श्री सिद्धमंगल स्तोत्र

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श्री सिद्धमंगल स्तोत्र

श्री सिद्धमंगल स्तोत्र एक संस्कृत भाषा का स्तोत्र है। हिन्दू सनातन धर्म में भगवान की पूजा, अर्चना, स्तुति के लिए विविध स्तोत्रों का पठन किया जाता है।

सिद्धमंगल स्तोत्र भगवान दत्तात्रेय के प्रथम अवतार श्रीपाद वल्लभ की स्तुति में गाया जाता है अर्थात यह स्तोत्र श्रीपाद वल्लभ को समर्पित है। इस स्तोत्र की रचना श्रीपाद श्रीवल्लभ के नाना बापनाचार्युलू ने की है।

लेख में-

  1. श्री सिद्धमंगल स्तोत्र पाठ की विधि।
  2. श्री सिद्धमंगल स्तोत्र पाठ से लाभ।
  3. श्री सिद्धमंगल स्तोत्र एवं अर्थ।

1. श्री सिद्धमंगल स्तोत्र पाठ विधि:

  • श्री सिद्धमंगल स्तोत्र पाठ करने से पहले कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  • पाठ शुरू करने से पहले सुबह उठकर नित्य क्रिया के बाद स्नान कर लें।
  • भगवान दत्तात्रेय का नाम लेकर पूजा शुरू करें फिर स्तोत्र का जाप करें।
  • पाठ को शुरू करने के बाद बीच में तब तक न रुकें जब तक पाठ खत्म न हो जाए।

2. श्री सिद्धमंगल स्तोत्र से लाभ:

  1. श्री सिद्धमंगल स्तोत्र के जाप जातक को तनाव से मुक्ति मिलती है।
  2. श्री सिद्धमंगल स्तोत्र के जाप से भगवान दत्तात्रेय का विशेष आशीर्वाद मिलता है।
  3. श्री सिद्धमंगल स्तोत्र के पाठ से जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति मिलती है।
  4. श्री सिद्धमंगल स्तोत्र के पाठ से बुरी लत और गलत संगत से छुटकारा मिलता है।

3. श्री सिद्धमंगल स्तोत्र एवं अर्थ:

अथ श्री सिद्धमंगल स्तोत्र

श्री मदनंत श्रीविभुषीत अप्पल लक्ष्मी नरसिंह राजा।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव॥1॥

अर्थ:
माता लक्ष्मी एवं सर्व शक्ति सहित सर्वव्यापी भगवान दत्त रूप विष्णु जी का अप्पे लक्ष्मी नरसिंह राज शर्मा के घर श्रीपाद रूप में जन्म हुआ। ऐसे श्रीगुरु श्रीपादराज की जय जयकार हो और ऐसे दत्तरूप विष्णुजी देव की विजय कीर्ति पूरे ब्रह्मांड में घूमे।

श्री विद्याधारी राधा सुरेखा श्री राखीधर श्रीपादा।
जय विजयीभव,दिग्विजयीभव,श्रीमदखंड श्री विजयीभव॥2॥

अर्थ:
श्रीपाद की तीन बहनें विद्याधारी, राधा एवं सुरेखा का अहोभाग्य है कि वे श्रीपाद के हाथों में राखी बांध उनकी शरण में हैं। ऐसे श्री गुरु श्रीपादराज की जय जयकार हो। ऐसे दत्तरूप विष्णुजी देव की विजय कीर्ति पूरे ब्रह्मांड में घूमे।

माता सुमती वात्सल्यामृत परिपोषित जय श्रीपादा।
जय विजयीभव,दिग्विजयीभव,श्रीमदखंड श्री विजयीभव॥3॥

अर्थ:
श्रीपाद का जन्म और पालन-पोषण माता सुमति के अमृत रूपी वात्सल्य से हुआ। ऐसे श्री गुरु श्रीपादराज की जय जयकार हो। ऐसे दत्तरूप विष्णुजी देव की विजय कीर्ति पूरे ब्रह्मांड में घूमे।

सत्यऋषीश्र्वरदुहितानंदन बापनाचार्यनुत श्रीचरणा।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव॥4॥

