गजेंद्र मोक्ष स्तोत्रम् | Gajendra Moksha Stotram
image
downloadDownload
shareShare
ShareWhatsApp

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्रम् | Gajendra Moksha Stotram

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्रम् के पाठ से जीवन के संकटों से मुक्ति, पापों का नाश और ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र भक्ति, समर्पण और ईश्वर में अटूट विश्वास का प्रतीक है, जो साधक को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है। जानिए इसका सम्पूर्ण पाठ और महत्व।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्रम् के बारे में

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र भगवान विष्णु को समर्पित एक अत्यंत पवित्र स्तोत्र है, जो श्रीमद्भागवत पुराण के आठवें स्कंध में वर्णित है। इसमें हाथी ‘गजेंद्र’ की भगवान विष्णु से की गई करुण पुकार और उनकी कृपा का वर्णन मिलता है। इसका पाठ संकट के समय ईश्वर पर अटूट विश्वास और मुक्ति की भावना को जागृत करता है।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र

हिंदू धर्म में कई मंत्रों और स्तोत्रों के बारे में बताया गया है, जिसका पाठ करने से मनुष्य को सुख शांति की प्राप्ति होती है। ऐसा ही एक स्तोत्र है गजेंद्र स्तोत्र। हिंदू धर्म के सबसे पहले ग्रंथ श्रीमद्भगवद गीता के तीसरे अध्याय में गजेंद्र स्तोत्र का वर्णन मिलता है। इसमें कुल 33 श्लोक हैं, जिसका पाठ करने से जीवन में किसी प्रकार की परेशानियों से तत्काल मुक्ति मिल जाती है। गजेंद्र स्तोत्र में हाथी और मगरमच्छ के साथ हुए एक भयंकर युद्ध का वर्णन किया गया है।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का महत्व

गजेंद्र मोक्ष की कथा के अनुसार, प्राचीन समय में द्रविड़ देश के नरेश इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के बहुत बड़े उपासक थे। वह रोजाना नियम से विष्णु जी अराधना करते थे। यही नहीं, ईश्वर धाम की प्राप्ति के लिए तप भी करते थे। एक समय ऐसा आया कि इंद्रद्युम्न राजपाट त्याग कर सन्यासी बन गए और मलय-पर्वत पर जाकर तप करने लगे। एक दिन महर्षि अगस्त्य उनके आश्रम पहुंचे, लेकिन ध्यान में लीन इंद्रद्युम्न ने महर्षि का स्वागत, सेवा नहीं की, जिससे अप्रसन्न होकर महर्षि ने इंद्रद्युम्न को जड़बुद्धि गज बनने का श्राप दे दिया। महर्षि अगस्त्य के श्राप से इंद्रद्युम्न हाथी बन गए।

इंद्रद्युम्न हाथियों के झुंड के मुखिया थे, इसलिए उनका गजेंद्र नाम था। एक दिन घूमते–घूमते गजेंद्र को बहुत तेज प्यास लगी। वह अन्य हाथियों के साथ पास के एक सरोवर में पानी पीने गए, तभी एक शक्तिशाली मगरमच्छ ने गजेंद्र के पैर को दबोच लिया और उसे सरोवर के अंदर खीचने लगा। गजेंद्र ने मगरमच्छ से बचने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो खुद को छुड़ाने में सफल नहीं हो सका। गजेंद्र और मगरमच्छ का संघर्ष लगातार जारी रहा। धीरे-धीरे गजेंद्र की शक्ति कम पड़ने लगी और उसका शरीर शिथिल पड़ गया। आखिर में गजेंद्र दर्द से चीखने चिल्लाने लगा। उसके अन्य साथी हाथियों ने भी उसे बचाने का प्रयास किया, लेकिन वो भी असफल रहे।

गजेंद्र को जब अपना अंत नजदीक लगने लगा तो उसने भगवान विष्णु का ध्यान किया और पूरे भक्तिभाव से उन्हें पुकारने लगा। गजेंद्र ने कहा- हे भगवन मेरी रक्षा करो! मेरे प्राण उबारो प्रभु। अपने भक्त की आवाज सुन भगवान विष्णु तत्काल गरुण पर सवार होकर गजेंद्र को बचाने आ गए और अपने सुर्दशन चक्र से मगरमच्छ को मार गिराया। मगरमच्छ को मारने के बाद भगवान विष्णु ने कहा- ब्रह्म मुहूर्त के समय जो कोई भी गजेंद्र मोक्ष स्तुति का पाठ करेगा, उसके जीवन से सभी दुख और संकट दूर हो जाएंगे।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र पढ़ने के फायदे

