
श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम् के पाठ से जीवन में धन, सौभाग्य, ज्ञान, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र माँ लक्ष्मी के आठ दिव्य रूपों की आराधना का श्रेष्ठ साधन है। जानिए इसका संपूर्ण पाठ और महत्व।
श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम् देवी महालक्ष्मी के आठ स्वरूपों—आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी और विद्यालक्ष्मी—को समर्पित एक पवित्र स्तोत्र है। इसका पाठ करने से धन, सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। श्रद्धा और भक्ति से इसका जप करने पर जीवन में लक्ष्मी कृपा और सफलता का वास होता है।
हिंदू धर्म में कई देवियों को पूजा जाता है। इन्हीं में से एक हैं देवी लक्ष्मी। इन्हें धन की देवी कहा जाता है। कहते हैं कि अगर मां लक्ष्मी किसी व्यक्ति पर प्रसन्न हो जाती हैं तो उसके जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं रहती। मान्यता है कि शुक्रवार के दिन अगर मां लक्ष्मी की आराधना विधिपूर्वक की जाए तो व्यक्ति की हर इच्छा या मनोकामना पूरी हो जाती है।
मां की पूजा में अगर अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ किया जाए तो इससे भक्तों पर मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। शुक्रवार के दिन लक्ष्मी प्राप्ति के लिए भक्तों को श्री 'अष्टलक्ष्मी स्तोत्र' करना चाहिए। इस स्तोत्र को बेहद चमत्कारी माना जाता है। जानकारी के मुताबिक, अष्टलक्ष्मी स्तोत्र की रचना करीब 1970 में दक्षिण भारत के श्री यू.वी विदवान मुक्कुर श्रीनिवासवरदाकारियार स्वमिकल ने की थी।
भगवान नारायण लक्ष्य हैं और लक्ष्मी जी उन तक पहुंचने का एक साधन। लक्ष्मी जी हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वह भगवान विष्णु की पत्नी हैं। माता पार्वती, सरस्वती के साथ, वह त्रिदेवियों में से एक हैं और धन, संप्रदा, शांति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली में गणेश जी के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इनका उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद के श्री सूक्सूत में मिलता है।
पुराणों में मां लक्ष्मी के 8 स्वरूपों का वर्णन किया गया है, जिन्हें अष्टलक्ष्मी कहा जाता है। इनमें आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, धैर्यलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी और राज लक्ष्मी या गज लक्ष्मी का स्परूप शामिल है। देवी शक्ति के इन 8 रूपों की पूजा के काफी सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चन्द्र सहोदरि हेममये, मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनि, मंजुल भाषिणी वेदनुते। पंकजवासिनी देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणी शान्तियुते, जय जय हे मधुसूदन कामिनी, आद्य लक्ष्मी परिपालय माम् ।।
अर्थ - देवी आप सभी भले मनुष्यों द्वारा वंदित, सुंदरी, माधवी (माधव की पत्नी), चंद्र की बहन, सोने की मूर्त रूप, मुनिगणों से घिरी हुई, मोक्ष देने वाली, मृदु और मधुर शब्द कहने वालीं, वेदों के द्वारा प्रशंसित हो। कमल के फूल में निवास करने वाली और सभी देवों के द्वारा पूजित, अपने भक्तों पर हमेशा सद्गुणों की वर्षा करने वाली, शांति से परिपूर्ण और मधुसूदन की प्रिय, हे देवी आदि लक्ष्मी! आपकी जय हो, जय हो, आप मेरा पालन करो।
धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमि, दिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये, घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंम, शंख निनाद सुवाद्यनुते। वेद पुराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते, जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम् ।।
अर्थ - ढोल के धिमि-धिमि स्वर से आप परिपूर्ण हो, घुम-घुम-घुंघुम की ध्वनि करते हुए शंखनाद से आपकी पूजा होती है, वेद, पुराण और इतिहास के द्वारा पूजित देवी आप भक्तों को वैदिक मार्ग दिखाती हैं, मधुसूदन की प्रिय, हे देवी विद्या लक्ष्मी! आपकी जय हो, जय हो, आप मेरा पालन करो।
प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये, मणिमय भूषित कर्णविभूषण, शान्ति समावृत हास्यमुखे। नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते, जय जय हे मधुसूदन कामिनी, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ।।