अर्थ:
हम सत्य ऋषि रूपी कन्या यानी सुमति महारानी के घर जन्मे श्रीपाद के नाना के रूप में स्वयं बापानाचार्यलू का भाग्य वर्णन क्या करें। ऐसे श्री गुरु श्रीपादराज की जय जयकार हो। ऐसे दत्तरूप विष्णुजी देव की विजय कीर्ति पूरे ब्रह्मांड में घूमे।

सवितृ काठकचयन पुण्यफल भारद्वाजऋषी गोत्र संभवा।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव॥5॥

अर्थ:
श्रीपाद जिस पिठापुर में जन्में वहां दो हजार साल पहले सवितृ काठक नामक महायज्ञ का प्रयोजन भारद्वाजऋषी ने किया था। उस यज्ञ के पवित्र प्रसाद रूप में श्रीपाद का अवतरण हुआ। ऐसे श्रीगुरु श्रीपादराज की जय जयकार हो। ऐसे दत्तरूप विष्णुजी देव की विजय कीर्ति पूरे ब्रह्मांड में घूमे।

दौ चौपाती देव लक्ष्मीगण संख्या बोधित श्रीचरणा।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव॥6॥

अर्थ:
श्रीपाद जब भिक्षुकी करते थे, तब 'दो चौपाती देव लक्ष्मी' की आवाज देकर भिक्षा मांगते थे। असल में वो दो चपाती नहीं मांगते थे। इस गूढ़ वाक्य में दो (2) चौ (4) पती (8) लक्ष्मी (9) से 2489 इस कूट संख्या का उल्लेख मिलता है। यह कूट संख्या से सर्वसिद्धिमय गायत्री देवी का आह्वान होता है। ऐसे श्री गुरु श्रीपादराज की जय जयकार हो। ऐसे दत्तरूप विष्णुजी देव की विजय कीर्ति पूरे ब्रह्मांड में घूमे।

पुण्यरुपिणी राजमांबासुत गर्भपुण्यफलसंजाता।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव॥7॥

अर्थ:
श्रीपाद की नानी राजमांबा के पुण्य की गिनती क्या करें, जिनके नाती स्वयं श्रीपाद हैं। राजमांबा ने सुमति महारानी को जन्म देकर अपने मातृत्व से बड़ा पुण्य कमाया है। ऐसे श्री गुरु श्रीपादराज की जय जयकार हो। ऐसे दत्तरूप विष्णुजी देव की विजय कीर्ति पूरे ब्रह्मांड में घूमे।

सुमतीनंदन नरहरीनंदन दत्तदेव प्रभू श्रीपादा।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव॥8॥

अर्थ:
सुमति महारानी, अप्प लक्षी नरसिंहराज शर्मा के घर दत्तदेव खुद श्रीपाद के रूप में जन्में और इस तरह स्वयं बापानाचार्यलू और सामान्य मनुष्यजन का बड़ा भाग्य है। ऐसे श्री गुरु श्रीपादराज की जय जयकार हो। ऐसे दत्तरूप विष्णुजी देव की विजय कीर्ति पूरे ब्रह्मांड में घूमे।

पीठिकापुर नित्यविहारा मधुमतीदत्ता मंगलरुपा।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव॥9॥

अर्थ:
दत्त महाराज की एक गूढ शक्ति मधुमती की सहायता से श्रीपाद स्वयं अपने जन्म से पहले से समाधि के बाद भी गुप्त रूप से नित्य विचरण करते हैं। ऐसे श्री गुरु श्रीपादराज की जय जयकार हो। ऐसे दत्तरूप विष्णुजी देव की विजय कीर्ति पूरे ब्रह्मांड में घूमे।

॥ श्रीपादराजम् शरणं प्रपद्ये॥

श्रीपाद वल्लभ भगवान दत्तात्रेय के प्रथम अवतार थे। श्रीपाद वल्लभ की स्तुति से मनुष्य को क्रोध, लालच और बुरी आदतों से छुटकारा मिलता है और उसके घर में सुख-शांति का वास होता है।

भगवान दत्तात्रेय की कृपा जिस पर होती है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। श्री विष्णु के स्मरण से मनुष्य के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

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