
श्री बटुक भैरव स्तोत्र भगवान भैरव के बटुक रूप की स्तुति का शक्तिशाली स्तोत्र है। इसके पाठ से भय, शत्रु प्रभाव और मानसिक कष्ट दूर होते हैं तथा जीवन में सुरक्षा, शक्ति और शांति का अनुभव होता है। जानिए सम्पूर्ण पाठ, अर्थ और लाभ।
श्री बटुक भैरव स्तोत्र भगवान भैरव के बाल स्वरूप बटुक भैरव को समर्पित एक शक्तिशाली स्तोत्र है। इसका पाठ भय, शत्रु बाधा और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। श्रद्धा और भक्ति से इसका जप करने पर जीवन में सुरक्षा, साहस और समृद्धि का वास होता है।
बटुक भैरव हिंदू धर्म में भगवान शिव का एक उग्र रूप माना जाता है। हालांकि, उनके उग्र रूप के बावजूद, उन्हें अत्यंत दयालु और भक्तों के रक्षक के रूप में भी पूजा जाता है। इसके साथ ही रुद्रयामल तंत्र में भैरव के सभी अवतारों का भी उल्लेख मिलता है, लेकिन ज्यादातर लोग काल भैरव और बटुक भैरव की ही पूजा करते हैं।
बटुक भैरव, भगवान शिव का एक उग्र और दयालु रूप हैं, जिन्हें आमतौर पर एक पांच वर्षीय बालक के रूप में दर्शाया जाता है। लेकिन, आखिर क्यों उन्हें एक बालक के रूप में दर्शाया जाता है? इस प्रश्न का उत्तर कई प्राचीन कथाओं में छिपा हुआ है। एक बार, देवी पार्वती भगवान शिव के क्रोधित रूप को देखकर बहुत व्यथित हुईं। उन्होंने भगवान शिव को शांत करने के लिए एक बालक का रूप धारण किया। इस बालक रूप को ही बटुक भैरव कहा जाता है।
देवी पार्वती के इस बाल रूप ने भगवान शिव को शांत किया और उनका क्रोध शांत हुआ। बालक रूप भगवान शिव के दयालु स्वभाव को दर्शाता है। एक बालक के रूप में, भक्त उन्हें आसानी से अपना आराध्य मान सकते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु-केतु के प्रकोप से बचने के लिए बटुक भैरव की पूजा करना लाभकारी होता है। प्रतिदिन 108 बार मंत्र (ऊं ह्वीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकायें ह्रीं बटुकाये स्वाहा) का जाप करने से बटुक भैरव प्रसन्न होते हैं। यह स्तोत्र न केवल भक्तों के मन को शांत करता है बल्कि कई प्रकार की समस्याओं से मुक्ति दिलाने में भी सहायक होता है।
बटुक भैरव को भक्तों का रक्षक माना जाता है। इस स्तोत्र का जाप करने से भक्तों को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है। यह स्तोत्र मन को शांत करता है और चिंता और तनाव को दूर करता है। इस स्तोत्र का नियमित जाप करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह स्तोत्र नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।
अधिकांश बटुक भैरव स्तोत्रों में भैरव के उग्र रूप, उनके निवास स्थान (श्मशान), उनके आभूषण (खप्पर) और उनकी शक्तियों का वर्णन होता है। इन स्तोत्रों में भक्त भैरव से रक्षा, मोक्ष और विभिन्न मनोकामनाओं की प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं।
श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्। इति बटुक भैरव स्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥
अर्थ - श्मशान में रहने वाले, मांस खाने वाले, खप्पर धारण करने वाले, स्मरण करने वालों को मारने वाले। यह स्तोत्र भैरव के उग्र रूप का वर्णन करता है।
बटुक भैरव की पूजा विशेष रूप से कालाष्टमी के दिन की जाती है। मान्यता है कि उनकी पूजा करने से भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। बटुक भैरव की पूजा गृहस्थों के लिए विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है। बटुक भैरव के कई मंत्र हैं जिनका जाप किया जाता है। उन्हें भोग के रूप में मांस, शराब और अनाज चढ़ाया जाता है।
बटुक भैरव को अपने भक्तों का रक्षक माना जाता है। उनकी पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। उनकी पूजा से भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है।
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