काली चौदस 2024 कब है? जानें इस खास दिन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसे मनाने के अनोखे तरीके।
दीपावली के एक दिन पहले कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को काली चौदस मनाई जाती है। यह दिन काली मां को समर्पित है, इसमें रात्रि में काली मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह पर्व भूत चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में काली चौदस का दिन तब तय किया जाता है जब चतुर्दशी मध्यरात्रि के दौरान प्रबल होती है, जिसे पंचांग के अनुसार महा निशिता काल कहा जाता है। काली चौदस मुख्यतः पश्चिमी राज्यों विशेषकर गुजरात में मनाई जाती है।
कई स्थानों में काली चौदस को रूप चतुर्दशी एवं नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। हालाँकि मुहूर्त के अनुसार देखा जाएँ तो काली चौदस को रूप चौदस और नरक चतुर्दशी के साथ नहीं मिलाना चाहिए।
इसके साथ ही इस काली चौदस को बंगाल की काली पूजा के साथ भी भ्रमित नहीं करना चाहिए जो कि काली चौदस के एक दिन बाद अर्थात अमावस्या को दीपावली के मुख्य दिन पर मनाया जाता है।
माना जाता है कि इस दिन सभी नकारात्मक एवं बुरी शक्तियों को अग्नि में स्वाहा कर दिया जाता है, क्योंकि काली चौदस का विशेष काल समस्त बुरी ऊर्जाओं से छुटकारा पाने के लिए सबसे अनुकूल समय माना जाता है। इस दिन सभी पापों से मुक्ति प्राप्ति के लिए यम दीपदान एवं तिल का उपयोग कर अभ्यंग स्नान करने का भी सुझाव दिया गया है। ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार जिस प्रकार दीपावली की रात में मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर में धन, सुख और वैभव की प्राप्ति होती है। उसी प्रकार दीपावली से एक दिन पहले रात्रि में मां काली की आराधना करने से साधक को मानसिक तनाव से मुक्ति मिलेगी और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, साथ ही शत्रु पर विजय प्राप्त करने का वरदान मिलता है। इसके अतिरिक्त इस पूजा को करने से बेरोज़गारी, बीमारी, कर्ज़, बिजनेस में हानि जैसी सभी परेशानियां भी खत्म होती हैं। ध्यान दें - इस दिन तंत्र साधक महाकाली की साधना को अधिक प्रभावशाली मानते हैं। लेकिन गृहस्थ जीवन वालों को अपने किसी भी मनोरथ की पूर्ति के लिए माँ काली की साधारण एवं सात्विक पूजा ही करनी चाहिए।
ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए श्री मंदिर के साथ बनें रहें।
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