जानें 2025 की ललिता सप्तमी की तारीख, महत्व, व्रत की कथा और देवी ललिता को प्रसन्न करने की विधि, जिससे मिले जीवन में सुख, सौभाग्य और समृद्धि।
ललिता सप्तमी एक पवित्र व्रत है, जो आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन देवी ललिता की पूजा कर भक्त सुख, समृद्धि और बाधा-निवारण की कामना करते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, संतान प्राप्ति, संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि व अच्छे स्वास्थ्य के लिए संतान सप्तमी का व्रत श्रेष्ठ माना जाता है। संतान सप्तमी व्रत हर साल भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर किया जाता है। ये व्रत स्त्रियां संतान की प्राप्ति, उसकी कुशलता और उन्नति के लिए कामना करती हैं। संतान सप्तमी व्रत को ललिता सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन शिव जी और माता पार्वती की विशेष रूप से पूजा आराधना की जाती है। हिंदू धर्म में कुछ उपवास निराहार रहकर किए जाते हैं, तो कुछ में व्रतधारी फलाहार ले सकते हैं। हर व्रत की तरह 'संतान सप्तमी' व्रत के भी कुछ नियम है
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:07 ए एम से 04:53 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:30 ए एम से 05:38 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:33 ए एम से 12:24 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:05 पी एम से 02:56 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:19 पी एम से 06:42 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:19 पी एम से 07:27 पी एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:36 पी एम से 12:21 ए एम, 31 अगस्त तक |
ललिता सप्तमी, शारदीय नवरात्रि के दौरान शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाने वाला एक पावन पर्व है। इस दिन देवी दुर्गा के सप्तम रूप — मां कालरात्रि की विशेष पूजा होती है, लेकिन इसे मां ललिता के पूजन का भी दिवस माना जाता है। इस दिन को महासप्तमी या कालरात्रि पूजन दिवस भी कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, मां ललिता को त्रिपुरसुंदरी, श्रीविद्या देवी, और शक्तिरूपा के रूप में पूजा जाता है। यह तिथि शक्तिसाधना और तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए विशेष मानी जाती है। कई स्थानों पर इस दिन ललिता सहस्रनाम का पाठ और श्रीचक्र पूजन भी किया जाता है।
संतान सप्तमी का व्रत यह पूजा विशेषतः भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होती है। संतान सप्तमी व्रत और इस दिन की गई पूजा बहुत ही शीघ्र फल देने वाली मानी जाती है। ये व्रत, स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति की इच्छा से किया जाता है। इसके अलावा, इस व्रत को महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु, अच्छी सेहत और सुख-समृद्धि के लिए भी करती हैं। कई महिलाएं इस व्रत को निराहार रखती हैं, लेकिन यदि संभव न हो, तो फलाहार रहकर भी ये व्रत किया जा सकता है।
'संतान सप्तमी' व्रत 'संतान सुख' पाने के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के महत्व को बताते हुए कहा था, कि जब माता देवकी के पुत्रों को कंस जन्म लेते ही मार देता था, तब लोमश ऋषि ने माता देवकी को संतान सप्तमी व्रत का अनुष्ठान करने के लिए कहा। माता ने लोमश ऋषि के बताए विधान के अनुसार इस व्रत का पालन किया, जिसके प्रभाव से मेरा जन्म हुआ, और माता देवकी को संतानसुख मिला।
शक्तिसाधना का विशेष दिन – यह दिन देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी की कृपा प्राप्त करने का शुभ अवसर होता है। शक्ति की उपासना के लिए यह दिन तांत्रिक दृष्टि से अत्यंत प्रभावशाली माना गया है।
पापों का नाश – मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत एवं पूजा करने से सभी पापों का क्षय होता है और साधक को आत्मबल की प्राप्ति होती है।
देवी कालरात्रि की कृपा – सप्तमी तिथि पर देवी कालरात्रि का पूजन करने से सभी भूत-प्रेत, नकारात्मक शक्तियों और भय का नाश होता है।
ललिता सहस्रनाम का पाठ – ललिता सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख, ऐश्वर्य और मानसिक शांति आती है।
श्रीचक्र पूजन – इस दिन श्रीचक्र (श्री यंत्र) की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। यह पूजन भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
ग्रहदोष शांति – विशेष रूप से शुक्र और चंद्र ग्रह से संबंधित दोषों की शांति हेतु भी यह दिन उपयोगी होता है।
ललिता सप्तमी के दिन देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी की विधिवत पूजा की जाती है। देवी ललिता को श्रीविद्या की अधिष्ठात्री देवी और संपूर्ण ब्रह्मांड की जननी माना जाता है। शास्त्रों में इन्हें शक्तिरूपा, महात्रिपुरसुंदरी, और राजराजेश्वरी जैसे नामों से भी जाना गया है। इस दिन देवी कालरात्रि की आराधना भी की जाती है, जो नवदुर्गा के सप्तम स्वरूप हैं।
इस तिथि पर साधक ललिता सहस्रनाम, ललिता त्रिशती या श्रीचक्र पूजन के माध्यम से देवी की आराधना करते हैं।
ध्यान मंत्र:
बीज मंत्र (ललिता का बीज मंत्र):
यह मंत्र 108 बार जपें।
नमस्कार मंत्र:
सहस्रनाम या त्रिशती स्तोत्र - यदि संभव हो तो इसका पाठ जरूर करें।
ललिता सप्तमी का व्रत देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी को समर्पित होता है। यह व्रत विशेष रूप से आध्यात्मिक उन्नति, सौंदर्य, ऐश्वर्य, और शांति की प्राप्ति के लिए रखा जाता है।
व्रत विधि इस प्रकार है:
ललिता सप्तमी शक्ति की उपासना का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी को समर्पित है। यह दिन केवल एक व्रत या पूजा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, भक्ति और देवी के अद्भुत स्वरूप की आराधना का अवसर होता है। इस दिन व्रत, मंत्र जाप, स्तोत्र पाठ और पूजा के माध्यम से साधक आध्यात्मिक बल, सौंदर्य, ऐश्वर्य और शांति प्राप्त करता है।
इस व्रत के माध्यम से साधक देवी के उस रूप से जुड़ता है जो सम्पूर्ण सृष्टि की आधारशिला है—जो रचयिता भी है, संचालक भी और संहारक भी। ललिता सप्तमी श्रद्धा, शक्ति और साधना का प्रतीक है।
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