क्या आप जानते हैं भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व? जानिए कहां स्थित है यह मंदिर, इसकी पौराणिक कथा, दर्शन की विधि और यात्रा की पूरी जानकारी।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में स्थित है। यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। घने जंगलों और प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा यह स्थल आध्यात्मिक शांति और दर्शन के लिए प्रसिद्ध है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के सह्याद्री पर्वतमाला में स्थित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा हुआ है और भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य के नजदीक स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार, यहाँ भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने के बाद भीमशंकर के रूप में प्रकट हुए थे।
मंदिर का वास्तुशिल्प नागर और द्रविड़ शैली का अनूठा मिश्रण है, जिसमें बारीक नक्काशी देखने को मिलती है। यहाँ का शांत वातावरण और पास बहती भीमा नदी इसकी पवित्रता को बढ़ाती है। महाशिवरात्रि और सावन माह में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व के कारण भीमाशंकर तीर्थयात्रियों और ट्रेकिंग प्रेमियों दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र है। आइए जानते हैं भीमाशंकर मंदिर कहां है, इसका इतिहास और पौराणिक कथाएं...
भीमाशंकर मंदिर महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले में सह्याद्री पर्वतमाला (पश्चिमी घाट) की घनी हरियाली के बीच स्थित है। यह पुणे शहर से लगभग 110 किलोमीटर और मुंबई से लगभग 220 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य के निकट बसा हुआ है, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है।
बहुत समय पहले त्रेतायुग में एक राक्षस था जिसका नाम त्रिपुरासुर था। वह अमरता का वरदान पाने के लिए भीमाशंकर के जंगलों में जाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या करने लगा। भगवान शिव, जो अपने भक्तों पर बहुत कृपा करते हैं, त्रिपुरासुर की भक्ति से प्रसन्न हो गए। उन्होंने त्रिपुरासुर को अमर होने का आशीर्वाद दिया, लेकिन एक शर्त रखी- "तुम्हें हमेशा लोगों की भलाई के लिए काम करना होगा, वरना यह वरदान खत्म हो जाएगा और तुम्हें दंड मिल सकता है।"
शुरुआत में त्रिपुरासुर ठीक रहा, लेकिन समय बीतने के साथ वह अपनी शर्त भूल गया और लोगों को परेशान करने लगा। वह देवताओं को भी तंग करने लगा। चारों तरफ अराजकता फैल गई। तब सभी देवता भगवान शिव के पास मदद के लिए पहुंचे। भगवान शिव ने तब देवी पार्वती (कमलजा माता) से सहायता मांगी और दोनों ने मिलकर एक नया रूप लिया — "अर्धनारीश्वर", जिसमें आधा भाग शिव का और आधा पार्वती का था। फिर कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया। तभी से इस दिन को "त्रिपुरारी पूर्णिमा" कहा जाने लगा।
त्रिपुरासुर की मौत के बाद उसकी दो पत्नियाँ — डाकिनी और शाकिनी, भगवान शिव के पास गईं और उनसे प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने उन्हें भी अमरता का वरदान दे दिया, जो उन्होंने त्रिपुरासुर को दिया था। इसी कारण से यह क्षेत्र बाद में "डाकिन्यमभीमाशंकरम" के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
रावण का भाई कुंभकर्ण और उसकी पत्नी कर्कटी का एक पुत्र था, जिसका नाम भीमा था। जब भीमा का जन्म हुआ, तब उसके पिता कुंभकर्ण की मृत्यु हो चुकी थी। जब भीमा बड़ा हुआ और उसे यह पता चला कि भगवान राम ने उसके पिता का वध किया था, तो वह बहुत क्रोधित हुआ। अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए उसने कठोर तपस्या की।
उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने उसे असीम शक्ति का वरदान दिया। वरदान मिलने के बाद भीमा घमंडी हो गया और देवताओं को तंग करने लगा। उसने धरती पर भी अत्याचार शुरू कर दिए। साधु-संतों और ऋषियों को परेशान करने लगा।
एक दिन भीमा ने एक ऐसे स्थान पर उत्पात मचाया, जहां लोग भगवान शिव की भक्ति कर रहे थे। उसने भक्तों को शिव की पूजा करने से मना किया और कहा कि वे उसकी पूजा करें। लेकिन भक्तों ने उसकी बात नहीं मानी। इससे क्रोधित होकर भीमा ने सभी को मारने की धमकी दी। भक्तों की पुकार सुनकर भगवान शिव वहां प्रकट हुए और भीमा से युद्ध किया। यह युद्ध कई दिनों तक चला। अंत में भगवान शिव ने भीमा का वध किया। इसके बाद, भगवान शिव ने वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर भक्तों को आशीर्वाद दिया।
यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह स्थान सह्याद्री पर्वत श्रृंखला, पुणे (महाराष्ट्र) में स्थित है। यहां पास में ही भीमा नदी बहती है, जिसका नाम भी इसी कथा से जुड़ा है। यह स्थान भगवान शिव की शक्ति और उनके भक्तों के प्रति करुणा का प्रतीक है। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि भगवान शिव अपने सच्चे भक्तों की रक्षा के लिए सदा तैयार रहते हैं।
भीमाशंकर मंदिर महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले में सह्याद्री पर्वत श्रृंखला की गोद में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं- रेल, वायु और सड़क मार्ग।
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