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दशहरा कब है 2025 में

इस त्योहार का महत्व और इसे सही तरीके से मनाने के उपायों के बारे में जानकारी प्राप्त करें।

दशहरा के बारे में

दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहते हैं, असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय और धर्म के पालन का प्रतीक माना जाता है।

दशहरा (विजयादशमी) कब है? जानें शुभ मुहूर्त

नमस्कार, श्री मंदिर के इस धार्मिक मंच पर आपका स्वागत है। आज हम इस लेख में जानेंगे कि साल 2025 में दशहरा यानी कि विजयादशमी उत्सव कब मनाया जाएगा? साथ ही हम जानेंगे कि इस दिन शस्त्र पूजा और दशहरा पूजा के उपयुक्त मुहूर्त क्या हैं?

चलिए अब जानते हैं कि दशहरा (विजयादशमी) कब है -

  • दशहरा (विजयादशमी) 02 अक्टूबर 2025, बृहस्पतिवार को मनाया जायेगा।
  • दशहरा (विजयादशमी) पूजा का समय (विजय मुहूर्त) दोपहर 01 बजकर 46 मिनट से दोपहर 02 बजकर 33 मिनट तक होगा।
  • जिसकी कुल अवधि 00 घण्टे 48 मिनट्स की होगी।
  • बंगाल विजयादशमी के लिए अपराह्न पूजा का समय दोपहर 12 बजकर 58 मिनट से 03 बजकर 21 मिनट तक रहेगा।
  • अपराह्न पूजा का समय दोपहर 12 बजकर 58 मिनट से दोपहर 03 बजकर 21 मिनट तक रहेगा।
  • जिसकी कुल अवधि 02 घण्टे 23 मिनट्स की होगी।
  • दशमी तिथि 01 अक्टूबर 2025, बुधवार को शाम 07 बजकर 01 मिनट पर प्रारंभ होगी।
  • दशमी तिथि का समापन 02 अक्टूबर 2025, बृहस्पतिवार को शाम 07 बजकर 10 मिनट पर होगा।
  • श्रवण नक्षत्र का प्रारम्भ 02 अक्टूबर 2025, बृहस्पतिवार को सुबह 09 बजकर 13 मिनट पर होगा।
  • श्रवण नक्षत्र का समापन 03 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को सुबह 09 बजकर 34 मिनट पर होगा।

चलिए अब जानते हैं दशहरा (विजयादशमी) के अन्य शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:14 ए एम से 05:02 ए एम

प्रातः सन्ध्या

04:38 ए एम से 05:50 ए एम

अभिजित मुहूर्त

11:23 ए एम से 12:11 पी एम

विजय मुहूर्त

01:46 पी एम से 02:33 पी एम

गोधूलि मुहूर्त

05:44 पी एम से 06:08 पी एम

सायाह्न सन्ध्या

05:44 पी एम से 06:56 पी एम

अमृत काल

11:01 पी एम से 12:38 ए एम, अक्टूबर 03

निशिता मुहूर्त

11:23 पी एम से 12:11 ए एम, अक्टूबर 03

रवि योग

पूरे दिन

विजयादशमी के दिन शमी पूजा, अपराजिता पूजा और सीमा अवलंघन या सीमोल्लंघन जैसे कुछ धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं। दिन के हिन्दु विभाजन के अनुसार, इन अनुष्ठानों को अपराह्न समय के दौरान किया जाना चाहिये।

विजयदशमी अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है, विजयदशमी का पर्व रावण पर भगवान श्री राम की विजय के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा, विजयादशमी को महिषासुर नामक दानव पर देवी दुर्गा की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। विजयादशमी को दशहरा के नाम से भी जाना जाता है। वहीं नेपाल में इस पर्व को दशैं के रूप में मनाया जाता है।

तो यह थी विजयादशमी के शुभ मुहूर्त, तिथि से जुड़ी पूरी जानकारी।

दशहरा (विजयादशमी) का महत्व

क्यों और कैसे मनाया जाता है दशहरा (विजयादशमी)

विजय के प्रतीक विजयादशमी को दशहरा नाम से भी जाना जाता है, दशहरा, 9 दिनों तक चलने वाले नवरात्रि उत्सव के समापन का प्रतीक है। हिंदु कैलेंडर के अनुसार, दशहरे का त्यौहार हिंदू मास अश्विन के दसवें दिन आता है। यह प्रमुख रूप से सितंबर या अक्टूबर के महीने में आता है।

