2025 में दही हांडी कब मनाई जाएगी? जानें इस त्योहार की तारीख और कैसे गोविंदा की टीमें मटकी फोड़कर मनाते हैं उत्सव।
दही हांडी उत्सव जन्माष्टमी के दूसरे दिन मनाया जाता है। इसमें युवा गोविंदा टोलियाँ पिरामिड बनाकर ऊँचाई पर टंगी दही हांडी फोड़ते हैं। यह आयोजन उत्साह, ऊर्जा और श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की याद दिलाता है।
भारत में जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की स्मृति में अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर दही हांडी उत्सव विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और मुंबई जैसे क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह उत्सव श्रीकृष्ण के बालरूप – माखनचोर के रूप में किए गए लीलाओं को समर्पित है।
इस बार तिथि की स्थिति कुछ विशेष है — चूंकि अष्टमी तिथि का समापन सूर्योदय से पहले नहीं हो रहा है, इसलिए पारंपरिक मान्यताओं और पंचांगों के अनुसार, दही हांडी उत्सव 16 अगस्त को मनाना अधिक उपयुक्त माना जा रहा है।
दही हांडी, भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ा हुआ एक अत्यंत उत्सवपूर्ण पर्व है, जिसे विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और मुंबई जैसे क्षेत्रों में भव्य रूप से मनाया जाता है। इस दिन युवा टोली 'गोविंदा पथक' मिलकर ऊँचाई पर टांगी गई हांडी को फोड़ते हैं जिसमें दही, माखन, मिश्री, मेवे और कई बार पुरस्कार राशि भी होती है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण बचपन में दही, दूध, मक्खन आदि बहुत शौक़ से खाते थे। नटखट कान्हा जी को दही-माखन इतना प्रिय था कि वह गोपियों की मटकी फोड़कर और उसमें से माखन चुरा कर खाया करते थे। इसके चलते उन्हें माता यशोदा से डांट भी सुननी पड़ती थी।
माखन के प्रति कान्हा जी के प्रेम के चलते यशोदा मैया अक्सर घर में दही हांडी को ऊँचे स्थान पर टांग देती थीं, जिससे नन्हे कान्हा उस हांडी तक न पहुंच पाएं। लेकिन कन्हैया जी को माखन खाने से कौन रोक सकता है, वह अपने मित्रों की टोली की मदद से चढ़कर हांडी फोड़ते थे और माखन खाया करते थे।
भगवान श्री कृष्ण जी की इस लीला को दही-हांडी उत्सव के रूप में याद किया जाता है। हर वर्ष जन्माष्टमी के एक दिन के बाद देश में कई जगहों पर दही-हांडी का उत्सव पूरे जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
दही हांडी की परंपरा युगों पुरानी है, परंतु इसे एक सांस्कृतिक उत्सव के रूप में महाराष्ट्र में विशेष प्रसिद्धि प्राप्त हुई। समय के साथ यह एक भव्य आयोजन में परिवर्तित हो गया, जिसमें हजारों की संख्या में लोग भाग लेते हैं।
इस दिन कई जगहों पर दही-हांडी को फोड़ने से संबंधित प्रतियोगिताओं व कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। आपको बता दें, इन प्रतियोगिताओं में कई लोग एकत्रित होकर पिरामिड का निर्माण करते हैं। इसके बाद कोई एक व्यक्ति पिरामिड की मदद से ऊपर चढ़ता है और दही-हांडी को फोड़ने का प्रयास करता है। दही हांडी फोड़ने में सफल होने वाली टीम को पुरस्कार दिया जाता है। इस प्रकार के कार्यक्रमों की मदद से समाज में एकता और धार्मिक जागृति आती है।
वैसे तो यह प्रतियोगिताएं भारत के विभिन्न राज्यों में आयोजित की जाती हैं और लोगों द्वारा तथा गली मोहल्ले में श्रद्धालुओं द्वारा दही हांडी उत्सव भव्य रूप से मनाया जाता है। लेकिन कुछ जगहों पर इसकी धूम देखने लायक होती है। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में मनाई जाने वाली दही-हांडी के उत्सव की रौनक ही कुछ अलग होती है। हर गली-मोहल्लों में ‘गोविंदा आला रे’ का शोर सुनाई देता है और इस पर्व को लेकर युवाओं का जोश देखते ही बनता है।
भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान मथुरा की भी शोभा इस पर्व से बढ़ जाती है और वृंदावन में भी लोग इसके प्रति अत्यंत उत्साहित रहते हैं।
इस प्रकार यह पर्व पूरे देश के माहौल को खुशनुमा बनाते हुए सभी लोगों में उत्साह की लहर का संचार करता है। तो यह थी दही-हांडी से संबंधित संपूर्ण जानकारी, ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारी के लिए श्री मंदिर पर अवश्य बने रहें।
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