
चम्पा षष्ठी 2025 कब है? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और धार्मिक महत्व। पूरी जानकारी के लिए अभी पढ़ें!
चम्पा षष्ठी भगवान कार्तिकेय को समर्पित पवित्र पर्व है। इस दिन भक्त उपवास रखकर प्रभु की पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि इस व्रत से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख, शांति व आरोग्य की प्राप्ति होती है।
चंपा षष्ठी मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है। इस दिन भगवान शिव के मल्हारी मार्तंड खंडोबा स्वरूप की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इसे स्कंद षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक और अन्य दक्षिणी राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। भक्त इस दिन पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव और उनके पुत्र कार्तिकेय की आराधना करते हैं। चंपा षष्ठी का पर्व छह दिवसीय उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसमें विशेष पूजा, हवन, भंडारे और कीर्तन का आयोजन किया जाता है।
चंपा षष्ठी का महत्व कई धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। इस दिन भगवान शिव ने मल्हारी मार्तंड का रूप धारण कर मणिमल्ल नामक राक्षस का वध किया था और संसार को अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी। इस अवसर पर भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से सभी दुःख, दोष और जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। इसके अलावा, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा भी विशेष फलदायक मानी जाती है, जिससे व्यक्ति लोभ, मोह और अन्य बुरी प्रवृत्तियों से मुक्त होता है।
चंपा षष्ठी के व्रत और पूजा के प्रभाव से भक्तों को संपत्ति, सुख-समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य और वैभव की प्राप्ति होती है। इस दिन किए गए दान, भजन-कीर्तन और ब्राह्मण सेवा से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इसलिए यह पर्व जीवन में आध्यात्मिक शांति और मानसिक संतोष लाने वाला माना जाता है।
चंपा षष्ठी के दिन मुख्य रूप से भगवान शिव के स्वरूप मल्हारी मार्तंड खंडोबा और उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा की जाती है। मराठी और दक्षिण भारतीय परंपरा में मल्हारी मार्तंड खंडोबा को 84 भैरवों में एक मानते हैं और वे किसानों, चरवाहों और शिकारियों के कुलदेवता माने जाते हैं। इस दिन भगवान शिव के खंडोबा रूप का पूजन करने से सभी दुःख, दोष और जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। साथ ही, इस अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा का भी विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, कार्तिकेय और विष्णु की पूजा करने से संपत्ति, सुख-समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य और वैभव की प्राप्ति होती है।
चंपा षष्ठी पर पूजा करने के लिए निम्नलिखित सामग्री का उपयोग किया जाता है:
इस सामग्री का उपयोग करके भक्त विधिवत पूजा और हवन-अर्चना करते हैं और इस दिन फलाहार या निर्जला व्रत रखते हुए धार्मिक लाभ प्राप्त करते हैं।
चम्पा षष्ठी पर पूजा करने का उद्देश्य भगवान मल्हारी मार्तंड खंडोबा (शिव) और उनके पुत्र कार्तिकेय की उपासना करना है। पूजा विधि इस प्रकार है:
स्वच्छता और तैयारी:
मूर्ति या चित्र स्थापना:
पंचामृत और भोग अर्पित करना:
ध्यान और मंत्र जप:
हवन और आरती:
चंपा षष्ठी पर भगवान मल्हारी मार्तंड खंडोबा और भगवान कार्तिकेय को विशेष भोग लगाया जाता है। मुख्य भोग इस प्रकार हैं:
फल और मिठाई: केले, नारियल, खजूर, आम, मौसमी फल।
परंपरागत व्यंजन:
बैंगन
बाजरे की रोटी
