क्या आप जानते हैं मल्लिकार्जुन मंदिर का धार्मिक महत्व? जानिए कहां है ये पवित्र ज्योतिर्लिंग, उसका इतिहास, दर्शन विधि और वहां कैसे पहुंचें
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में स्थित है। यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां शिवजी और देवी पार्वती की उपासना होती है। यह स्थल भक्तों के लिए मोक्षदायी माना जाता है। आइये जानते हैं इसके बारे में...
भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं। इन सभी ज्योतिर्लिंगों का अलग-अलग महत्व है। इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, जो आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम नामक स्थान पर स्थित है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की एक और विशेषता यह है कि यह सिर्फ एक ज्योतिर्लिंग नहीं, बल्कि एक शक्तिपीठ भी है।
यानी यहां भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती की भी पूजा होती है। यही कारण है कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को विशेष माना जाता है। यहां भगवान शिव को अर्जुन और माता पार्वती को मल्लिका के रूप में पूजा जाता है। इन्हीं दोनों नाम को जोड़कर इस मंदिर का नाम पड़ा ‘मल्लिकार्जुन’। यह मंदिर हर उस व्यक्ति के लिए विशेष है, जो भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती दोनों की कृपा एक साथ पाना चाहते हैं।
मल्लिकार्जुन मंदिर आंध्र प्रदेश राज्य के कुरनूल जिले में स्थित है। यह जगह श्रीशैलम नाम से जानी जाती है। यह एक सुंदर पहाड़ी क्षेत्र है, जो कृष्णा नदी के किनारे बसा है। मल्लिकार्जुन मंदिर श्रीशैलम पर्वत पर बना हुआ है, जिसे लोग ‘श्री पर्वत” या ‘क्रौंच पर्वत” भी कहते हैं। श्रीशैलम में हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर को ‘दक्षिण का कैलाश’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह दक्षिण भारत में भगवान शिव का सबसे प्रसिद्ध और पवित्र धाम माना जाता है।
अगर हम मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास देखें तो यह बहुत ही पुराना है। इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कई हजार साल पहले हुआ था। इतिहास में इसका सबसे पहले उल्लेख 1 ईस्वी में शातवाहन वंश के समय में मिलता है, जिसके बाद इस मंदिर के रखरखाव और निर्माण में कई राजाओं का योगदान रहा। पल्लव, चालुक्य, इक्ष्वाकु और रेड्डी वंश के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।
बाद में विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने भी इस मंदिर को भव्य रूप दिया। छत्रपति शिवाजी महाराज ने 1667 में इस मंदिर के मुख्य द्वार यानी ‘गोपुरम’ का निर्माण कराया। मुगल काल में कुछ समय के लिए इस मंदिर में पूजा रुक गई थी, लेकिन ब्रिटिश शासन में फिर से यहां पूजा शुरू हुई। आज़ादी के बाद यह मंदिर एक बार फिर लोगों की आस्था का केंद्र बन गया। आपको बता दें कि मंदिर की दीवारें ऊंची हैं। इन पर सुंदर नक्काशी की गई है, वहीं मंदिर के अंदर की मूर्तियां और चित्र भी बहुत आकर्षक हैं। यहां के मंदिर की बनावट में आपको पुरातन कला की झलक देखने को मिलेगी।
पुराणों में वर्णन मिलता है कि एक बार भगवान शिव और माता पार्वती विचार कर रहे थे कि उनके दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय अब विवाह योग्य हो गए हैं। लेकिन दोनों में से किसका विवाह पहले किया जाए, उनके लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा था। यह दुविधा देखते हुए उन्होंने एक प्रतियोगिता रखी। शर्त यह थी कि जो पहले पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा कर आएगा, उसी का विवाह पहले होगा।