  • मान्यता है कि कर्ज से मुक्ति के लिए गजेंद्र मोक्ष का पाठ एक अमोघ उपाय है।

  • माना जाता है कि रोजाना गजेंद्र मोक्ष का पाठ करने से मानसिक तनाव दूर हो जाता है।

  • स्तोत्र का जाप करने से जीवन में सभी प्रकार की परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है।

  • गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के जाप से घर में शांति आने के साथ आर्थिक स्थिति सुधरती है।

  • इसके नियमित पाठ से मुश्किल से मुश्किल समस्याओं का हल निकल आता है।

  • गजेंद्र मोक्ष का पाठ पित्तर दोष से भी मुक्ति दिलाता है।

  • माना जाता है कि गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का निरंतर भक्तिभाव से पाठ करने वाला मनुष्य सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है।

  • गजेंद्र मोक्ष का पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट और विघ्नों का विनाश स्वयं भगवान विष्णु करते हैं।

  • मान्यता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने वाला जातक मृत्यु के बाद कभी नरक में नहीं जाता।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का हिंदी अर्थ

share
एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि । जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम ॥

अर्थ: बुद्धि के द्वारा पिछले अध्याय में बताए गए रीति से अपने मन को नियंत्रित कर और हृदय को स्थिर करके गजेंद्र मन ही मन अपने पिछले जन्म में याद किए गए सर्वश्रेष्ठ और बार-बार दोहराए जाने वाले स्रोत का जाप करने लगा।

share
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम। पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥

अर्थ: गजेंद्र ने मन ही मन श्री हरी का ध्यान करते हुए कहा- जिनके प्रवेश करने से शरीर और मन चेतन की तरह व्यवहार करने लगता है, ‘ओम’ शब्द के द्वारा लक्षित और पूरे शरीर में प्रकृति और पुरुष के रूप में प्रवेश करने वाले उस सर्व शक्तिमान देवता का मैं मन ही मन स्मरण करता हूं।

share
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं। योस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम॥

अर्थ: जिनके सहारे ये पूरा संसार टिका हुआ है, जिनसे ये संसार अवतरित हुआ है, जिन्होने प्रकृति की रचना की और जो खुद उसके रूप में प्रकट हैं, लेकिन इसके वाबजूद भी वो इस दुनिया से सर्वोपरि और श्रेष्ठ हैं, ऐसे अपने आप और बिना किसी कारण के भगवान की मैं शरण लेता हूं।

share
यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितंक्कचिद्विभातं क्क च तत्तिरोहितम। अविद्धदृक साक्ष्युभयं तदीक्षतेस आत्ममूलोवतु मां परात्परः॥

अर्थ: अपने संकल्प शक्ति के बल पर अपने ही स्वरूप में रचे हुए और सृष्टि काल में प्रकट और प्रलयकाल में उसी प्रकार अप्रकट रहने वाले इस शास्त्र प्रसिद्धि प्राप्त कार्य कारण रूपी संसार को जो बिना कुंठित दृष्टि के साक्ष्य रूप में देखते रहने पर भी लिप्त नहीं होते, वे चक्षु आदि प्रकाशकों के भी परम प्रकाशक प्रभु आप मेरी रक्षा करें।

share
कालेन पंचत्वमितेषु कृत्स्नशोलोकेषु पालेषु च सर्व हेतुषु। तमस्तदाऽऽऽसीद गहनं गभीरंयस्तस्य पारेऽभिविराजते विभुः।।

अर्थ: विभिन्न प्रकार की शक्तियों से मुक्त, सभी प्राणियों को आत्मबुद्धि देने वाले, सभी को बिना कारण हित और अतिशय साधु स्वभाव ऋषि मुनि जन जिनके परम रूप को देखने की इच्छा के साथ वन में रहकर अखंड ब्रह्मचर्य सहित कई प्रकार के अलौकिक व्रतों का नियमों के अनुसार पालन करते हैं, ऐसे प्रभु ही मेरी गति हैं।

share
न यस्य देवा ऋषयः पदं विदुर्जन्तुः पुनः कोऽर्हति गन्तुमीरितुम। यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतोदुरत्ययानुक्रमणः स मावतु॥

