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दही हांडी 2025 कब है?

2025 में दही हांडी कब मनाई जाएगी? जानें इस त्योहार की तारीख और कैसे गोविंदा की टीमें मटकी फोड़कर मनाते हैं उत्सव।

दही हांडी उत्सव के बारे में

दही हांडी उत्सव जन्माष्टमी के दूसरे दिन मनाया जाता है। इसमें युवा गोविंदा टोलियाँ पिरामिड बनाकर ऊँचाई पर टंगी दही हांडी फोड़ते हैं। यह आयोजन उत्साह, ऊर्जा और श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की याद दिलाता है।

2025 में कब है दही हांडी उत्सव

भारत में जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की स्मृति में अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर दही हांडी उत्सव विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और मुंबई जैसे क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह उत्सव श्रीकृष्ण के बालरूप – माखनचोर के रूप में किए गए लीलाओं को समर्पित है।

दही हांडी 2025 कब है?

  • दही हांडी उत्सव इस वर्ष शनिवार, 16 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा।
  • कृष्ण जन्माष्टमी इस बार शुक्रवार, 15 अगस्त 2025 को है।
  • इस्कॉन परंपरा के अनुसार जन्माष्टमी और दही हांडी दोनों 16 अगस्त को मनाए जाएंगे।

अष्टमी तिथि का विवरण

  • अष्टमी तिथि प्रारंभ – 15 अगस्त 2025 को रात 11:49 बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त – 16 अगस्त 2025 को रात 09:34 बजे

इस बार तिथि की स्थिति कुछ विशेष है — चूंकि अष्टमी तिथि का समापन सूर्योदय से पहले नहीं हो रहा है, इसलिए पारंपरिक मान्यताओं और पंचांगों के अनुसार, दही हांडी उत्सव 16 अगस्त को मनाना अधिक उपयुक्त माना जा रहा है।

क्या है दही हांडी?

दही हांडी, भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ा हुआ एक अत्यंत उत्सवपूर्ण पर्व है, जिसे विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और मुंबई जैसे क्षेत्रों में भव्य रूप से मनाया जाता है। इस दिन युवा टोली 'गोविंदा पथक' मिलकर ऊँचाई पर टांगी गई हांडी को फोड़ते हैं जिसमें दही, माखन, मिश्री, मेवे और कई बार पुरस्कार राशि भी होती है।

क्यों मनाई जाती है दही हांडी?

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण बचपन में दही, दूध, मक्खन आदि बहुत शौक़ से खाते थे। नटखट कान्हा जी को दही-माखन इतना प्रिय था कि वह गोपियों की मटकी फोड़कर और उसमें से माखन चुरा कर खाया करते थे। इसके चलते उन्हें माता यशोदा से डांट भी सुननी पड़ती थी।

माखन के प्रति कान्हा जी के प्रेम के चलते यशोदा मैया अक्सर घर में दही हांडी को ऊँचे स्थान पर टांग देती थीं, जिससे नन्हे कान्हा उस हांडी तक न पहुंच पाएं। लेकिन कन्हैया जी को माखन खाने से कौन रोक सकता है, वह अपने मित्रों की टोली की मदद से चढ़कर हांडी फोड़ते थे और माखन खाया करते थे।

भगवान श्री कृष्ण जी की इस लीला को दही-हांडी उत्सव के रूप में याद किया जाता है। हर वर्ष जन्माष्टमी के एक दिन के बाद देश में कई जगहों पर दही-हांडी का उत्सव पूरे जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

दही हांडी का महत्व

  • यह पर्व सामूहिक एकता, अनुशासन, टीमवर्क और साहस का प्रतीक बन चुका है।
  • इससे भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।
  • युवाओं में सामूहिक नेतृत्व और सहयोग की भावना उत्पन्न होती है।
  • यह उत्सव धार्मिक आस्था और सामाजिक चेतना दोनों को जागृत करता है।

दही हांडी उत्सव का इतिहास

दही हांडी की परंपरा युगों पुरानी है, परंतु इसे एक सांस्कृतिक उत्सव के रूप में महाराष्ट्र में विशेष प्रसिद्धि प्राप्त हुई। समय के साथ यह एक भव्य आयोजन में परिवर्तित हो गया, जिसमें हजारों की संख्या में लोग भाग लेते हैं।

दही हांडी कैसे मनाते हैं?