यह सुनते ही कार्तिकेय जी अपने वाहन मोर पर बैठकर निकल गए। वहीं गणेश जी ने अपने माता-पिता यानी शिव-पार्वती की तीन बार परिक्रमा की और कहा कि मेरे लिए आप दोनों ही पूरी दुनिया हैं। गणेश जी की इस समझदारी से भगवान शिव और माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने गणेश जी का विवाह रिद्धि- सिद्धि से करा दिया। वहीं जब कार्तिकेय जी परिक्रमा कर वापस लौटे और उन्हें यह सब पता चला, तो वह इस निर्णय से आहत होकर कैलाश छोड़कर क्रौंच पर्वत, यानी वर्तमान श्रीशैलम चले गए।
माता-पिता ने उन्हें मनाने के लिए बहुत प्रयास किया, लेकिन जब वे नहीं माने तो भगवान शिव और माता पार्वती ने विचार किया कि अब हम ही समय-समय पर अपने पुत्र से मिलने जाते रहेंगे।
माना जाता है कि भगवान शिव अमावस्या के दिन और माता पार्वती पूर्णिमा के दिन कार्तिकेय से मिलने श्रीशैलम पर्वत पर आते हैं। यहां मल्लिका यानी पार्वती और अर्जुन यानी भगवान शिव एक साथ पूजे जाते हैं, इसीलिए यह स्थान मल्लिकार्जुन कहलाया।
मल्लिकार्जुन मंदिर में दर्शन प्रक्रिया की बात करें तो यहां मंदिर के कपाट सुबह 4:30 खुलते हैं, और दोपहर 3:30 तक खुले रहते हैं। इसके बाद मंदिर 4:30 से रात 10:00 बजे तक फिर से भक्तों के लिए खुलता है।
सुबह और शाम दो बार आरती होती है। पहली आरती सुबह 6:00 बजे और दूसरी आरती शाम 5:30 पर। आरती के समय मंदिर में सुंदर भजन और घंटियों की आवाज गुंजायमान रहती है, जिससे वातावरण पूरी तरह से भक्तिमय हो जाता है।
दर्शन करते समय भक्त शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, फूल व दूध चढ़ाते हैं। वहीं कुछ श्रद्धालु इस दौरान अभिषेक भी करवाते हैं। यहां माता पार्वती की पूजा ‘भ्रामराम्बा देवी’ के रूप में होती है। भक्त पहले शिवलिंग के दर्शन करते हैं, उसके बाद माता भ्रामराम्बा देवी का आशीर्वाद लेते हैं।
यदि आप मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का प्लान बना रहे हैं, तो आपके पास हवाई, रेल और सड़क तीनों मार्गो से श्रीशैलम पहुंचने की विकल्प हैं।
हवाई मार्ग द्वारा यात्रा करने वालों के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डे कुरनूल (लगभग 181 किलोमीटर) और हैदराबाद (लगभग 217 किलोमीटर) में स्थित हैं। कुरनूल एक छोटा डोमेस्टिक हवाई अड्डा है, जबकि हैदराबाद का राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय टर्मिनल है, जो देश-विदेश के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। इन हवाई अड्डों से श्रीशैलम तक पहुंचाने के लिए टैक्सी, निजी गाड़ियां या APSRTC की नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। हैदराबाद से सड़क मार्ग द्वारा यात्रा करते हुए आपको लगभग 5 से 6 घंटे का समय लगेगा।
रेल मार्ग से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए श्रीशैलम का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है मर्कापुर रोड, जो मंदिर से लगभग 85 किलोमीटर दूर है। मर्कापुर से श्रीशैलम तक पहुंचने के लिए बस सेवा या टैक्सी आसानी से उपलब्ध है। यात्रा के दौरान आप हरे-भरे पहाड़ी दृश्य, छोटे-छोटे झरनों और कृष्णा नदी की झलकियों का आनंद ले सकते हैं।
सड़क मार्ग की बात करें तो अगर आप हैदराबाद से यात्रा कर रहे हैं, तो श्रीशैलम तक की दूरी लगभग 250 किलोमीटर है। इस मार्ग में आप नागार्जुन सागर बांध से होकर गुजरते हैं। यात्रा के दौरान जंगल, घाटी और पर्वतीय मोड़ आपकी यात्रा को रोचक बना देते हैं। सड़के अच्छी स्थिति में हैं, लेकिन कुछ हिस्सों में पहाड़ी मोड़ होने के कारण ड्राइविंग में सावधानी बरतनी चाहिए।
यह थी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ी विशेष जानकारी। यदि आप भगवान शिव के भक्त हैं, तो इस अद्भुत मंदिर की यात्रा जरूर करें। हमारी कामना है कि मल्लिकार्जुन आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें, और सदा अपनी कृपा बनाए रखें।
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