तमी का इतिहास

  • ललिता सप्तमी का वर्णन ललिता उपाख्यान, ब्रह्मांड पुराण और त्रिपुरा रहस्य में मिलता है।
  • यह पर्व देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी के भयानक राक्षस भंडासुर का संहार करने की स्मृति में मनाया जाता है।
  • शास्त्रों के अनुसार जब ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देव राक्षस भंडासुर के अत्याचार से चिंतित हुए, तब आदिशक्ति ने ललिता स्वरूप में अवतार लिया। देवी ने श्रीचक्र सेना के साथ भंडासुर का वध कर धर्म की रक्षा की।
  • इस दिन देवी की महाशक्ति और करुणा का स्मरण करते हुए भक्त व्रत, ध्यान और पूजन करते हैं।

संतान सप्तमी व्रत के लाभ

  • जो निःसंतान दंपत्ति संतान सप्तमी का व्रत रखते हैं, उन्हें उत्तम संतान की प्राप्ति होती है, साथ ही इस व्रत के प्रभाव से संतान को आरोग्य और दीघायु होने का भी आशीर्वाद मिलता है।
  • इस व्रत का अनुष्ठान विशेष रूप से स्त्रियां करती हैं, लेकिन पुरुषों के लिए भी ये समान रूप से फलदाई माना जाता है।
  • सन्तान सुख देने के साथ साथ संतान सप्तमी का व्रत पापों को नष्ट करने वाला भी माना जाता है।
  • जो जातक नियम पूर्वकसंतान सप्तमी व्रत रखते हैं और शिव पार्वती की श्रद्धापूर्वक उपासना करते हैं, वे सुखमय जीवन जीने के बाद शिवलोक को जाते हैं।

इस व्रत में आप क्या खा सकते हैं?

  • संतान सप्तमी के व्रत में स्त्रियां प्रातः उठकर व्रत का संकल्प लेती हैं, और स्नान आदि करने के पश्चात निराहार रहते हुए मीठे पुए, खीर व पूड़ी का भोग बनाती हैं। ध्यान रहे कि ये भोग निराहार रहते हुए ही बनाना चाहिए।
  • इस भोग में सात पुए दान के और सात पुए भगवान को चढ़ाकर स्वयं के खाने के लिए और बाकी पुए परिवार या आसपास के लोगों को प्रसाद के रूप में बांटने के लिए बनाए जाते हैं।
  • भोग बनाने के बाद निराहार रहकर ही दोपहर में 'संतान सप्तमी व्रत' का पूजन किया जाता है। इस पूजा में बनाया गया भोग भगवान शिव व माता पार्वती को अर्पित करने के बाद सात पुए किसी ब्राह्मण को दान में दे दें, और सात पुए स्वयं खाएं।
  • इस तरह संतान सप्तमी के व्रत में आप भोग लगाए गए पुए या खीर-पूड़ी का प्रसाद खा सकते हैं। यदि आप सातों पुए स्वयं ना खा सकें, तो उसे अपने पति को भी खिला सकती हैं।
  • वैसे तो प्रयास ये करें कि पूजा का प्रसाद खाकर ही इस व्रत का पालन करें, लेकिन यदि आपके लिए केवल भोग खाकर रहना संभव न हो पा रहा हो, तो शाम के समय शिव-पार्वती जी की पूजा करने के बाद आप फलाहार ले सकते हैं।

ललिता सप्तमी शक्ति की उपासना का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी को समर्पित है। यह दिन केवल एक व्रत या पूजा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, भक्ति और देवी के अद्भुत स्वरूप की आराधना का अवसर होता है। इस दिन व्रत, मंत्र जाप, स्तोत्र पाठ और पूजा के माध्यम से साधक आध्यात्मिक बल, सौंदर्य, ऐश्वर्य और शांति प्राप्त करता है।

इस व्रत के माध्यम से साधक देवी के उस रूप से जुड़ता है जो सम्पूर्ण सृष्टि की आधारशिला है—जो रचयिता भी है, संचालक भी और संहारक भी। ललिता सप्तमी श्रद्धा, शक्ति और साधना का प्रतीक है।

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Published by Sri Mandir·August 14, 2025

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