बलराम जयंती 2025: तिथि, पूजा विधि, व्रत कथा और धार्मिक जानकारी
image
downloadDownload
shareShare
ShareWhatsApp

बलराम जयंती 2025: तिथि, पूजा विधि, व्रत कथा और धार्मिक जानकारी

बलराम जयंती भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को आता है। बलराम जी को शक्ति, धर्म और कृषक समाज के रक्षक के रूप में पूजा जाता है।

बलराम जयंती के बारे में

बलराम जयंती भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। यह दिन शक्ति, सत्य और धर्म की प्रतीकता का उत्सव है। भक्तजन पूजा, व्रत और भक्ति गीतों से भगवान बलराम का स्मरण करते हैं।

बलराम जयन्ती (हल छठ) का शुभ मुहूर्त एवं महत्व

नमस्कार दोस्तों! हम सभी ने भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई, बलराम जी के बारे में तो सुना ही है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद के कृष्‍ण पक्ष की षष्ठी को बलराम जयंती मनाई जाती है, जिसे हलछठ भी कहते हैं। इसे पीन्नी छठ, खमर छठ, राधन छठ, चंदन छठ, तिनछठी, ललही छठ, तिन्नी छठ और कहीं-कहीं पर इसे हलछठ या हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। आज इस लेख में हम जानेंगे कि साल 2025 में बलराम जयन्ती यानी कि हलछठ त्योहार कब है? और इसका महत्व क्या है?

सबसे पहले जानते हैं कि बलराम जयंती (हलछठ) कब है?

बलराम जयंती (हलछठ) पर्व - रक्षा बंधन के ठीक छह दिन बाद मनाया जाता है।

  • बलराम जयंती (हलछठ) - 14 अगस्त 2025, बृहस्पतिवार (भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, षष्ठी तिथि)
  • षष्ठी तिथि प्रारम्भ - अगस्त 14, 2025 को 04:23 ए एम बजे से
  • षष्ठी तिथि समाप्त - अगस्त 15, 2025 को 02:07 ए एम बजे तक

चलिए अब जानते हैं बलराम जयंती के शुभ मुहूर्त

मुहूर्त 

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:23 ए एम से 05:07 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:45 ए एम से 05:50 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

11:59 ए एम से 12:52 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:37 पी एम से 03:30 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

07:01 पी एम से 07:23 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

07:01 पी एम से 08:06 पी एम तक

अमृत काल

06:50 ए एम से 08:20 ए एम तक

निशिता मुहूर्त

12:04 ए एम, अगस्त 15 से 12:47 ए एम, 15 अगस्त तक

विशेष योग

रवि योग

09:06 ए एम से 05:50 ए एम, 15 अगस्त तक

सर्वार्थ सिद्धि योग

पूरे दिन

क्यों मनाते हैं बलराम जयंती?

बलराम जयंती भगवान बलराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार, श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान विष्णु के शेषनाग स्वरूप ने पृथ्वी पर बलराम के रूप में अवतार लिया था। वे भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई थे और धर्म, शक्ति, और मर्यादा के प्रतीक माने जाते हैं। बलराम जयंती के दिन व्रत, पूजा और कथा श्रवण का विशेष महत्व होता है। यह दिन संतान सुख, उनके अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना के लिए विशेष रूप से पूजनीय है।

बलराम जयंती को हलछठ क्यों कहते हैं? बलराम जयंती व हलछठ में अंतर

बलराम जयंती को ही कई क्षेत्रों में हलछठ, हरछठ या ललई छठ भी कहा जाता है। ‘हल’ का अर्थ है — हल (कृषि का उपकरण) और ‘छठ’ का अर्थ — छठी तिथि। चूंकि बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल था और वे कृषक समुदाय के संरक्षक माने जाते हैं, इसलिए इस दिन को 'हलछठ' नाम मिला।

बलराम जयंती और हलछठ मूल रूप से एक ही दिन पर मनाए जाने वाले त्योहार हैं, लेकिन इनके महत्व की अभिव्यक्ति अलग-अलग होती है। जहाँ बलराम जयंती भगवान बलराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है, वहीं हलछठ मुख्य रूप से मातृत्व, संतान-सुख और बच्चों की लंबी उम्र के लिए माताओं द्वारा रखा गया व्रत होता है।

