
क्या आप जानते हैं अहोई अष्टमी 2025 का सही दिन और शुभ मुहूर्त? जानें पूजा विधि और व्रत के बारे में सम्पूर्ण विवरण।
अहोई अष्टमी का व्रत माताओं द्वारा संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की आयु लंबी होती है और घर में सुख शांती बनी रहती है। तो चलिए इस आर्टिकल में हम अहोई अष्टमी व्रते के शुभ मुहुर्त, तारीख और पूजा करने की विधी को जानेंगे।
अहोई अष्टमी का पर्व अहोई माता या अहोई देवी को समर्पित एक भारतीय पर्व है। इसे मुख्यत: उत्तर भारत में कार्तिक मास के अंधेरे पखवाड़े अर्थात कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व करवा चौथ के चार दिन बाद तथा दीपावली के आठ दिन पूर्व मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसका शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार इस बार अहोई अष्टमी का पर्व 13 अक्टूबर 2025, सोमवार को मनाया जाएगा। इस दिन अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 33 मिनट से शाम 06 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। जिसकी कुल अवधि 01 घण्टे 14 मिनट की है।
मुहूर्त  | समय  | 
ब्रह्म मुहूर्त  | 04:16 ए एम से 05:06 ए एम  | 
प्रातः सन्ध्या  | 04:41 ए एम से 05:55 ए एम  | 
अभिजित मुहूर्त  | 11:21 ए एम से 12:07 पी एम  | 
विजय मुहूर्त  | 01:40 पी एम से 02:27 पी एम  | 
गोधूलि मुहूर्त  | 05:33 पी एम से 05:57 पी एम  | 
सायाह्न सन्ध्या  | 05:33 पी एम से 06:47 पी एम  | 
रवि योग  | 05:55 ए एम से 12:26 पी एम  | 
निशिता मुहूर्त  | 11:19 पी एम से 12:09 ए एम, अक्टूबर 14  | 
हिन्दू धर्म में प्रत्येक त्यौहार एवं पर्व का अपना विशेष महत्व है। इसी क्रम में करवा चौथ व्रत के ठीक चार दिन बाद आने वाली अष्टमी तिथि को देवी अहोई माता का व्रत किया जाता है। चूँकि कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में यह व्रत रखा जाता है इसलिए इसे अहोई अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
अहोई अष्टमी के दिन माताएँ अपने पुत्रों की दीर्घायु एवं सुख समृद्धि के लिए भोर से लेकर शाम तक उपवास करती हैं। शाम के दौरान आकाश में तारों को देखने के बाद व्रत खोला जाता है। कुछ महिलाएँ चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत का पारण करती हैं, लेकिन इसका अनुसरण करना अत्यंत कठिन होता है, क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन रात में चन्द्रोदय बहुत देर से होता है।
अहोई अष्टमी का दिन अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह व्रत अष्टमी तिथि, जो कि माह का आठवाँ दिन होता है, के दौरान किया जाता है। करवा चौथ के समान अहोई अष्टमी का दिन भी कठोर उपवास का दिन होता है और बहुत सी महिलाएँ पूरे दिन जल भी ग्रहण नहीं करती।
हिन्दू धर्म में प्रत्येक त्यौहार एवं पर्व का अपना विशेष महत्व है। इसी क्रम में करवा चौथ व्रत के ठीक चार दिन बाद आने वाली अष्टमी तिथि को देवी अहोई माता का व्रत किया जाता है। चूँकि कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में यह व्रत रखा जाता है इसलिए इसे अहोई अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
अहोई अष्टमी के दिन माताएँ अपने पुत्रों की दीर्घायु एवं सुख समृद्धि के लिए भोर से लेकर शाम तक उपवास करती हैं। शाम के दौरान आकाश में तारों को देखने के बाद व्रत खोला जाता है। कुछ महिलाएँ चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत का पारण करती हैं, लेकिन इसका अनुसरण करना अत्यंत कठिन होता है, क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन रात में चन्द्रोदय बहुत देर से होता है।