आइये अब जानते हैं हम दशहरा क्यों मनाते हैं

त्योहारों के देश भारत में विजयादशमी का पर्व समाज के सभी वर्गों के लिए एक अलग महत्व रखता है। उत्तरी और पश्चिमी भारत में, यह रावण पर भगवान राम की जीत के जश्न के रूप में मनाया जाता है। 10 दिनों की लंबी लड़ाई के बाद उनकी पत्नी सीता का हरण करने के कारण, भगवान राम ने राक्षस रावण का वध किया था।

पूर्वी भारत में, यह त्यौहार भव्य ‘दुर्गा पूजा’ त्यौहार का समापन होता है, जहां धर्म को फिर से स्थापित करने के लिए महिष रूपी राक्षस पर देवी दुर्गा की विजय को श्रद्धा से पूजा जाता है।

भारत के हर हिस्से में, उत्साह से पूर्ण इस त्यौहार को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा विजयादशमी उत्सव दिवाली के त्यौहार की शुरूआत के साथ जुड़ा हुआ है, जो दशहरे के 20 दिन बाद मनाई जाती है।

दशहरा को भारत के हर हिस्से में पूर्ण भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है। हालांकि, यह त्यौहार विभिन्न राज्यों और शहरों में विभिन्न परंपराओं और अनुष्ठानों से जुड़ा हुआ है। आइये अब आपको बताते हैं, विजयादशमी से जुड़ी विभिन्न राज्यों की अलग-अलग प्रथाओं के बारे में,

उत्तरी भारत में दशहरा

देश के उत्तरी हिस्से में, इस दिन के सभी अनुष्ठान नवरात्रि पर ही शुरू हो जाते हैं। दशहरा समारोह वास्तविक त्यौहार से एक महीने पहले शुरू होता है, जहां मेले, नाटकों और बाजार की सजावट लोगों में प्रकाश और उल्लास का संचार करते हैं। रामायण और रामचरितमानस के आधार पर शहर के हर नुक्कड़ और कोने में नाटक होते हैं,

जहां भगवान राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान की कहानी और रावण पर उनकी जीत रंगीन ढंग से 10 दिनों की अवधि में कथाओं, और गीतों के साथ चित्रित की जाती है। ‘रामलीला’ के 10वें दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में दर्शकों के उत्साह के बीच रावण के पुतले को जलाया जाता है।

पश्चिमी भारत में दशहरा

लोग भगवान राम और देवी दुर्गा दोनों को प्रतिष्ठित करते हैं, और उनकी जीत की प्रशंसा करते हैं। गुजरात में, कुछ लोग उपवास भी करते हैं और मंदिरों में जाते हैं। महाराष्ट्र में, गानों और नृत्य के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें लोग देवताओं की मूर्तियों को ले जाते हैं, जिन्हें उन्होंने नवरात्रि के पहले दिन अपने घरों में स्थापित किया था, और उन्हें पानी में विसर्जित करके उनकी विदाई करते हैं

पूर्वी भारत में दशहरा

पूर्वी भारत में, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में, दुर्गा पूजा या नवरात्रि को सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है जिसे 9 दिनों तक मनाया जाता है। विजयादशमी दसवां दिन होता है, जब लोग देवी दुर्गा की मिट्टी की मूर्तियों को शोभायात्रा के साथ नदी में विसर्जित करते हैं और भक्ति गीतों के साथ देवी को विदाई देते हैं।

दक्षिणी भारत में दशहरा

विजयादशमी त्यौहार में दक्षिणी भारत में विभिन्न रीति-रिवाजों और परंपराओं को शामिल किया गया है। यहां, यह त्यौहार मुख्य रूप से ज्ञान और शिक्षा की देवी सरस्वती को समर्पित है। लोग अक्सर इस दिन शास्त्रीय नृत्य या संगीत जैसे सांस्कृतिक क्षेत्रों में अपनी शिक्षा शुरू करते हैं, और अपने शिक्षकों को सम्मानित भी करते हैं। तमिलनाडु में, इस त्यौहार के 9 दिन तीन देवियों को समर्पित हैं; शुरुआती तीन दिन देवी लक्ष्मी को, उसके बाद तीन दिन देवी सरस्वती को और अंतिम तीन दिन देवी दुर्गा को।

