आमलकी एकादशी की व्रत कथा
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आमलकी एकादशी की व्रत कथा (Amalki Ekadashi Vrat Katha)

प्राचीन काल में वैदिक नामक एक राज्य था जहां एक अत्यंत धार्मिक एवं विष्णु भक्त राजा चैत्ररथ राज करते थे। उनका राज्य अत्यंत सुखी और समृद्ध था। उस राज्य में कोई भी अधर्मी, पापी या नास्तिक नहीं था।

एक बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की आमलकी नामक एकादशी आई। उस दिन राजा और उनकी समस्त प्रजा ने आनंदपूर्वक एकादशी का उपवास किया और मंदिर आकर कलश स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न, छत्र आदि से श्री हरि का पूजन किया और प्रार्थना की - कि “हे प्रभु, हम सभी के पापों का हरण करो।”

तभी वहां एक बहेलिया आया जो पशु हत्या जैसे कई पाप कर्म करके अपने परिवार का भरण पोषण करता था। थकान और प्यास के कारण वह शक्ति हीन हो चुका था, अतः वो उसी आमलकी वृक्ष के नीचे बैठ गया और पूरी रात्रि राजा और प्रजा द्वारा की जा रही आमलकी एकादशी की पूजा- आराधना देखता रहा। प्रातः होते ही राजा ने अपनी प्रजा के साथ एकादशी व्रत का पारण किया, उसके पश्चात् वो सब अपने राज्य में वापस चले गए। राजा के जाने के बाद वो बहेलिया भी अपनी झोपड़ी में वापस लौट गया।

कुछ समय पश्चात् उस पापी बहेलिया का अंतकाल निकट आया। आमलकी एकादशी व्रत कथा व हरि कीर्तन का श्रवण करने के कारण उसके पुण्यकर्मों का उदय हुआ एवं उसका अगला जन्म एक समृद्ध राज्य के राजा विदुरथ के पुत्र वसुरथ के रूप में हुआ

राजा वसुरथ अत्यंत धार्मिक, सत्यवादी, दानी, शक्तिशाली एवं निडर थे। वो सदैव विष्णु भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन राजा वसुरथ जंगल में रास्ता भटक गए और थककर वन में ही एक वृक्ष के नीचे गहरी निद्रा में सो गए।

तभी कुछ डाकू दौड़ते हुए राजा के समीप आए और तेज स्वर में कहने लगे- इस दुष्ट राजा ने हमारे सभी सगे-संबंधियों को मारा है। यही अवसर है, जब हम इसे मारकर अपना प्रतिशोध ले सकते हैं। इतना कहकर डाकू राजा पर अस्त्र-शस्त्रों से प्रहार करने लगे।

परंतु यह क्या!? राजा के शरीर पर जैसे ही कोई शस्त्र लगता, वो तिनके की भांति नष्ट हो जाता। कुछ समय पश्चात् हरि कृपा से डाकुओं द्वारा चलाए गए अस्त्र-शस्त्र स्वयं उन्हीं पर प्रहार करने लगे, और देखते ही देखते सभी डाकू मूर्छित हो गए।

उसी समय राजा वसुरथ के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई, जो अत्यंत सुंदर थीं, परंतु उनकी आंखों से क्रोध की ज्वाला निकल रही थी। देखते ही देखते उन्होंने समस्त डाकुओं का नाश कर दिया। उधर राजा जब नींद से जागे, तो उन्होंने अपने आस-पास अनेक डाकुओं को मृत पाया। उन्हें देखकर राजा विचार करने लगे कि अवश्य ये डाकू मुझे मारने आए होंगे, परंतु यदि ऐसा है, तो इस वन में मेरी रक्षा किसने की? यहां कौन मेरा हितैषी है? तभी आकाशवाणी हुई- हे वसुरथ! जब भगवान विष्णु स्वयं तेरी रक्षा कर रहे हैं तो तुझे भला कौन मार सकता है! आकाशवाणी सुनने के पश्चात् राजा वसुरथ ने श्रद्धापूर्वक श्री हरि को प्रणाम किया और पुनः अपने राज्य लौट गए।

जो भी मनुष्य आमलकी एकादशी का व्रत करता है, और इस पावन कथा का श्रवण करता है, उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अंत में उसे वैकुंठ धाम प्राप्त होता है।

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