अर्थ - सुरेश्वरि को, भारति, भार्गवी, शोक का विनाश करने वाली, रत्नों से शोभित देवी को प्रणाम करो, विद्यालक्ष्मी के कान मणियों से विभूषित हैं, उनके चेहरे का भाव शांत और मुख पर मुस्कान है। देवी आप नव निधि प्रदान करती हो, कलयुग के दोष हरती हो, अपने वरद हस्त से मनचाहा वर देती हो, मधुसूदन की प्रिय, हे देवी विद्या लक्ष्मी! आपकी जय हो, जय हो, आप मेरा पालन करो।
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनी, वैदिक रूपिणि वेदमये, क्षीर समुद्भव मंगल रूपणि, मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते। मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते, जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धान्यलक्ष्मी परिपालय माम् ।।
अर्थ - हे धान्यलक्ष्मी, आप प्रभु की प्रिय हो, कलयुग के दोषों का नाश करती हो, आप वेदों का साक्षात् रूप हो, आप क्षीरसमुद्र से जन्मी हो, आपका रूप मंगल करने वाला है, मंत्रो में आपका निवास है और आप मन्त्रों से ही पूजित हो। आप सभी को मंगल प्रदान करती हो, आप अम्बुज (कमल) में निवास करती हो, सभी देवगण आपके चरणों में आश्रय पाते हैं, मधुसूदन की प्रिय, हे देवी धान्य लक्ष्मी! आपकी जय हो, जय हो, आप मेरा पालन करो।
जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गवि, मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये, सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते। भवभयहारिणी पापविमोचिनी, साधु जनाश्रित पादयुते, जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ।।
अर्थ - हे वैष्णवी, आप विजय का वरदान देती हो, आपने भार्गव ऋषि की कन्या के रूप में अवतार लिया, आप मंत्रस्वरुपिणी हो, मन्त्रों बसती हो, देवताओं के द्वारा पूजित, हे देवी आप शीघ्र ही पूजा का फल देती हो, आप ज्ञान में वृद्धि करती हो, शास्त्र आपका गुणगान करते हैं। आप सांसारिक भय को हरने वाली, पापों से मुक्ति देने वाली हो, साधूजन आपके चरणों में आश्रय पाते हैं, मधुसूदन की प्रिय, हे देवी धैर्य लक्ष्मी! आपकी जय हो, जय हो, आप मेरा पालन करो।
अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणि, राग विवर्धिनि ज्ञानमये, गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि, सप्तस्वर भूषित गाननुते। सकल सुरासुर देवमुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते, जय जय हे मधुसूदन कामिनी, सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम् ।।
अर्थ - गरुड़ आपका वाहन है, मोह में डालने वाली, चक्र धारण करने वाली, संगीत से आपकी पूजा होती है, आप ज्ञानमयी हो, आप सभी शुभ गुणों का समावेश हो, आप समस्त लोक का हित करती हो, सप्त स्वरों के गान से आपप्रशंसित हो। सभी देवता, असुर, मुनि और मनुष्य आपके चरणों की वंदना करते हैं, मधुसूदन की प्रिय, हे देवी संतान लक्ष्मी! आपकी जय हो, जय हो, आप मेरा पालन करो।
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि, ज्ञान विकासिनी ज्ञानमये, अनुदिनमर्चित कुन्कुम धूसर, भूषित वसित वाद्यनुते। कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शंकरदेशिक मान्यपदे, जय जय हे मधुसूदन कामिनी, विजयलक्ष्मी परिपालय माम् ।।
अर्थ - कमल के आसन पर विराजित देवी आपकी जय हो, आप भक्तों के ब्रह्मज्ञान को बढाकर उन्हें सद्गति प्रदान करती हो, आप मंगलगान के रूप में व्याप्त हो, प्रतिदिन अर्चना होने से आप कुंकुम से ढकी हुई हो, मधुर वाद्यों से आपकी पूजा होती है। आपके चरणों के वैभव की प्रशंसा आचार्य शंकर और देशिक ने कनकधारा स्तोत्र में की है, मधुसूदन की प्रिय, हे देवी विजय लक्ष्मी! आपकी जय हो, जय हो, आप मेरा पालन करो।
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये, रथगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मण्डित लोकनुते। हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणी पादयुते, जय जय हे मधुसूदन कामिनी, गजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम् ।।
अर्थ - हे दुर्गति का नाश करने वाली विष्णु प्रिया, सभी प्रकार के वरदान देने वाली, शास्त्रों में निवास करने वाली देवी आपकी जय-जयकार हो, आप रथों, हाथी-घोड़ों और सेनाओं से घिरी हुई हो, सभी लोकों में आप पूजित हो। आप हरि, हर (शिव) और ब्रह्मा के द्वारा पूजित हो, आपके चरणों में आकर सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं, मधुसूदन की प्रिय, हे देवी गज लक्ष्मी! आपकी जय हो, जय हो, आप मेरा पालन करो।
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