विजयादशमी के महत्व का एक अन्य पहलु भी है

देश-विदेश में दशहरे के नाम से प्रचलित यह पर्व भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय एकता को नवऊर्जा देने का महापर्व भी है। नवरात्रि के ठीक बाद आने वाला यह त्यौहार शक्ति की साधना, संघर्ष, एवं कर्मफल के महत्व को भी दर्शाता है, साथ ही यह पर्व हमारी संस्कृति को सशक्त बनाने का एक माध्यम भी है।

तो दोस्तों इस प्रकार आपने महापर्व विजयादशमी के मनाएं जाने की भिन्न-भिन्न विविधताएं जानी। हम आशा करते हैं कि आपके जीवन से भी सभी बुराइयों का अंत होगा और यह विजयादशमी आपके लिए विजय के रास्ते खोलेगी।

दशहरा कौन से लोग मना सकते हैं?

  • दशहरा एक सार्वभौमिक पर्व है जिसे हर कोई मना सकता है। यह केवल किसी विशेष जाति, वर्ग या क्षेत्र तक सीमित नहीं है।
  • हिंदू धर्मावलंबी इसे प्रमुख रूप से माँ दुर्गा और भगवान श्रीराम की आराधना के रूप में मनाते हैं।
  • व्यवसायी और विद्यार्थी इस दिन अपने कार्य, शस्त्र, पुस्तकें, वाहन और उपकरणों की पूजा करते हैं।
  • आम जन भी इस दिन नए कार्यों की शुरुआत करते हैं और अपने जीवन से नकारात्मकता दूर करने का संकल्प लेते हैं।
  • इसलिए, दशहरा वह पर्व है जिसे हर धर्म, वर्ग और उम्र के लोग अच्छाई की विजय के प्रतीक रूप में मना सकते हैं।

दशहरा के दिन किसकी पूजा करें?

माँ दुर्गा की पूजा – नवरात्रि के नौ दिन उपवास और साधना के बाद दशमी को माँ दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन करके उनकी विशेष पूजा की जाती है। भगवान श्रीराम की पूजा – इस दिन रावण वध की स्मृति में भगवान राम का स्मरण और पूजन किया जाता है। अस्त्र-शस्त्र पूजन – परंपरा के अनुसार, शस्त्र और औजारों की पूजा की जाती है। यह विजय और सुरक्षा का प्रतीक है। गुरु और बड़ों का सम्मान – दशहरा के दिन गुरु, माता-पिता और बड़ों का पूजन या आशीर्वाद लेना भी शुभ माना जाता है।

दशहरा कैसे मनाएं?

स्नान और संकल्प – सुबह स्नान करके पवित्र व्रत का संकल्प लें। माँ दुर्गा की आराधना – दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और माँ को भोग लगाएँ। रामलीला और रावण दहन – शाम को रामलीला और रावण दहन देखना या उसमें भाग लेना परंपरा का हिस्सा है। शस्त्र पूजन – अपने घर, कार्यालय या दुकान में प्रयोग होने वाले औज़ार, वाहन या शस्त्रों की पूजा करें। दान-पुण्य – गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करना विशेष पुण्यकारी है। नया कार्य शुरू करना – यह दिन नए कार्य, व्यवसाय या पढ़ाई की शुरुआत के लिए बेहद शुभ है

दशहरा के दिन किसकी पूजा करें?

माँ दुर्गा की पूजा – नवरात्रि के नौ दिन उपवास और साधना के बाद दशमी को माँ दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन करके उनकी विशेष पूजा की जाती है। भगवान श्रीराम की पूजा – इस दिन रावण वध की स्मृति में भगवान राम का स्मरण और पूजन किया जाता है। अस्त्र-शस्त्र पूजन – परंपरा के अनुसार, शस्त्र और औजारों की पूजा की जाती है। यह विजय और सुरक्षा का प्रतीक है। गुरु और बड़ों का सम्मान – दशहरा के दिन गुरु, माता-पिता और बड़ों का पूजन या आशीर्वाद लेना भी शुभ माना जाता है।

विजयादशमी और दशहरा में अंतर

अक्सर लोग विजयादशमी और दशहरा को एक ही समझ लेते हैं, लेकिन इनमें सूक्ष्म अंतर है।

विजयादशमी शब्द का अर्थ है – विजय प्राप्त करने वाली दशमी। यह नवरात्रि के दशवें दिन पड़ती है और इसे देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय तथा भगवान श्रीराम की रावण पर विजय की स्मृति में मनाया जाता है। यह धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से विजय का प्रतीक दिन है।

