काली चौदस 2025 कब है? जानें इस खास दिन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसे मनाने के अनोखे तरीके।
दीपावली के एक दिन पहले कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को काली चौदस मनाई जाती है। यह दिन काली मां को समर्पित है, इसमें रात्रि में काली मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह पर्व भूत चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में काली चौदस का दिन तब तय किया जाता है जब चतुर्दशी मध्यरात्रि के दौरान प्रबल होती है, जिसे पंचांग के अनुसार महा निशिता काल कहा जाता है। काली चौदस मुख्यतः पश्चिमी राज्यों विशेषकर गुजरात में मनाई जाती है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:18 ए एम से 05:08 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:43 ए एम से 05:58 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | 11:20 ए एम से 12:06 पी एम |
विजय मुहूर्त | 01:37 पी एम से 02:23 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 05:27 पी एम से 05:52 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 05:27 पी एम से 06:42 पी एम |
अमृत काल | 09:59 ए एम से 11:44 ए एम |
निशिता मुहूर्त | 11:18 पी एम से 12:08 ए एम, अक्टूबर 20 |
सर्वार्थ सिद्धि योग | पूरे दिन |
अमृत सिद्धि योग | 05:49 पी एम से 05:59 ए एम, अक्टूबर 20 |
काली चौदस, जिसे भूत चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहा जाता है, दीपावली से एक दिन पहले कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन माँ काली को समर्पित है, जो शक्ति, निडरता और नकारात्मकता के विनाश की प्रतीक हैं। इस दिन रात्रि में काली माँ की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
काली चौदस का निर्धारण इस आधार पर किया जाता है कि चतुर्दशी तिथि मध्यरात्रि के समय प्रबल हो — इस काल को महा निशिता काल कहा जाता है। इसीलिए काली चौदस की पूजा रात्रि के समय की जाती है। यह पर्व विशेष रूप से गुजरात, महाराष्ट्र और कुछ दक्षिण भारतीय राज्यों में बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है।
काली चौदस का पर्व नकारात्मक ऊर्जाओं, भय और अशुभ शक्तियों से मुक्ति पाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी काली ने राक्षसों का संहार कर धर्म की पुनः स्थापना की थी। इसलिए भक्त इस दिन देवी काली की आराधना करके अपने जीवन से भय, असुरक्षा, रोग और दुर्भाग्य को दूर करने की प्रार्थना करते हैं।
इसके अलावा, पौराणिक मान्यता यह भी है कि भगवान कृष्ण ने इसी दिन नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिसके कारण इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में भी जाना जाता है। इस प्रकार, काली चौदस बुराई पर अच्छाई की विजय और अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक पर्व है।
शास्त्रों में कहा गया है कि:
इस दिन मुख्य रूप से माँ काली की पूजा की जाती है। वे आदिशक्ति का उग्र रूप हैं जो असुरों, नकारात्मक शक्तियों और अज्ञान का नाश करती हैं।
काली माँ की पूजा के साथ-साथ कई लोग भगवान यमराज, हनुमानजी, और कुबेर देव की आराधना भी करते हैं ताकि भय, रोग और दरिद्रता से मुक्ति प्राप्त हो सके।
गृहस्थजन : माँ काली की सात्विक पूजा करें, दीपदान करें और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करें। तंत्र साधक : इस दिन को विशेष साधना के रूप में प्रयोग करते हैं, क्योंकि यह रात्रि तांत्रिक ऊर्जा से परिपूर्ण मानी जाती है।
काली चौदस की पूजा रात्रि में की जाती है क्योंकि यह रात्रि देवी काली की साधना और आराधना के लिए अत्यंत शक्तिशाली मानी जाती है। इस दिन साधक और गृहस्थ दोनों अपने सामर्थ्य अनुसार माँ काली की पूजा कर सकते हैं।
पूजा की विधि इस प्रकार है:-
पूजन की प्रक्रिया:-
पूजा के दौरान माँ काली को प्रसन्न करने के लिए नीचे दिए गए मंत्रों का जाप किया जाता है:
ॐ काली महाकालिकायै च विद्महे स्मशानवासिन्यै धीमहि। तन्नो काली प्रचोदयात्॥
ॐ क्रीं कालिकायै नमः॥
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके स्वाहा॥
जय काली कालरात्रि महाकालिका नमोऽस्तुते। सर्वशत्रुविनाशाय, सर्वरोगनिवारिणि॥
माँ काली की आरती के साथ पूजा पूर्ण करें:
दीप जलाए रखें और रात्रि में शांत भाव से माँ का ध्यान करें। विश्वास है कि जो श्रद्धा भाव से इस दिन माता की उपासना करता है, उसके जीवन से भय, बाधा और अंधकार सदा के लिए दूर हो जाते हैं।
काली चौदस की रात्रि को विशेष रूप से नकारात्मक ऊर्जा, भय, दुर्भाग्य और रोगों से मुक्ति पाने के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। इस दिन कुछ सरल लेकिन शक्तिशाली उपाय करने से माँ काली और यमदेव की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
1. यम दीपदान करें
2. माँ काली के नाम का जाप करें
3. काली माँ को सरसों के तेल का दीप अर्पित करें
4. गरीब और जरूरतमंद को दान करें
5. हनुमानजी की आराधना करें
कई स्थानों में काली चौदस को रूप चतुर्दशी एवं नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। हालाँकि मुहूर्त के अनुसार देखा जाएँ तो काली चौदस को रूप चौदस और नरक चतुर्दशी के साथ नहीं मिलाना चाहिए।
इसके साथ ही इस काली चौदस को बंगाल की काली पूजा के साथ भी भ्रमित नहीं करना चाहिए जो कि काली चौदस के एक दिन बाद अर्थात अमावस्या को दीपावली के मुख्य दिन पर मनाया जाता है।
काली चौदस केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह ऊर्जा, शुद्धि और सुरक्षा का दिवस माना जाता है। इस दिन श्रद्धा से पूजा और साधना करने से अनेक आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक लाभ प्राप्त होते हैं।
1. नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति
2. शत्रु और संकटों पर विजय
3. धन, स्वास्थ्य और सुख की वृद्धि
4. आध्यात्मिक शुद्धि और आत्मबल में वृद्धि
5. कर्मों का शोधन और पापमोचन
काली चौदस की रात को श्रद्धा और संयम के साथ पूजा करने वाला व्यक्ति भय, रोग और दुर्भाग्य से मुक्त होकर एक सुखमय और उज्ज्वल जीवन की ओर अग्रसर होता है।
1. प्रातःकाल अभ्यंग स्नान करें
2. माँ काली और हनुमानजी की पूजा करें
3. यम दीपदान करें
4. दान और सेवा करें
5. दीप जलाकर घर को आलोकित करें
6. पितरों और पूर्वजों को स्मरण करें
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