अर्थ: कई रूपों में नाट्य करने वाले उस अभिनेता के वास्तविक स्वरूप को जिस प्रकार से साधारण लोग नहीं पहचान पाते, उसी तरह से सत्त्व प्रधान देवता और महर्षि भी जिनके स्वरूप को नहीं जान पाते, ऐसे में कोई साधारण प्राणी उनका वर्णन कैसे कर सकता है, ऐसे दुर्गम चरित्र वाले भगवान मेरी रक्षा करें।

share
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमंगलमविमुक्त संगा मुनयः सुसाधवः। चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वनेभूतत्मभूता सुहृदः स मे गतिः॥

अर्थ: अनेको शक्ति से मुक्त, सभी प्राणियों को आत्मबुद्धि प्रदान करने वाले, सबके बिना कारण हित और अतिशय साधु स्वभाव ऋषि मुनि जन जिनके परम स्वरूप को देखने की इच्छा के साथ वन में रहकर अखंड ब्रह्मचर्य तमाम अलौकिक व्रतों को नियमों के अनुसार पालन करते हैं, ऐसे प्रभु ही मेरी गति हैं।

share
न विद्यते यस्य न जन्म कर्म वान नाम रूपे गुणदोष एव वा। तथापि लोकाप्ययाम्भवाय यःस्वमायया तान्युलाकमृच्छति॥

अर्थ: हमारी तरह जिनका न तो जन्म होता है और न जिनका अहंकार में कोई भी काम नहीं होता, जिनके निर्गुण रूप का न कोई नाम है और न रूप है, फिर भी वह समय के साथ इस संसार की सृष्टि और प्रलय के लिए अपनी इच्छा से जन्म को स्वीकार करते हैं।

share
तस्मै नमः परेशाय ब्राह्मणेऽनन्तशक्तये। अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्य कर्मणे॥

अर्थ: उस अनंत शक्ति वाले परम ब्रह्मा परमेश्वर को मेरा नमस्कार है, प्राकृत आकार रहित और अनेक रूप वाले अद्भुत भगवान को मेरा बार बार नमस्कार।

share
नम आत्म प्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने। नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि॥

अर्थ: खुद प्रकाशित सभी साक्ष्य परमेश्वर को मेरा शत् शत् नमन, वैसे देव जो नम, वाणी और चित्तवृतियों से परे हैं, उन्हें मेरा बारंबार नमस्कार है।

share
सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता। नमः केवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे॥

अर्थ: विवेक से परिपूर्ण पुरुष के द्वारा सभी सत्त्व गुणों से परिपूर्ण, निवृति धर्म के आचरण से मिलने वाले योग्य, मोक्ष, सुख की अनुभूति रूपी भगवान को मेरा नमस्कार है।

share
नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुण धर्मिणे। निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च॥

अर्थ: सभी गुणों को स्वीकार करके शांत, रजोगुण को स्वीकार करके घोर और तमोगुण को अपनाकर मूढ़ से प्रतीत होने वाले, बिना भेद के और हमेशा सद्भाव से ज्ञानधनी प्रभु को मेरा नमस्कार है।

share
क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे। पुरुषायात्ममूलय मूलप्रकृतये नमः॥

अर्थ: शरीर के इंद्रिय के समुदाय रूप, सभी पिंडों के ज्ञाता, सबके स्वामी और साक्षी स्वरूप देव आपको मेरा नमस्कार, सबके अंतर्यामी, प्रकृति के परम कारण लेकिन स्वयं बिना कारण भगवान को मेरा शत शत नमस्कार।

share
सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे। असताच्छाययोक्ताय सदाभासय ते नमः॥

अर्थ: सभी इन्द्रियों और उनके विषयों के जानकार, सभी प्रतीतियों के कारण रूप, सम्पूर्ण जड़-प्रपंच और सबकी मूलभूता अविद्या के द्वारा सूचित होने वाले और सभी विषयों में अविद्यारूप से भासने वाले भगवान आपको मेरा नमस्कार।

share
नमो नमस्ते खिल कारणायनिष्कारणायद्भुत कारणाय। सर्वागमान्मायमहार्णवायनमोपवर्गाय परायणाय॥