दशहरा का अर्थ है – "दस शिरों का हारना" अर्थात रावण का वध। यह पर्व सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से अधिक प्रसिद्ध है। दशहरे के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है, जिससे बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश मिलता है।

संक्षेप में, विजयादशमी आध्यात्मिक रूप से धर्म और शक्ति की विजय का पर्व है, जबकि दशहरा इसका सामाजिक रूप है, जो रावण दहन और उत्सवों से जुड़ा है।

दशहरा मनाने के लाभ

दशहरा केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि जीवन को सकारात्मक दिशा देने वाला अवसर भी है। इसके लाभ इस प्रकार हैं –

धार्मिक लाभ – इस दिन की गई पूजा-अर्चना से माँ दुर्गा और भगवान श्रीराम का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति होती है। साहस और शक्ति की प्राप्ति – शस्त्र पूजन और देवी आराधना से व्यक्ति में साहस, आत्मविश्वास और मानसिक शक्ति बढ़ती है। कार्य सिद्धि और सफलता – इस दिन नए कार्य, व्यवसाय या अध्ययन की शुरुआत करना अत्यंत शुभ होता है। यह सफलता और उन्नति का मार्ग खोलता है। नकारात्मकता से मुक्ति – रावण दहन जैसे प्रतीकात्मक आयोजन हमें यह संदेश देते हैं कि बुराई, अहंकार और नकारात्मक प्रवृत्तियों का अंत निश्चित है। पारिवारिक सुख-शांति – विजयादशमी पर दान-पुण्य और पारिवारिक पूजा करने से घर में शांति, सौहार्द और समृद्धि बनी रहती है। सांस्कृतिक और सामाजिक लाभ – दशहरा उत्सव समाज में एकता, मेल-जोल और सांस्कृतिक मूल्यों को मजबूत करता है।

दशहरा के दिन क्या करें?

  • माँ दुर्गा और भगवान श्रीराम की पूजा करें – इस दिन विशेष रूप से देवी दुर्गा की आराधना और भगवान श्रीराम का स्मरण करना चाहिए।
  • शस्त्र पूजन करें – पारंपरिक रूप से विजयादशमी पर अस्त्र-शस्त्र और औज़ारों की पूजा की जाती है। आधुनिक समय में लोग अपने व्यवसाय, किताबों, साधनों या गाड़ियों का पूजन करते हैं।
  • नए कार्यों की शुरुआत करें – इस दिन को "सर्वसिद्धि योग" माना गया है। नया व्यवसाय, नौकरी या अध्ययन आरंभ करना शुभ होता है।
  • दान-पुण्य करें – गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े या धन का दान करना पुण्यदायी है।
  • रावण दहन में भाग लें – यह प्रतीकात्मक आयोजन हमें बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देता है।

विजयादशमी के दिन क्या न करें?

नकारात्मक भावनाओं से बचें – क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या और लोभ जैसे विचार इस दिन त्याग देने चाहिए। मांसाहार और नशा न करें – धार्मिक मान्यता है कि दशमी के दिन शुद्ध और सात्त्विक भोजन ही करना चाहिए। झगड़ा या विवाद न करें – यह दिन शांति, भाईचारे और सद्भावना का प्रतीक है। अनादर न करें – इस दिन माता-पिता, गुरु और बड़ों का सम्मान अवश्य करें और किसी का अपमान न करें। अशुभ कार्य न करें – नकारात्मक कार्य जैसे झूठ बोलना, छल-कपट या दूसरों को नुकसान पहुँचाना इस दिन वर्जित है।

दशहरा का इतिहास

विजयादशमी का इतिहास दो प्रमुख धार्मिक कथाओं से जुड़ा है:

रामायण से संबंध – त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने इसी दिन लंका के राजा रावण का वध किया और धर्म की रक्षा की। रावण का वध बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इसी कारण इस दिन को "दशहरा" कहा जाता है।

देवी दुर्गा से संबंध – पुराणों के अनुसार, नवरात्रि के नौ दिनों तक माँ दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस से युद्ध किया और दशमी के दिन उसे परास्त किया। इसलिए इसे "विजयादशमी" कहा गया, क्योंकि यह दिन देवी की विजय का प्रतीक है।

इस प्रकार विजयादशमी का इतिहास धर्म, शक्ति और सत्य की बुराई पर जीत को दर्शाता है। यही कारण है कि आज भी इसे पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।

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Published by Sri Mandir·September 30, 2025

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