
यह स्तोत्र भगवान शिव की उपासना का अत्यंत प्रभावशाली साधन है, जो जीवन में सकारात्मकता और आत्मिक बल प्रदान करता है। जानिए इसका सम्पूर्ण पाठ और महत्व।
वेदसारशिवस्तोत्रम् भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत पवित्र और ज्ञानप्रद स्तोत्र है, जिसकी रचना आदि शंकराचार्य ने की है। इसमें भगवान शिव के वेदों में वर्णित स्वरूप और उनकी महिमा का सुंदर वर्णन मिलता है। श्रद्धा से इसका पाठ करने पर पापों का नाश होता है और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव को देवों का देव महादेव कहा जाता है। कहते हैं कि जब सभी देवता हार मान जानते हैं तो भोले बाबा ही नैय्या को पार लगाने में मदद करते हैं। सनातन धर्म में भगवान शिव को कल्याण करने वाले देवता माना गया है, जिनकी आराधना से भक्तों को सुख-संपत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की पूजा में मंत्रों के जाप, तपस्या और व्रत का बहुत महत्व है।
वैसे तो भगवान भोलेनाथ एक लोटे जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं, लेकिन पूजा अर्चना के साथ अगर वेदसारशिव स्तोत्रम् का पाठ किया जाए तो भगवान जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करने आ जाते हैं। वेदसारशिव स्तोत्रम् एक स्तुति है जो कि भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है, इसलिए इसे साक्षात भगवान शंकर द्वारा दिया गया सुख का मंत्र भी माना जाता है, जो कि वेदसार स्तव के नाम से प्रसिद्ध है। अगर कोई व्यक्ति रोजाना या सिर्फ सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा के साथ इस पाठ को करता है तो उसे जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव की आराधना में वेदसारशिव स्तोत्रम् का पाठ भक्तों के लिए काफी लाभकारी साबित होता है। कहते हैं जो भी व्यक्ति पूरे भक्ति भाव से भगवान शिव को समर्पित इस वेदसारशिव स्तोत्रम् का पाठ करता है उसकी रक्षा स्वयं भगवान करते हैं। मान्यता है कि शत्रुओं से रक्षा में वेदसारशिवस्तोत्रम् का पाठ काफी फलदायी माना जाता है। वेदसारशिवस्तोत्रम् के पाठ से भक्तों में एक अद्भुत शक्ति का संचार होता है, जिससे वह हर कार्य को बिना किसी मुश्किल के आत्मविश्वास के साथ कर सकते हैं। यह स्तोत्र बहुत ही शक्तिशाली वेदसारशिवस्तोत्रम् है।
वेदसारशिव स्तोत्रम् के पाठ से मनुष्य को उसके शत्रुओं पर विजय हासिल होती है।
वेदसारशिव स्तोत्रम् का नियमित पाठ करने से मनुष्य के जीवन से हर प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं।
शिव जी के आशीर्वाद से घर में सुख समृद्धि आती है।
मान्यता है कि नियम से अगर वेदसारशिवस्तोत्रम् का पाठ करें तो कन्याओं को उनका मनचाहा वर प्राप्त होता है।
माना जाता है कि वेदसारशिव स्तोत्रम् का पाठ करने से व्यक्ति को किसी भी क्षेत्र में जल्द सफलता प्राप्त होती है।
मान्यता है कि वेदसारशिव स्तोत्रम् का पाठ करने से लंबे समय से बीमार व्यक्ति भी ठीक हो जाता है।
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्। जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम्।।
अर्थ: जो सभी प्राणियों के रक्षक हैं, पाप का नाश करने वाले हैं, परम परमेश्वर हैं, गजराज यानि हाथी के चमड़े को पहने हुए हैं और श्रेष्ठ हैं, जिनकी जटा में श्री गंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामदेव को मारने वाले श्री महादेव का मैं स्मरण करता हूं।
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्। विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।।
अर्थ: चंद्रमा, सूर्य और अग्नि तीनों जिनके नेत्र हैं, उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, विभु, विश्वनाथ, विभूति भूषण, नित्यानंदस्वरूप, पंचमुख महादेव की मैं स्तुति करता हूं।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्। भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।।
अर्थ: जो कैलाशनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकंठ हैं, बैल पर सवार हैं, अगणित रूप वाले हैं, संसार आदिकारण हैं, प्रकाश स्वरूप हैं, शरीर में भस्म लगाए हुए हैं और पार्वती जी जिनकी अर्धांगिनी हैं, उन पंचमुख महादेव को मैं नमस्कार करता हूं।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्। त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।।
अर्थ: हे पार्वती वल्लभ महादेव, हे चंद्रशेखर, हे महेश्वर, हे त्रिशूल, हे जटा जूटधारी, हे विश्वरूप, एकमात्र आप ही जगत में व्यापक हैं, हे पूर्ण रूप प्रभु, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्। यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।।
अर्थ: जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत के आदिकारण हैं, इच्छा रहित हैं, निराकार हैं और प्रणवद्वारा जानने योग्य हैं तथा जिनसे संपूर्ण विश्व की उत्पत्ति होती है और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है, उन प्रभु को मैं भजता हूं।
न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायु र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा। न चोष्णं न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे।।
अर्थ: जो न पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश हैं, न तंद्रा हैं, न निद्रा है, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं तथा जिनका न ही अपना कोई देश है, न ही कोई वेष है, उन मूर्तिहीन त्रिमूर्ति की मैं स्तुति/आराधना करता हूं।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्। तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम्।।
अर्थ: जो अजन्मा हैं, नित्य हैं, कारणों के भी कारण हैं, कल्याण स्वरूप हैं, एक हैं, प्रकाशकों के भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रय से विलक्षण हैं, विज्ञान से परे हैं, अनादि और अनंत हैं, उन परम पावन अद्वैत स्वरूप को मैं प्रणाम करता हूं।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते। नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य।।
अर्थ: हे विश्वमूर्ते, हे विभो, आपको नमस्कार है, नमस्कार है, हे चिदानंदमूर्ते, आपको नमस्कार है, नमस्कार है, हे तप तथा योग से प्राप्तव्य प्रभो, आपको नमस्कार है, नमस्कार है, हे वेदवेद्य भगवान, आपको नमस्कार है, नमस्कार है।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्र। शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः।।
अर्थ: हे प्रभो, हे त्रिशूल पाने, हे विभो, हे विश्वनाथ, हे महादेव, हे शम्भो, हे महेश्वर, हे त्रिनेत्र, हे पार्वती प्राणवल्लभ, हे शांत, हे कामरे, हे त्रिपुरारे, तुम्हारे अतिरिक्त न ही कोई श्रेष्ठ है, न ही माननीय है और न ही कोई गणनीय है।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्। काशीपते करुणया जगदेतदेक स्त्वं हंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।।
अर्थ: हे शम्भो, हे महेश्वर, हे करुणामय, हे त्रिशूलिन, हे गौरीपते, हे पशुपते, हे पशुबंधमोचन, हे काशाीवर, एक तुम्ही करुणावश इस जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार करते हो, प्रभु तुम ही इसके एकमात्र स्वामी हो।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ। त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन्।।
अर्थ: हे देव, हे शंकर, हे कंदर्पदलन, हे शिव, हे विश्वनाथ, हे ईश्वर, हे हर, हे चराचरजगदप प्रभो, यह लिंग स्वरूप पूरा जगत तुम्ही से उत्पन्न होता है, तुम्हीं में स्थिर रहता है और तुम्ही में लय हो जाता है।
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