अहोई अष्टमी का दिन अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह व्रत अष्टमी तिथि, जो कि माह का आठवाँ दिन होता है, के दौरान किया जाता है। करवा चौथ के समान अहोई अष्टमी का दिन भी कठोर उपवास का दिन होता है और बहुत सी महिलाएँ पूरे दिन जल भी ग्रहण नहीं करती।
माना जाता है की अहोई अष्टमी का उपवास करने वाली माताओं की सभी संतानों को माता अहोई सफल जीवन, अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र का आशीर्वाद देती हैं। इस व्रत की महिमा इतनी अपार है, कि माना जाता है, इसके प्रभाव से निसंतानों को भी संतान रत्न की प्राप्ति होती है। इस दिन अहोई माता के साथ तारों और चन्द्रमा की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन माता पार्वती और शिव जी की पूजा करने से विशेष फल मिलता है और व्रत करने वाली माताओं की संतानों को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।
अहोई अष्टमी अहोई माता को समर्पित है। करवा चौथ के चार दिन बाद मनाया जाने वाला अहोई अष्टमी का व्रत, महिलाऐं अपनी संतान की लम्बी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती हैं। अहोई अष्टमी के दिन महिलाऐं पूरे दिन निर्जला व्रत करती हैं, और संध्या समय तारे उदय होने के बाद पूजा करके तारों का दर्शन करती हैं। इसके बाद ही महिलाएं अपने व्रत का पारण करती हैं।
जल से भरा हुआ कलश, पुष्प, धुप-दीप, रोली, दूध-भात, मोती की माला या चांदी के मोती, गेंहू, और दक्षिणा (बायना), घर में बने 8 पुड़ी और 8 मालपुए।
हिंदू धर्म में कई व्रत और त्यौहार मनाए जाते हैं, जिनके अपने अलग-अलग महत्व है। कुछ व्रत महिलाएं अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं, तो कुछ संतान के उज्जवल भविष्य और अच्छे स्वास्थ्य के लिए। इन्हीं व्रत में से एक है अहोई अष्टमी का व्रत। जो हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर दिवाली से लगभग आठ दिन पहले और करवा चौथ के चौथे दिन रखा जाता है।
इस दिन महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु के साथ-साथ संतान प्राप्ति के लिए भी व्रत रखती हैं। महिलाएं इस दिन अहोई माता की पूजा करती हैं। साथ ही इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है। मान्यता है कि अहोई माता के पूजन से संतान के जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं, और उसे निरोगी काया मिलती है।
मान्यताओं के अनुसार अहोई अष्टमी व्रत के कुछ नियम बताए गए हैं, जिन्हें ध्यान में रखना अति आवश्यक है। आज हम आपको बताएंगे इस दिन व्रती महिलाओं को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। साथ ही अहोई अष्टमी में आप क्या खा सकते हैं।
व्रत का संकल्प
उपासना स्थल की तैयारी
अहोई माता की पूजा सामग्री
सूर्योदय से सूर्यास्त तक व्रत
संध्या पूजन विधि
तारा दर्शन या चंद्र दर्शन के बाद पारण
दान और कथा श्रवण
संतान सुख और दीर्घायु की प्राप्ति
माँ अहोई की कृपा
परिवार की समृद्धि
पुण्य और सौभाग्य की वृद्धि
कठिनाइयों से मुक्ति
Did you like this article?

देव दीवाली 2025: जानें कब है, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि। इस दिन भगवान शिव की आराधना से पाएं विशेष फल, सुख-समृद्धि और शांति का आशीर्वाद।

कार्तिक चौमासी चौदस 2025: जानें कब है, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्त्व। विशेष पूजा विधि से पाएं पुण्य लाभ।

जानें मणिकर्णिका स्नान की तिथि, महत्व और पूजा विधि। इस शुभ स्नान का धार्मिक महत्व और लाभ प्राप्त करें। मणिकर्णिका स्नान कब है, जानने के लिए पढ़ें।