भगवान हयग्रीव को ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। जानिए 2025 में हयग्रीव जयंती की तिथि, पूजन विधि और इस दिन का धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व।
हयग्रीव जयंती भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार की जयंती है, जिसे भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन भगवान हयग्रीव की पूजा ज्ञान, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति के लिए की जाती है। आइये जानते हैं इसके बारे में...
नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। भगवान विष्णु के प्रमुख 24 अवतारों में से 'हयग्रीव' भी एक अवतार हैं। हयग्रीव जयंती हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को, यानि रक्षा बंधन के दिन मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने 'हयग्रीव अवतार' लिया था।
हयग्रीव जयंती- 08 अगस्त, शुक्रवार (श्रावण, शुक्ल पक्ष पूर्णिमा)
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:21 ए एम से 05:04 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:43 ए एम से 05:46 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 12:00 पी एम से 12:53 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:40 पी एम से 03:33 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 07:07 पी एम से 07:28 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 07:07 पी एम से 08:11 पी एम तक |
अमृत काल | 07:57 ए एम से 09:35 ए एम तक |
निशिता मुहूर्त | 12:05 ए एम, अगस्त 09 से 12:48 ए एम, अगस्त 09 तक |
मुहूर्त | समय |
रवि योग | 05:46 ए एम से 02:28 पी एम तक |
सर्वार्थ सिद्धि योग | 02:28 पी एम से 05:47 ए एम, अगस्त 09 तक |
भक्तों, भगवान हयग्रीव का स्वरूप अद्भुत है उनका सिर घोड़े का है, और शरीर मनुष्य का है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यह अवतार राक्षसों द्वारा चुराए गए सभी वेदों की रक्षा के लिए लिया था, और इन वेदों को ब्रह्मा जी को देकर पुन: स्थापित कराया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान हयग्रीव की पूजा करने से मनुष्य के ज्ञान व सम्मान में वृद्धि होती है।
भगवान हयग्रीव, श्रीविष्णु के एक दिव्य अवतार हैं जिनका स्वरूप अश्वमुख यानी घोड़े के मुख वाला है। वे ज्ञान, बुद्धि, वेद और विद्या के देवता माने जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, जब दैत्य मधु और कैटभ ने वेदों को चुराकर पाताल में छिपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने हयग्रीव रूप में अवतार लेकर वेदों की रक्षा की थी। हयग्रीव को विशेष रूप से विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं, और आध्यात्मिक साधकों द्वारा पूजनीय माना जाता है।
हयग्रीव जयंती भगवान हयग्रीव के अवतरण दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को आता है और दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, और कर्नाटक में बड़े श्रद्धा से मनाया जाता है। इसे वेदों की रक्षा और ज्ञान की विजय के प्रतीक दिवस के रूप में देखा जाता है।
हयग्रीव जयंती इस स्मृति के रूप में मनाई जाती है कि कैसे भगवान ने अज्ञान, भ्रम और असुरता पर विजय पाकर वेदों को पुनः प्राप्त किया। यह दिन विशेष रूप से विद्या, विवेक, स्मरण शक्ति और आध्यात्मिक जागरण की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। विद्यार्थियों के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है।
हयग्रीव जयंती पर भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन की जाने वाली पूजा अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है। इस दिन पूजा-पाठ करके आप भगवान हयग्रीव की कृपा पा सकते हैं।
हम उम्मीद करते हैं, कि आपकी भगवान विष्णु के अवतार हयग्रीव जी की पूजा फलीभूत हो और आपकी समस्त मनोकामनाएं पूरी हों।
"ॐ ह्रीं हयग्रीवाय नमः"