बलराम जयंती का महत्व

बलराम जयंती का महत्व केवल भगवान बलराम के जन्म के रूप में ही नहीं, बल्कि इसे शक्ति, धैर्य और कर्तव्यनिष्ठा के प्रतीक पर्व के रूप में भी देखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं श्रद्धा से व्रत करती हैं, उन्हें संतान-सुख प्राप्त होता है। जिन दंपत्तियों को संतान नहीं होती, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है। साथ ही, यदि किसी बालक को कोई रोग या कष्ट हो, तो उस स्थिति में भी इस व्रत को रखने से लाभ मिलता है।

यह व्रत विशेष रूप से माताएं अपने पुत्र की दीर्घायु और समृद्धि के लिए रखती हैं। पूजा के अंत में महिलाएं संतान की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। प्राचीन मान्यता के अनुसार, शिशु के जन्म के छह दिन तक छठी माता ही उसकी रक्षा करती हैं, और बलराम जयंती का दिन उसी छठी माता को भी समर्पित होता है।

कौन थे बलराम?/बलराम को किस भगवान का अवतार मानते हैं?

भगवान बलराम, भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई थे और विष्णु के शेषनाग स्वरूप माने जाते हैं। उनका जीवन शक्ति, शौर्य और धर्म का प्रतीक है। वे न केवल अत्यंत शक्तिशाली थे, बल्कि आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई और समर्पित पति के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि शक्ति का प्रयोग सदैव धर्म के मार्ग पर चलते हुए, मर्यादा में रहकर करना चाहिए।

बलराम जी ने सदैव अपने कर्तव्यों का पालन किया, चाहे वह भाई के रूप में श्रीकृष्ण का साथ देना हो या गुरु के रूप में अपने शिष्यों को धर्म का ज्ञान देना। उनके जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि हमें अपने कर्तव्यों को निष्ठा, धैर्य और विनम्रता से निभाना चाहिए।

बलराम जयन्ती (हलछठ) त्योहार का महत्व क्या है?

वहीं अगर अब इस पर्व की मान्यता के बारे में बात करें तो, इसी दिन धरती पर शेषनाग ने, भगवान बलराम के रूप में अवतार लिया था। इस दिन, जो महिलाएं सच्चे मन से व्रत और पूजा आदि करती है, इस व्रत के प्रभाव से उनकी संतान को, लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही, अगर निसंतान दंपत्ति भी इस दिन व्रत करती हैं, तो उन्हें भी संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है। इतना ही नहीं, अगर किसी की संतान किसी रोग से पीड़ित है, तो उन्हें भी बलराम जयंती का व्रत रखने की सलाह दी जाती है।

यही नहीं हरछठ का व्रत पुत्रों की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं। इस व्रत में महिलाओं को विधि-पूर्वक से पूजा सपंन करनी चाहिए और अंत में पुत्र की लंबी आयु और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करनी चाहिए।

प्राचीन समय से चली आ रही एक मान्यता ऐसी भी है, कि जब भी किसी बच्चे का जन्म होता है, तब पहले दिन से लेकर 6 महीने तक, छठी माता ही सुक्ष्म रूप से बच्चे की देखभाल करती हैं। इसलिए तो बच्चे के जन्म के छठवें दिन, छठी माता की पूजा की जाती है।

बलराम को शक्ति और बल का प्रतीक माना जाता है। साथ ही, उन्हें एक आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई और एक अच्छे पति के रूप में भी देखा जाता है। उन्होंने सदैव अपने कर्तव्यों का पालन किया है। बलराम जी से सीख लेकर, हमें हमेशा धर्म के मार्ग पर चलते हुए, अपने सभी कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। क्या आपको यह जानकारी अच्छी लगी? ऐसी और रोचक बातें और तथ्यों को जानने के लिए, बने रहिये श्री मंदिर के साथ।

बलराम जयंती पर पूजा कैसे करें?

हल षष्ठी की पूजा की विधि के अनुसार, इस दिन व्रती को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, अगर संभव हो सके तो महुआ का दातुन करते हुए। अपना स्नानादि संपन्न करना चाहिए। इसके बाद उपासक पूजा स्थल साफ कर लें। फिर पूजा स्थल के पास की दीवार के कुछ हिस्से पर गोबर से लीपें और उसमें भैंस के घी में सिंदूर मिलाकर उससे हलषष्ठी माता का चित्र बनाएं। फिर पूजा स्थल के समीप मिट्टी का एक छोटा सा तालाब बनाकर उसमें पानी भर लें।

