स्कन्द षष्ठी व्रत जिसे करने से आपकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।
स्कन्द षष्ठी व्रत भगवान कार्तिकेय को समर्पित एक पावन पर्व है, जिसे विशेष रूप से दक्षिण भारत में बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र, देवसेना के अधिपति कार्तिकेय को शक्ति और विजय का देवता माना जाता है। चलिए जानते हैं इस व्रत से जुड़ी रोचक कथा के बारे में।
कुमार कार्तिकेय के जन्म का वर्णन हमें पुराणों में ही मिलता है। जब देवलोक में असुरों ने आतंक मचाया हुआ था, तब देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ा था।
लगातार हो रहे राक्षसों के आतंक से सभी देवतागण परेशान थे। ऐसे में देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से मदद की गुहार मांगी। देवताओं ने अपनी समस्या का पूरा वृतांत ब्रह्मा जी को बताया। जिसपर ब्रह्मा जी ने कहा कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही इन असुरों का नाश होगा, लेकिन उस काल चक्र में माता सती के वियोग में भगवान शिव समाधि में लीन थे।
ऐसे में इंद्र और सभी देवताओं ने भगवान शिव को समाधि से जगाने के लिए भगवान कामदेव की मदद मांगी। जिसके बाद कामदेव ने खुद भस्म होकर भगवान भोलेनाथ की तपस्या को भंग कर दिया। और फिर आखिरकार भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया। विवाह के बाद वो दोनों देवदारु वन में एकांतवास के लिए चले गए।
उस वक्त भगवान शिव और माता पार्वती एक गुफा में निवास कर रहे थे। उस वक्त एक कबूतर गुफा में चला गया और उसने भगवान शिव के वीर्य का पान कर लिया परंतु वह इसे सहन नहीं कर पाया और भागीरथी को सौंप दिया। गंगा की लहरों के कारण वीर्य 6 भागों में विभक्त हो गया और इससे 6 बालकों का जन्म हुआ। यह 6 बालक मिलकर 6 सिर वाले बालक बन गए। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म हुआ।
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