आइए आज आपको भगवान विष्णु के उस अवतार के बारे में बताते हैं, जिन्होंने शत्रु के संहार के लिए शत्रु के समान ही रूप धारण किया था। उनके इस अवतार का नाम, हयग्रीव था और यह अवतार, उन्होंने इसी नाम के एक दैत्य के संहार हेतु लिया था। इस अवतार की सम्पूर्ण कथा के बारे में जानने के लिए, यह लेख अंत तक अवश्य पढ़ें -
भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार की यह रोचक कथा, माँ लक्ष्मी के अभिशाप के साथ भी जुड़ी हुई है। कथानुसार, एक बार माँ लक्ष्मी के सौन्दर्य को देख, श्रीहरि मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। परंतु लक्ष्मी जी को लगा, कि उनके स्वामी उनकी हंसी उड़ा रहे हैं। इस बात से वह बहुत आहत हुईं और उन्होंने भगवन को अभिशाप दे दिया, कि उनका सिर धड़ से अलग हो जाए। लेकिन यह अभिशाप भी, प्रभु की माया का ही एक अंग मात्र था।
कालांतर में पृथ्वी पर हयग्रीव नामक एक दैत्य की उत्पत्ति हुई, जिसका धड़ मनुष्य का और सिर घोड़े का था। माँ भगवती का एकनिष्ठ भक्त होने के कारण, उसने सरस्वती नदी के तट पर जाकर निराहार और निर्जला रहते हुए, उनकी खूब तपस्या की। माँ भगवती, हयग्रीव की तपस्या से प्रसन्न हुईं और उसे वर मांगने को कहा। पहले तो दैत्य ने उनसे अमरत्व का वर मांगा, परंतु जब देवी ने उसे यह वर देने से मना कर दिया, तब उसने देवी से कहा, “हे देवी! आप कम से कम मुझे यह वरदान दें, कि मेरी मृत्यु मेरे जैसे किसी के हाथों ही हो। कोई पूर्ण शरीर मेरी मृत्यु का कारण ना बने।” तब देवी भगवती ने उसे यह वरदान दे दिया।
बस फिर क्या था, हयग्रीव को तो जैसे अब किसी का डर ही नहीं था, क्योंकि उसके जैसे किसी दूसरे का जन्म, अब तक नहीं हुआ था। उसने प्रजापति ब्रह्मा से वेद छीन लिए और देवताओं पर अत्याचार करने लगा। देखते ही देखते, पूरी सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा, लेकिन कोई भी उस हयग्रीव को परास्त करने में सक्षम नहीं हुआ। तब सभी देवताओं को लगा, कि अब तो सिर्फ श्रीहरि ही उनकी रक्षा कर सकते हैं। यह सोचकर, वह सभी विष्णु की शरण में जा पहुँचे। परंतु भगवान विष्णु उस समय अपने धनुष की प्रत्यंचा पर सिर टिकाये, अपनी योगनिद्रा में थे। तब प्रजापति ब्रह्मा ने वम्री नामक एक कीड़े को उत्पन्न किया, ताकि वह प्रभु को जाग्रत कर सके।
परंतु हुआ कुछ और ही। जैसे ही वम्री ने धनुष की प्रत्यंचा काटी, एक अद्भुत सी ध्वनि हुई और सहसा, भगवान विष्णु का सिर धड़ से अलग हो गया। इस विचित्र घटना के साक्षी बने देवताओं ने, तब माँ भगवती की आराधना की,
जिन्होंने प्रकट होकर उन सभी से शांत होने को कहा। माँ भगवती ने कहा, “देवों! यह सब श्रीहरि की ही माया है। आप सब चिंतित ना होकर, श्रीहरि के धड़ पर एक घोड़े का सिर लगा दें। इससे भगवान का हयग्रीव अवतार होगा, जो दैत्य हयग्रीव का अंत करेगा।” यह कहकर, मां भगवती अन्तर्धान हो गईं और उसी क्षण, ब्रह्मा जी ने एक घोड़े का सिर, विष्णु के धड़ के साथ जोड़ दिया।
इस प्रकार भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार की उत्पत्ति हुई। इसके बाद, दैत्य हयग्रीव के साथ उनका भीषण युद्ध चला। अंत में प्रभु के हयग्रीव अवतार ने दैत्य हयग्रीव का संहार कर, पृथ्वी को उसके अत्याचारों से सदैव के लिए मुक्त कर दिया। उन्होंने प्रजापति को वेद भी लौटा दिए और मुनियों की शांति से यज्ञ करने की विनती भी पूर्ण की। तभी से भगवान हयग्रीव को पूजा जाने लगा।
भगवान हयग्रीव को, बुद्धि का देवता भी कहा जाता है। भगवान विष्णु के इस अवतार में उनका स्वरूप, अत्यंत अद्भुत है। इसमें उनका पूरा धड़, जहाँ एक मनुष्य का है, तो वहीं सिर एक घोड़े का है।
तो यह थी भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार की कथा, आशा करते हैं आपको यह कथा अच्छी लगी होगी। ऐसी ही और भी रोचक कथाओं के बारे में जानने के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ।
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