अब आप पलाश की टहनी, कुश और झरबेरी के झाड़ को एक साथ गांठ बांधकर हरछठ बना लें। इसके बाद बनाए हुए तालाब के पास की थोड़ी सी ज़मीन को लीपकर उस हरछठ को वहाँ लगा दें। इस हरछठ की आपको पूजा के अंत में भी ज़रूरत पड़ेगी। अब आप वहां एक चौकी रखें जिसपर, मिट्टी से बनी गौरी, गणेश, शिव और कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें। साथ ही मिट्टी के एक कलश में पानी भरकर, उसके ऊपर भी हलषष्ठी देवी का चित्र बनाएं।

चित्र बनाने के बाद आप मिट्टी के बर्तन में छह प्रकार का अनाज और मेवा रख लें। हरछठ पर जनेऊ का सूत्र बांधते हुए, अब आप पूजा शुरू करें। माता को हर तरह की सौभाग्य सामग्री अर्पित करें। पूजन के बाद आप हरछठ की व्रत कथा सुनें और अंत में मॉं की आरती उतारें। इससे पहले आपने जो हरछठ बनाया, उसको हल्दी के पानी में भिगोकर, आप अपने संतान की कमर पर छुआ लें। मान्यता है, कि यह आपके संतान के रक्षा कवच का काम करता है।

इसके बाद सभी में प्रसाद वितरण करें। आपको बता दें हलषष्ठी देवी के प्रसाद में भुना हुआ महुआ, धान का लावा, भुना हुआ चना, गेहूं, अरहर इत्यादि शामिल कर सकते हैं। इसके बाद आपकी पूजा संपूर्ण होती है।

बलराम जयंती मनाने के लाभ

बलराम जयंती पर विधिपूर्वक व्रत और पूजा करने से संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। यह व्रत विशेष रूप से माताएं अपने बच्चों की आरोग्यता और उन्नति के लिए करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन बलराम जी का ध्यान करने से बल, धैर्य और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। वहीं, जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित हैं, उन्हें भी इस दिन श्रद्धा से उपवास करने पर संतान प्राप्ति का फल मिल सकता है। साथ ही, संतान संबंधी परेशानियां भी दूर होती हैं।

बलराम जयंती का व्रत कैसे करें?

बलराम जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें। घर के पूजन स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और वहां बलराम जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पूजा में हल, मूसल, फल, पुष्प, अक्षत, रोली, दूर्वा, तुलसी दल आदि का प्रयोग करें। बलराम जी को सफेद वस्तुएं चढ़ाना शुभ माना जाता है। उन्हें दही, दूध, मक्खन और चने का भोग अर्पित करें। इसके बाद व्रत कथा सुनें और भगवान बलराम की आरती करें।

बलराम जयंती व्रत के नियम

  • इस दिन व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
  • सात्विक भोजन ही करें और तामसिक वस्तुओं से दूर रहें।
  • पूजा से पहले और बाद में किसी का अपमान न करें और झूठ न बोलें।
  • दिनभर भगवान बलराम के नाम का जप करें और उनकी कथाओं का श्रवण करें।
  • शाम को पुनः पूजा करके फलाहार ग्रहण करें।

बलराम जयंती पर कैसे पाएं भगवान बलराम का आशीर्वाद

भगवान बलराम के आशीर्वाद के लिए इस दिन मन, वचन और कर्म से पवित्र रहें। पूरे दिन सच्चे मन से भगवान बलराम की भक्ति करें, उनकी आरती और स्तुति करें। व्रत करते समय केवल अपने लिए नहीं, संतान और परिवार की भलाई के लिए भी प्रार्थना करें। संभव हो तो बलराम जी के मंदिर में जाकर दर्शन करें या घर पर श्रीकृष्ण और बलराम की युगल पूजा करें। श्रद्धा और भक्ति से की गई साधना निश्चित ही बलराम जी की कृपा दिलाती है।

divider
Published by Sri Mandir·August 5, 2025

Did you like this article?

srimandir-logo

श्री मंदिर ने श्रध्दालुओ, पंडितों, और मंदिरों को जोड़कर भारत में धार्मिक सेवाओं को लोगों तक पहुँचाया है। 50 से अधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साझेदारी करके, हम विशेषज्ञ पंडितों द्वारा की गई विशेष पूजा और चढ़ावा सेवाएँ प्रदान करते हैं और पूर्ण की गई पूजा विधि का वीडियो शेयर करते हैं।

हमारा पता

फर्स्टप्रिंसिपल ऐप्सफॉरभारत प्रा. लि. 435, 1st फ्लोर 17वीं क्रॉस, 19वीं मेन रोड, एक्सिस बैंक के ऊपर, सेक्टर 4, एचएसआर लेआउट, बेंगलुरु, कर्नाटका 560102
YoutubeInstagramLinkedinWhatsappTwitterFacebook