
कार्तिगाई दीपम् 2025: शुभ मुहूर्त और पूजा विधि जानें! भगवान शिव की कृपा पाने का रहस्य क्या है? इस पवित्र पर्व की पूरी जानकारी यहाँ।
कार्तिकाई दीपम् पर्व कार्तिक मास में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएँ अपने घरों में दीप जलाकर माता लक्ष्मी और भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं। दीपक जलाने से अंधकार दूर होता है और घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। यह पर्व भक्ति और धार्मिकता का प्रतीक है।
कार्तिगाई दीपम् दक्षिण भारत का एक पवित्र और प्रमुख दीपोत्सव है, जिसे विशेष रूप से तमिलनाडु में अत्यंत भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह पर्व दीपों का, प्रकाश का और भगवान शिव व भगवान मुरुगन की पूजा का दिन माना जाता है। तमिल हिन्दू समुदाय में यह दीपोत्सव परिवार, संस्कृति और आध्यात्मिकता का अनोखा संगम है।
कार्तिगाई दीपम् 2025 में 04 दिसंबर 2025, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। कार्तिगाई दीपम् का दिन कार्तिक पूर्णिमा के आसपास आता है और इसे तमिल वर्ष का एक प्रमुख पर्व माना जाता है।
नक्षत्र समय:
इस दिन भक्त अपने घरों, मंदिरों और गलियों में तेल के दीप जलाते हैं। शाम के समय दीपों की पंक्तियाँ घरों को उजाला और पवित्रता से भर देती हैं। भगवान शिव और भगवान मुरुगन की आराधना से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
मासिक कार्तिगाई के शुभ मुहूर्त – 04 दिसंबर 2025
विशेष योग:
पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने एक बार अपनी महाशक्ति को प्रदर्शित करने हेतु अनंत ज्योति-स्तंभ (अग्नि स्तम्भ) का रूप धारण किया था ब्रह्मा और विष्णु न तो उसकी ऊँचाई का अंत खोज पाए और न ही उसकी गहराई को। इस दिव्य घटना की स्मृति में ही कार्तिगाई दीपम् मनाया जाता है।
कार्तिगाई दीपम् कई कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है -
तिरुवन्नामलाई (Thiruvannamalai) के अरुणाचलेश्वर स्वामी मंदिर में कार्तिगाई दीपम् का उत्सव अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ इस पर्व का आयोजन कार्तिगाई ब्रह्मोत्सवम् के रूप में दस दिनों तक किया जाता है।
उत्सव के पहले दिन उतिरादम नक्षत्र के समय ध्वजारोहण (ध्वज पूजन) से इसका शुभारंभ होता है। मुख्य कार्तिगाई दीपम् के दिन शाम को मंदिर परिसर में पहले भरणी दीपम् प्रज्वलित किया जाता है, जो आमतौर पर सुबह 4 बजे होता है। संध्याकाल में, सूर्यास्त के बाद इसी अग्नि से महादीपम् जलाया जाता है, जिसे अरुणाचल पर्वत की चोटी पर स्थापित किया जाता है। यह ज्योति कई किलोमीटर दूर से दिखाई देती है और श्रद्धालु इस दिव्य दर्शन के लिए हजारों की संख्या में एकत्र होते हैं।
इस दिन मुख्य रूप से पूजा की जाती है -
इसके अतिरिक्त घरों में तुलसी दीपदान भी शुभ माना जाता है।
मासिक कार्तिगाई की पूजा सरल विधि से की जा सकती है
कई भक्त इस दिन उपवास रखते हैं, जो भोर के समय आरंभ होकर सायंकाल पूजा के पश्चात समाप्त होता है। शाम को दीप जलाकर भगवान शिव और कार्तिकेय की आराधना की जाती है, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा और शुभता का वास होता है।
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