अर्थ: सबके कारण लेकिन स्वयं बिना कारण होने पर भी बिना किसी परिणाम के होने की वजह से, अन्य कारणों से विलक्षण कारण आपको मेरा बार बार नमस्कार, सभी वेदों और शास्त्रों के सर्वश्रेष्ठ तात्पर्य, मोक्षरूपी और श्रेष्ठ पुरुषों की परम गति देवता को मेरा बार बार नमस्कार है।

share
गुणारणिच्छन्न चिदूष्मपायतत्क्षोभविस्फूर्जित मान्साय। नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम-स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि॥

अर्थ: वह जो त्रिगुण रूपो में छिपे हुए ज्ञानरूपी अग्नि हैं, वैसे गुणों में हलचल होने पर जिनके मन में संसार को रचने की वृति उत्पन्न हो उठती है और जो आत्म तत्व की भावना के द्वारा विधि निषेध रूप शास्त्र से भी ऊपर उठे हों, जो महाज्ञानी महत्माओं में स्वयं प्रकाशित हो रहे हैं, ऐसे भगवान को मेरा नमस्कार।

share
मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणायमुक्ताय भूरिकरुणाय नमोऽलयाय। स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते॥

अर्थ: मेरे जैसे शरणागत, पशु के सामान जीवों की अविद्यारूप फांसी को पूर्ण रूप से काट देने वाले परम दयालु और दया दिखने में कभी भी आलस नहीं करने वाले नित्यमुक्त प्रभु को मेरा नमस्कार, अपने अंश से सभी जीवों के मन में अंतर्यामी रूप से प्रकट होने वाले सर्व नियंता अनंत परमात्मा आपको मेरा नमस्कार है।

share
आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तैर्दुष्प्रापणाय गुणसंगविवर्जिताय। मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभावितायज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय॥

अर्थ: जो शरीर, पुत्र, मित्र, घर, संपत्ति और कुटुंबियों में अशक्त लोगों के द्वारा कठिनाई से प्राप्त हो और मुक्त पुरुषों के द्वारा अपने ह्रदय में निरंतर चिंतित ज्ञानस्वरूप, सर्वसमर्थ परमेश्वर को मेरा नमस्कार है।

share
यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामाभजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति। किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययंकरोतु मेदभ्रदयो विमोक्षणम॥

अर्थ: वे जिन्हें धर्म, अभिलषित भोग, धन और मोक्ष की कामना से भजने वाले लोग अपनी मनचाही इच्छा पूर्ण कर लेते हैं, लेकिन जिन्हें अन्य प्रकार के अयाचित भोग और अविनाशी पार्षद शरीर भी देते हैं, वैसे अत्यंत दयालु प्रभु मुझे इस प्रकार के विपदा से हमेशा के लिए बाहर निकालें।

share
एकान्तिनो यस्य न कंचनार्थवांछन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः। अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमंगलंगायन्त आनन्न्द समुद्रमग्नाः॥

अर्थ: वह जिनके एक से अधिक भक्त हैं, जो मुख्य रूप से एकमात्र उसी भगवान के शरण में हैं, जो धर्म, अर्थ आदि किसी भी पदार्थ को नहीं चाहते, जो केवल उन्हीं के परम मंगलमय एवं अत्यंत विलक्षण चरित्र का गुणगान करते हुए उनके आनंदमय समुद्र में गोते लगाते रहते हैं।

share
तमक्षरं ब्रह्म परं परेश-मव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम। अतीन्द्रियं सूक्षममिवातिदूर-मनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे॥

अर्थ: उन अविनाशी, सर्वव्यापी, सर्वश्रेष्ठ, ब्रह्मादि के भी नियामक, अभक्तों के लिए भी हमेशा प्रकट होने वाले, भक्तियोग द्वारा प्राप्त, बहुत ही पास में होने पर भी माया के कारण बहुत दूर लगने वाले, इन्द्रियों के द्वारा अगम्य और अत्यंत दुर्विज्ञेय, अंतर से रहित लेकिन सभी के आदिकारक और सर्व परिपूर्ण उन भगवान की मैं स्तुति करता हूं।

share
यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः। नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः॥

अर्थ: वो जो ब्रह्मा सहित सभी देवता, चारों वेद, समस्त चराचर जीव के नाम और आकृति भेद से जिनके अत्यंत क्षुद्र अंशों से रचयित हैं।

share
यथार्चिषोग्नेः सवितुर्गभस्तयोनिर्यान्ति संयान्त्यसकृत स्वरोचिषः। तथा यतोयं गुणसंप्रवाहोबुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः॥

