क्या आप जानते हैं नागेश्वर मंदिर राक्षसों से जुड़ा है? जानिए इस पवित्र ज्योतिर्लिंग का इतिहास, पौराणिक कथा, दर्शन विधि और वहां पहुंचने की पूरी जानकारी।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात में स्थित एक प्रमुख हिन्दू मंदिर है, जो देवों के देव महादेव को समर्पित है। यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। इस ज्योतिर्लिंग की और भी खासियत हैं जो आपको मंत्रमुग्ध कर सकती हैं। इस ज्योतिर्लिंग तक कैसे पहुंचे, यहां की दर्शन प्रक्रिया और इतिहास क्या है अगर आप इन सभी सवालों के जवाब के बारे में जानना चाहते हैं तो पढ़ें हमारे इस आर्टिकल को और जानें सब कुछ।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से 10वें स्थान पर आता है। यह मंदिर गुजरात राज्य के द्वारका शहर के पास, समुद्र तट के निकट स्थित है। नागेश्वर शब्द का अर्थ होता है नागों के स्वामी और यही कारण है कि इस ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से नागों के देवता के रूप में की जाती है।
मंदिर की सबसे विशेष बात इसका शांत, दिव्य वातावरण और भगवान शिव की ध्यानमग्न अवस्था में स्थित विशाल प्रतिमा है। लगभग 25 मीटर ऊँची यह प्रतिमा दूर से ही मन को आकर्षित करती है। ऐसा माना जाता है कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है, अर्थात यह शिवलिंग स्वयं धरती पर प्रकट हुआ था। यहां दर्शन करने से व्यक्ति को भय, नकारात्मक ऊर्जा और जीवन की तमाम उलझनों से मुक्ति मिलती है। यहां आने वाला हर भक्त मानसिक शांति, ऊर्जा और भगवान शिव की कृपा का अनुभव करता है। नागेश्वर मंदिर एक ऐसा स्थान है, जहां श्रद्धा और शक्ति का अनूठा संगम देखने को मिलता है।
नागेश्वर मंदिर भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात में स्थित है और यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर द्वारका से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो कि एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है और भगवान श्रीकृष्ण की नगरी के रूप में जाना जाता है। नागेश्वर मंदिर का स्थान समुद्र तट के पास है, जिससे यहां का वातावरण शांत, पवित्र और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर होता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए द्वारका से टैक्सी, बस या निजी वाहन की सुविधा आसानी से उपलब्ध है। हर साल हजारों श्रद्धालु यहां आकर भगवान शिव के दर्शन करते हैं और ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते हुए आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति का अनुभव करते हैं।
नागेश्वर मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। नागेश्वर मंदिर का इतिहास पौराणिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है, जो भगवान शिव की भक्ति और चमत्कारों का प्रतीक है। भगवान शिव इसी स्थसल पर स्वयंभू शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए, जो आज नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। यह मंदिर न सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि यह भक्ति, आशा और चमत्कारों का मेल है, जो आज भी लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा बहुत ही प्रसिद्ध है। मान्यता के अनुसार, दारुक नाम का एक राक्षस अपनी पत्नी दारुका के साथ समुद्र के किनारे एक जंगल में रहता था। दारुका को भगवान शिव से एक विशेष वरदान मिला हुआ था, जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गए थे। इस शक्ति का दुरुपयोग करते हुए दारुक और दारुका ने कई संतों और शिव भक्तों को बंदी बना लिया और उन पर अत्याचार करने लगे। उन्हीं भक्तों में एक सुप्रिया नाम का शिव भक्त भी था, जिसे उन्होंने कैद कर लिया।