पूरन पोली
पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और शक्कर।
अन्य: हल्दी, कुमकुम, पुष्प, धूप, दीपक आदि।
ध्यान दें: भोग और प्रसाद हमेशा स्वच्छ और पवित्र सामग्री से ही तैयार करें।
चम्पा षष्ठी व्रत रखने वाले व्यक्ति को निम्न नियमों का पालन करना चाहिए:
स्वच्छता: सुबह स्नान करके साफ वस्त्र पहनें। पूजा और संकल्प: भगवान शिव और कार्तिकेय की मूर्ति/चित्र स्थापित कर पूजा का संकल्प लें। व्रत पालन:
दान-पुण्य: ब्राह्मणों को भोजन, कंबल, ऊनी कपड़े या अन्य दान देना शुभ माना गया। कीर्तन और भजन: दिन भर कथा सुनें, भजन-कीर्तन करें और भगवान का ध्यान लगाएँ। रात में जागरण: कुछ भक्त रात में जागरण कर पूजा का समापन करते हैं।
इन नियमों का पालन करने से व्रत धारक को संपत्ति, सुख-समृद्धि, उत्तम संतान, स्वास्थ्य और सभी दुखों से मुक्ति प्राप्त होती है।
मराठी समाज के अनुसार ऐसी मान्यता है कि 84 भैरव में से मल्हारी मार्तंड खंडोबा भी एक हैं। मार्तंड खंडोबा महाराष्ट्र में रहने वाले कई परिवारों के कुल देवता माने जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, चंपा षष्ठी के दिन ही भगवान शंकर ने मल्हारी मार्तंड का रूप धारण कर मणिमल्ल नामक राक्षस का वध किया था, और उसके अत्याचार से संसार को मुक्ति दिलाई थी।
मराठी परिवारों में इस छह दिवसीय महोत्सव को हर वर्ष बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। चंपा षष्ठी पर विशेष पूजा-अर्चना के साथ साथ कई अन्य आयोजन भी किए जाते हैं। यह उत्सव मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर षष्ठी तक चलता है। जिस तरह नवरात्र का व्रत रखकर पूजा अर्चना की जाती है, वैसे ही चंपा षष्ठी भी छह दिवसीय पर्व के रूप में मनाई जाती है।
भगवान शंकर के इस खंडोबा स्वरूप को किसानों, चरवाहों और शिकारियों का स्वामी माना जाता है। इस दिन कार्तिकेय और खंडोबा बाबा की पूजा करने से सारे दुख, दोष दूर हो जाते हैं, साथ ही जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है।
चंपा षष्ठी पर इस उत्सव के आराध्य देव खंडोबा बाबा की विशेष पूजा-आराधना की जाती है। इस दिन उनकी प्रतिमा पर हल्दी उड़ाने की रस्म के साथ हवन-पूजन किया जाता है, साथ ही भक्त इस अवसर पर भंडारे का भी आयोजन करते हैं। इसमें मल्हारी मार्तंड को बैंगन, बाजरे की रोटी, पूरन पोली और कई अन्य पारंपरिक व्यंजनों का भोग लगाया जाता है।
दक्षिण भारतीय लोग इस दिन महादेव के पुत्र कार्तिकेय की पूजा करते हैं। मान्यता है कि षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा हर मनोकामना को पूर्ण करने में सहायक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्कंद षष्ठी के दिन कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था। शास्त्रों में ये भी वर्णन मिलता है कि स्कंद षष्ठी का व्रत करने से काम, क्रोध, मद, मोह, अहंकार से मुक्ति मिलती है, और जीवन सुखमय होता है।
पुराणों में ऐसा वर्णन है कि भगवान विष्णु ने माया मोह में पड़े नारद जी का इसी दिन उद्धार करते हुए लोभ से मुक्ति दिलाई थी। इस दिन कार्तिकेय के साथ भगवान श्रीहरि विष्णु जी के पूजन का विशेष महत्व माना गया है।
चम्पा षष्ठी व्रत के प्रभाव से नि:संतान दंपत्तियों को उत्तम संतान की प्राप्ति होती है, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि और वैभव आता है।
तो भक्तों, यह थी चंपा षष्ठी व्रत से जुड़ी विशेष जानकारी। हमारी कामना है कि इस दिन आपके द्वारा किया गया व्रत उपवास सफल हो, और ईश्वर की कृपा आपपर सदैव बनी रहे। ऐसी ही धार्मिक जानकारियां के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर पर
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