अर्थ: जिस तरह से जलती हुई अग्नि की लपटें और सूरज की किरणें बार बार बाहर निकलती हैं और फिर से अपने कारण में लीन हो जाती हैं, उसी प्रकार बुद्धि, मन, इन्द्रियां और नाना योनियों के शरीर जिन सभी गुणों से प्राप्त शरीर, जो स्वयं प्रकाश परमात्मा से अवतरित होकर फिर से उन्हें में लीन हो जाता है।

share
स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यंगन स्त्री न षण्डो न पुमान न जन्तुः। नायं गुणः कर्म न सन्न चासननिषेधशेषो जयतादशेषः॥

अर्थ: वह भगवान जो न तो देवता हैं, न असुर, न मनुष्य और न ही मनुष्य से नीचे किसी अन्य योनि के प्राणी, न ही वो स्त्री हैं, न पुरुष और न ही नपुंसक और न ही कोई ऐसे जीव जिनका इन तीनों ही श्रेणी में समावेश है, वो न तो गुण हैं, न कर्म, न कार्य हैं और न ही कारण, इन सभी योनियों का निषेध होने पर जो बचता है, वही उनका असली स्वरूप है, वे ही सब कुछ हैं, ऐसे प्रभु मेरा उत्थान करने के लिए प्रकट हों।

share
जिजीविषे नाहमिहामुया कि मन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या। इच्छामि कालेन न यस्य विप्लवस्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम॥

अर्थ: अब मैं इस मगरमच्छ के चंगुल से छूटकर जीवित नहीं रहना चाहता, क्योंकि मैं सभी तरफ से अज्ञानता से ढके इस हाथी के शरीर का क्या करूं, मैं आत्मा के प्रकाश से ढक देने वाले अज्ञानता से युक्त इस हाथी के शरीर से मुक्त होना चाहता हूं, जिसका कालक्रम से अपने आप नाश नहीं होता, बल्कि ईश्वर की दया और ज्ञान के उदय से होता है।

share
सोऽहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम। विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोस्मि परं पदम॥

अर्थ: इस प्रकार मोक्ष के लिए लालायित संसार के रचियता, स्वयं संसार के रूप में प्रकट और संसार से परे, संसार को एक खिलौने की भांति खेलने वाले, संसार में आत्मरूप से व्याप्त, अजन्मा, सर्वव्यापी एवं प्राप्त्य वस्तुओं में सर्वश्रेष्ठ श्री हरी को केवल प्रणाम करता हूं और उनकी शरण में जाता हूं।

share
योगरन्धित कर्माणो हृदि योगविभाविते। योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोऽस्म्यहम॥

अर्थ: जिन्होनें भगवद्शक्ति रूपी योग के द्वारा कर्मों को जला डाला है, जिन्हें समस्त योगी, ऋषि योग के द्वारा अपने शुद्ध ह्रदय में प्रकट हुआ देखते हैं, उन योगेश्वर भगवान को मेरा नमस्कार है।

share
नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग-शक्तित्रयायाखिलधीगुणाय। प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तयेकदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने॥

अर्थ: वह जिनके त्रिगुणात्मक शक्तियों का राग, रूप वेग और असह्य है, जो सभी इन्द्रियों के विषयरूप में मौजूद हैं, वह जिनकी इन्द्रियां समस्त विषयों में ही बसी रहती हैं, ऐसे लोगों जिनका मार्ग मिलना भी असंभव है, उन शरणागत एवं अपार शक्तिशाली वाले भगवान आपको मेरा बार बार नमस्कार है।

share
नायं वेद स्वमात्मानं यच्छ्क्त्याहंधिया हतम। तं दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोऽस्म्यहम॥

अर्थ: वह जिनकी अविद्या नामक शक्ति के कार्यरूप अहंकार से ढंके हुए हैं, वह जिनके रूप को जीव समझ नहीं पाते है, ऐसे अपार महिमा वाले भगवान की मैं शरण लेता हूं।

share
एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषंब्रह्मादयो विविधलिंगभिदाभिमानाः। नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वाततत्राखिलामर्मयो हरिराविरासीत॥

अर्थ: वह जिसने पहले की तरह से भगवान के भेदरहित सभी निराकार रूप का वर्णन किया था, उस गजराज के करीब जब ब्रह्माजी साथ में अन्य कोई देवता नहीं आये, जो अपने विभिन्न प्रकार के विशि​ष्ट विग्रहों को ही अपना रूप मानते हैं, ऐसे में साक्षात विष्णु जी, जो सभी के आत्मा होने के कारण सर्वदेवस्वरूप हैं, तब वहां प्रकट हुए।

share
तं तद्वदार्त्तमुपलभ्य जगन्निवासःस्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भि:। छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमानश्चक्रायुधोऽभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः॥