सुप्रिया ने जेल में भी भगवान शिव की भक्ति नहीं छोड़ी और लगातार ॐ नमः शिवाय का जाप करते रहे। उनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव एक दिव्य प्रकाश के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने दारुकासुर का वध किया और सभी बंदियों को मुक्त कर दिया। सुप्रिया की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करने का वचन दिया। तभी से यह स्थान नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है और आज भी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में दर्शन की प्रक्रिया बेहद शांति और श्रद्धा से भरी होती है। यह मंदिर प्रतिदिन सुबह 6 बजे से रात 9:30 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है। जैसे ही सुबह मंदिर के कपाट खुलते हैं, श्रद्धालु सबसे पहले मंगला आरती में शामिल होते हैं। सुबह की यह आरती वातावरण को भक्तिमय बना देती है और मंदिर परिसर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
इसके बाद दोपहर में मध्याह्न आरती की जाती है, जिसमें भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा होती है। भक्त पंक्ति में खड़े होकर मंदिर में प्रवेश करते हैं। प्रवेश के समय जूते-चप्पल बाहर उतारना अनिवार्य होता है। मंदिर में शांति बनाए रखना और मोबाइल फोन का उपयोग न करना भी दर्शन के दौरान आवश्यक नियमों में से एक है। जिसमें दीप, घंटियों और मंत्रोच्चार से पूरा मंदिर गूंज उठता है।
रात्रि में 9 बजे अंतिम आरती होती है, जिसके बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। पर्व-त्योहारों और विशेष अवसरों पर आरती और दर्शन के समय में परिवर्तन भी हो सकता है। दर्शन के दौरान भक्तों से अपेक्षा की जाती है कि वे संयम और श्रद्धा के साथ नियमों का पालन करें। यह प्रक्रिया न केवल धार्मिक नियमों का पालन है, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुशासन भी है, जो भक्तों को आंतरिक शांति और शिव कृपा की अनुभूति कराता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तक पहुंचना आसान और सुविधाजनक है, क्योंकि यह गुजरात राज्य के प्रसिद्ध तीर्थस्थल द्वारका के पास स्थित है। नागेश्वर मंदिर, द्वारका से लगभग 17–18 किलोमीटर की दूरी पर है और वहां तक हवाई, रेल और सड़क तीनों माध्यमों से आसानी से पहुंचा जा सकता है। तो आइए जानते हैं यहां पहुंचने के रास्तों और माध्यमों के बारे में।
अगर आप हवाई मार्ग से यात्रा करना चाहते हैं, तो सबसे निकटतम हवाई अड्डा जामनगर है, जो नागेश्वर से लगभग 137 किलोमीटर दूर है। जामनगर एयरपोर्ट देश के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। वहां से आप टैक्सी या प्राइवेट कैब लेकर सीधे नागेश्वर मंदिर तक पहुंच सकते हैं। हवाई यात्रा उन यात्रियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है जो दूर-दराज के राज्यों से आ रहे हैं और समय की बचत चाहते हैं।
रेल मार्ग से भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तक पहुंचना आसान है। द्वारका रेलवे स्टेशन, जो मंदिर से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, सबसे निकटतम बड़ा स्टेशन है। यह स्टेशन देश के अनेक प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। स्टेशन से बाहर निकलते ही टैक्सी, ऑटो रिक्शा और स्थानीय बसें आसानी से उपलब्ध होती हैं, जो श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुंचा देती हैं। ट्रेन यात्रा उन यात्रियों के लिए उपयुक्त है जो लंबी दूरी की यात्रा आराम से करना चाहते हैं और किफायती साधन की तलाश में हैं।
सड़क मार्ग से भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा की जा सकती है। द्वारका शहर गुजरात के सड़क नेटवर्क से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है और वहां से नागेश्वर मंदिर तक जाने के लिए टैक्सी, बसें, या अपनी निजी गाड़ी का उपयोग किया जा सकता है। जो यात्री राज्य के अंदरूनी इलाकों से आ रहे हैं, उनके लिए यह मार्ग अधिक सुविधाजनक होता है। सड़क मार्ग पर सफर करते हुए आप आसपास के प्राकृतिक दृश्यों और स्थानीय संस्कृति का भी अनुभव कर सकते हैं, जिससे यात्रा और भी स्मरणीय बन जाती है। विशेष पर्वों और त्योहारों के दौरान श्रद्धालुओं की संख्या अत्यधिक बढ़ जाती है, इसलिए उस समय पूर्व योजना बनाकर यात्रा करना अधिक सुविधाजनक रहता है।
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