श्री हरि स्तोत्रम्

श्री हरि स्तोत्रम्

पढ़ें घर में सुख शांति के लिए


श्री हरि स्तोत्रम् (Shri Hari Stotram)

श्री हरि स्तोत्रम् में भगवान विष्णु जी की स्तुति की गई है। इसमें विष्णु जी के चतुर्भुज रूप का वर्णन किया गया है। कार्तिक मास में इस स्त्रोत का विशेष महत्त्व रहता है, जो भी साधक इस माह में श्री हरि स्तोत्रम् का पाठ करता है। उसे भगवान विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह स्त्रोत बहुत ही शक्तिशाली है। इस स्त्रोत का पाठ करने से साधक की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। इस स्त्रोत का पाठ पूर्ण श्रद्धाभाव से करने पर मनुष्य को वैकुण्ठ लोक प्राप्त होता है। वह मनुष्य दुख,शोक,जन्म-मरण के बंधन से भी मुक्त हो जाता है।

श्री हरि स्तोत्रम् का महत्व (Importance of Shri Hari Stotram)

भगवान विष्णु जी को प्रसन्न करने के लिए यह स्त्रोत बहुत ही चमत्कारी होता है। इस स्त्रोत का पाठ करने से भगवान विष्णु भक्त की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते है। इस स्त्रोत का पाठ करने से भगवान विष्णु जी के साथ साथ माता लक्ष्मी जी की कृपा भी प्राप्त होती है। श्री हरी स्तोत्र का पाठ करने से पूर्व कुछ नियमों का पालन करना भी जरुरी होता है जिसमे सबसे पहले प्रातः काल उठकर नित्य कर्म के बाद स्नान कर स्वच्छ वस्त्रो को धारण करना चाहिए। इसके बाद पाठ शुरू करने से पहले श्री गणेश जी का नाम लेकर पाठ शुरू करना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखे जब भी पाठ करें तो उसके बीच में उठना नहीं चाहिए। पाठ के पूर्ण होने पर ही आप उठ सकते है। तभी आपको इसका सकारात्मक फल मिल सकता है।

श्री हरि स्तोत्रम् पढ़ने के फायदे (Benefits of reading Shri Hari Stotram)

  • जो लोग श्री हरि स्तोत्रम् का पाठ रोजाना करते है उन्हें रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • साधक के अंदर सकारात्मक विचार आने लगते है। नकारात्मकता दूर होती है।
  • जो व्यक्ति मानसिक आघात से पीड़ित है उसके लिए भी यह स्त्रोत बहुत कल्याणकारी होता है। वह मानसिक रूप से स्वस्थ्य हो जाता है।
  • श्री हरि स्तोत्र का पाठ करने वाला साधक आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनता है।
  • इसका रोजाना पाठ करने से घर में सुख शांति बनी रहती है।
  • इस स्त्रोत का नित्य पाठ करने से गलत संगती में फसा हुआ मनुष्य भी बाहर निकल सकता है। इतना ही नहीं वह बुरी लत से भी आसानी से छुटकारा पा सकता है।

श्री हरि स्तोत्र का हिंदी अर्थ (Hindi meaning of Shri Hari Stotra)

श्री हरि स्तोत्र- मूल पाठ:

जगज्जालपालं कचतकण्ठमालं, शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालम् नभोनीलकायं दुरावारमायं, सुपद्मासहायं भजेहं भजेहम् ।।1

हिंदी अर्थ - जो समस्त जगत के रक्षक हैं, जो गले में चमकता हार पहने हुए है, जिनका मस्तक शरद ऋतु में चमकते चन्द्रमा की भांति है और जो महादैत्यों के भी काल हैं। आकाश के समान जिनका रंग नीला है, जो अजय मायावी शक्तियों के स्वामी हैं, देवी लक्ष्मी जिनकी साथी हैं, उन भगवान विष्णु को मैं बारंबार भजता हूँ।

सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं जगत्संनिवासं शतादित्यभासम् गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं हसच्चारुवक्रं भजेहं भजेहम् ।।2

हिंदी अर्थ - जो सदा समुद्र में निवास करते हैं, जिनकी मुस्कान खिले हुए पुष्प के समान है, जिनका वास पूरे जगत में है,जो सौ सूर्यों के समान प्रतीत होते हैं। जो गदा, चक्र और शस्त्र अपने हाथों में लिए हुए हैं, जो पीले वस्त्रों में शोभायमान हैं और जिनके सुंदर चेहरे पर प्यारी मुस्कान हैं, उन भगवान विष्णु को मैं बारंबार भजता हूँ।

रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं जलांतर्विहारं धराभारहारम् दानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं धृतानेकरूपं भजेहं भजेहम् ।।3

हिंदी अर्थ - जिनके गले के हार में देवी लक्ष्मी का चिन्ह बना है, जो वेद वाणी के सार हैं, जो जल में विहार करते हैं और पृथ्वी के भार को धारण करते हैं। जिनका सदा आनंदमय रूप रहता है और जो मन को आकर्षित करता है, जिन्होंने अनेकों रूप धारण किये हैं, उन भगवान विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।

जराजन्महीनं परानंदपीनं समाधानलीनं सदैवानवीनं जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं त्रिलोकैकसेतुं भजेहं भजेहम् ।।4

हिंदी अर्थ - जो जन्म और मृत्यु से मुक्त हैं, जो परमानन्द से भरे हुए हैं, जिनका मन हमेशा स्थिर और शांत रहता है, जो हमेशा नूतन प्रतीत होते हैं। जो इस जगत के जन्म के कारक हैं, जो देवताओं की सेना के रक्षक हैं और जो तीनों लोकों के मध्य सेतु हैं, उन भगवान विष्णु को मैं बारंबार भजता हूँ।

कृताम्नायगानं खगाधीशयानं विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानम् स्वभक्तानुकूलं जगद्दृक्षमूलं निरस्तार्तशूलं भजेहं भजेहम् ।।5

हिंदी अर्थ - जो वेदों के गायक हैं, पक्षीराज गरुड़ की जो सवारी करते हैं, जो मुक्तिदाता हैं और शत्रुओं का जो मान हारते हैं, जो भक्तों के प्रिय हैं, जो जगत रूपी वृक्ष की जड़ हैं और जो समस्त दुखों को निरस्त कर देते हैं, मैं उन भगवान विष्णु को बारम्बार भजता हूँ।

समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं जगद्विम्बलेशं ह्रदाकाशदेशम् सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं सुवैकुंठगेहं भजेहं भजेहम् ।।6

हिंदी अर्थ - जो सभी देवताओं के स्वामी हैं, काली मधुमक्खी के भांति जिनके केश का रंग है, पृथ्वी जिनके शरीर का हिस्सा है और जिनका शरीर आकाश के जैसे स्पष्ट है अर्थात जिनका शरीर सदा दिव्य है, जो संसार के बंधनों से मुक्त हैं, बैकुंठ जिनका निवास है, मैं उन भगवान विष्णु को बारम्बार भजता हूँ।

सुरालीबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं गुरुणां गरिष्ठं स्वरुपैकनिष्ठम् सदा युद्धधीरं महावीरवीरं भवांभोधितीरं भजेहं भजेहम् ।।7

हिंदी अर्थ - जो देवताओं में सबसे बलशाली हैं, त्रिलोकों में सबसे श्रेष्ठ हैं, जिनका एक ही स्वरूप है, जो युद्ध में सदा विजयी हैं, जो वीरों में वीर हैं, जो सागर के किनारे वास करते हैं, उन भगवान विष्णु को मैं बारंबार भजता हूँ।

रमावामभागं तलानग्ननागं कृताधीनयागं गतारागरागम् मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं गुणौघैरतीतं भजेहं भजेहम् ।।8

हिंदी अर्थ - जिनके बाईं ओर लक्ष्मी विराजित होती हैं, जो शेषनाग पर विराजित हैं, जो राग-रंग से भी मुक्त हैं, ऋषि-मुनि जिनके गीत गाते हैं, देवता जिनकी सेवा करते हैं और जो गुणों से भी परे हैं, मैं उन भगवान विष्णु को बारम्बार भजता हूँ।

फलश्रुति .. इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं पठेदष्टकं कष्टहारं मुरारेः. स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं जराजन्मशोकं पुनरविंदते नो ।।

अर्थात - भगवान हरि का यह अष्टक जो कि मुरारी के कंठ की माला के जैसा है, जो भी इसे सच्चे मन से पढ़ता है वह वैकुण्ठ लोक को प्राप्त होता है। वह दुख -शोक, जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है।

इति श्रीपरमहंसस्वामिब्रह्मानंदविरचितं श्रीहरिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ..

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