अर्थ: गजराज को इस तरह दुखी देखकर और उसके पढ़े गए स्तुति को सुनकर चक्रधारी प्रभु इच्छानुसार वेग वाले गरुड़ की पीठ पर सवार होकर सभी देवों के साथ उस स्थान पर पहुंचे जहां वह गज था।

share
सोऽन्तस्सरस्युरुबलेन गृहीत आर्त्तो दृष्ट्वा गरुत्मति हरि ख उपात्तचक्रम। उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छान्नारायण्खिलगुरो भगवान नम्स्ते॥

अर्थ: सरोवर के अंदर महाबली मगरमच्छ द्वारा पकड़े जाने के बाद दुखी उस हाथी ने आसमान में गरुड़ की पीठ पर बैठे और हाथों में चक्र लिए भगवान विष्णु को आते हुए जब देखा, तो वह अपनी सूंड में पहले से ही उनकी पूजा के लिए रखे कमल के फूल को श्री हरी पर बरसाते हुए कहा- सर्वपूज्य भगवान नारायण आपको मेरा प्रणाम।

share
तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्यसग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार। ग्राहाद विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रंसम्पश्यतां हरिरमूमुचदुस्त्रियाणाम॥

अर्थ: लाचार हाथी को देखकर भगवान श्री हरी गरुड़ से नीचे उतरकर सरोवर में उतर आये और बेहद दुखी होकर मगरमच्छ सहित उस हाथी को तुरंत ही सरोवर से बहार निकाल लाये और देखते ही देखते अपने चक्र से मगरमच्छ के गर्दन को काट दिया और हाथी को उस पीड़ा से बहार निकाल लिया।

divider
Published by Sri Mandir·November 11, 2025

Did you like this article?

आपके लिए लोकप्रिय लेख

और पढ़ेंright_arrow
Card Image

श्री शिवसहस्रनामावली स्तोत्र

श्री शिवसहस्रनामावली स्तोत्र भगवान शिव के हजार पवित्र नामों का संकलन है, जिसका पाठ जीवन से नकारात्मकता दूर करता है और अद्भुत शक्ति, शांति, संरक्षण तथा आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है। जानिए शिव सहस्रनामावली स्तोत्र का महत्व, लाभ और पाठ विधि।

right_arrow
Card Image

श्री उमा महेश्वर स्तोत्र

श्री उमा महेश्वर स्तोत्र भगवान शिव और माता पार्वती की संयुक्त उपासना का अत्यंत मंगलकारी स्तोत्र है। इसका पाठ दांपत्य सुख, सौहार्द, पारिवारिक समृद्धि, बाधा-निवारण और सौभाग्य प्रदान करता है।

right_arrow
Card Image

श्री गुरु अष्टकम

श्री आदि शंकराचार्य द्वारा रचित श्री गुरु अष्टकम गुरु की महिमा का वर्णन करने वाला अत्यंत पावन और प्रेरणादायक स्तोत्र है। इसका पाठ मन, बुद्धि और आत्मा को निर्मल बनाता है तथा साधक को ज्ञान, भक्ति और मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करता है। जानिए गुरु अष्टकम का महत्व, अर्थ और लाभ।

right_arrow
srimandir-logo

श्री मंदिर ने श्रध्दालुओ, पंडितों, और मंदिरों को जोड़कर भारत में धार्मिक सेवाओं को लोगों तक पहुँचाया है। 100 से अधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साझेदारी करके, हम विशेषज्ञ पंडितों द्वारा की गई विशेष पूजा और चढ़ावा सेवाएँ प्रदान करते हैं और पूर्ण की गई पूजा विधि का वीडियो शेयर करते हैं।

हमारा पता

फर्स्टप्रिंसिपल ऐप्सफॉरभारत प्रा. लि. 435, 1st फ्लोर 17वीं क्रॉस, 19वीं मेन रोड, एक्सिस बैंक के ऊपर, सेक्टर 4, एचएसआर लेआउट, बेंगलुरु, कर्नाटका 560102
YoutubeInstagramLinkedinWhatsappTwitterFacebook