  • उत्सव वाले दिन गली-मोहल्लों और चौक-चौराहों पर ऊँचाई पर मटकी (हांडी) बांधी जाती है जिसमें दही, मक्खन, मिश्री, मेवे और कभी-कभी धनराशि भी भरी जाती है।
  • गोविंदा पथक नाम की युवा टोली गीतों और ढोल-नगाड़ों के साथ मैदान में प्रवेश करती है।
  • टोली के सदस्य मानव पिरामिड बनाकर हांडी तक पहुंचने का प्रयास करते हैं और अंत में उसे फोड़ते हैं।
  • हांडी फूटते ही वातावरण जयकारों, बधाइयों और गुलालों से भर जाता है।

दही हांडी के धार्मिक और सामाजिक लाभ

  • भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • यह पर्व सामूहिक एकता, अनुशासन और साहस का प्रतीक बन चुका है। और भाईचारे की भावना को बढ़ावा मिलता है।
  • इसमें भाग लेने वाले युवाओं में टीमवर्क और सामूहिक नेतृत्व का विकास होता है।
  • यह पर्व उत्साह, उमंग और धार्मिक ऊर्जा से जीवन को सराबोर कर देता है।

इस दिन कई जगहों पर दही-हांडी को फोड़ने से संबंधित प्रतियोगिताओं व कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। आपको बता दें, इन प्रतियोगिताओं में कई लोग एकत्रित होकर पिरामिड का निर्माण करते हैं। इसके बाद कोई एक व्यक्ति पिरामिड की मदद से ऊपर चढ़ता है और दही-हांडी को फोड़ने का प्रयास करता है। दही हांडी फोड़ने में सफल होने वाली टीम को पुरस्कार दिया जाता है। इस प्रकार के कार्यक्रमों की मदद से समाज में एकता और धार्मिक जागृति आती है।

वैसे तो यह प्रतियोगिताएं भारत के विभिन्न राज्यों में आयोजित की जाती हैं और लोगों द्वारा तथा गली मोहल्ले में श्रद्धालुओं द्वारा दही हांडी उत्सव भव्य रूप से मनाया जाता है। लेकिन कुछ जगहों पर इसकी धूम देखने लायक होती है। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में मनाई जाने वाली दही-हांडी के उत्सव की रौनक ही कुछ अलग होती है। हर गली-मोहल्लों में ‘गोविंदा आला रे’ का शोर सुनाई देता है और इस पर्व को लेकर युवाओं का जोश देखते ही बनता है।

भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान मथुरा की भी शोभा इस पर्व से बढ़ जाती है और वृंदावन में भी लोग इसके प्रति अत्यंत उत्साहित रहते हैं।

दही हांडी के दिन क्या करें?

  • श्रीकृष्ण के बालरूप की पूजा करें।
  • स्थानीय दही हांडी कार्यक्रमों में सहभागी बनें या दर्शक रूप में आनंद लें।
  • व्रत, भजन-कीर्तन और दान करें।

दही हांडी के दिन क्या न करें?

  • अत्यधिक ऊँचाई या जोखिमपूर्ण प्रयासों से बचें।
  • प्रतियोगिता में अनुशासनहीनता न करें।
  • सुरक्षा मानकों की अवहेलना न करें।

विशेष जानकारी

  • महाराष्ट्र, खासकर मुंबई, में ‘गोविंदा आला रे’ के नारों से गलियाँ गूंज उठती हैं।
  • मथुरा और वृंदावन में भी इस उत्सव की छटा देखने लायक होती है।
  • दही हांडी अब न केवल धार्मिक उत्सव बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक आयोजन का स्वरूप बन चुका है।

इस प्रकार यह पर्व पूरे देश के माहौल को खुशनुमा बनाते हुए सभी लोगों में उत्साह की लहर का संचार करता है। तो यह थी दही-हांडी से संबंधित संपूर्ण जानकारी, ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारी के लिए श्री मंदिर पर अवश्य बने रहें।

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Published by Sri Mandir·August 6, 2025

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